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सरगुज़ा: एक तरफ ममता का आंचल, तो दूसरी ओर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ - शहर का व्यस्ततम मार्ग

प्रदेश में बड़े बहुमत से बनी भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार भी खुद को किसान और गरीब हितैषी बताती है, लेकिन ये तस्वीरें विचलित करने वाली हैं.

ममता का आंचल
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Published : Jun 29, 2019, 11:42 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST

सरगुजा: हम आपको मंगल गृह तक का सफर तय करने वाले भारत की असल तस्वीर दिखा रहे हैं, जहां केंद्र की मोदी सरकार सबका साथ सबका विकास का नारा देती है. अंत्योदय के लक्ष्य का डंका पीट अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचाने की बात करती है. प्रदेश में बड़े बहुमत से बनी भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार भी खुद को किसान और गरीब हितैषी बताती है, लेकिन ये तस्वीरें विचलित करने वाली हैं.

एक तरफ ममता का आंचल, तो दूसरी ओर दो वक्त की रोटी का जुगाड़

इन तस्वीरों और सरकारों के दावो में जरा भी मेल नहीं दिखता है, जिस देश में नारी के सम्मान की बात की जाती है, वहां एक मां अपने बच्चों का पेट भरने इस कदर मजबूर है कि बच्चों को साथ लेकर मजदूरी का काम करती है. तस्वीरें छत्तीसगढ़ के सरगुज़ा की हैं.

बाउंड्रीवाल का काम किया जा रहा
विशुद्ध आदिवासी क्षेत्र सरगुज़ा मुख्यालय के अम्बिकापुर नगर निगम कार्यालय के ठीक बगल में गार्डन बनाने के लिये बाउंड्रीवाल का काम किया जा रहा है. इसी निर्माण में हमे एक महिला तेज धूप में मिट्टी के ऊपर बैठे दो छोटे-छोटे अर्ध नग्न बच्चों का पसीना पोंछती दिखी. लिहाजा इस मर्म को ETV भारत ने अपने कैमरे में कैद कर लिया. तस्वीरों में देखा जा सकता है की दो मासूम जिनके शरीर मे ढंग से कपड़े तक नही हैं, वो गंदगी में मिट्टी के ऊपर तेज धूप में खेल रहे हैं. क्योंकी उनकी मां को मजदूरी करनी है, ताकी शाम को उसके घर का चूल्हा जल सके. एक अन्य महिला अपने बच्चे को कपड़े के सहारे अपनी पीठ पर बांधकर मजदूरी कर रही है. धूल मिट्टी, तेज धूप में अपने जिगर के टुकड़े को छोड़कर मजदूरी कर रही है. पापी पेट का सवाल जो है. मां को काम करना है ताकि बच्चा भूखा ना रहे. बहरहाल मामला जितना मार्मिक है, उतना ही गैरजिम्मेदाराना भी क्योंकी इस तरह के काम में इन बच्चो की जान का खतरा भी हो सकता है, लेकिन करें भी तो क्या करें क्योंकी ये मजबूत भारत की मजबूर तस्वीर है.

दोनों महिलाओं की मजबूरी
इन दोनों महिलाओं की मजबूरी ऐसी है कि वो किसी अंजाने डर में थी. हमें अपना नाम कसी हाल में बताने को तैयार नहीं थी, बमुश्किल एक ने बताया कि वो पहाड़ी कोरवा जनजाति की है और जीवन चलाने के लिए बलरामपुर जिले के शंकरगढ़ से यहां आकर मजदूरी का काम करती हैं. बता दें की शंकरगढ़ अम्बिकापुर से 80 किलोमीटर दूर है और पहाड़ी कोरवा जनजाति विशेष संरक्षित जनजाति है.

शहर का व्यस्ततम मार्ग
बड़ी बात यह है कि जिस जगह पर महिला काम कर रही थी, वह शहर का व्यस्ततम मार्ग है, लेकिन वहां से गुजरने वाले न जाने कितने आम लोगों सहित जिम्मेदार अधिकारियों की नजर भी इन पर नहीं गई या नजर गई भी तो ये दृश्य देख किसी का दिल नहीं पसीजा. खैर हमने तस्वीरों को कैद इसलिए कर लिया ताकी देश के गरीबों की चिंता करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल सरगुज़ा की इस असल तस्वीर को देख सकें और शायद यहां के वनवासियों के जीवन में सुधार हो सके.

