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शिक्षक दिवस स्पेशल: ये हैं राजनांदगांव के द्रोणाचार्य. जिन्होंने 26 साल की उम्र में तैयार किए 45 राष्ट्रीय तीरंदाज - नेशनल तीरंदाजी प्लेयर

शिक्षक दिवस के मौके पर ईटीवी भारत आपको राजनांदगांव के 26 साल के राहुल साहू से मिलवा रहा है. राहुल होटल में समोसे बेचते हैं और साथ ही खिलाड़ियों को निशुल्क तीरंदाजी का प्रशिक्षण दे रहे हैं. अब तक राहुल ने 45 खिलाड़ियों को नेशनल खेलने के लिए तैयार किया है, जिनमें 2 लोगों ने मेडल जीतकर राजनांदगांव का नाम रोशन किया है.

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तीरंदाजी का गुरु
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Published : Sep 4, 2020, 8:16 PM IST

राजनांदगांव. कहते हैं ज्ञान बांटने से बढ़ता है. इस कहावत को सही साबित कर दिखाया है जिले से लगे फरहद गांव के राहुल साहू ने. राहुल ने महज 26 साल की उम्र में 45 राष्ट्रीय तीरंदाज तैयार कर दिए. राहुल पेशे से होटल संचालक हैं और खासतौर पर वे समोसे बेचते हैं. लेकिन इस काम के बीच में भी उन्होंने अपने हुनर को बांटने से परहेज नहीं किया और आज निशुल्क तीरंदाजी का प्रशिक्षण वे लोगों को दे रहे है.

राहुल के द्रोणाचार्य बनने की कहानी

राजनांदगांव शहर से लगे फरहद गांव में रहने वाले 26 साल के युवा राहुल साहू ने ETV भारत से चर्चा करते हुए बताया कि कॉलेज में पढ़ने के दौरान ही उन्होंने तीरंदाजी का गुर सीखा था. लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें होटल का व्यापार करने की तरफ मोड़ दिया. इसके बाद भी उन्होंने तीरंदाजी से लगाव नहीं छोड़ा. उन्होंने बताया कि तीरंदाजी का गुर सीखने के बाद उनके मन में हमेशा यह कसक रहती थी कि जो कुछ भी उन्होंने सीखा है उसे दूसरों को भी सिखाया जाए.

इस सोच के साथ उन्होंने निशुल्क तीरंदाजी प्रशिक्षण शिविर शुरू किया और खिलाड़ियों को तीरंदाजी का हुनर सिखाने लगे. अब उनके प्रशिक्षण शिविर में तकरीबन 40 खिलाड़ी हैं जो उनसे प्रशिक्षण ले रहे हैं. अब तक राहुल ने 45 खिलाड़ियों को नेशनल खेलने के लिए तैयार किया, जिनमें 2 लोगों ने मेडल जीतकर राजनांदगांव का नाम रोशन किया है.

पढ़ें- SPECIAL: बालको राखड़ डैम किसानों के लिए बना अभिशाप, खेत में खड़ी फसलें हुई बर्बाद

जो सीखा वो बांटा

ETV भारत से चर्चा करते हुए राहुल ने बताया कि जो कुछ भी तीरंदाजी का हुनर उन्होंने सीखा उसे वे लगातार खिलाड़ियों को सिखा रहे हैं. कैंप में तकरीबन 40 खिलाड़ी लगातार प्रशिक्षण ले रहे हैं. इन खिलाड़ियों में नेशनल प्लेयर भी शामिल हैं. उन्होंने बताया कि वे लगातार खिलाड़ियों को नेशनल और इंटरनेशनल खेलने के लिए भी प्रोत्साहित करते रहते हैं और उन्हें इस स्तर पर तैयार करने के लिए वे खुद भी फील्ड पर पसीना बहा रहे हैं.

टाइट शेड्यूल के बावजूद प्रशिक्षण के लिए निकालते हैं वक्त
राहुल ने बताया कि वह होटल का संचालन करते हैं. पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्होंने इस व्यापार को शुरू किया और अब नाश्ता बेचकर वे अपना परिवार चलाते हैं. उन्होंने बताया कि होटल चलाने के दौरान उन्हें समय का काफी अभाव रहता है. उनका शेड्यूल काफी टाइट रहता है. कभी-कभी स्वयं के काम के लिए भी वक्त निकालना मुश्किल हो जाता है, लेकिन इन सबके बावजूद भी उन्होंने तीरंदाजी का प्रशिक्षण लेने वाले बच्चों के लिए समय निकालना बंद नहीं किया. वे लगातार खुद फील्ड पर मौजूद रहकर बच्चों को प्रशिक्षण देते हैं.

ओलंपिक में मेडल लाने की तमन्ना
राहुल का कहना है कि उनका सपना है कि तीरंदाजी में खिलाड़ी देश के लिए ओलंपिक में अपना हुनर दिखाए और देश के लिए गोल्ड मेडल लेकर आएं. इस सपने के साथ वे लगातार खिलाड़ियों के साथ फील्ड में मेहनत करते रहते हैं, ताकि खिलाड़ियों को हर संभव गुर सिखाया जा सके. उनका कहना है कि अभाव के बावजूद वे खिलाड़ियों का हौसला कम होने नहीं देते हैं.

