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राजनांदगांव: डोंगरगढ़ के बधियाटोला में मनाया गया हलषष्ठी का पर्व

आराध्य नगरी डोंगरगढ़ बधियाटोला में हलषष्ठी पर्व बड़े धूम धाम से मनाया गया. महिलाएं पूजा कर अपने संतान की दीर्घायु और उज्वल भविष्य की कामना की.

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डोंगरगढ़ के बधियाटोला में मनाया गया हलषष्ठी का पर्व
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Published : Aug 10, 2020, 1:50 AM IST

राजनांदगांव: आराध्य नगरी डोंगरगढ़ बधियाटोला में हलषष्ठी पर्व बड़े धूम धाम से मनाया गया. यहां माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखकर सुख-समृद्धि की कामना की. इस दौरान विशाखा सिन्हा ने पूजन को लेकर बताया कि कोरोना काल के बीच कमछठ व्रत कई मायने से भिन्न है.

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बधियाटोला में मनाया गया हलषष्ठी का पर्व

इस दौरान उन्होंने बताया कि महिलाएं महुआ का दातुन कर नाई के पास दोना और पत्तल फूल खरीदती हैं. धान को आग में सेककर लाई बनाया जाता है. सात प्रकार के अन्न गेहूं, चना, लाई, ज्वार, बाजरा, मसूर और महुए को सगरी को रूप में समर्पित करने की परम्परा है. सुबह से ही महिलाएं एक जगह एकत्रित होकर पूजा की थाली लिए पूजा स्थल में पहुंची थी.

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डोंगरगढ़ में मनाया गया हलषष्ठी का पर्व

महिलाएं संतान की दीर्घायु और उज्वल भविष्य की कामना की

जहां गड्ढा खोदकर सगरी बनाई गई. उसी में महिलाओं ने घर से लाया हुआ जल और पूजन सामग्री सगरी के चारों ओर गोलाकार बनाकर पूजा की. साथ ही बेल, गूलर, प्लास और कुश की टहिनियों को गड़ाकर सगरी को सजाया गया था. महिलाएं पूजा करते हुए संतान की दीर्घायु और उज्वल भविष्य की कामना की.

व्रत तोड़ने के समय बच्चों के पीठ पर 6 बार पोता मारती हैं महिलाएं

साथ ही रूखमणी सेन ने बताया कि हलषष्ठी की पूजा अर्चना के बाद व्रत तोड़ने के समय बच्चों के पीठ पर 6 बार पोता मारती हैं. वहीं निसंतान महिलाएं सगरी में जोड़ा नारियल चढ़ाकर संतान प्राप्ति की कामना की. कमरछट पर्व के दिन गाय का दूध का सेवन वर्जित रहता है. इसी लिए सभी व्रती भैस का दूध खरीदकर पूजा पाठ संपन्न की. वहीं तारा बाई सिन्हा ने बताया कि हलषष्ठी पर्व के दिन महिलाएं पसहर चावल का सेवन करती हैं, क्योंकि हल से उपजाया गया अनाज ग्रहण करना वर्जित होता है.

राजनांदगांव: आराध्य नगरी डोंगरगढ़ बधियाटोला में हलषष्ठी पर्व बड़े धूम धाम से मनाया गया. यहां माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखकर सुख-समृद्धि की कामना की. इस दौरान विशाखा सिन्हा ने पूजन को लेकर बताया कि कोरोना काल के बीच कमछठ व्रत कई मायने से भिन्न है.

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बधियाटोला में मनाया गया हलषष्ठी का पर्व

इस दौरान उन्होंने बताया कि महिलाएं महुआ का दातुन कर नाई के पास दोना और पत्तल फूल खरीदती हैं. धान को आग में सेककर लाई बनाया जाता है. सात प्रकार के अन्न गेहूं, चना, लाई, ज्वार, बाजरा, मसूर और महुए को सगरी को रूप में समर्पित करने की परम्परा है. सुबह से ही महिलाएं एक जगह एकत्रित होकर पूजा की थाली लिए पूजा स्थल में पहुंची थी.

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डोंगरगढ़ में मनाया गया हलषष्ठी का पर्व

महिलाएं संतान की दीर्घायु और उज्वल भविष्य की कामना की

जहां गड्ढा खोदकर सगरी बनाई गई. उसी में महिलाओं ने घर से लाया हुआ जल और पूजन सामग्री सगरी के चारों ओर गोलाकार बनाकर पूजा की. साथ ही बेल, गूलर, प्लास और कुश की टहिनियों को गड़ाकर सगरी को सजाया गया था. महिलाएं पूजा करते हुए संतान की दीर्घायु और उज्वल भविष्य की कामना की.

व्रत तोड़ने के समय बच्चों के पीठ पर 6 बार पोता मारती हैं महिलाएं

साथ ही रूखमणी सेन ने बताया कि हलषष्ठी की पूजा अर्चना के बाद व्रत तोड़ने के समय बच्चों के पीठ पर 6 बार पोता मारती हैं. वहीं निसंतान महिलाएं सगरी में जोड़ा नारियल चढ़ाकर संतान प्राप्ति की कामना की. कमरछट पर्व के दिन गाय का दूध का सेवन वर्जित रहता है. इसी लिए सभी व्रती भैस का दूध खरीदकर पूजा पाठ संपन्न की. वहीं तारा बाई सिन्हा ने बताया कि हलषष्ठी पर्व के दिन महिलाएं पसहर चावल का सेवन करती हैं, क्योंकि हल से उपजाया गया अनाज ग्रहण करना वर्जित होता है.

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