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राजनांदगांव: कोरोना ने रोका भगवान जगन्नाथ का रथ, 125 साल पुरानी परंपरा टूटी

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Published : Jun 23, 2020, 8:09 PM IST

Updated : Jun 23, 2020, 9:25 PM IST

कोरोना की वजह से राजनांदगांव में 125 साल से चली आ रही परंपरा टूट गई है. बता दें कि जिले के पांडादाह गांव में हर साल रथयात्रा के दिन पूजा-अर्चना की जाती है, लेकिन रथयात्रा के एक दिन पहले ही इस गांव को कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया गया है. इसकी वजह से भगवान को मंदिर से बाहर ही नहीं निकाला गया.

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कोरोना ने रोका भगवान जगन्नाथ का रथ

राजनांदगांव / खैरागढ़ : पांडादाह गांव भगवान जगन्नाथ मंदिर की वजह से प्रसिद्ध है. यह मंदिर छत्तीसगढ़ का पहला जगन्नाथ मंदिर है. जहां 125 सालों से पूजा-अर्चना की जा रही है. कोरोना की वजह से 125 साल से चला आ रहा रीति-रीवाज अब टूट गया है. कोरोना ने बलदाऊ के रथ के पहिए रोक दिए हैं. कोरोना की वजह से भगवान को मंदिर से बाहर नहीं निकाला गया है. वहीं गांव के लोग भी दर्शन नहीं कर पा रहे है, क्योंकि जहां भगवान जगन्नाथ का मंदिर है, उसे गांव को रथयात्रा के एक दिन पहले ही कंटेंनमेंट जोन में शामिल कर दिया गया है.

राजनांदगांव में 125 साल पुरानी परंपरा टूटी

बता दें कि खैरागढ़ सिविल अस्पताल में कोरोना पॉजिटिव पाई गई लैब टैक्निशीयन महिला पांडादाह की ही है. इस वजह से पूरे गांव को सील कर दिया गया है. वहीं प्रशासन ने गांव को कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया है, जिसकी वजह से पुजारियों के अलावा कोई भी बाहरी व्यक्ति भगवान के दर्शन नहीं कर पाए. ऐसा पहली बार हुआ है, जब भगवान रथयात्रा के दिन बाहर न निकले हो.

रथ पर नहीं कांधे पर घूमाने की परंपरा

पांडादाह में भगवान जगन्नाथ की विरासत कालीन मंदिर है. जहां एक विशेष परंपरा अपनाई जाती है. यहां पर भक्त भगवान जगन्नाथ को अपने कांधे पर बैठकर मंदिर प्रांगण की पांच परिक्रमा करते है. वहीं सुबह सत्यनारायण पूजा संपन्न कराई जाती है. इसके बाद जगन्नाथ भगवान का स्नान और अभिषेक कर भक्तों के कांधों पर मंदिर की परिक्रमा करते हैं.

मंदिर में की गई थी विशेष तैयारी

वहीं करीब 15 दिन पहले भगवान जगन्नाथ को मंदिर के गर्भगृह से बाहर निकाल दिया जाता है. रथयात्रा के दिन अभिषेक और स्नान के बाद भगवान को कंधे पर बैठकर मंदिर की पांच परिक्रमा करने के बाद वापस गर्भगृह में स्थापित कर दिया जाता है. इस बार भी पांडादाह मंदिर परिसर मे इसकी विशेष तैयारी की गई थी, लेकिन कोरोना की वजह से सभी तैयारियों पर पानी फिर गया. साथ ही इस साल भक्तों को भगवान के दर्शन भी नहीं हो पाए.

पढ़ें: रायगढ़: कोरोना ने रोके रथ यात्रा के पहिये, 115 साल पुरानी परंपरा टूटी

डोंगरगढ़ के बाद दूसरा सबसे बड़ा मेला

भगवान जगन्नाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध पांडादाह में रथयात्रा के लिए काफी दूरदराज के लोग पहुंचते है. लोगों की माने तो यहां डोंगरगढ़ के मां बम्लेश्वरी के मेले के बाद दूसरा बड़ा मेला लगता है, लेकिन इस साल मंदिर ही कंटेंनमेंट जोन में शामिल हो गया है. इस वजह से पुजारियों के अलावा कोई भी बाहरी व्यक्ति भगवान के दर्शन नहीं कर सके. इतना ही नहीं गांव के लोग भी भगवान के दर्शन करने से अछूते रह गए.

