रायपुर: दिल्ली मुंबई जैसे बड़े शहरों में होने वाले पुलिस एनकाउंटर के किस्से और कहानियां तो आपने जरूर सुनी ही होगी. लेकिन क्या आपने कभी यह सुना है कि रायपुर में भी पुलिस एनकाउंटर हुए हैं. जी हां... रायपुर पुलिस ने भी एनकाउंटर किए हैं. पुलिस ने एक कुख्यात बदमाश का एनकाउंटर किया है. कहा जाता है कि पुलिस ने जिस बदमाश का एनकाउंटर किया है, उसके नाम का खौफ शहर में था. शहर में उसका राज चलता था. उसके खिलाफ हत्या, मारपीट और लूट जैसे कई गंभीर अपराध दर्ज थे. उसकी गुंडागर्दी की हिमाकत आप इस बात से लगा सकते हैं कि उसने रायपुर न्यायालय में एडीजे कोर्ट के सामने एक युवक पर जानलेवा हमला किया था. साथ ही पुलिसकर्मियों पर भी बम फेंका था. इस घटना में एक जवान का हाथ कट गया तो वहीं कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे. उस खूंखार बदमाश का नाम मुन्ना तिवारी था. चलिए जानते हैं रायपुर के पहले एनकाउंटर की कहानी तत्कालीन अफसर राजीव शर्मा की जुबानी, जिन्होंने रायपुर में पहला एनकाउंटर किया था.
सवालः रायपुर में पहला एनकाउंटर आपके द्वारा किया गया, इसकी कहानी क्या है.
जवाबः बात सन 1988 की है. उस समय मैं और मेरा साथी आरके शुक्ला सब इंस्पेक्टर हुआ करते थे. उप निरीक्षक की नई भर्ती होने के बाद हमारी रायपुर के कोतवाली थाने में पोस्टिंग हुई थी. उस दौरान तात्कालिन पुलिस अधीक्षक सीपीजी उन्नी थे, जो डीजीपी होकर रिटायर्ड हुए हैं. उस दौरान एक बड़े नामी अधिकारी थे अयोध्यानाथ पाठक, जो उस दौरान हमारे आईजी थे. हालांकि अब उनका निधन हो गया है. वे मध्यप्रदेश में काफी लंबे समय तक डीजीपी रहे हैं. उस वक्त रायपुर शहर बड़ा शहर नहीं था, लेकिन फिल्मों में जिस तरह गुंडागर्दी देखने को मिलती है. उसी तरह की गुंडागर्दी का चलन रायपुर में था. मतलब, खुलेआम मर्डर कर देना, हालांकि अब शहर में उस तरह की गुंडागर्दी नहीं है."
राजीव आगे बताते हैं "1988 के समय सत्ती बाजार इलाके में कुछ गुंडे हुआ करते थे. उनका नाम था लल्लू तिवारी, मुन्ना तिवारी और उनके दो तीन और भाई. इन सभी के खिलाफ क्रिमिनल रिकॉर्ड और हत्या के अपराध दर्ज थे. इनके नाम एक नहीं बल्कि कई हत्याओं के मामले दर्ज थे. ये सभी फरार चल रहे थे. सभी निगरानी बदमाश के खिलाफ 30-32 मामले पेंडिंग थे. चूंकि ये लोग पुलिस के ऊपर भी कई दफे हमला कर चुके थे. यह सारी चीजें रिकार्डों में दर्ज हैं. पुलिस उस दौरान उन्हें गिरफ्तार करने से डरती भी थी. उन्होंने खुलेआम एक रमेश हेमनानी नाम के व्यक्ति की हत्या कर दी थी. ये शातिर बदमाश बैजनाथ पारा इलाके के छिब्बन नाम के युवक पर खुलेआम बम से हमला कर मौत के घाट उतार दिया था. ऐसे कई हत्याओं में ये लोग शामिल रहे."
एडीजे कोर्ट में घुसकर किया था जानलेवा हमला: "एक दिन आपसी रंजिश में रायपुर न्यायालय में एडीजे कोर्ट के अंदर घुसकर एक बदमाश के ऊपर कुख्यात मुन्ना तिवारी ने फरसे से जानलेवा हमला किया था. यह एक बड़ा ही दुस्साहसिक प्रयास था. इस घटना को तत्कालीन अधिकारी के साथ पत्रकारों ने भी गंभीरता से लिया. जिससे काफी संवेदनशीलता आ गई थी. फिर उसे गिरफ्तार करने तत्कालीन टीआई आरपी शर्मा, जो अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक होकर रिटायर्ड हुए हैं. उनके नेतृत्व में रात के समय हम लोग उन्हें गिरफ्तार करने गए. चूंकि मुन्ना तिवारी काफी दुस्साहसिक था, उसको लगता था कि पुलिस उस पर हाथ नहीं डाल सकती. उसने काफी गाली गलौज की. फिर मुन्ना ने हम पर बम से हमला कर दिया. इस हमले में हमारे साथ मौजूद एक सिपाही को अपना हाथ गंवाना पड़ा. मुझे भी बम के छर्रों से चोटें आई थी. इस घटना के बाद भी लगातार उनके द्वारा दुस्साहसिक घटनाएं की जा रही थी, जिससे पुलिस के अधिकारी चिंतित हुए."
