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डोंगरगांव: सावन का आखिरी सोमवार, अंबागढ़ पहाड़ी में अर्धनारीश्वर स्वरूप के होते हैं दुर्गम दर्शन

सावन का पूरा महीना ही भगवान भोलेनाथ को समर्पित होता है. कहते हैं अगर भगवान भोलेनाथ को पूरी श्रद्धा से याद किया जाए, तो भोलेनाथ भक्तों की हर मनोकामनां पूरी करते हैं. लोक कथाओं के मुताबिक सावन महीने में ही समुद्र मंथन हुआ था और हर सोमवार को विशेष रत्नों की प्राप्ति हुई थी.

sawan somwar
अर्धनारीश्वर स्वरूप
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Published : Aug 3, 2020, 9:31 PM IST

Updated : Aug 3, 2020, 11:09 PM IST

राजनांदगांव/डोंगरगांव: आज सावन का अखिरी सोमवार होने के साथ ही रक्षाबंधन भी है. सावन महीने में ETV भारत आपको छत्तीसगढ़ के शिव मंदिर और भगवान शिव के अदभुत धाम के दर्शन करा रहा है. शिव धाम के दर्शन के सफर में आज हम ऐसे चमत्कारी और प्रमाणित देवभूमि का दर्शन कराएंगे जो, पूरे जिले सहित अन्य क्षेत्र के लोगों में खासा महत्व रखता है.

शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप

दुर्रेटोला और भुरभुसी गांव के बीच अंबागढ़ पहाड़ी में भगवान शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में विराजमान है. मंदिर में कई साल पुरानी भगवान शिव और मां अंबे की प्रतिमाएं भी हैं. कहा जाता है कि ये प्रतिमाएं स्वयं-भू हैं. दूर-दूर से श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन कोरोना के कारण इस साल मंदिर में हर साल से कम भीड़ देखने को मिली है. बताया जाता है कि इस स्थान पर किसी जानकार व्यक्ति या पुजारी के बगैर जाना खतरों से भरा हो सकता है. इसके साथ ही यहां जाने से पहले जरूरी सामान रखना बेहद जरूरी है.

यह है पहुंच मार्ग

रायपुर चंद्रपुर राज्य मार्ग में राजनांदगांव जिला मुख्यालय से अंबागढ़ पहाड़ी की दूरी करीब 65 किलोमीटर है. राजनांदगांव से डोंगरगांव, कुमरदा, घुपसाल, बांधा बाजार के बाद अंबागढ़ चौकी से बांयी ओर मोहला रोड में बिहरीकला गांव से दाहिनी ओर पिपरखार-दूर्रेटोला पहुंच मार्ग में कच्ची पक्की सड़क को पार करते हुए करीब 2 किलोमीटर भुरभुसी ग्राम की ओर चलने पर मां अम्बे और भगवान शिव धाम के दर्शन होते हैं.

पढ़ें: कोरिया का जटाशंकर धाम, जहां दुर्गम रास्तों से जाकर भक्त करते हैं भोलेनाथ के दर्शन

ऐसे पड़ा अंबागढ़ चौकी का नाम

अंबागढ़ चौकी राजनीतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से ख्याति प्राप्त स्थान है. इस क्षेत्र में पूरे रास्ते अनेक शिव मंदिर, कान्हा मंदिर, दंतेश्वरी मंदिर आदि के दर्शन होते हैं. मंदिर के मुख्य पुजारी तथा वर्तमान में अंबागढ़ चैकी जनपद के जनपद सदस्य ने बताया कि मां अंबे के नाम पर ही अंबागढ़ चौकी का नामकरण हुआ है.

दिखता है भगवान शिव का चमत्कार

मंदिर के मुख्य पुजारी फत्तेसाय किरंगे बताते हैं कि राजनांदगांव निवासी मधुबाला देवांगन के परिवार की एक बच्ची अनन्या देवांगन जीवन मृत्यु के बीच संधर्ष कर रही थी. बच्ची का इलाज जगदलपुर में चल रहा था. इस बीच उसके ध्यान में मां अम्बे का स्मरण हुआ और धीरे-धीरे ठीक हो गई. इस घटना के बाद पूरा परिवार छत्तीसगढ़ के विभन्न स्थानों में मां अंबे के मंदिर को ढूंढ़ता रहा, जो अंबा चौकी की अंबे पहाडी में मिला. जैसे ही वे लोग मंदिर के पास पहुंचे बच्ची ने मंदिर का पूरा विवरण बता दिया. बच्ची ने बताया कि उसने ध्यान में इसी मंदिर को देखा था.

