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इस गांव के 'राजा' हैं गणपति लेकिन यहां उनकी मूर्ति स्थापित करना मना क्यों है - गोपालपुर गांव में गणपति नहीं

ये कहानी उस गांव की है जहां लोग गणपति उत्सव में एक भी गणेश पंडाल तैयार नहीं करते हैं. इसकी वजह आप खुद ही जान लें.

गोपालपुर गांव
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Published : Sep 3, 2019, 1:01 PM IST

Updated : Sep 3, 2019, 1:36 PM IST

राजनांदगांव : गणेश चतुर्थी के मौके पर देश के कोने-कोने में भगवान गणेश की प्रतिमा विराजित की जा रही हैं. गली-मोहल्ले गणपति के जयकारों से गूंज रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच छत्तीसगढ़ में एक गांव ऐसा भी है, जहां किसी भी गली, मोहल्ले या घर में गणेश उत्सव की धूम देखने या सुनने नहीं मिलती. इसकी वजह बेहद ही चौंकाने वाली है.

गोपालपुर गांव में गणेश उत्सव की कहानी

ऐसा नहीं है कि गांव में कोई हिंदू परिवार ही नहीं है. गांव में काफी संख्या में हिंदू रहते हैं और सबकी गणेश भगवान में गहरी आस्था भी है. इतना ही नहीं गांव में भगवान गणेश का ही एक मात्र मंदिर है और इसी मंदिर से जुड़ी है ब्रिटिश काल से लेकर आज तक गांव में मिट्टी के गणेश की प्रतिमा विराजित नहीं होने की कहानी.

क्या है कहानी

  • गांव में सालों से चली आ रही इस परंपरा को आज तक किसी ने तोड़ने की कोशिश नहीं की है.
  • इसके पीछे एक मान्यता ये है कि सालों पहले राजपरिवार के एक सदस्य ने नियम को तोड़कर गणपति की स्थापना करने की कोशिश की थी, लेकिन उसकी मौत हो गई.
  • लोगों का कहना है कि, 'भगवान गणपति ने खुद सपने में आकर अलग से मूर्ति की स्थापना करने से मना किया, लेकिन इसके बावजूद राजपरिवार में गणपति की स्थापना की गई, जिससे राज परिवार के एक व्यक्ति की मौत हो गई'.

पत्थर की मूर्ति को नहीं हिला सका कोई

ETV भारत की टीम ने जब गोपालपुर गांव का दौरा किया तो गांव के बुजुर्ग ग्रामीणों से चर्चा करने पर पता चला कि ब्रिटिश काल में गांव में गणेश भगवान की एक पत्थर की मूर्ति मंगाई गई थी, जो बैलगाड़ी के जरिए गोपालपुर गांव पहुंची थी. रास्ते में एक स्थान पर मूर्ति अचानक गिर गई. इसके बाद से मूर्ति को दूसरी जगह ले जाने के लिए काफी कोशिश की लगई, लेकिन मूर्ति को कोई हिला भी नहीं सका. इसके बाद मूर्ति को गांव के मुख्य मार्ग पर ही स्थापित कर दिया गया. तब से लेकर आज तक अष्टभुज श्री गणेश की मूर्ति उसी स्थान पर स्थापित है. गांव वालों ने अब इस स्थान पर मंदिर का निर्माण भी करवा दिया है.

गणेशोत्सव में 11 दिन होती है पूजा
ग्रामीणों का मानना है कि, 'तकरीबन डेढ़ सौ साल से ये परंपरा चली आ रही है. इसीलिए जो व्यवस्था गांव में है उसी व्यवस्था पर गांव वाले श्री अष्टभुज गणेश मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं. पहले यहां सिर्फ चतुर्थी के दिन ही पूजा होती थी, लेकिन इसके बाद गांव वालों ने पूरे 11 दिन मंदिर में पूजा करने की शुरुआत की और गणेश उत्सव को पूरा गांव एक साथ एक मंदिर में ही मनाता है.

पूरे गांव में सिर्फ एक मंदिर
एक तरीके से कहा जाए तो गोपालपुर गांव में भगवान अष्टभुज श्री गणेश का ही राज है, क्योंकि तकरीबन 500 लोगों की आबादी वाले इस गांव में केवल एक ही मंदिर है. दूसरे किसी भी भगवान की मूर्ति या मंदिर पूरे गांव में नहीं है. लोगों का मानना है कि यहां आने वाले सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, लिहाजा उन्होंने आज तक किसी अन्य भगवान का मंदिर भी नहीं बनाया.

राज परिवार से जुड़ा ये राज
बता दें कि सालों पहले ब्रिटिश शासन हटने के बाद खैरागढ़ राज परिवार का यहां राज हुआ करता था. उस दौरान राजमहल में गणेश चतुर्थी के मौके पर मिट्टी के गणेश की स्थापना की गई, लेकिन दूसरे ही दिन राज परिवार के एक सदस्य की मौत हो गई.

