रायपुर: विश्व कार्टूनिस्ट दिवस की शुरुआत नेशनल कार्टूनिस्ट सोसाइटी के सदस्यों ने की थी. इसका नेतृत्व केन एल्विन ने किया था. कार्टूनिस्ट पोली कीनर ऑफ अक्रॉन, ओहियो और कॉमिक स्ट्रिप 'हैम्स्टर एले' के निर्माता प्रमुख रूप से कार्टूनिस्ट दिवस के प्रमोटर माने जाते हैं. कार्टूनिस्ट डे पहली बार 5 मई 1999 को मनाया गया था. 1895 में रिचर्ड एफ आउटकल्चर ने 'येलो किड' पेश किया, जो पहला कार्टून चरित्र था. समय के साथ पत्र-पत्रिकाओं और अखबारों में कार्टून कम हो गया है. विश्व कार्टूनिस्ट दिवस पर ETV भारत ने प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट त्र्यम्बक शर्मा से बात की.
सवाल: आज के समय में कार्टून और कार्टूनिस्ट की क्या स्थिति है?
जवाब: आज के समय में अखबारों में कार्टूनिस्ट की कमी होती जा रही है. हालांकि ऐसा लगता है कि आने वाले समय में एक बार फिर कार्टूनिस्ट का महत्व बढ़ेगा. वापस स्थिति पहले जैसी होगी. वर्तमान में कुछ अखबारों में ही कार्टूनिस्ट रह गए हैं.
सवाल: विपक्ष खुद ही कार्टून बना हुआ है. पहले कार्टून विपक्ष की भूमिका निभाता था. आप क्या कहेंगे?
जवाब: पहले फिल्मों में हास्य कलाकार होते थे लेकिन अब हीरो ही हास्य कलाकार बन गए हैं. इसी तरह विपक्ष अभी खुद ही कार्टून बना हुआ है. उनके नेता खुद कार्टून की तरह बिहेवियर करने लगे हैं. अब विपक्ष के नेताओं की भाषा ही ऐसी हो गई है कि कार्टून बनाने की जरूरत ही नहीं होती है. जो वह बोलते हैं, वह अपने आप में कार्टून हो जाता है. लेकिन यह सच है कि सही विपक्ष की भूमिका कार्टूनिस्ट ही तय कर सकता है. वह किसी पार्टी विशेष को महत्व नहीं देता है.
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सवाल: क्या सोशल मीडिया में कार्टून को जगह मिली तो फिर बदल जाएंगे कार्टूनिस्ट के दिन?
जवाब: पहले के समय सोशल मीडिया नहीं था. उस दौरान अखबार एक दूसरे तक सूचना पहुंचाने का माध्यम होता था. अखबार में जो छपता था, उसे अकाट्य माना जाता है. वह सही खबर मानी जाती थी. अखबार में जो कार्टून छपते थे, उसे लोग इंजॉय करते थे. अब अखबार 24 घंटे बाद निकलता है. 1 घंटे बाद समाचार दूसरा हो जाता है, इसलिए एक दौर बदला है. अब डिजिटल का दौर आ गया है. इसलिए मेरा आग्रह है कि अब सोशल मीडिया में 24 घंटे जो समाचार अपडेट होते हैं, वहां पर कार्टून और कार्टूनिस्ट के लिए व्यवस्था बनाई जाए तो ज्यादा बेहतर होगा. इससे जरूर कुछ हद तक कार्टूनिस्टों को लाभ मिल सकेगा.
सवाल: टीवी चैनलों पर चल रहे कॉर्टून पर आपकी क्या राय है?
जवाब: कंप्यूटर में भी जो कार्टून बनाए जाते हैं, उसकी ड्राइंग हाथ से होती है या फिर टैब में हाथ से बनाते हैं. वह कंप्यूटर में दिखता है. एनिमेशन में बहुत लोगों की टीम लगती है. पहले बच्चे कॉमिक्स पढ़ते थे. अब टीवी पर कॉमिक्स देखते हैं. यह अच्छा है कि अब भी बच्चे कार्टून से जुड़े हुए हैं. कार्टून के नए-नए गेम्स बन रहे हैं. एक दौर था जब गर्मी की छुट्टियों में लोग किराए से कॉमिक्स लाकर उसके कार्टून देखते थे और उसे पढ़ते थे. वह दौरे इसलिए अलग है कि उस समय बाकी साधन मौजूद नहीं थे. आज के समय में मोबाइल होने के बाद अखबार भी नहीं पलट पाते हैं, इसलिए माध्यम बदल गया है.
सवाल: आप रोजी-रोटी के लिए या शौकिया तौर पर कार्टूनिस्ट बने?
जवाब: आज कार्टूनिस्ट को काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है. हालांकि यह जरूरी नहीं कि कार्टून अखबारों में कम होने से रास्ते बंद हो गए हैं. इसके और भी जरिए हैं. एनिमेशन जरिया है. गेम्स है. जिसमें जज्बा है. उन्हें रास्ते मिलते जाते हैं. हां यह जरूर है कि अखबारों में कार्टूनिस्ट और कार्टून की जो जगह थी, उसमें कमी आई है. उसमें पद कम हो गया है. आजकल नि:शुल्क या फिर आपसी संबंधों की वजह से कार्टून दिए जाते हैं. इसलिए मैं कार्टूनिस्ट को बोलता हूं कि पहले आप अपनी रोजी-रोटी का इंतजाम कर लें, उसके बाद कार्टूनिस्ट बनें और कार्टूनिस्ट के पेशे को शौकिया तौर पर रखें.
भारत के प्रमुख कार्टूनिस्ट
के शंकर पिल्लई, आर के लक्ष्मण, अबू अब्राहम, रंगा, कुट्टी, उन्नी, प्राण, मारियो मिरांडा, रवींद्र, केशव, बाल ठाकरे, अनवर अहमद, मीता रॉय, जी अरविन्दन, जयंतो बनर्जी, माया कामथ, कुट्टी, माधन, वसंत सरवटे, रविशंकर, आबिद सुरती, अजीत नैनन, काक, मिकी पटेल, सुधीर दर, सुधीर तैलंग, शेखर गुरेरा, राजेंद्र धोड़पकर, इस्माइल लहरी भारत के प्रमुख कार्टूनिस्ट हैं.