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जानिए, गणेश पूजन में क्यों वर्जित है तुलसी?

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Published : Sep 9, 2019, 10:49 PM IST

आम तौर पर मंगल कार्यों और पूजा इत्यादि में तुलसी का प्रयोग किया जाता है, लेकिन भगवान गणेश की पूजा में तुलसी क्यों वर्जित होती है. जानिए हमारी इस खास पेशकश में.

गणेश पूजन में क्यों वर्जित है तुलसी?

मथुरा: तुलसी, जो हिन्दू धर्म में धार्मिक मान्यताओं के साथ भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं, लेकिन यही तुलसी भगवान गणेश को अप्रिय हैं. इतनी अप्रिय कि गणेश जी के पूजन में इसका प्रयोग वर्जित है. इसके पीछे एक रोचक पौराणिक कथा है.

गणेश पूजन में क्यों वर्जित है तुलसी?
गणेश जी गंगा तट पर तपस्या कर रहे थे. दूसरी ओर तुलसी देवी विवाह की इच्छा लिए तीर्थ यात्रा पर निकलीं. इसी दौरान गंगा तट पर गणेश जी को तपस्या करते हुए दिखीं. पूरे शरीर पर चंदन का लेप लगाए. कमर पर रेशमी पीतांबर पहने रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान थे. उन्हें देखते ही तुलसी का मन गणेश जी की ओर आकर्षित हो गया और उनके मन में विवाह की इच्छा जागृत हुई.

इसी दौरान गणेश जी की तपस्या भंग हो गई. तपस्या कर रहे गणेश भगवान की आंखें खुलीं तो देखा कि सामने एक सुंदर स्त्री खड़ी है. गणेश ने सबसे पहले उनको प्रणाम किया और कहा आप यहां क्यों आईं. तुलसी ने कहा कि मैं आपको अपना वर चुनना चाहती हूं. इस पर गणेश जी क्रोधित हुए और तुलसी को श्राप देते हुए कहा कि तुम्हारा विवाह एक असुर के साथ होगा. तुलसी ने भी भगवान गणेश को श्राप दे दिया और कहा तुम्हारे दो विवाह होंगे.

जब गणेश जी का क्रोध कम हुआ तो तुलसी ने क्षमा मांगी. इस पर गणेश ने तुलसी से कहा आप देवी-देवताओं में सबसे प्रिय मानी जाएंगी. आपके बिना स्पर्श के कोई भी चीज स्वीकार नहीं की जाएगी. कलियुग में काफी सम्मान किया जाएगा. यही वजह है कि गणेश जी की पूजा के समय तुलसी की पूजा नहीं होती, लेकिन तुलसी जी देवी-देवताओं की प्रिय मानी जाती हैं. तुलसी का आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्व है.

बगैर, तुलसी के भगवान का भोग भी स्वीकार नहीं किया जाता. तुलसी और शालिग्राम का विवाह काफी धूमधाम से मनाया जाता है. हमारे आदिदेव प्रथम पूज्य श्री गणेश की सबसे प्रिय तुलसी मानी जाती हैं, लेकिन गणेश जी महाराज की पूजा के समय तुलसी नहीं रखी जाती.

मथुरा: तुलसी, जो हिन्दू धर्म में धार्मिक मान्यताओं के साथ भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं, लेकिन यही तुलसी भगवान गणेश को अप्रिय हैं. इतनी अप्रिय कि गणेश जी के पूजन में इसका प्रयोग वर्जित है. इसके पीछे एक रोचक पौराणिक कथा है.

गणेश पूजन में क्यों वर्जित है तुलसी?
गणेश जी गंगा तट पर तपस्या कर रहे थे. दूसरी ओर तुलसी देवी विवाह की इच्छा लिए तीर्थ यात्रा पर निकलीं. इसी दौरान गंगा तट पर गणेश जी को तपस्या करते हुए दिखीं. पूरे शरीर पर चंदन का लेप लगाए. कमर पर रेशमी पीतांबर पहने रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान थे. उन्हें देखते ही तुलसी का मन गणेश जी की ओर आकर्षित हो गया और उनके मन में विवाह की इच्छा जागृत हुई.

इसी दौरान गणेश जी की तपस्या भंग हो गई. तपस्या कर रहे गणेश भगवान की आंखें खुलीं तो देखा कि सामने एक सुंदर स्त्री खड़ी है. गणेश ने सबसे पहले उनको प्रणाम किया और कहा आप यहां क्यों आईं. तुलसी ने कहा कि मैं आपको अपना वर चुनना चाहती हूं. इस पर गणेश जी क्रोधित हुए और तुलसी को श्राप देते हुए कहा कि तुम्हारा विवाह एक असुर के साथ होगा. तुलसी ने भी भगवान गणेश को श्राप दे दिया और कहा तुम्हारे दो विवाह होंगे.

