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छत्तीसगढ़ में कब बनेगा वाइल्ड लाइफ बोर्ड का नियम ?

छत्तीसगढ़ में पिछले 19 सालों से छत्तीसगढ़ वन्यजीव बोर्ड का गठन किया गया है. बोर्ड गठन के बाद आज तक कोई नियम नहीं बनाए गए हैं.

wild life board rules
वाइल्ड लाइफ बोर्ड का नियम
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Published : Mar 4, 2022, 6:06 PM IST

Updated : Mar 4, 2022, 11:37 PM IST

रायपुर: देश में वन्यजीवों और उनके संरक्षण की नीति तैयार करने के लिए वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत साल 2003 में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड का गठन किया गया था. यह बोर्ड वन्यजीवों के संरक्षण हेतु नीति तैयार करने और केंद्र सरकार को संबंधित मामले में सलाह देने के लिए बनाया गया है. राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के गठन के बाद देश के सभी राज्यों में राज्य एक बोर्ड का गठन करता है. कई राज्यों में इसका गठन किया गया और वन्यजीवों के संरक्षण के लिए नियम कायदे भी बनाए गए. लेकिन छत्तीसगढ़ में पिछले 19 सालों से छत्तीसगढ़ वन्यजीव बोर्ड का गठन किया गया है. लेकिन बोर्ड का गठन करने के बाद आज तक कोई नियम नहीं बनाए गए हैं.

वन्य जीव संरक्षण अधिनियम

छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ बोर्ड की नियमित रूप से बैठक भी नहीं हो रही है जिसके कारण वन्य जीव और जंगल काटे जा रहे हैं. इसके साथ ही जंगल में वन माफियाओं का दबदबा भी लगातार बढ़ता जा रहा है. छत्तीसगढ़ में जंगली जानवरों के शिकार और उनके तस्करी के मामले भी सक्रिय हैं.

वाइल्ड लाइफ बोर्ड का नियम का मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा

छत्तीसगढ़ वाइल्डलाइफ बोर्ड के नियम बनाने की मांग को लेकर 2019 में वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे ने अधिवक्ता हर्षवर्धन के माध्यम से बिलासपुर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. आज से 5 महीने पहले इस मामले में हाईकोर्ट की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार को जवाब देने के लिए 3 सप्ताह का समय दिया था. वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे कहते हैं कि, छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा स्टेट वाइल्डलाइफ बोर्ड के नियमों को नहीं बनाना एक गंभीर त्रुटि है. कानूनी तौर पर भी यह एक गंभीर लापरवाही है. इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ के वन संपदा, वन्य प्राणियों का प्रबंधन यह सारे विषय नियमों की कमी की वजह सुचारू रूप से विकसित नहीं हो पा रहे हैं

2003 में नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड का गठन हुआ

अजय दुबे का कहना है कि, साल 2003 में जब नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड बना था, तब नियम बनाए गए. वाइल्ड लाइफ एक्ट के अमेंडमेंट के बाद जहां भी स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड हैं. उन्होंने अपने नियम बनाए हैं. जिनमें तमिलनाडु, कर्नाटक, ओडिशा राज्य ने भी नियम बनाया है. ऐसी स्थिति में इन नियमों का होना वाइल्ड लाइफ एक्ट के एग्जीक्यूशन के लिए जरूरी था. छत्तीसगढ़ में जो वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट है. वह खराब स्थिति में है. स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड जिसके मुखिया मुख्यमंत्री होते हैं. उनके अंदरूनी मामलों में इस तरह की यदि वन विभाग की अक्षमता दिख रही है, तो यह गंभीर है. हमने हाईकोर्ट से निवेदन किया है कि नियम बनाए जाएं. वाइल्ड लाइफ बोर्ड के अंतर्गत नियमों का होना बहुत जरूरी होता है. इसमें लेने वाले निर्णय, परमिशन इन सभी के प्रॉपर एग्जीक्यूशन के लिए नियमों का होना आवश्यक है. हम उम्मीद करते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार इसका सम्मान करेगी और नियमों को फ्रेम कर कोर्ट के सामने रखेगी

यह भी पढ़ें: Thinthini Pathar in Chhindkalo village: सरगुजा में कुदरत का करिश्मा, इस पत्थर से आती है अलग-अलग आवाजें

वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी की राय

छत्तीसगढ़ के जाने-माने वकील और वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी कहते हैं कि, वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 64 में प्रावधान है. स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड में नियम बनाए जाएंगे. इन नियमों के तहत किस प्रकार से वह कार्य करेगा. उनकी बैठक कब होगी? उसका कोरम क्या होगा? लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद अब तक यह नियम नहीं बनाए गए हैं. जबकि यह नियम बनाना बेहद जरूरी है. छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य ओडिशा, महाराष्ट्र ,तमिलनाडु में वाइल्डलाइफ बोर्ड के अंतर्गत नियम कानून बनाए गए हैं. हमारे प्रदेश में यह नियम नहीं बना हुआ है, जिसके कारण वाइल्ड लाइफ से संबंधित कार्य नियमानुसार नहीं हो रहे हैं. इसलिए बोर्ड के नियम-कानून का बनना बहुत ही जरूरी है. वाइल्डलाइफ प्रोटक्शन एक्ट में भी इसका प्रावधान दिया गया. बिना नियम के बोर्ड कार्रवाई नहीं करेगा. लेकिन छत्तीसगढ़ में नियम नहीं बने हैं. नियम बनाने की कवायद चल रही है.

यह भी पढ़ें: dantewada crime news: दंतेवाड़ा के स्कूल परिसर में मिला शिक्षक का शव, हत्या की आशंका

नियम बनने से होंगे फायदे

छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ बोर्ड में नियम और कानून बनाए जाएंगे तो वन्य जीव और वन्य से संबंधित कार्य अच्छे से हो पाएंगे. इसके अंतर्गत समय-दर-समय पर बैठक होती रहेगी. वर्तमान समय में बोर्ड की बैठक दो-तीन साल तक नहीं होती है. नियम बनने के बाद में जो समय सीमा निर्धारित की जाएगी, उससे वन्यजीव और जंगलों के लिए सकारात्मक कदम उठाए जा सकेंगे.

वाइल्ड लाइफ बोर्ड में 14 सदस्यों को रखने का प्रावधान

वाइल्डलाइफ बोर्ड के चेयरमैन राज्य के मुख्यमंत्री होते हैं. इस बोर्ड में 14 सदस्य को शामिल किया जाता है. बोर्ड में पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ के अलावा तीन वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ, तीन विधायक, तीन एनजीओ संचालकों को शामिल किया जाता है. इसके साथ ही वाइल्ड लाइफ बोर्ड में प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों से जानकारों को भी रखा जाता है.स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड के नियमों को लेकर ईटीवी भारत ने प्रिंसिपल सेक्रेट्री फॉरेस्ट मनोज कुमार पिंगुआ से बात की उन्होंने बताया कि, वाइल्ड लाइफ बोर्ड के नियम प्रकियाधीन हैं. नियम बनाने के कार्य एडवांस स्टेज पर है. जल्द ही वाइल्ड लाइफ बोर्ड के नियम बना लिए जाएंगे.

रायपुर: देश में वन्यजीवों और उनके संरक्षण की नीति तैयार करने के लिए वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत साल 2003 में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड का गठन किया गया था. यह बोर्ड वन्यजीवों के संरक्षण हेतु नीति तैयार करने और केंद्र सरकार को संबंधित मामले में सलाह देने के लिए बनाया गया है. राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के गठन के बाद देश के सभी राज्यों में राज्य एक बोर्ड का गठन करता है. कई राज्यों में इसका गठन किया गया और वन्यजीवों के संरक्षण के लिए नियम कायदे भी बनाए गए. लेकिन छत्तीसगढ़ में पिछले 19 सालों से छत्तीसगढ़ वन्यजीव बोर्ड का गठन किया गया है. लेकिन बोर्ड का गठन करने के बाद आज तक कोई नियम नहीं बनाए गए हैं.

वन्य जीव संरक्षण अधिनियम

छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ बोर्ड की नियमित रूप से बैठक भी नहीं हो रही है जिसके कारण वन्य जीव और जंगल काटे जा रहे हैं. इसके साथ ही जंगल में वन माफियाओं का दबदबा भी लगातार बढ़ता जा रहा है. छत्तीसगढ़ में जंगली जानवरों के शिकार और उनके तस्करी के मामले भी सक्रिय हैं.

