राजनांदगांव : दिवाली के 2 दिन बाद मनाए जाने वाले मातर त्योहार का गांव में विशेष महत्व है. ये त्योहार गोवर्धन पूजा के पहले और भाईदूज के बाद मनाया जाता है. यादव समाज के लोग बड़े ही धूमधाम से मातर त्योहार की शुरुआत करते है. प्रदेश में मातर के बाद से ही मड़ई की भी शुरुआत होती है.
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भाईचारे का संदेश देने वाले इस पर्व को पूरे प्रदेश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन पूरा गांव एक जगह मिलकर ये त्योहार मनाता है.
मातर त्योहार की परंपरा
ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव के अहंकार को तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठा लिया था. जिसके बाद से ही गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाने लगी. छत्तीसगढ़ी परंपरा में गोवर्धन पूजा के दिन गोबर का पर्वत बनाकर उसकी पूजा की जाती है. साथ ही गायों की भी पूजा की जाती है. यादव समाज के लोग गौठानों में पूजा-अर्चना करने के बाद कद्दू और दही से बनी सब्जी और खीर प्रसाद में बांटते हैं.
मातर जगाने की रस्म
गौठानों में बने गोवर्धन पर्वत के पास दिया जलाकर यादव समाज की महिलाएं पूजा-अर्चना करती है. जिसे 'मातर जगाना' कहा जाता है. इसके बाद गायों को सोहई पहनाई जाती है. पूरे गांव में यदुवंशी घर-घर जाकर गौठानों की पूजा करते हैं. इस दौरान पूरे रास्ते सभी गढ़वा बाजे के साथ थिरकते हुए आगे बढ़ते हैं.