जब गणेश जी का क्रोध कम हुआ तो तुलसी ने क्षमा मांगी. इस पर गणेश ने तुलसी से कहा आप देवी-देवताओं में सबसे प्रिय मानी जाएंगी. आपके बिना स्पर्श के कोई भी चीज स्वीकार नहीं की जाएगी. कलियुग में काफी सम्मान किया जाएगा. यही वजह है कि गणेश जी की पूजा के समय तुलसी की पूजा नहीं होती, लेकिन तुलसी जी देवी-देवताओं की प्रिय मानी जाती हैं. तुलसी का आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्व है.

बगैर, तुलसी के भगवान का भोग भी स्वीकार नहीं किया जाता. तुलसी और शालिग्राम का विवाह काफी धूमधाम से मनाया जाता है. हमारे आदिदेव प्रथम पूज्य श्री गणेश की सबसे प्रिय तुलसी मानी जाती हैं, लेकिन गणेश जी महाराज की पूजा के समय तुलसी नहीं रखी जाती.

Intro:मथुरा। गणेश महोत्सव पर्व को लेकर वृंदावन के प्रख्यात आचारय बद्रीश जी महाराज ने बताया कि तुलसी की पूजा गणेश चतुर्थी पर क्यों नहीं की जाती। इस सवाल के जवाब पर कहा मैं आज इस विषय पर विस्तार से बताता हूं।


Body:सबसे पहले गणेश महोत्सव के पर्व को लेकर ईटीवी परिवार के सभी सदस्यों को गणेश महोत्सव पर्व कर बधाई दी। और कहा तुलसी आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्व रखा जाता है बगैर तुलसी के भगवान का भोग भी स्वीकार नहीं किया जाता ।तुलसी और शालिग्राम का विवाह काफी धूमधाम से मनाया जाता है। हमारे आदिदेव प्रथम पूज्य श्री गणेश की सबसे प्रिय तुलसी मानी जाती है लेकिन गणेश जी महाराज की पूजा के समय तुलसी नहीं रखी जाती।


Conclusion:तुलसी महारानी जब युवा अवस्था में बड़ी हुई अविवाहित के रूप में नदी के पास भ्रमण पर निकली तब उन्होंने देखा नदी के किनारे एक सुंदर योग्य विराजमान होकर तपस्या में लीन पीतांबर वस्त्र धारण करके एक युवा भगवान के ध्यान में लीन है। और तपस्या कर रहा है तो तुलसी महारानी के मन में जिज्ञासा हुई कि सोचा तेजस्वी पीतांबर वस्त्र धारण करके ऐसा ही युवक मेरे जीवन में आ जाए तो मैं उसको अपना विवाह कर लूं। गणेश जी का तपस्या भंग हो गई तभी तपस्या कर रहे गणेश भगवान की आंखें खुली तो देखा कि सामने एक सुंदर स्त्री खड़ी हुई है गणेश ने सबसे पहले उनको प्रणाम किया और कहा प्रिय आप प्रिय क्यों आई तो तुलसी ने कहा आपको देखकर मेरे मन में एक जिज्ञासा आई और कहा मैं आपको अपना वर चुनना चाहती हूं। गणेश जी क्रोधित हुए और क्रोध के बाद तुलसी को श्राप दिया कहा तुम्हारा विवाह एक असुर के साथ होगा। तुलसी ने भी भगवान गणेश को शराब दिया और कहा तुम्हारे दो विवाह होंगे दोनों में शराब अभी शराब चलता रहा उसके बाद जब गणेश का क्रोध कम हुआ तो तुलसी महारानी ने क्षमा मांगी और कहा मुझसे काफी गलती हुई तो गणेश ने तुलसी कुछ से कहा आप देवी देवताओं ने सबसे प्रिय मानी जाओगी। और आपके बिना स्पर्श के कुछ भी चीज स्वीकार नहीं की जाएगी। कलयुग में तुम्हारा काफी सम्मान किया जाएगा। आप बहुत उपयोगी मानी जाओगी। गणेश जी की पूजा के समय तुलसी की पूजा नहीं होती लेकिन तुलसी महारानी देवी देवताओं की प्रिय मानी जाती है बिना तुलसी के देवी देवता भी खाना स्वीकार नहीं करते।


वाइट आचार बद्रीश जी महाराज प्रसिद्ध प्रख्यात भागवताचार्य


mathura reporter
praveen sharma
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