परेशानी से जूझते हुए भी दे रहे प्रशिक्षण
शिविर का संचालन करने वाले डॉक्टर विकास अग्रवाल का कहना है कि तीरंदाजी का गुर सीखने वाले खिलाड़ी लगातार अभाव से जूझ रहे हैं. प्रशिक्षण में काफी गरीब तबके के बच्चे आते हैं और उनके पास तीर कमान लेने के लिए भी पैसे नहीं होते. ऐसी स्थिति में उन्हें सामूहिक मदद करते हुए सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है ताकि वे इस खेल में आगे बढ़ते हुए देश का नाम रोशन कर सकें.

राजनांदगांव. कहते हैं ज्ञान बांटने से बढ़ता है. इस कहावत को सही साबित कर दिखाया है जिले से लगे फरहद गांव के राहुल साहू ने. राहुल ने महज 26 साल की उम्र में 45 राष्ट्रीय तीरंदाज तैयार कर दिए. राहुल पेशे से होटल संचालक हैं और खासतौर पर वे समोसे बेचते हैं. लेकिन इस काम के बीच में भी उन्होंने अपने हुनर को बांटने से परहेज नहीं किया और आज निशुल्क तीरंदाजी का प्रशिक्षण वे लोगों को दे रहे है.

राहुल के द्रोणाचार्य बनने की कहानी

राजनांदगांव शहर से लगे फरहद गांव में रहने वाले 26 साल के युवा राहुल साहू ने ETV भारत से चर्चा करते हुए बताया कि कॉलेज में पढ़ने के दौरान ही उन्होंने तीरंदाजी का गुर सीखा था. लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें होटल का व्यापार करने की तरफ मोड़ दिया. इसके बाद भी उन्होंने तीरंदाजी से लगाव नहीं छोड़ा. उन्होंने बताया कि तीरंदाजी का गुर सीखने के बाद उनके मन में हमेशा यह कसक रहती थी कि जो कुछ भी उन्होंने सीखा है उसे दूसरों को भी सिखाया जाए.

इस सोच के साथ उन्होंने निशुल्क तीरंदाजी प्रशिक्षण शिविर शुरू किया और खिलाड़ियों को तीरंदाजी का हुनर सिखाने लगे. अब उनके प्रशिक्षण शिविर में तकरीबन 40 खिलाड़ी हैं जो उनसे प्रशिक्षण ले रहे हैं. अब तक राहुल ने 45 खिलाड़ियों को नेशनल खेलने के लिए तैयार किया, जिनमें 2 लोगों ने मेडल जीतकर राजनांदगांव का नाम रोशन किया है.

पढ़ें- SPECIAL: बालको राखड़ डैम किसानों के लिए बना अभिशाप, खेत में खड़ी फसलें हुई बर्बाद

जो सीखा वो बांटा

ETV भारत से चर्चा करते हुए राहुल ने बताया कि जो कुछ भी तीरंदाजी का हुनर उन्होंने सीखा उसे वे लगातार खिलाड़ियों को सिखा रहे हैं. कैंप में तकरीबन 40 खिलाड़ी लगातार प्रशिक्षण ले रहे हैं. इन खिलाड़ियों में नेशनल प्लेयर भी शामिल हैं. उन्होंने बताया कि वे लगातार खिलाड़ियों को नेशनल और इंटरनेशनल खेलने के लिए भी प्रोत्साहित करते रहते हैं और उन्हें इस स्तर पर तैयार करने के लिए वे खुद भी फील्ड पर पसीना बहा रहे हैं.

टाइट शेड्यूल के बावजूद प्रशिक्षण के लिए निकालते हैं वक्त
राहुल ने बताया कि वह होटल का संचालन करते हैं. पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्होंने इस व्यापार को शुरू किया और अब नाश्ता बेचकर वे अपना परिवार चलाते हैं. उन्होंने बताया कि होटल चलाने के दौरान उन्हें समय का काफी अभाव रहता है. उनका शेड्यूल काफी टाइट रहता है. कभी-कभी स्वयं के काम के लिए भी वक्त निकालना मुश्किल हो जाता है, लेकिन इन सबके बावजूद भी उन्होंने तीरंदाजी का प्रशिक्षण लेने वाले बच्चों के लिए समय निकालना बंद नहीं किया. वे लगातार खुद फील्ड पर मौजूद रहकर बच्चों को प्रशिक्षण देते हैं.

ओलंपिक में मेडल लाने की तमन्ना
राहुल का कहना है कि उनका सपना है कि तीरंदाजी में खिलाड़ी देश के लिए ओलंपिक में अपना हुनर दिखाए और देश के लिए गोल्ड मेडल लेकर आएं. इस सपने के साथ वे लगातार खिलाड़ियों के साथ फील्ड में मेहनत करते रहते हैं, ताकि खिलाड़ियों को हर संभव गुर सिखाया जा सके. उनका कहना है कि अभाव के बावजूद वे खिलाड़ियों का हौसला कम होने नहीं देते हैं.

परेशानी से जूझते हुए भी दे रहे प्रशिक्षण
शिविर का संचालन करने वाले डॉक्टर विकास अग्रवाल का कहना है कि तीरंदाजी का गुर सीखने वाले खिलाड़ी लगातार अभाव से जूझ रहे हैं. प्रशिक्षण में काफी गरीब तबके के बच्चे आते हैं और उनके पास तीर कमान लेने के लिए भी पैसे नहीं होते. ऐसी स्थिति में उन्हें सामूहिक मदद करते हुए सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है ताकि वे इस खेल में आगे बढ़ते हुए देश का नाम रोशन कर सकें.

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