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केले की जैविक खेती कर किसान हो रहे है आत्मनिर्भर - केला की खेती

राजनांदगांव के बाकल में किसान अलग किस्म के केले की खेती कर रहे है. किसान मनोज चौधरी केले की खेती में 8 वर्षों से लगे हुए हैं. माल भोग किस्म का यह केला अमूमन नेपाल सीमा से लगी काली नदी घाटी क्षेत्र में होता है.

केला की खेती
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Published : Aug 6, 2021, 10:05 PM IST

राजनांदगांव: किसान मनोज चौधरी बाकल में अलग किस्म के केले की खेती कर रहे है. केले के पौधे से शुरू की गई यह खेती साढ़े तीन एकड़ में फैल चुकी है. किसान के कड़ी मेहनत से लगभग 8 वर्षों से बाकल में केले की देसी पद्धति से खेती तैयार की हैं. इस केले का दूसरा नाम माल भोग है.

केले की जैविक खेती कर किसान हुए आत्मनिर्भर
बाकल में किसान मनोज चौधरी देसीकेले की खेती कर रहे हैं. केले की खेती में 8 वर्षों की मेहनत है. केले की खास बात यह है कि माल भोग किस्म का यह केला अमूमन नेपाल सीमा से लगी काली नदी घाटी क्षेत्र में होता है. उन्होंने बिहार से केले का एक पौधा लाकर उसे बिना रसायनिक खाद के तैयार किया है. बता दें कि गोबर खाद के उपयोग से केला का पौधा आज साढ़े तीन एकड़ में तैयार किया गया है. उन्होंने बताया कि केले की खेती में केवल गोबर खाद का प्रयोग कर यह बदलाव किया है.

कृषक मनोज चौधरी ने कहा कि, उनके मित्र के माध्यम से उन्हें माल भोग केले का एक पौधा मिला था. अब यह पौधा एक से अनेक होकर लगभग साढे़ 3 एकड़ में फैल चुका है. केले को तैयार करने में गोबर खाद का यूज किया गया है. केले का स्वाद भी आम केलों से अलग है. इस केले की फसल के तैयार होते ही जानकार लोग खेतों तक पहुंचकर किलो के भाव से खरीदारी कर लेते हैं.

यह केला आम केलों के मुकाबले छोटा है, लेकिन इसके गुण आम केलों से कहीं ज्यादा दिखाई देते हैं. यहां अकेला औषधीय गुणों से भी भरपूर है. कहा जाता है कि पेट दर्द, बुखार और डायरिया में यह अकेला लाभदायक है. कई बार बाजार में दुकानदारों को मलाई केला कहते सुना जाता है.

राजनांदगांव: किसान मनोज चौधरी बाकल में अलग किस्म के केले की खेती कर रहे है. केले के पौधे से शुरू की गई यह खेती साढ़े तीन एकड़ में फैल चुकी है. किसान के कड़ी मेहनत से लगभग 8 वर्षों से बाकल में केले की देसी पद्धति से खेती तैयार की हैं. इस केले का दूसरा नाम माल भोग है.

केले की जैविक खेती कर किसान हुए आत्मनिर्भर
बाकल में किसान मनोज चौधरी देसीकेले की खेती कर रहे हैं. केले की खेती में 8 वर्षों की मेहनत है. केले की खास बात यह है कि माल भोग किस्म का यह केला अमूमन नेपाल सीमा से लगी काली नदी घाटी क्षेत्र में होता है. उन्होंने बिहार से केले का एक पौधा लाकर उसे बिना रसायनिक खाद के तैयार किया है. बता दें कि गोबर खाद के उपयोग से केला का पौधा आज साढ़े तीन एकड़ में तैयार किया गया है. उन्होंने बताया कि केले की खेती में केवल गोबर खाद का प्रयोग कर यह बदलाव किया है.

कृषक मनोज चौधरी ने कहा कि, उनके मित्र के माध्यम से उन्हें माल भोग केले का एक पौधा मिला था. अब यह पौधा एक से अनेक होकर लगभग साढे़ 3 एकड़ में फैल चुका है. केले को तैयार करने में गोबर खाद का यूज किया गया है. केले का स्वाद भी आम केलों से अलग है. इस केले की फसल के तैयार होते ही जानकार लोग खेतों तक पहुंचकर किलो के भाव से खरीदारी कर लेते हैं.

यह केला आम केलों के मुकाबले छोटा है, लेकिन इसके गुण आम केलों से कहीं ज्यादा दिखाई देते हैं. यहां अकेला औषधीय गुणों से भी भरपूर है. कहा जाता है कि पेट दर्द, बुखार और डायरिया में यह अकेला लाभदायक है. कई बार बाजार में दुकानदारों को मलाई केला कहते सुना जाता है.

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