पत्थर से आती है डमरू की आवाज

बताया जाता है कि पहाड़ी के एक खास स्थान पर पत्थर से डमरू की आवाज आती है. मंदिर समिति और संरक्षकों की ओर से इस डमरू पत्थर को एक धरोहर के रूप में सहेज कर रखा गया है. मंदिर के पुजारी किरंगे बताते हैं कि अंबागढ़ की आराध्य देवी मां पार्वती की पूजा के बाद ही दशहरे का पर्व मनाया जाता है. वे बताते हैं कि राजपरिवार के वंशज आज भी मां अंबे की शरण में आकर चैत्र और क्वांर नवरात्र में ज्योति कलश प्रज्ज्वलित करते हैं और नवाखाई का पहला भोग लगते हैं.

अंधेरी गुफाओं का है जाल

दशहरे की पूजा से पहले मां अंबे के साथ-साथ गुफा में विराजमान भगवान राम, लक्ष्मण और अस्त्र-शस्त्र की विधिविधान से पूजा की जाती है और इसी के बाद रावण का वध किया जाता है. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मां अंबे के आदेश के बाद अस्त्र-शस़्त्र की पूजा की जाती है. कार्तिक पूर्णिमा के दौरान देवांगन परिवार की ओर से मंदिर प्रांगण में भंडारे का आयोजन किया जाता है. अंबागढ़ पहाड़ी में अंधेरी गुफाओं का जाल बिछा हुआ है. बड़े-बड़े पत्थरों के बीच संकरे रास्ते के बाद खुली जगह और फिर कई रास्तों में घोर अंधकार के बीच अन्य गुफाओं तक पहुंचने का रास्ता है. इस पहाड़ी में करीब 4 से 5 किलोमिटर तक गुफाओं का निर्माण प्रकृति ने किया है. युद्ध के दौरान राजाओं का परिवार यहां रहा करता था. इस गुफा में एक स्थान भी है जहां राजा अपनी मंडली के साथ बैठकर विचार विमर्श किया करते थे. यहां योद्धाओं के टारगेट प्वाईंट भी मिले हैं, जहां से श्मनों पर नजर रखी जाती थी. इसके अलावा इन पहाड़ों के चारों ओर कई छोटे-बड़े तालाब आज भी मौजूद हैं. पुजारी ने बताया कि गुफा बेहद संकरी है, जहां अंधेरा छाया रहता है. इसलिए यहां केवल जानकारों के साथ ही जाया जा सकता है. जंगली जानवरों के खतरे को देखते हुए शाम 6 बजे के बाद यहां आने-जाने की मनाही है.

पढ़ें: सावन स्पेशल: प्रकृति की गोद में बसा है भोला पठार, पूरी होती है हर मनोकामना

पहाड़ों में ऊंचे-ऊंचे पत्थर कई प्रकार की आकृतियों में देखी जा सकती हैं. पहाड़ों की ऊंचाई में रखे पत्थर अलग-अलग दृश्यों को प्रदर्शित करते हैं. कई ऐसे भारी भरकम चट्टानें हैं जिन्हे देखने से ऐसा लगता है कि जैसे उन्हे किसी ने खास तरीके से जमाकर रखा गया है. पहाड़ी के एक छोर में शिवलिंग और दूसरे छोर में नंदी का रूप दिखाई देता है. वहीं नीचे से देखने पर यह पत्थर घोड़े के मुख की आकृति प्रदर्शित करती है. एक चट्टान ऐसा भी है जो छोटे से आधार पर खड़ा है. ऐसा लगता है कि यह थोड़ा सा धक्का देने पर गिर जाएगा, लेकिन कई लोग मिलकर भी इस पत्थर को टस से मस नहीं कर सकते हैं. इस चट्टान के उपर की आकृति नीचे से फन उठाए हुए नाग की तरह दिखाई देता है.

पर्यटन और फिल्म सूटिंग प्वाईंट है अंबागढ़

इन पहाड़ों में राजा-महाराजाओं के युद्ध कौशल को पत्थरों में अंकित किए गए हैं. पत्थरों में इन कलाओं को तब सजाया गया, जब ऐसे औजार नहीं थे, जिनसे बारीक से बारीक और बेहद साफ कार्य किया जा सके. इस स्थल के संरक्षक ने बताया कि ये मूर्तियां भूमियार की हैं जो पीढ़ियों से यहां रखी गई है. वर्तमान में जो मूर्ति है वह लालभीष्म देव की है. अंबागढ़ पहाड़ी काफी प्रसिद्ध और चर्चित स्थल है. यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं. यहां छत्तीगढ़ी फिल्म ’’प्रेम सुमन’’ की भी शूटिंग हुई है. स्थानीय लोगों का कहना है कि छत्तीसगढ़ की इस धरोहर को बचाने के लिए शासन प्रशासन को भी ध्यान देना चाहिए .