इसके बाद कई बार गांव के लोगों ने सार्वजनिक रूप से गणेश प्रतिमा की स्थापना करने की कोशिश की, लेकिन कहीं न कहीं जो भी व्यक्ति इस काम को करने की कोशिश करता उसे हानि हो जाती. इसके चलते आज तक गांव में सिर्फ अष्टभुज श्री गणेश की स्थापित मूर्ति के अलावा गांव में कहीं भी गणेश प्रतिमा की स्थापना नहीं की जाती.

राजनांदगांव : गणेश चतुर्थी के मौके पर देश के कोने-कोने में भगवान गणेश की प्रतिमा विराजित की जा रही हैं. गली-मोहल्ले गणपति के जयकारों से गूंज रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच छत्तीसगढ़ में एक गांव ऐसा भी है, जहां किसी भी गली, मोहल्ले या घर में गणेश उत्सव की धूम देखने या सुनने नहीं मिलती. इसकी वजह बेहद ही चौंकाने वाली है.

गोपालपुर गांव में गणेश उत्सव की कहानी

ऐसा नहीं है कि गांव में कोई हिंदू परिवार ही नहीं है. गांव में काफी संख्या में हिंदू रहते हैं और सबकी गणेश भगवान में गहरी आस्था भी है. इतना ही नहीं गांव में भगवान गणेश का ही एक मात्र मंदिर है और इसी मंदिर से जुड़ी है ब्रिटिश काल से लेकर आज तक गांव में मिट्टी के गणेश की प्रतिमा विराजित नहीं होने की कहानी.

क्या है कहानी

  • गांव में सालों से चली आ रही इस परंपरा को आज तक किसी ने तोड़ने की कोशिश नहीं की है.
  • इसके पीछे एक मान्यता ये है कि सालों पहले राजपरिवार के एक सदस्य ने नियम को तोड़कर गणपति की स्थापना करने की कोशिश की थी, लेकिन उसकी मौत हो गई.
  • लोगों का कहना है कि, 'भगवान गणपति ने खुद सपने में आकर अलग से मूर्ति की स्थापना करने से मना किया, लेकिन इसके बावजूद राजपरिवार में गणपति की स्थापना की गई, जिससे राज परिवार के एक व्यक्ति की मौत हो गई'.

पत्थर की मूर्ति को नहीं हिला सका कोई

ETV भारत की टीम ने जब गोपालपुर गांव का दौरा किया तो गांव के बुजुर्ग ग्रामीणों से चर्चा करने पर पता चला कि ब्रिटिश काल में गांव में गणेश भगवान की एक पत्थर की मूर्ति मंगाई गई थी, जो बैलगाड़ी के जरिए गोपालपुर गांव पहुंची थी. रास्ते में एक स्थान पर मूर्ति अचानक गिर गई. इसके बाद से मूर्ति को दूसरी जगह ले जाने के लिए काफी कोशिश की लगई, लेकिन मूर्ति को कोई हिला भी नहीं सका. इसके बाद मूर्ति को गांव के मुख्य मार्ग पर ही स्थापित कर दिया गया. तब से लेकर आज तक अष्टभुज श्री गणेश की मूर्ति उसी स्थान पर स्थापित है. गांव वालों ने अब इस स्थान पर मंदिर का निर्माण भी करवा दिया है.

गणेशोत्सव में 11 दिन होती है पूजा
ग्रामीणों का मानना है कि, 'तकरीबन डेढ़ सौ साल से ये परंपरा चली आ रही है. इसीलिए जो व्यवस्था गांव में है उसी व्यवस्था पर गांव वाले श्री अष्टभुज गणेश मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं. पहले यहां सिर्फ चतुर्थी के दिन ही पूजा होती थी, लेकिन इसके बाद गांव वालों ने पूरे 11 दिन मंदिर में पूजा करने की शुरुआत की और गणेश उत्सव को पूरा गांव एक साथ एक मंदिर में ही मनाता है.

पूरे गांव में सिर्फ एक मंदिर
एक तरीके से कहा जाए तो गोपालपुर गांव में भगवान अष्टभुज श्री गणेश का ही राज है, क्योंकि तकरीबन 500 लोगों की आबादी वाले इस गांव में केवल एक ही मंदिर है. दूसरे किसी भी भगवान की मूर्ति या मंदिर पूरे गांव में नहीं है. लोगों का मानना है कि यहां आने वाले सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, लिहाजा उन्होंने आज तक किसी अन्य भगवान का मंदिर भी नहीं बनाया.

राज परिवार से जुड़ा ये राज
बता दें कि सालों पहले ब्रिटिश शासन हटने के बाद खैरागढ़ राज परिवार का यहां राज हुआ करता था. उस दौरान राजमहल में गणेश चतुर्थी के मौके पर मिट्टी के गणेश की स्थापना की गई, लेकिन दूसरे ही दिन राज परिवार के एक सदस्य की मौत हो गई.

