राजनांदगांव :विश्व प्रसिद्ध मां बम्लेश्वरी का मंदिर प्राचीन काल से ही विद्यमान है. प्राचीन काल से ही इस मंदिर की महिमा अपरंपार रही है. विश्व प्रसिद्ध मां बम्लेश्वरी देवी के दर्शन के लिए नवरात्र पर्व पर लगभग 15 लाख से भी अधिक श्रद्धालु दर्शन के लिए डोंगरगढ़ पहुंचते हैं. मंदिर समिति इसके लिए विशेष तैयारी करती है. इस बार माता के दरबार को 3 किलो सोने से सजाया गया है. राजस्थान के 20 से भी अधिक कलाकारों ने मंदिर के गर्भगृह में आकर्षक आकृतियां उकेरी हैं. जो देखते ही बन रही है. चैत्र नवरात्रि पर्व के अवसर पर देश विदेश से लोगों ने ज्योति कलश की स्थापना मां बम्लेश्वरी मंदिर में की है.
माता के दरबार तक पहुंचने के लिए सुविधा :इस बार चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 22 मार्च से हो रही है. इस अवसर पर डोंगरगढ़ स्थित मां बम्लेश्वरी मंदिर में भव्य मेला का आयोजन हो रहा है.वहीं डोंगरगढ़ जाने वाले पदयात्रियों की पग-पग में सेवा के लिए पंडाल भी लगाए गए हैं. पैदल नहीं चल पाने वाले लोगों के लिए रोपवे की सुविधा भी डोंगरगढ़ में है.
पहले मां बम्लेश्वरी देवी के दर्शन के लिए पहाड़ों से होकर जाना पड़ता था. लेकिन अब यहां सीढ़ियां और रोपवे है. मौजूदा समय में राजनांदगांव जिले का डोंगरगढ़ मां बम्लेश्वरी मंदिर भक्तों की आस्था का प्रतीक बन चुका है. देश विदेश से लाखों श्रद्धालु मां के दर्शन करने के लिए दोनों नवरात्रि पर्व में यहां पहुंचते हैं.
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क्या है मंदिर का इतिहास : मां बम्लेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास उज्जैन के राजा विक्रमादित्य से जुड़ा है. राजा वीरसेन की कामाख्या नगरी में कामकंदला और माधवनल के बीच प्रेम हुआ. लेकिन राजा वीरसेन के पोते कामसेन के पुत्र मदनादित्य की नजर कामकंदला पर थी. जब कामकंदला और माधवनल के प्रेम की जानकारी मदनादित्य को हुई तो उसने माधवनल को गिरफ्तार करने के आदेश दे दिए. माधवदल उज्जैन आया और राजा विक्रमादित्य से मदद मांगी. इसके बाद विक्रमादित्य के साथ माधवनल ने कामाख्या नगरी में आक्रमण कर दिया. इस हमले में मदनादित्य मारा गया.
राजा विक्रमादित्य ने ली परीक्षा : इसके बाद राजा विक्रमादित्य ने कामकंदला और माधवनल की परीक्षा लेनी चाही. विक्रमादित्य ने कामकंदला से कहा कि माधवनल युद्ध में मारा गया. राजा विक्रमादित्य के मुंह से इस बात को सुनकर कामकंदला सदमे में आ गई और तालाब में कूदकर जान दे दी. वहीं कामकंदला की मृत्यु की जानकारी लगते ही माधवनल ने भी प्राण त्याग दिए. इस घटना से विक्रमादित्य इतने उदास हुए कि वो भी प्राण त्यागने चल दिए. तभी देवी बम्लेश्वरी ने उन्हें दर्शन दिए और ऐसा करने से रोका. तब विक्रमादित्य ने देवी से दोनों प्रेमी जोड़ों की याद में डोंगरगढ़ को पहचान दिलाने के लिए देवी से वहीं स्थापित होने की प्रार्थना की. तब से देवी पहाड़ों में ही विराजमान हो गईं.
दूसरी मान्यता के अनुसार राजनांदगांव जिले में डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर कामाख्या नगरी के राजा वीरसेन ने इस मंदिर की स्थापना करवाई थी. आगे चलकर राजा वीरसेन और विक्रमादित्य के बीच युद्ध हुआ. तब विक्रमादित्य के आह्वान पर उनके कुलदेवता उज्जैन के महाकाल ने वीरसेन की सेना का विनाश करना शुरु किया. इसके बाद राजा वीरसेन ने अपनी कुलदेवी माता बम्लेश्वरी का आह्वान किया. जिसके बाद माता युद्ध क्षेत्र में आईं. महाकाल ने जैसे ही बम्लेश्वरी माता को देखा वैसे ही माता की शक्तियों को प्रणाम किया. इसके बाद दोनों ही राज्यों में संधि हो गई. तभी से माता बम्लेश्वरी डोंगरगढ़ की पहाड़ियों पर विराजमान हैं.