राजनांदगांव/डोंगरगांव: आज सावन का अखिरी सोमवार होने के साथ ही रक्षाबंधन भी है. सावन महीने में ETV भारत आपको छत्तीसगढ़ के शिव मंदिर और भगवान शिव के अदभुत धाम के दर्शन करा रहा है. शिव धाम के दर्शन के सफर में आज हम ऐसे चमत्कारी और प्रमाणित देवभूमि का दर्शन कराएंगे जो, पूरे जिले सहित अन्य क्षेत्र के लोगों में खासा महत्व रखता है.

शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप

दुर्रेटोला और भुरभुसी गांव के बीच अंबागढ़ पहाड़ी में भगवान शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में विराजमान है. मंदिर में कई साल पुरानी भगवान शिव और मां अंबे की प्रतिमाएं भी हैं. कहा जाता है कि ये प्रतिमाएं स्वयं-भू हैं. दूर-दूर से श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन कोरोना के कारण इस साल मंदिर में हर साल से कम भीड़ देखने को मिली है. बताया जाता है कि इस स्थान पर किसी जानकार व्यक्ति या पुजारी के बगैर जाना खतरों से भरा हो सकता है. इसके साथ ही यहां जाने से पहले जरूरी सामान रखना बेहद जरूरी है.

यह है पहुंच मार्ग

रायपुर चंद्रपुर राज्य मार्ग में राजनांदगांव जिला मुख्यालय से अंबागढ़ पहाड़ी की दूरी करीब 65 किलोमीटर है. राजनांदगांव से डोंगरगांव, कुमरदा, घुपसाल, बांधा बाजार के बाद अंबागढ़ चौकी से बांयी ओर मोहला रोड में बिहरीकला गांव से दाहिनी ओर पिपरखार-दूर्रेटोला पहुंच मार्ग में कच्ची पक्की सड़क को पार करते हुए करीब 2 किलोमीटर भुरभुसी ग्राम की ओर चलने पर मां अम्बे और भगवान शिव धाम के दर्शन होते हैं.

पढ़ें: कोरिया का जटाशंकर धाम, जहां दुर्गम रास्तों से जाकर भक्त करते हैं भोलेनाथ के दर्शन

ऐसे पड़ा अंबागढ़ चौकी का नाम

अंबागढ़ चौकी राजनीतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से ख्याति प्राप्त स्थान है. इस क्षेत्र में पूरे रास्ते अनेक शिव मंदिर, कान्हा मंदिर, दंतेश्वरी मंदिर आदि के दर्शन होते हैं. मंदिर के मुख्य पुजारी तथा वर्तमान में अंबागढ़ चैकी जनपद के जनपद सदस्य ने बताया कि मां अंबे के नाम पर ही अंबागढ़ चौकी का नामकरण हुआ है.

दिखता है भगवान शिव का चमत्कार

मंदिर के मुख्य पुजारी फत्तेसाय किरंगे बताते हैं कि राजनांदगांव निवासी मधुबाला देवांगन के परिवार की एक बच्ची अनन्या देवांगन जीवन मृत्यु के बीच संधर्ष कर रही थी. बच्ची का इलाज जगदलपुर में चल रहा था. इस बीच उसके ध्यान में मां अम्बे का स्मरण हुआ और धीरे-धीरे ठीक हो गई. इस घटना के बाद पूरा परिवार छत्तीसगढ़ के विभन्न स्थानों में मां अंबे के मंदिर को ढूंढ़ता रहा, जो अंबा चौकी की अंबे पहाडी में मिला. जैसे ही वे लोग मंदिर के पास पहुंचे बच्ची ने मंदिर का पूरा विवरण बता दिया. बच्ची ने बताया कि उसने ध्यान में इसी मंदिर को देखा था.

पत्थर से आती है डमरू की आवाज

बताया जाता है कि पहाड़ी के एक खास स्थान पर पत्थर से डमरू की आवाज आती है. मंदिर समिति और संरक्षकों की ओर से इस डमरू पत्थर को एक धरोहर के रूप में सहेज कर रखा गया है. मंदिर के पुजारी किरंगे बताते हैं कि अंबागढ़ की आराध्य देवी मां पार्वती की पूजा के बाद ही दशहरे का पर्व मनाया जाता है. वे बताते हैं कि राजपरिवार के वंशज आज भी मां अंबे की शरण में आकर चैत्र और क्वांर नवरात्र में ज्योति कलश प्रज्ज्वलित करते हैं और नवाखाई का पहला भोग लगते हैं.

