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कोरोना संक्रमितों के लिए घातक हो सकता है पटाखों से निकलने वाला धुआं, सावधानी बरतने की जरूरत

पटाखों से निकलने वाला धुआं स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होता है. इसकी वजह से तमाम तरह की बीमारियां हो सकती है. खासकर कोरोना मरीजों को इनसे बचने की जरुरत है.

side effects of crackers to corona patients
राजनांदगांव जिला अस्पताल
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Published : Nov 10, 2020, 12:22 PM IST

राजनांदगांव: दिवाली में पटाखों की धूम नहीं हो तो कुछ कमी सी लगती ही है, लेकिन अगर पटाखे हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने लगे तो इनके इस्तेमाल के बारे में सोचना जरूरी हो जाता है. दरअसल, पटाखों का धुआं जहां स्वाभाविक तौर पर खतरनाक माना जाता है, वहीं अब कोरोना संक्रमण के लिहाज से भी यह बेहद संवेदनशील बताया जा रहा है.

कोरोना मरीजों को बरतनी होगी सावधानी

स्वास्थ्य विभाग भी लोगों से लगातार अपील कर रहा है कि, कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके वे मरीज जो फेफड़े और शरीर में कमजोरी और अस्थमा या एलर्जी से पीड़ित हैं, उनको पटाखों के धुएं से दूर रखें. ऐसे लोगों के लिए पटाखे का धुआं बहुत खतरनाक हो सकता है. डॉक्टर्स मानते हैं कि पटाखों के धुएं से फेफड़ों में सूजन आ सकती है. जिससे फेफड़े अपना काम ठीक से नहीं कर पाते. यहां तक कि इससे ऑर्गेन फेलियर या मौत तक हो सकती है. इसलिए धुएं से बचने की कोशिश करनी चाहिए.

अस्थमा अटैक का होता है खतरा

पटाखों के धुएं की वजह से अस्थमा का अटैक आ सकता है. ऐसे में जिन लोगों को सांस की समस्याएं हो, उन्हें अपने आप को प्रदूषित हवा से बचा कर रखना चाहिए. पटाखों के धुएं से हार्टअटैक और स्ट्रोक का खतरा भी पैदा हो सकता है. पटाखों में मौजूद लेड के कारण हार्टअटैक और स्ट्रोक की आशंका बढ़ जाती है. जब पटाखों से निकलने वाला धुआं सांस के साथ शरीर में जाता है तो खून के प्रवाह में रूकावट आने लगती है. दिमाग को पर्याप्त मात्रा में खून न पहुंचने के कारण व्यक्ति स्ट्रोक का शिकार हो सकता है.

धुंए से बचने की जरुरत: सीएमएचओ

राजनांदगांव सीएमएचओ डॉ. मिथलेश चौधरी ने बताया कि अस्थमा या एलर्जी के मरीजों की सेहत के लिए पटाखे का धुआं खतरनाक हो सकता है. ऐसे लोगों को दिवाली की आतिशबाजी या पटाखों के धुएं से बचने की जरुरत है. सीएमएचओ ने स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर और विश्व स्वास्थ्य संगठन का हवाला देते हुए बताया कि वायु प्रदूषण से भारत में हर साल 12 लाख लोगों की मौत हो जाती है. इनमें दिल संबंधी बीमारियों से 34 प्रतिशत, निमोनिया से 21 प्रतिशत, स्ट्रोक से 20 प्रतिशत, सांस संबंधी बिमारियों से 19 प्रतिशता और फेफड़ों के कैंसर से 7 प्रतिशत लोगों की मौत हो जाती है. ऐसे में लोगों को पटाखों के धुएं और शोर से बचने की जरुरत है.

दीपावली पर पटाखा फोड़ने की समय सीमा 2 घंटे निर्धारित, नियम तोड़ने पर होगी कार्रवाई

बच्चे और गर्भवती महिलाएं भी रहें सतर्क

डॉक्टरों का कहना है कि बच्चे और गर्भवती महिलाओं को पटाखों के शोर और धुएं से बचकर रहना चाहिए. पटाखों से निकला गाढ़ा धुआं खासतौर पर छोटे बच्चों में सांस की समस्याएं पैदा कर देता है. पटाखों में हानिकारक रसायन के कारण बच्चों के शरीर में टॉक्सिन्स का स्तर बढ़ जाता है. जिससे उनके विकास में रुकावट आने लगती है. पटाखों के धुएं से गर्भपात की संभावना भी बढ़ जाती है. इसलिए गर्भवती महिलाओं को भी ऐसे समय में घर पर ही रहना चाहिए.

हवा में ऐसे घुलता है प्रदूषण

पटाखों के धुएं या आतिशबाजी के कारण हवा में प्रदूषण बढ़ जाता है. धूल के कणों में कॉपर, जिंक, सोडियम, लेड, मैग्निशियम, कैडमियम, सल्फर ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जमा हो जाता है. ये सभी गैस स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.

  • कॉपर से सांस की समस्याएं होने लगती है.
  • कैडमियम से खून की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम होती है.
  • जिंक की वजह से उल्टी और बुखार हो सकता है.
  • लेड से तंत्रिका प्रणाली को नुकसान पहुंचता है.
  • मैग्निशियम और सोडियम भी सेहत के लिए हानिकारक है.

पटाखे का शोर भी घातक

पटाखे का शोर भी बीमार लोगों, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि 100 डेसिबल से ज्यादा आवाज का बुरा असर हमारी सुनने की क्षमता पर पड़ता है. सामान्यत: ध्वनि का स्तर 85 डेसिबल तक ही माना गया है. अनचाही आवाज लोगों पर मनोवैज्ञानिक असर पैदा करती है. ऐसे में शोर तनाव, अवसाद, उच्च रक्तपचाप, सुनने में परेशानी, नींद में परेशानी आदि का कारण बन सकता है.

