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धूमधाम से मनाया गया 'मातर तिहार' - मातर त्योहार की परंपरा

दिवाली के बाद मनाए जाने वाले मातर त्योहार को पूरे प्रदेश में बड़े ही धूमधाम से मनाया गया. इस पर्व के बाद से ही प्रदेश में मड़ई की शुरुआत होती है.

मातर त्योहार
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Published : Oct 29, 2019, 11:42 PM IST

Updated : Oct 29, 2019, 11:58 PM IST

राजनांदगांव : दिवाली के 2 दिन बाद मनाए जाने वाले मातर त्योहार का गांव में विशेष महत्व है. ये त्योहार गोवर्धन पूजा के पहले और भाईदूज के बाद मनाया जाता है. यादव समाज के लोग बड़े ही धूमधाम से मातर त्योहार की शुरुआत करते है. प्रदेश में मातर के बाद से ही मड़ई की भी शुरुआत होती है.

मातर तिहार की धूम

पढ़ें: यहां भाईदूज के दिन बहनें देती हैं भाईयों को श्राप, जानिए क्या है मान्यता

भाईचारे का संदेश देने वाले इस पर्व को पूरे प्रदेश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन पूरा गांव एक जगह मिलकर ये त्योहार मनाता है.

मातर त्योहार की परंपरा

ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव के अहंकार को तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठा लिया था. जिसके बाद से ही गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाने लगी. छत्तीसगढ़ी परंपरा में गोवर्धन पूजा के दिन गोबर का पर्वत बनाकर उसकी पूजा की जाती है. साथ ही गायों की भी पूजा की जाती है. यादव समाज के लोग गौठानों में पूजा-अर्चना करने के बाद कद्दू और दही से बनी सब्जी और खीर प्रसाद में बांटते हैं.

मातर जगाने की रस्म

गौठानों में बने गोवर्धन पर्वत के पास दिया जलाकर यादव समाज की महिलाएं पूजा-अर्चना करती है. जिसे 'मातर जगाना' कहा जाता है. इसके बाद गायों को सोहई पहनाई जाती है. पूरे गांव में यदुवंशी घर-घर जाकर गौठानों की पूजा करते हैं. इस दौरान पूरे रास्ते सभी गढ़वा बाजे के साथ थिरकते हुए आगे बढ़ते हैं.

राजनांदगांव : दिवाली के 2 दिन बाद मनाए जाने वाले मातर त्योहार का गांव में विशेष महत्व है. ये त्योहार गोवर्धन पूजा के पहले और भाईदूज के बाद मनाया जाता है. यादव समाज के लोग बड़े ही धूमधाम से मातर त्योहार की शुरुआत करते है. प्रदेश में मातर के बाद से ही मड़ई की भी शुरुआत होती है.

मातर तिहार की धूम

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भाईचारे का संदेश देने वाले इस पर्व को पूरे प्रदेश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन पूरा गांव एक जगह मिलकर ये त्योहार मनाता है.

मातर त्योहार की परंपरा

ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव के अहंकार को तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठा लिया था. जिसके बाद से ही गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाने लगी. छत्तीसगढ़ी परंपरा में गोवर्धन पूजा के दिन गोबर का पर्वत बनाकर उसकी पूजा की जाती है. साथ ही गायों की भी पूजा की जाती है. यादव समाज के लोग गौठानों में पूजा-अर्चना करने के बाद कद्दू और दही से बनी सब्जी और खीर प्रसाद में बांटते हैं.

मातर जगाने की रस्म

गौठानों में बने गोवर्धन पर्वत के पास दिया जलाकर यादव समाज की महिलाएं पूजा-अर्चना करती है. जिसे 'मातर जगाना' कहा जाता है. इसके बाद गायों को सोहई पहनाई जाती है. पूरे गांव में यदुवंशी घर-घर जाकर गौठानों की पूजा करते हैं. इस दौरान पूरे रास्ते सभी गढ़वा बाजे के साथ थिरकते हुए आगे बढ़ते हैं.

Intro:राजनांदगांव हिंदू धर्म के सबसे बड़े त्यौहार दीपावली का जहां बड़ा महत्व है वही 5 दिन चलने वाले इस त्यौहार में दिवाली के 2 दिन बाद मनाए जाने वाले मातर पर्व का भी गांव में विशेष महत्व है इस पर्व को ग्रामीण भारत पूरे धूमधाम से मनाता है गोवंश से जुड़ी यह पर्व लोगों में आस्था के साथ खुशहाली का भी बड़ा प्रतीक माना जाता है.


Body:बता दें कि मात्र पर्व को लेकर के लोगों में मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने पूरी दुनिया को गौ वंश से अवगत कराया था इस समय गाय को माता का दर्जा दिया गया था युगो से आ रही इस परंपरा को छत्तीसगढ़ में आज भी पूरे धूमधाम से मनाया जाता है गांव में मातर पर्व के नाम से ग्रामीण इसे पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा और उसके बाद के दिन को मातर कहा जाता है. मातर में मां का अर्थ होता है माता और तर्क का अर्थ होता है उसकी शक्ति को जगाना. इसके लिए ग्रामीण अपने आराध्य देव को अपने कंधों पर बिठाकर गौठान पर लेकर आते हैं और फिर यहां से पूजा पाठ कर इस पर्व की शुरुआत होती है।
एक साथ करते हैं प्रसादी ग्रहण
यह विशेष पर्व है जिसमें गाय की पूजा होती है और गाय के गोबर से तिलक लगाकर इस पर्व की शुरुआत होती है गाय के लिए बने प्रसाद से पूरा घर खाना खाता है और गाय के दूध की खीर बनाई जाती है जिसे प्रसादी के तौर पर ग्रहण किया जाता है सारी रात दोहे पढ़े जाते है।
ऐसे मनाते हैं मातर
पर्व के बारे में बताया जाता है कि मातर पर्व भाईचारे का संदेश देता है छत्तीसगढ़ के हर कोने में पूरी निष्ठा भाव के साथ यह पर्व मनाने की परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है दिवाली के अगले 2 दिन गांव में हर समाज के लोग इस परंपरा में शामिल होते हैं जिन घरों में गाय होती है वह उनके रहने के स्थान को साफ-सफाई एवं लिपाई पुताई करते हैं वही गौठान पर विशेष पूजा अर्चना की व्यवस्था की जाती है। इस दिन यादव समाज के लोग घर-घर जाकर गोवंश को सोहाई दोहर की माला पहनाते हैं सोहाई मोर पंख और दोहर पेड़ की छाल से बनी विशेष माला होती है इसके बाद में नए अनाज से गौ माता के लिए भोजन भी बनाया जाता है उसे घर के सभी सदस्य खाते हैं।

बाइट अजय ठाकुर काली मंदिर प्रमुख





Conclusion:
Last Updated : Oct 29, 2019, 11:58 PM IST
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