राजनांदगांव : दिल्ली में बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर देशभर में हाहाकार मचा हुआ है. मुल्क की राजधानी की आबोहवा पर तो गली मोहल्लों से लेकर हर जगह चर्चा है. यहां तक कि देश की सर्वोच्य अदालत ने भी इसे लेकर सरकारों को फटकार लगाई है. लेकिन छत्तीसगढ़ के हाल भी वैसे ही हैं. कोरबा और रायगढ़ जैसे जिले तो प्रदूषण की लिस्ट में टॉप 50 में जगह बना चुके हैं.
अब बात करते हैं राजनांदगांव की. इस शहर की हवा में लगातार प्रदूषण की मात्रा बढ़ती जा रही है. एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक शहर में वायु प्रदूषण की गंभीर स्तर तक पहुंच गया है, जिसकी वजह से यहां रहने वाले लोगों की लाइफ एक्सपेक्टेंसी (उम्र प्रत्याशा) में औसतन 4.2 साल की कमी दर्ज की गई है.
प्रशासन के प्रयास नाकाफी
अगर प्रशासन ने इस दिशा में बेहतर प्रयास करे तो शहर की हवा बेहतर हो सकती है ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने की जरूरत है. शहर के समाजसेवी अनिल तिवारी का कहना है कि शहर में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने की जरूरत है. वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर पर जिला प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है, कुछ समय पहले शहर के बड़े पेड़ों को बिजली कंपनी ने छंटनी के नाम पर काट दिए थे, जबकि पेड़ पर्याप्त मात्रा में बड़े हो चुके थे. ऐसी स्थिति में विभागों में भी आपसी सामंजस बनाने की जरूरत है, ताकि शहर के पर्यावरण पर कोई असर न पड़े.
घट रहा जीवनकाल बीमार हो रहे लोग
शहर की हवा में प्रदूषित सूक्ष्म तत्व एवं धूल कणों की सघनता 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के सापेक्ष ओक्यूयूएलआई (OQULI) के आंकड़ों के मुताबिक अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों के हिसाब से शहर की आबोहवा में सुरक्षित मानक हो, तो राजनांदगांव के लोग 4.2 साल ज्यादा जी सकते थे.
स्वास्थ्य पर पड़ रहा बुरा असर
बता दें कि 'वायु प्रदूषण पूरे शहर के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है लेकिन जिला प्रशासन ने इस दिशा में अब तक कोई भी ध्यान नहीं दिया है. वातावरण में फैलते प्रदूषण से लोगों के स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ रहा है और ज्यादातर लोग कई प्रकार की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं.
पर्यावरण विभाग का कार्यालय ही नहीं
जिले में पर्यावरण विभाग का कार्यालय ही नहीं हैं, जिसकी वजह से जिले में पर्यावरण को बेतरतीब तरीके से नुकसान पहुंचाया जा रहा है. खनिज वन और वातावरण की बात करें तो राजनांदगांव में पर्यावरण विभाग का कार्यालय नहीं होने से लोग बेखौफ सोकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं. इस मामले में पर्यावरणविद प्रोफेसर ओंकारनाथ श्रीवास्तव का क्या कहना है यह हम आपको सुनाते हैं.
'कार्बन उत्सर्जन पर लगनी चाहिए रोक'
इस मामले में पर्यावरणविद प्रोफेसर ओंकारनाथ श्रीवास्तव का कहना है कि 'शहर को वायु प्रदूषण से बचाने के लिए सबसे पहले पेट्रोल डीजल से चलने वाली गाड़ियों के अधिक प्रयोग पर रोक लगानी चाहिए. नो व्हीकल डे मनाना चाहिए, वहीं शहर में नो व्हीकल जोन बनाकर पर्यावरण को स्वच्छ किया जा सकता है. इसके अलावा शहरों में जो घर तैयार किए जा रहे हैं, उनमें पर्याप्त मात्रा में वेंटिलेटर की व्यवस्था देनी चाहिए आजकल तैयार होने वाले मकानों में एसी को ध्यान में रखकर चारों तरफ दीवारों की पैकिंग कर दी जाती है और इसके बाद एसी लगाकर हम ज्यादा से ज्यादा एनर्जी का इस्तेमाल करते हैं जो कि गलत है, इसके अलावा हमें कम से कम ऊर्जा के अन्य स्रोतों का इस्तेमाल करना चाहिए सबसे ज्यादा ग्रीन एनर्जी का उपयोग करना चाहिए'.
भयानक हो सकते हैं परिणाम
शहर में प्रदूषण का बढ़ता स्तर निश्चित तौर पर चिंता का विषय है और अगर इसे लेकर जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो वो दिन दूर नहीं जब राजनांदगांव की आबोहवा में सांस लेना मुश्किल हो जाएगा.