राजनांदगांव: दिवाली में पटाखों की धूम नहीं हो तो कुछ कमी सी लगती ही है, लेकिन अगर पटाखे हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने लगे तो इनके इस्तेमाल के बारे में सोचना जरूरी हो जाता है. दरअसल, पटाखों का धुआं जहां स्वाभाविक तौर पर खतरनाक माना जाता है, वहीं अब कोरोना संक्रमण के लिहाज से भी यह बेहद संवेदनशील बताया जा रहा है.

कोरोना मरीजों को बरतनी होगी सावधानी

स्वास्थ्य विभाग भी लोगों से लगातार अपील कर रहा है कि, कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके वे मरीज जो फेफड़े और शरीर में कमजोरी और अस्थमा या एलर्जी से पीड़ित हैं, उनको पटाखों के धुएं से दूर रखें. ऐसे लोगों के लिए पटाखे का धुआं बहुत खतरनाक हो सकता है. डॉक्टर्स मानते हैं कि पटाखों के धुएं से फेफड़ों में सूजन आ सकती है. जिससे फेफड़े अपना काम ठीक से नहीं कर पाते. यहां तक कि इससे ऑर्गेन फेलियर या मौत तक हो सकती है. इसलिए धुएं से बचने की कोशिश करनी चाहिए.

अस्थमा अटैक का होता है खतरा

पटाखों के धुएं की वजह से अस्थमा का अटैक आ सकता है. ऐसे में जिन लोगों को सांस की समस्याएं हो, उन्हें अपने आप को प्रदूषित हवा से बचा कर रखना चाहिए. पटाखों के धुएं से हार्टअटैक और स्ट्रोक का खतरा भी पैदा हो सकता है. पटाखों में मौजूद लेड के कारण हार्टअटैक और स्ट्रोक की आशंका बढ़ जाती है. जब पटाखों से निकलने वाला धुआं सांस के साथ शरीर में जाता है तो खून के प्रवाह में रूकावट आने लगती है. दिमाग को पर्याप्त मात्रा में खून न पहुंचने के कारण व्यक्ति स्ट्रोक का शिकार हो सकता है.

धुंए से बचने की जरुरत: सीएमएचओ

राजनांदगांव सीएमएचओ डॉ. मिथलेश चौधरी ने बताया कि अस्थमा या एलर्जी के मरीजों की सेहत के लिए पटाखे का धुआं खतरनाक हो सकता है. ऐसे लोगों को दिवाली की आतिशबाजी या पटाखों के धुएं से बचने की जरुरत है. सीएमएचओ ने स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर और विश्व स्वास्थ्य संगठन का हवाला देते हुए बताया कि वायु प्रदूषण से भारत में हर साल 12 लाख लोगों की मौत हो जाती है. इनमें दिल संबंधी बीमारियों से 34 प्रतिशत, निमोनिया से 21 प्रतिशत, स्ट्रोक से 20 प्रतिशत, सांस संबंधी बिमारियों से 19 प्रतिशता और फेफड़ों के कैंसर से 7 प्रतिशत लोगों की मौत हो जाती है. ऐसे में लोगों को पटाखों के धुएं और शोर से बचने की जरुरत है.

दीपावली पर पटाखा फोड़ने की समय सीमा 2 घंटे निर्धारित, नियम तोड़ने पर होगी कार्रवाई

बच्चे और गर्भवती महिलाएं भी रहें सतर्क

डॉक्टरों का कहना है कि बच्चे और गर्भवती महिलाओं को पटाखों के शोर और धुएं से बचकर रहना चाहिए. पटाखों से निकला गाढ़ा धुआं खासतौर पर छोटे बच्चों में सांस की समस्याएं पैदा कर देता है. पटाखों में हानिकारक रसायन के कारण बच्चों के शरीर में टॉक्सिन्स का स्तर बढ़ जाता है. जिससे उनके विकास में रुकावट आने लगती है. पटाखों के धुएं से गर्भपात की संभावना भी बढ़ जाती है. इसलिए गर्भवती महिलाओं को भी ऐसे समय में घर पर ही रहना चाहिए.

हवा में ऐसे घुलता है प्रदूषण

पटाखों के धुएं या आतिशबाजी के कारण हवा में प्रदूषण बढ़ जाता है. धूल के कणों में कॉपर, जिंक, सोडियम, लेड, मैग्निशियम, कैडमियम, सल्फर ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जमा हो जाता है. ये सभी गैस स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.

  • कॉपर से सांस की समस्याएं होने लगती है.
  • कैडमियम से खून की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम होती है.
  • जिंक की वजह से उल्टी और बुखार हो सकता है.
  • लेड से तंत्रिका प्रणाली को नुकसान पहुंचता है.
  • मैग्निशियम और सोडियम भी सेहत के लिए हानिकारक है.

पटाखे का शोर भी घातक

पटाखे का शोर भी बीमार लोगों, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि 100 डेसिबल से ज्यादा आवाज का बुरा असर हमारी सुनने की क्षमता पर पड़ता है. सामान्यत: ध्वनि का स्तर 85 डेसिबल तक ही माना गया है. अनचाही आवाज लोगों पर मनोवैज्ञानिक असर पैदा करती है. ऐसे में शोर तनाव, अवसाद, उच्च रक्तपचाप, सुनने में परेशानी, नींद में परेशानी आदि का कारण बन सकता है.

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