सरगुजा: डॉक्टर्स को हम 'धरती का भगवान' कहते हैं, लेकिन उन्हें भूल जाते हैं जो अस्पताल में हमारे इलाज के दौरान हमारी तीमारदारी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते. छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्यकर्मियों में एक पद होता है मितानिन का. इनका काम होता है स्वास्थ्य संबंधी जानकारी देने का और जरूरत पड़ने पर मदद करने का. हम आपको छत्तीसगढ़ की ऐसी मितानिन से मिलवाते हैं, जो सरपंच का चुनाव लड़ीं, जीती लेकिन जब कर्म की बात आई तो सबके लिए मिसाल बन गईं.
मितानिन से सरपंच बनी आशा देवी जैसे ही चुनाव जीतीं उनके घर पर जश्न का माहौल था, लेकिन तभी गांव में एक रेखा नाम की महिला को प्रसव पीड़ा होने पर अस्पताल लाया गया. नवनिर्वाचित सरपंच जश्न छोड़ प्रसूता को लेकर स्वास्थ्य केंद्र पहुंच गईं, जहां महिला का सुरक्षित प्रसव कराया और महिला ने एक बेटे को जन्म दिया.
नया ग्राम पंचायत है किशुनपुर
दरअसल संभाग मुख्यालय अम्बिकापुर से 22 किलोमीटर दूर सकालो ग्राम पंचायत के एक हिस्से को काटकर नए ग्राम पंचायत का निर्माण किया गया है. गांव का नाम किशुनपुर है और गांव के पहले चुनाव में गांव की मितानिन आशा देवी चुनाव लड़ रही थी.
जश्न के माहौल को छोड़कर सरंपच ने निभाया अपना दायित्व
28 जनवरी को यहां मतदान हुआ और उसी दिन शाम को मतगणना हुई और आशा देवी ने सरपंच पद का चुनाव जीता. गांव के लोग बधाई देने आशा के घर पहुंचने लगे. जश्न का माहौल बना हुआ था, लेकिन तभी आशा को खबर मिली की गांव की 23 वर्षीय रेखा को प्रसव पीड़ा हो रही है. जिसके बाद आशा देवी ने जश्न छोड़ा और अपने पति के साथ तुरंत प्रसूता को लेकर शहरी स्वास्थ्य केंद्र नवापारा पहुंची, जहां रेखा के एक बेटे को जन्म दिया.
सरपंच रहते हुए मितानिन का काम करना चाहती है आशा
आशा देवी मितानिन के पद पर पदस्थ हैं, लेकिन अब वो गांव की सरपंच हैं. जाहिर है कि मितानिन के काम के लिए मिलने वाले मानदेय की वजह से नौकरी करना उनकी मजबूरी नहीं है, लेकिन फिर भी आशा सरपंच रहते हुए मितानिन का काम करना चाहती हैं. वो मितानिन रहते हुए सामाजिक क्षेत्र में जुड़कर समाजसेवा करना चाहती हैं.