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SLRM का स्वच्छता मॉडल नहीं होता तो अंबिकापुर में होता कचरे का पहाड़ - अंबिकापुर की स्वच्छता दीदियां

एसएलआरएम के स्वच्छता मॉडल (Sanitation Model of SLRM) ने अंबिकापुर को अलग पहचान दिलायी. अगर ये मॉडल नहीं होता तो शहर की अलग ही पहचान होती...

mountain of garbage happens in Ambikapur
अंबिकापुर में होता कचरे का पहाड़
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Published : Feb 28, 2022, 3:52 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: एसएलआरएम के स्वच्छता मॉडल ने शहर को देश दुनिया में एक अलग पहचान दिलायी है. डोर टू डोर कचरा प्रबंधन (door to door waste management in ambikapur) कर स्वच्छता दीदियां (Ambikapur cleanliness didiya) ने करोड़ों रुपये की आय अर्जित की. अगर इस अभियान की शुरुआत नहीं हुई होती तो शहर की सूरत आखिर कैसी होती? इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि महज 6 सालों में ही कचरे का पहाड़ तैयार हो जाता.

एसएलआरएम का स्वच्छता मॉडल

साल 2015 में हुई कचरा प्रबंधन की शुरुआत

शहर में कचरा प्रबंधन की शुरुआत साल 2015 में की गई थी. महीनों की ट्रेनिंग और योजनाओं पर काम करने के बाद तत्कालीन कलेक्टर ऋतु सेन ने इस योजना को निगम की कांग्रेस सरकार के साथ मिलकर अमली जामा पहनाने का कार्य किया था. मार्च 2015 में शहर के बौरीपारा केनाबांध में पहला एसएलआरएम बनकर तैयार हुआ. साथ ही अगस्त माह के अंत तक सभी 17 एसएलआरएम सेंटर बनकर तैयार हुए जबकि जनवरी 2016 में 18वें सेंटर के माध्यम से स्वच्छता दीदियों ने डोर टू डोर कचरा प्रबंधन का काम शुरू किया, जो महापौर डॉ. अजय तिर्की के नेतृत्व में निरंतर जारी रहा.

नगर निगम का मिला पूरा सहयोग

निगम की सरकार के साथ ही प्रशासन व खास तौर पर जनता का भरपूर समर्थन मिला. कोरोनाकाल के कठिन दौर में भी इन स्वच्छता दीदियों ने हिम्मत नहीं हारी. शहर को स्वच्छ रखने का काम किया. जिसकी बदौलत आज शहर का नाम देशभर में लिया जा रहा है. दूसरे राज्यों के प्रतिनिधि, अधिकारी यहां का स्वच्छता मॉडल देखने आ रहे हैं.

यह भी पढ़ें: अम्बिकापुर में जल्द खुलने जा रहा सी-मार्ट, इस मार्ट से देसी प्रोडक्ट को मिलेगा बढ़ावा

प्रतिदिन शहर से निकलता है 52 मीट्रिक टन कचरा

एसएलआरएम सेंटर का महत्व कितना है. इन दीदियों ने शहर की सफाई व्यवस्था में कितना बड़ा योगदान दिया है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शहर में 470 दीदियां कार्य कर रही हैं. 150 रिक्शा की मदद से कचरा संग्रहण किया जा रहा है. प्रतिदिन 50 से 52 मीट्रिक टन कचरा निकलता है. इसके साथ ही प्रतिमाह शहर में 16 सौ टन कचरे का संग्रहण किया जाता है. साल 2015 से अब तक के सफर में इन स्वच्छता दीदियों ने शहर के 48 वार्डों से 1 लाख 20 हजार टन कचरा का संग्रहण किया है. गीले कचरे से खाद व सूखे कचरे रिसाइकिल कर प्लास्टिक दाना व अन्य कार्य किये गए.

70 वर्षों का कचरा प्रोसेस कर बनाया पार्क

बड़ी बात यह है कि शहर से निकले 1 लाख 20 हजार टन कचरा को फेंकने के लिए 15-16 एकड़ जमीन चाहिए. सांडबार स्थिर डम्पिंग यार्ड में भी साल 2016 तक 16 एकड़ जमीन पर कचड़ा का पहाड़ बना हुआ था. 70 वर्षों के इस कचरे को निगम ने प्रोसेस कर सेनेटरी पार्क में तब्दील किया गया. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि सवा लाख टन कचरा को भी फेंकने से निश्चित रूप से एक और कचरे का पहाड़ तैयार हो जाता.