वाइल्ड लाइफ बोर्ड का नियम का मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा

छत्तीसगढ़ वाइल्डलाइफ बोर्ड के नियम बनाने की मांग को लेकर 2019 में वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे ने अधिवक्ता हर्षवर्धन के माध्यम से बिलासपुर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. आज से 5 महीने पहले इस मामले में हाईकोर्ट की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार को जवाब देने के लिए 3 सप्ताह का समय दिया था. वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे कहते हैं कि, छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा स्टेट वाइल्डलाइफ बोर्ड के नियमों को नहीं बनाना एक गंभीर त्रुटि है. कानूनी तौर पर भी यह एक गंभीर लापरवाही है. इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ के वन संपदा, वन्य प्राणियों का प्रबंधन यह सारे विषय नियमों की कमी की वजह सुचारू रूप से विकसित नहीं हो पा रहे हैं

2003 में नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड का गठन हुआ

अजय दुबे का कहना है कि, साल 2003 में जब नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड बना था, तब नियम बनाए गए. वाइल्ड लाइफ एक्ट के अमेंडमेंट के बाद जहां भी स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड हैं. उन्होंने अपने नियम बनाए हैं. जिनमें तमिलनाडु, कर्नाटक, ओडिशा राज्य ने भी नियम बनाया है. ऐसी स्थिति में इन नियमों का होना वाइल्ड लाइफ एक्ट के एग्जीक्यूशन के लिए जरूरी था. छत्तीसगढ़ में जो वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट है. वह खराब स्थिति में है. स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड जिसके मुखिया मुख्यमंत्री होते हैं. उनके अंदरूनी मामलों में इस तरह की यदि वन विभाग की अक्षमता दिख रही है, तो यह गंभीर है. हमने हाईकोर्ट से निवेदन किया है कि नियम बनाए जाएं. वाइल्ड लाइफ बोर्ड के अंतर्गत नियमों का होना बहुत जरूरी होता है. इसमें लेने वाले निर्णय, परमिशन इन सभी के प्रॉपर एग्जीक्यूशन के लिए नियमों का होना आवश्यक है. हम उम्मीद करते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार इसका सम्मान करेगी और नियमों को फ्रेम कर कोर्ट के सामने रखेगी

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वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी की राय

छत्तीसगढ़ के जाने-माने वकील और वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी कहते हैं कि, वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 64 में प्रावधान है. स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड में नियम बनाए जाएंगे. इन नियमों के तहत किस प्रकार से वह कार्य करेगा. उनकी बैठक कब होगी? उसका कोरम क्या होगा? लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद अब तक यह नियम नहीं बनाए गए हैं. जबकि यह नियम बनाना बेहद जरूरी है. छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य ओडिशा, महाराष्ट्र ,तमिलनाडु में वाइल्डलाइफ बोर्ड के अंतर्गत नियम कानून बनाए गए हैं. हमारे प्रदेश में यह नियम नहीं बना हुआ है, जिसके कारण वाइल्ड लाइफ से संबंधित कार्य नियमानुसार नहीं हो रहे हैं. इसलिए बोर्ड के नियम-कानून का बनना बहुत ही जरूरी है. वाइल्डलाइफ प्रोटक्शन एक्ट में भी इसका प्रावधान दिया गया. बिना नियम के बोर्ड कार्रवाई नहीं करेगा. लेकिन छत्तीसगढ़ में नियम नहीं बने हैं. नियम बनाने की कवायद चल रही है.

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नियम बनने से होंगे फायदे

छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ बोर्ड में नियम और कानून बनाए जाएंगे तो वन्य जीव और वन्य से संबंधित कार्य अच्छे से हो पाएंगे. इसके अंतर्गत समय-दर-समय पर बैठक होती रहेगी. वर्तमान समय में बोर्ड की बैठक दो-तीन साल तक नहीं होती है. नियम बनने के बाद में जो समय सीमा निर्धारित की जाएगी, उससे वन्यजीव और जंगलों के लिए सकारात्मक कदम उठाए जा सकेंगे.

वाइल्ड लाइफ बोर्ड में 14 सदस्यों को रखने का प्रावधान

वाइल्डलाइफ बोर्ड के चेयरमैन राज्य के मुख्यमंत्री होते हैं. इस बोर्ड में 14 सदस्य को शामिल किया जाता है. बोर्ड में पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ के अलावा तीन वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ, तीन विधायक, तीन एनजीओ संचालकों को शामिल किया जाता है. इसके साथ ही वाइल्ड लाइफ बोर्ड में प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों से जानकारों को भी रखा जाता है.स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड के नियमों को लेकर ईटीवी भारत ने प्रिंसिपल सेक्रेट्री फॉरेस्ट मनोज कुमार पिंगुआ से बात की उन्होंने बताया कि, वाइल्ड लाइफ बोर्ड के नियम प्रकियाधीन हैं. नियम बनाने के कार्य एडवांस स्टेज पर है. जल्द ही वाइल्ड लाइफ बोर्ड के नियम बना लिए जाएंगे.

Last Updated : Mar 4, 2022, 11:37 PM IST
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