रायपुर: इधर गोबर है, थोड़ा देख के चलो, उधर गोबर है थोड़ा बच के चलो, तुम्हारे दिमाग में गोबर तो नहीं भरा है. कुछ ऐसे शब्दों और वाक्यों के साथ अक्सर कुछ लोग गोबर की व्याख्या करते मिल जाएंगे, जैसे यह बहुत हा गंदा हो, लेकिन यह गोबर कितना कीमती हो सकता है, कितना उपयोगी हो सकता है, यह छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को और गांव में रहने वाली महिलाओं को मालूम है. तभी तो, कल तक सिर्फ कंडे और खाद बनाने के लिए काम आने वाला यह गोबर अब इतनी कीमती हो गया है कि इसकी डिमांड दिल्ली और नागपुर जैसे शहरों से आने लगी है.
गोठानों से निकलने वाले गोबर से तैयार पूजन सामग्री और उत्पाद की मांग दिनों दिन बढ़ती जा रही है. दिल्ली जैसे महानगर में जहां दीपावली त्यौहार के समय चाइनीज दीये, मोमबत्ती और झालर का बोलबाला रहता है, ऐसे में पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिये उपयोगी छत्तीसगढ़ के गोबर से बने बायो दीया प्रदूषण की मार झेल रहे बड़े शहरों के लिए बेहतर विकल्प के रूप में उभरा है.
ईको-फ्रैंडली दीया
पूजा में गाय के गोबर का खास महत्व होता है. इसकी महत्ता से गाय के गोबर से बने दीये की मांग दिल्ली और नागपुर से आने लगी है. रायपुर में गोबर से बने दिये का पहला आर्डर दो लाख दीये का है. जिसे स्व-सहायता समूह की महिलाएं तैयार कर रही है.
दिखने लगा नरवा, गरुवा योजना का परिणाम
शासन के नरवा, गरुवा, घुरवा और बाड़ी योजना की दिशा में उठाये गये कदम का यह पहला परिणाम दिखने लगा है. गोठान के माध्यम से आरंग विकासखंड के बनचरौदा गांव की स्व-सहायता समूह की महिलाओं द्वारा गोबर से बनाई गई कलाकृतियां दिनों-दिन प्रसिद्धि प्राप्त कर रही है. लाल, पीला, हरा और सुनहरे रंगों से सजे दीये, पूजन सामग्री लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है. महिलाएं ओम, श्री, स्वास्तिक, छोटे आकार की मूर्तियां, हवन कुंड, अगरबत्ती स्टैंड, मोबाइल स्टैंडे, चाबी छल्ला सहित अनेक उत्पाद बना रही हैं. जिसे लोग हाथों-हाथ ले रहे हैं. गांव की 46 महिलाएं स्व-सहायता से जुड़कर गाय के गोबर से दीया, हवनकुंड, गमले, फ्रैंडशिप बैंड, राखी और पूजन सामग्री बना रही हैं.
बढ़ रही प्रोडक्ट्स की डिमांड
कम कीमत और ज्यादा अहमियत के कारण गाय के गोबर से बने प्रोडक्ट्स की डिमांड तो बढ़ ही गई है. गांव में आवारा घूमने वाले पशुओं का सम्मान बढ़ गया है. खासकर गोठान जहां गांव की सभी गाय इकट्ठी होती है. वहां से निकलने वाला गोबर अब जैविक खाद और उपयोगी उत्पाद के रूप में गांव की बेरोजगार बैठी महिलाओं के लिए लाभ का एक जरिया बन गया है. सड़कों पर कचरे की तहर फेंका गोबर अब महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही है.
दिल्ली से मिल रहा आर्डर
समूह से जुड़ी एक महिला सदस्य ने बताया कि समूह की महिलाओं का समूह में अलग-अलग दायित्व है. गोबर लाने से लेकर गोबर का पाउडर तैयार करने और अन्य सामग्री के साथ मिश्रण कर आकर्षक उत्पाद बनाने की जिम्मेदारी अलग-अलग महिलाओं के पास है. उन्होंने बताया कि आकृति तैयार होने के बाद उसे फिनिशिंग टच देने और अलग-अलग रंगों के माध्यम से सही रूप देने में महिलाओं का योगदान अहम है. इसकी पैकेजिंग और मार्केटिंग की जिम्मेदारी भी महिलाएं ही संभाल रही हैं. हाल ही में सांचा बनाने का काम शुरू किया गया है. जिसका अभी दो हजार पीस का आर्डर पूरा भी कर लिया गया है. फिलहाल दिवाली को देखते हुए महिलाएं दिये बनाने का काम कर रही हैं. गोबर से बने दीये का दिल्ली से दो लाख पीस का आर्डर मिला है. जिसे पूरा करने में महिलाएं दिन रात एक कर रही हैं. सदस्य ने बताया कि गांव के महिलाएं अपना घर का काम निपटा सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक कुछ न कुछ काम करती है. एक दिन में एक महिला करीब 300 दीये तैयार कर सकती है. उन्होंने बताया कि दिवाली के बाद महिलाएं गोबर से मूर्ति बनाने का काम शुरू करेंगी.
पांच रुपये में बिक रहा गोबर बना दिया
गोठानों से निकलने वाले गाय के गोबर से तैयार डिजाइनर दीये की कीमत फिलहाल पांच रुपये और छोटे दीये की कीमत दो रुपये रखी गई है. यह दिखने में भी बहुत आकर्षक है. स्वास्तिक, श्री, ओम की कलाकृति की कीमत पांच रुपये प्रति पीस, शुभ लाभ, मोबाइल स्टैंड की कीमत 100 रुपये, गणेश भगवान की प्रतिमा की कीमत 101 रुपये रखी गई है.
पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक
गाय के गोबर से बने उत्पाद कई मायनों में उपयोगी बताया गया है. मिट्टी की कटाई रोकने में मददगार और मिट्टी को दीये का रूप देकर उसे आग में पकाने जैसी प्रक्रियाओं से दूर गोबर के दीये को धूप में सूखाकर तैयार किया जाता है. जिससे मृदा संरक्षण के साथ धुएं से पर्यावरण संरक्षण में लाभ मिल रहा है. गोबर से बने दीये और सामग्री को आसानी से नष्ट किया जा सकता है और इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता है. ऐसे दिये को बाद में खेतों में खाद की जगह भी उपयोग किया जा सकता है.
राजस्थान के मुख्यमंत्री भी कर चुके हैं तारीफ
गाय के गोबर से बने दीये और अन्य कलाकृतियां लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच रही है. बनचरौदा गांव में आदर्श गोठान देखने आये राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वहां के कई मंत्रियों ने भी इसकी तारीफ कर चुके हैं. महिलाओं ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को प्रतीक चिन्ह के रूप में गोबर से बने उत्पाद और उनका नाम लिखा सामग्री उन्हें भेट की थी. जिसे देख मुख्यमंत्री और भी ज्यादा खुश हुए. गोठान और यहां की महिलाओं के काम से खुश राजस्थान के मुख्यमंत्री में अपने प्रदेश में नंदी गौशाला शुरू करने और गोबर से उत्पाद तैयार करने की बात कही है.