निगम को दिलाई अतिरिक्त व्यय से मुक्ति

डोर टू डोर कचरा प्रबंधन कर नगर निगम ने ना सिर्फ कचरे से कमाई की है बल्कि निगम को अतिरिक्त व्यय से भी मुक्ति दिलाई है. स्वच्छता प्रबंधन के माध्यम से कचरा बेचकर 84 लाख रुपए प्रतिमाह की आय होती है. जबकि 1.92 करोड़ रुपए का यूजर का चार्ज वसूल किया जाता हैं. ऐसे में अब तक कचरा बेचकर निगम ने 5.50 करोड़ रुपए की आय अर्जित की है और 8 करोड़ रुपये का यूजर चार्ज वसूला. कुल 13.50 करोड़ की कमाई करने की जबकि इस प्रोजेक्ट में 16 करोड़ रुपये खर्च किए गए. इस हिसाब से प्रारंभ के कुछ वर्षों में आय व यूजर चार्ज के अंतर को छोड़ दिया जाए तो निगम को महज 3 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च करने पड़े जबकि 13 करोड़ रुपये की आय हो गई. यदि शहर में अब भी पुरानी पद्धति से सफाई करायी जाती है तो सड़क से ट्रेक्टर के माध्यम से इतने कचरा को डम्पिंग यार्ड में फेकने में ही 18 करोड़ रुपए खर्च होते. इसके अतिरिक्त कर्मचारियों के वेतन, नाली की सफाई सहित अन्य व्यय को देखा जाए तो यह राशि 25 करोड़ से अधिक होती.

पर्यावरण की दृष्टि से भी फायदेमंद

कचरा प्रबंधन के इस कार्य को आर्थिक नजरिए के साथ पर्यावरण की दृष्टि से देखा जाए तो डोर टू डोर कचरा प्रबंधन का अहम योगदान है. डोर टू डोर कचरा प्रबंधन नहीं होने से सड़क नाली तालाब में कचरा का अंबार होता. इस कचरे से जल व वायु प्रदूषण होता और इसका असर लोगों पर पड़ता लेकिन इस अभियान ने शहर को इस समस्या से मुक्ति दिलाने का काम किया है.

सरगुजा: एसएलआरएम के स्वच्छता मॉडल ने शहर को देश दुनिया में एक अलग पहचान दिलायी है. डोर टू डोर कचरा प्रबंधन (door to door waste management in ambikapur) कर स्वच्छता दीदियां (Ambikapur cleanliness didiya) ने करोड़ों रुपये की आय अर्जित की. अगर इस अभियान की शुरुआत नहीं हुई होती तो शहर की सूरत आखिर कैसी होती? इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि महज 6 सालों में ही कचरे का पहाड़ तैयार हो जाता.

एसएलआरएम का स्वच्छता मॉडल

साल 2015 में हुई कचरा प्रबंधन की शुरुआत

शहर में कचरा प्रबंधन की शुरुआत साल 2015 में की गई थी. महीनों की ट्रेनिंग और योजनाओं पर काम करने के बाद तत्कालीन कलेक्टर ऋतु सेन ने इस योजना को निगम की कांग्रेस सरकार के साथ मिलकर अमली जामा पहनाने का कार्य किया था. मार्च 2015 में शहर के बौरीपारा केनाबांध में पहला एसएलआरएम बनकर तैयार हुआ. साथ ही अगस्त माह के अंत तक सभी 17 एसएलआरएम सेंटर बनकर तैयार हुए जबकि जनवरी 2016 में 18वें सेंटर के माध्यम से स्वच्छता दीदियों ने डोर टू डोर कचरा प्रबंधन का काम शुरू किया, जो महापौर डॉ. अजय तिर्की के नेतृत्व में निरंतर जारी रहा.