अंधेरी गुफाओं का है जाल

दशहरे की पूजा से पहले मां अंबे के साथ-साथ गुफा में विराजमान भगवान राम, लक्ष्मण और अस्त्र-शस्त्र की विधिविधान से पूजा की जाती है और इसी के बाद रावण का वध किया जाता है. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मां अंबे के आदेश के बाद अस्त्र-शस़्त्र की पूजा की जाती है. कार्तिक पूर्णिमा के दौरान देवांगन परिवार की ओर से मंदिर प्रांगण में भंडारे का आयोजन किया जाता है. अंबागढ़ पहाड़ी में अंधेरी गुफाओं का जाल बिछा हुआ है. बड़े-बड़े पत्थरों के बीच संकरे रास्ते के बाद खुली जगह और फिर कई रास्तों में घोर अंधकार के बीच अन्य गुफाओं तक पहुंचने का रास्ता है. इस पहाड़ी में करीब 4 से 5 किलोमिटर तक गुफाओं का निर्माण प्रकृति ने किया है. युद्ध के दौरान राजाओं का परिवार यहां रहा करता था. इस गुफा में एक स्थान भी है जहां राजा अपनी मंडली के साथ बैठकर विचार विमर्श किया करते थे. यहां योद्धाओं के टारगेट प्वाईंट भी मिले हैं, जहां से श्मनों पर नजर रखी जाती थी. इसके अलावा इन पहाड़ों के चारों ओर कई छोटे-बड़े तालाब आज भी मौजूद हैं. पुजारी ने बताया कि गुफा बेहद संकरी है, जहां अंधेरा छाया रहता है. इसलिए यहां केवल जानकारों के साथ ही जाया जा सकता है. जंगली जानवरों के खतरे को देखते हुए शाम 6 बजे के बाद यहां आने-जाने की मनाही है.

पढ़ें: सावन स्पेशल: प्रकृति की गोद में बसा है भोला पठार, पूरी होती है हर मनोकामना

पहाड़ों में ऊंचे-ऊंचे पत्थर कई प्रकार की आकृतियों में देखी जा सकती हैं. पहाड़ों की ऊंचाई में रखे पत्थर अलग-अलग दृश्यों को प्रदर्शित करते हैं. कई ऐसे भारी भरकम चट्टानें हैं जिन्हे देखने से ऐसा लगता है कि जैसे उन्हे किसी ने खास तरीके से जमाकर रखा गया है. पहाड़ी के एक छोर में शिवलिंग और दूसरे छोर में नंदी का रूप दिखाई देता है. वहीं नीचे से देखने पर यह पत्थर घोड़े के मुख की आकृति प्रदर्शित करती है. एक चट्टान ऐसा भी है जो छोटे से आधार पर खड़ा है. ऐसा लगता है कि यह थोड़ा सा धक्का देने पर गिर जाएगा, लेकिन कई लोग मिलकर भी इस पत्थर को टस से मस नहीं कर सकते हैं. इस चट्टान के उपर की आकृति नीचे से फन उठाए हुए नाग की तरह दिखाई देता है.

पर्यटन और फिल्म सूटिंग प्वाईंट है अंबागढ़

इन पहाड़ों में राजा-महाराजाओं के युद्ध कौशल को पत्थरों में अंकित किए गए हैं. पत्थरों में इन कलाओं को तब सजाया गया, जब ऐसे औजार नहीं थे, जिनसे बारीक से बारीक और बेहद साफ कार्य किया जा सके. इस स्थल के संरक्षक ने बताया कि ये मूर्तियां भूमियार की हैं जो पीढ़ियों से यहां रखी गई है. वर्तमान में जो मूर्ति है वह लालभीष्म देव की है. अंबागढ़ पहाड़ी काफी प्रसिद्ध और चर्चित स्थल है. यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं. यहां छत्तीगढ़ी फिल्म ’’प्रेम सुमन’’ की भी शूटिंग हुई है. स्थानीय लोगों का कहना है कि छत्तीसगढ़ की इस धरोहर को बचाने के लिए शासन प्रशासन को भी ध्यान देना चाहिए .

Last Updated : Aug 3, 2020, 11:09 PM IST
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