सरगुजा: हम आपको मंगल गृह तक का सफर तय करने वाले भारत की असल तस्वीर दिखा रहे हैं, जहां केंद्र की मोदी सरकार सबका साथ सबका विकास का नारा देती है. अंत्योदय के लक्ष्य का डंका पीट अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचाने की बात करती है. प्रदेश में बड़े बहुमत से बनी भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार भी खुद को किसान और गरीब हितैषी बताती है, लेकिन ये तस्वीरें विचलित करने वाली हैं.

एक तरफ ममता का आंचल, तो दूसरी ओर दो वक्त की रोटी का जुगाड़

इन तस्वीरों और सरकारों के दावो में जरा भी मेल नहीं दिखता है, जिस देश में नारी के सम्मान की बात की जाती है, वहां एक मां अपने बच्चों का पेट भरने इस कदर मजबूर है कि बच्चों को साथ लेकर मजदूरी का काम करती है. तस्वीरें छत्तीसगढ़ के सरगुज़ा की हैं.

बाउंड्रीवाल का काम किया जा रहा
विशुद्ध आदिवासी क्षेत्र सरगुज़ा मुख्यालय के अम्बिकापुर नगर निगम कार्यालय के ठीक बगल में गार्डन बनाने के लिये बाउंड्रीवाल का काम किया जा रहा है. इसी निर्माण में हमे एक महिला तेज धूप में मिट्टी के ऊपर बैठे दो छोटे-छोटे अर्ध नग्न बच्चों का पसीना पोंछती दिखी. लिहाजा इस मर्म को ETV भारत ने अपने कैमरे में कैद कर लिया. तस्वीरों में देखा जा सकता है की दो मासूम जिनके शरीर मे ढंग से कपड़े तक नही हैं, वो गंदगी में मिट्टी के ऊपर तेज धूप में खेल रहे हैं. क्योंकी उनकी मां को मजदूरी करनी है, ताकी शाम को उसके घर का चूल्हा जल सके. एक अन्य महिला अपने बच्चे को कपड़े के सहारे अपनी पीठ पर बांधकर मजदूरी कर रही है. धूल मिट्टी, तेज धूप में अपने जिगर के टुकड़े को छोड़कर मजदूरी कर रही है. पापी पेट का सवाल जो है. मां को काम करना है ताकि बच्चा भूखा ना रहे. बहरहाल मामला जितना मार्मिक है, उतना ही गैरजिम्मेदाराना भी क्योंकी इस तरह के काम में इन बच्चो की जान का खतरा भी हो सकता है, लेकिन करें भी तो क्या करें क्योंकी ये मजबूत भारत की मजबूर तस्वीर है.

दोनों महिलाओं की मजबूरी
इन दोनों महिलाओं की मजबूरी ऐसी है कि वो किसी अंजाने डर में थी. हमें अपना नाम कसी हाल में बताने को तैयार नहीं थी, बमुश्किल एक ने बताया कि वो पहाड़ी कोरवा जनजाति की है और जीवन चलाने के लिए बलरामपुर जिले के शंकरगढ़ से यहां आकर मजदूरी का काम करती हैं. बता दें की शंकरगढ़ अम्बिकापुर से 80 किलोमीटर दूर है और पहाड़ी कोरवा जनजाति विशेष संरक्षित जनजाति है.

शहर का व्यस्ततम मार्ग
बड़ी बात यह है कि जिस जगह पर महिला काम कर रही थी, वह शहर का व्यस्ततम मार्ग है, लेकिन वहां से गुजरने वाले न जाने कितने आम लोगों सहित जिम्मेदार अधिकारियों की नजर भी इन पर नहीं गई या नजर गई भी तो ये दृश्य देख किसी का दिल नहीं पसीजा. खैर हमने तस्वीरों को कैद इसलिए कर लिया ताकी देश के गरीबों की चिंता करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल सरगुज़ा की इस असल तस्वीर को देख सकें और शायद यहां के वनवासियों के जीवन में सुधार हो सके.