अंबा देवी मंदिर एरिया में हुआ मुन्ना तिवारी का एनकाउंटर: "फिर तत्कालीन आईजी साहब सिटी कोतवाली थाना आए और उन्होंने पूरे इस घटना को समझा और उनका पुराना रिकॉर्ड देखा. फिर कहा कि किसी भी हालत में मुन्ना तिवारी को गिरफ्तार करना है और उनकी गुंडागर्दी पर रोक लगाना है. आईजी के आदेश के बाद मुन्ना तिवारी की काफी सर्चिंग की गई. उनके घर भी दबिश दी गई, लेकिन मुन्ना कुख्यात होने के साथ बहुत ही दुस्साहसी भी था. वह आसपास ही छुपा रहता था. चूंकि उस समय अंबा देवी मंदिर के पीछे यानी इंडोर स्टेडियम वाला इलाका काफी दलदली था. जंगल इलाका था. वहीं जाकर मुन्ना तिवारी छिप जाता था. आसपास के निवासी इतने डरे थे कि वे पुलिस को कुछ बताते नहीं थे. उसका बहुत ही आतंक था, जैसा आप फिल्मों में देखते हैं. अंततः दो तीन दिन बाद यह पता चला कि मुन्ना तिवारी अम्बा देवी मंदिर के पीछे छुपा हुआ है."
"जानकारी लगते ही 20-25 पुलिसकर्मियों का एक दल रवाना किया गया, जिसमें एएसपी और डीएसपी लेवल के अफसर भी शामिल थे. फिर हमने वहां दबिश दी. वहां हमें मुन्ना तिवारी मिला. पुलिस टीम को देखकर मुन्ना तिवारी भागने की कोशिश करने लगा जब उसे पकड़ने का प्रयास किया गया तो उसने फायरिंग की, इसमें हमारे उप निरीक्षक को चोंटे आई. इसके बाद जवाबी कार्रवाई करते हुए मैंने और आरके शुक्ला ने भी फायरिंग की. इस फायरिंग में मुन्ना तिवारी को गोलियां लगी, जिसके बाद उसकी मौके पर ही मौत हो गई. "
कोर्ट पहुंच गई थी मुन्ना तिवारी की मां: "मृतक की मां का भी क्रीमिनल रिकॉर्ड था. घटना के बाद वह कोर्ट चली गई. फिर यह मामला लंबे समय तक न्यायालय में चलता रहा. फिर कई सालों बाद उच्च न्यायालय से इस मामले का निराकरण हुआ और फैसला पुलिस के पक्ष में आया. फिर हमारी इस बहादुरी के लिए हम लोगों को पुरस्कृत किया गया. मेरी जानकारी के मुताबिक संभवतः अविभाजित छत्तीसगढ़ का यह पहला एनकाउंटर था, जो जून 1988 में हुआ था. इस घटना के बाद अपराधों में कमी आई थी. इस एनकाउंटर के 9 से 10 साल के बाद दूसरा एनकाउंटर मंदिर हसौद में हुआ था. जिसमें शायद कोई सैनिक रायफल लेकर भाग गया था. उसका एनकाउंटर किया गया था."
सवालः आपके मुताबिक पुलिसकर्मियों पर बम से हमला किया गया, क्या ये खुद ही बम बनाते थे.
जवाबः यह लोग खुद ही बम बनाया करते थे. उस दौरान बाबूलाल टॉकिज के पीछे एक तवायफ गली हुआ करती थी. वहां बहुत से लड़के बम बनाते थे. उस समय क्राइम ब्रांच में मिस्टर नागेश ने बम बनाते रंगे हाथों एक आदमी को दबोचा था. इसमें मुन्ना तिवारी का रिश्तेदार भी पकड़ाया था. यह बम सुअर मार बम होता है, इसका ज्यादातर जबलपुर इलाके में चलन है. यह हाथ से पटकनी बम होता है, जो काफी ज्यादा इंजरी करती है. मुन्ना तिवारी बहुत ही हार्डकोर क्रीमिनल रहा है. यह एक प्रोफेशनल किलर भी था. "
सवालः क्या यह एक बड़ा गिरोह था, इन्हें कोई पॉलीटिकल सपोर्ट मिलता था.
जवाबः इनका गिरोह तो था ही. इनके बहुत से भाई थे. साथ ही वहां पर एक गुजराती लड़का इनका सहयोगी था. ये लोग पैसा लेकर हत्या करते थे. मुंगेली में इनके द्वारा एक हत्या की बात सामने आई थी. यह हत्या पैसा लेकर किया गया था. वह भी दिनदहाड़े. शहर के लोग इनसे बहुत ज्यादा डरते थे. सक्ती बाजार में सरेआम एक शख्स की हत्या के बाद इनका आतंक बढ़ गया था.
सवालः वर्तमान में रायपुर में इस तरह का एनकाउंटर होना चाहिए.
जवाबः बिल्कुल होना चाहिए. आपने देखा होगा, जैसे दिल्ली का प्रकरण या हैदराबाद का प्रकरण हुआ था. मतलब, अपराधियों को सजा देना है, जो उस स्तर के हों, उनके साथ अधिकारियों को वैसी सजा देना चाहिए, लेकिन अब परिस्थितियां थोड़ी सी अलग हो गई है. प्रेस और पॉलीटिकल सेल्टर है. उस समय इन बदमाशों को राजनीतिक संरक्षण नहीं मिलता था, अब के बदमाशों को राजनीतिक संरक्षण मिल रहा है. हालांकि अब उस तरह के गुंडे नहीं है, लेकिन यदा कदा चाकू बाजी की घटनाएं काफी बढ़ गई है तो इन लोगों के खिलाफ सख्ती बरतनी चाहिए. प्रेस को भी ऐसे सामाजिक कार्यों में मदद करनी चाहिए.