नगर निगम का मिला पूरा सहयोग

निगम की सरकार के साथ ही प्रशासन व खास तौर पर जनता का भरपूर समर्थन मिला. कोरोनाकाल के कठिन दौर में भी इन स्वच्छता दीदियों ने हिम्मत नहीं हारी. शहर को स्वच्छ रखने का काम किया. जिसकी बदौलत आज शहर का नाम देशभर में लिया जा रहा है. दूसरे राज्यों के प्रतिनिधि, अधिकारी यहां का स्वच्छता मॉडल देखने आ रहे हैं.

यह भी पढ़ें: अम्बिकापुर में जल्द खुलने जा रहा सी-मार्ट, इस मार्ट से देसी प्रोडक्ट को मिलेगा बढ़ावा

प्रतिदिन शहर से निकलता है 52 मीट्रिक टन कचरा

एसएलआरएम सेंटर का महत्व कितना है. इन दीदियों ने शहर की सफाई व्यवस्था में कितना बड़ा योगदान दिया है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शहर में 470 दीदियां कार्य कर रही हैं. 150 रिक्शा की मदद से कचरा संग्रहण किया जा रहा है. प्रतिदिन 50 से 52 मीट्रिक टन कचरा निकलता है. इसके साथ ही प्रतिमाह शहर में 16 सौ टन कचरे का संग्रहण किया जाता है. साल 2015 से अब तक के सफर में इन स्वच्छता दीदियों ने शहर के 48 वार्डों से 1 लाख 20 हजार टन कचरा का संग्रहण किया है. गीले कचरे से खाद व सूखे कचरे रिसाइकिल कर प्लास्टिक दाना व अन्य कार्य किये गए.

70 वर्षों का कचरा प्रोसेस कर बनाया पार्क

बड़ी बात यह है कि शहर से निकले 1 लाख 20 हजार टन कचरा को फेंकने के लिए 15-16 एकड़ जमीन चाहिए. सांडबार स्थिर डम्पिंग यार्ड में भी साल 2016 तक 16 एकड़ जमीन पर कचड़ा का पहाड़ बना हुआ था. 70 वर्षों के इस कचरे को निगम ने प्रोसेस कर सेनेटरी पार्क में तब्दील किया गया. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि सवा लाख टन कचरा को भी फेंकने से निश्चित रूप से एक और कचरे का पहाड़ तैयार हो जाता.

निगम को दिलाई अतिरिक्त व्यय से मुक्ति

डोर टू डोर कचरा प्रबंधन कर नगर निगम ने ना सिर्फ कचरे से कमाई की है बल्कि निगम को अतिरिक्त व्यय से भी मुक्ति दिलाई है. स्वच्छता प्रबंधन के माध्यम से कचरा बेचकर 84 लाख रुपए प्रतिमाह की आय होती है. जबकि 1.92 करोड़ रुपए का यूजर का चार्ज वसूल किया जाता हैं. ऐसे में अब तक कचरा बेचकर निगम ने 5.50 करोड़ रुपए की आय अर्जित की है और 8 करोड़ रुपये का यूजर चार्ज वसूला. कुल 13.50 करोड़ की कमाई करने की जबकि इस प्रोजेक्ट में 16 करोड़ रुपये खर्च किए गए. इस हिसाब से प्रारंभ के कुछ वर्षों में आय व यूजर चार्ज के अंतर को छोड़ दिया जाए तो निगम को महज 3 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च करने पड़े जबकि 13 करोड़ रुपये की आय हो गई. यदि शहर में अब भी पुरानी पद्धति से सफाई करायी जाती है तो सड़क से ट्रेक्टर के माध्यम से इतने कचरा को डम्पिंग यार्ड में फेकने में ही 18 करोड़ रुपए खर्च होते. इसके अतिरिक्त कर्मचारियों के वेतन, नाली की सफाई सहित अन्य व्यय को देखा जाए तो यह राशि 25 करोड़ से अधिक होती.

पर्यावरण की दृष्टि से भी फायदेमंद

कचरा प्रबंधन के इस कार्य को आर्थिक नजरिए के साथ पर्यावरण की दृष्टि से देखा जाए तो डोर टू डोर कचरा प्रबंधन का अहम योगदान है. डोर टू डोर कचरा प्रबंधन नहीं होने से सड़क नाली तालाब में कचरा का अंबार होता. इस कचरे से जल व वायु प्रदूषण होता और इसका असर लोगों पर पड़ता लेकिन इस अभियान ने शहर को इस समस्या से मुक्ति दिलाने का काम किया है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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