Intro:सरगुज़ा : मंगल गृह तक का सफर तय करने वाले भारत की असल तस्वीर हम आपको दिखा रहे हैं, जहां केंद्र की मोदी सरकार सबका साथ सबका विकास का नारा देती है, अंत्योदय कें लक्ष्य का डंका पीट अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुचाने की बात करती है, प्रदेश में बड़े बहुमत से बनी भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार भी खुद को किसान और गरीब हितैषी बताती है, लेकिन ये तस्वीरें विचलित करने वाली हैं, इन तस्वीरों और सरकारों के दावो में जरा भी मेल नही दिखता है, जिस देश मे नारी के सम्मान की बात की जाती है वहां एक माँ अपने बच्चों का पेट भरने इस कदर मजबूर है की बच्चों को साथ लेकर मजदूरी का काम करती है।


Body:तस्वीरें छत्तीसगढ़ के सरगुज़ा की हैं विशुद्ध आदिवासी क्षेत्र सरगुज़ा मुख्यालय के अम्बिकापुर नगर निगम कार्यालय के ठीक बगल में गार्डन बनाने के लिये बाउंड्रीवाल का काम किया जा रहा है, इसी निर्माण में हमे एक महिला तेज धूप में मिट्टी के ऊपर बैठे दो छोटे छोटे अर्ध नग्न बच्चों का पसीना पोंछती दिखी, लिहाजा इस मर्म को ईटीव्ही भारत ने अपने कैमरे में कैद कर लिया, तस्वीरों में देखा जा सकता है की दो मासूम जिनके शरीर मे ढंग से कपड़े तक नही हैं, वो गंदगी में मिट्टी के ऊपर तेज धूप में खेल रहे हैं, क्योंकी उनकी माँ को मजदूरी करने है, तभी तो शाम को उनके घर चूल्हा जल सकेगा, इसी जगह ओर एक अन्य महिला अपने बच्चे को कपड़े के सहारे अपनी पीठ पर बांध कर, मजदूरी कर रही है, धूल मिट्टी, तेज धूप उस मासूम के कोमल शरीर को कष्ट दे रही हैं, लेकिन वो करे भी तो क्या करे आखिर पेट का सवाल जो है, माँ को काम करना है ताकि बच्चा भूखा ना रहे। बहरहाल मामला जितना मार्मिक है उतना ही गैरजिम्मेदाराना भी क्योंकी इस तरह के काम मे इन बच्चो की जान को खतरा भी हो सकता है, लेकिन करें भी तो क्या करें क्योंकी ये मजबूत भारत की मजबूर तस्वीर है।

इन दोनों महिलाओं की मजबूरी ऐसी है की वो किसी अंजाने डर में थी, हमे अपना नाम कसी हाल में बताने को तैयार नही थी, बामुश्किल एक ने बताया की वो पहाड़ी कोरवा जनजाति की है और जीवनी चलाने के लिए बलरामपुर जिले के शंकरगढ़ से यहां आकर मजदूरी का काम करती हैं। आपको बता दें की शंकर गढ़ अम्बिकापुर से 80 किलोमीटर दूर है, और पहाड़ी कोरवा जनजाति विशेष संरक्षित जनजाति है।


Conclusion:बड़ी बात यह है की जिस जगह पर महिला काम कर रही थी वह शहर का व्यस्ततम मार्ग है, लेकिन वहां से गुजरने वाले ना जाने कितने आम लोगो सहित जिम्मेदार अधिकारियों की नजर भी इन पर नही गई या नजर गई भी तो ये दृश्य देख किसी का दिल नही पसीचा, खैर हमने तस्वीरों को कैद इसलिए कर लिया ताकी देश के गरीबो की चिंता करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल सरगुज़ा की इस असल तस्वीर को देख सकें और शायद तब शायद यहां के वनवासियों के जीवन मे सुधार हो सके।

देश दीपक गुप्ता सरगुज़ा
Last Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST
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