इसके बाद कई बार गांव के लोगों ने सार्वजनिक रूप से गणेश प्रतिमा की स्थापना करने की कोशिश की, लेकिन कहीं न कहीं जो भी व्यक्ति इस काम को करने की कोशिश करता उसे हानि हो जाती. इसके चलते आज तक गांव में सिर्फ अष्टभुज श्री गणेश की स्थापित मूर्ति के अलावा गांव में कहीं भी गणेश प्रतिमा की स्थापना नहीं की जाती.

Intro:राजनांदगांव. गणेश चतुर्थी के अवसर पर देश के हर कोने में गणेश प्रतिमा की स्थापना की जा रही है लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव जिले के गोपालपुर गांव में ब्रिटिश काल से आज तक मिट्टी के गणेश प्रतिमा की स्थापना नहीं की गई है इसके पीछे कारण भी खुद श्री गणेश की स्थापित मूर्ति है. ब्रिटिश काल के जमाने से जिले के गोपालपुर में अष्टभुज श्री गणेश की मूर्ति स्थापित है अष्टभुज श्री गणेश मंदिर में स्थापित मूर्ति की ही 11 दिन तक पूजा अर्चना होती है लेकिन गांव में कहीं भी सार्वजनिक रूप से गणेश प्रतिमा की स्थापना नहीं की जाती.


Body:ईटीवी भारत की टीम ने जब गोपालपुर गांव का दौरा किया तो गांव के बुजुर्ग ग्रामीणों से चर्चा करने पर पता चला कि ब्रिटिश जमाने से गांव में गणेश भगवान की एक पत्थर की मूर्ति मंगाई गई थी जो बैलगाड़ी के जरिए गोपालपुर गांव पहुंची लेकिन गांव पहुंचने के बाद एक स्थान पर वह अचानक गिर गई इसके बाद से मूर्ति को वापस दूसरी जगह ले जाने के लिए काफी प्रयास किया गया लेकिन मूर्ति टस से मस नहीं हुई इसके बाद मूर्ति को गांव के मुख्य मार्ग पर ही स्थापित कर दिया गया तब से लेकर आज तक अष्टभुज श्री गणेश की मूर्ति उसी स्थान पर स्थापित है. वर्तमान में गांव वालों ने अब इस स्थान पर मंदिर का निर्माण भी करवा दिया है.
इसलिए नहीं होती मिट्टी के गणेश प्रतिमा की स्थापना
ब्रिटिश शासन हटने के बाद खैरागढ़ राज फैमिली का जब गोपालपुर में राज हुआ करता था तो उस दौरान यहां एक बार गणेश चतुर्थी के अवसर पर मिट्टी के गणेश की स्थापना राज महल में की गई लेकिन दूसरे ही दिन राज परिवार में एक सदस्य की मौत हो गई इसके बाद कई बार गांव के लोगों ने सार्वजनिक रूप से गणेश प्रतिमा की स्थापना करने की कोशिश की लेकिन कहीं ना कहीं जो भी व्यक्ति इस काम का बीड़ा उठाता उसे हानि होती इसके चलते आज तक गांव में सिर्फ अष्टभुज श्री गणेश की स्थापित मूर्ति के अलावा गांव में कहीं भी गणेश प्रतिमा की स्थापना नहीं की जाती.
अब 11 दिन होती है पूजा
ग्रामीणों का मानना है कि तकरीबन डेढ़ सौ साल से यह परंपरा चली आ रही है इसलिए जो व्यवस्था गांव में है उसी व्यवस्था पर गांव वाले श्री अष्टभुज गणेश मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं पहले यहां सिर्फ चतुर्थी के दिन ही पूजा होती थी लेकिन इसके बाद गांव वालों ने पूरे 11 दिन मंदिर में पूजा करने की शुरुआत की और गणेश उत्सव को पूरा गांव एक साथ एक मंदिर में ही मनाता है.




Conclusion:पूरे गांव में सिर्फ एक मंदिर
एक तरीके से कहा जाए तो गोपालपुर गांव में भगवान अष्टभुज श्री गणेश का ही राज है क्योंकि तकरीबन 500 लोगो की आबादी वाले इस गांव में केवल एक ही मंदिर है दूसरे किसी भी भगवान की मूर्ति या मंदिर पूरे गांव में नहीं है ग्रामीणों से चर्चा करने पर पता चलता है कि अष्टभुज श्री गणेश मंदिर से गांव वालों की हर मनोकामना पूरी हो जाती है यहां आने वाले हर व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण होती है ऐसी सदियों से मान्यता है इसके चलते गांव में किसी भी मंदिर की स्थापना को लेकर गांव वालों ने कभी कोई सोच नहीं रखी.
Last Updated : Sep 3, 2019, 1:36 PM IST
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