राजनांदगांव / खैरागढ़ : पांडादाह गांव भगवान जगन्नाथ मंदिर की वजह से प्रसिद्ध है. यह मंदिर छत्तीसगढ़ का पहला जगन्नाथ मंदिर है. जहां 125 सालों से पूजा-अर्चना की जा रही है. कोरोना की वजह से 125 साल से चला आ रहा रीति-रीवाज अब टूट गया है. कोरोना ने बलदाऊ के रथ के पहिए रोक दिए हैं. कोरोना की वजह से भगवान को मंदिर से बाहर नहीं निकाला गया है. वहीं गांव के लोग भी दर्शन नहीं कर पा रहे है, क्योंकि जहां भगवान जगन्नाथ का मंदिर है, उसे गांव को रथयात्रा के एक दिन पहले ही कंटेंनमेंट जोन में शामिल कर दिया गया है.

राजनांदगांव में 125 साल पुरानी परंपरा टूटी

बता दें कि खैरागढ़ सिविल अस्पताल में कोरोना पॉजिटिव पाई गई लैब टैक्निशीयन महिला पांडादाह की ही है. इस वजह से पूरे गांव को सील कर दिया गया है. वहीं प्रशासन ने गांव को कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया है, जिसकी वजह से पुजारियों के अलावा कोई भी बाहरी व्यक्ति भगवान के दर्शन नहीं कर पाए. ऐसा पहली बार हुआ है, जब भगवान रथयात्रा के दिन बाहर न निकले हो.

रथ पर नहीं कांधे पर घूमाने की परंपरा

पांडादाह में भगवान जगन्नाथ की विरासत कालीन मंदिर है. जहां एक विशेष परंपरा अपनाई जाती है. यहां पर भक्त भगवान जगन्नाथ को अपने कांधे पर बैठकर मंदिर प्रांगण की पांच परिक्रमा करते है. वहीं सुबह सत्यनारायण पूजा संपन्न कराई जाती है. इसके बाद जगन्नाथ भगवान का स्नान और अभिषेक कर भक्तों के कांधों पर मंदिर की परिक्रमा करते हैं.

मंदिर में की गई थी विशेष तैयारी

वहीं करीब 15 दिन पहले भगवान जगन्नाथ को मंदिर के गर्भगृह से बाहर निकाल दिया जाता है. रथयात्रा के दिन अभिषेक और स्नान के बाद भगवान को कंधे पर बैठकर मंदिर की पांच परिक्रमा करने के बाद वापस गर्भगृह में स्थापित कर दिया जाता है. इस बार भी पांडादाह मंदिर परिसर मे इसकी विशेष तैयारी की गई थी, लेकिन कोरोना की वजह से सभी तैयारियों पर पानी फिर गया. साथ ही इस साल भक्तों को भगवान के दर्शन भी नहीं हो पाए.

पढ़ें: रायगढ़: कोरोना ने रोके रथ यात्रा के पहिये, 115 साल पुरानी परंपरा टूटी

डोंगरगढ़ के बाद दूसरा सबसे बड़ा मेला

भगवान जगन्नाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध पांडादाह में रथयात्रा के लिए काफी दूरदराज के लोग पहुंचते है. लोगों की माने तो यहां डोंगरगढ़ के मां बम्लेश्वरी के मेले के बाद दूसरा बड़ा मेला लगता है, लेकिन इस साल मंदिर ही कंटेंनमेंट जोन में शामिल हो गया है. इस वजह से पुजारियों के अलावा कोई भी बाहरी व्यक्ति भगवान के दर्शन नहीं कर सके. इतना ही नहीं गांव के लोग भी भगवान के दर्शन करने से अछूते रह गए.

Last Updated : Jun 23, 2020, 9:25 PM IST
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