रायपुर: छत्तीसगढ़ में एक बार फिर आदिवासी तबके से आने वाले मुख्यमंत्री की मांग उठने लगी है. यह पहली बार नहीं हो रहा है. इसके पहले भी बहुत बार आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग समाज द्वारा की जाती रही है. वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस (international tribal day) के अवसर पर छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज के लोगों ने आदिवासी मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग को दोहराया. कुछ दिन पहले आदिवासी समाज की बैठक में इस विषय पर काफी गहन चर्चा हुई थी.
जहां एक ओर आदिवासी समाज के लोगों का कहना है कि पूर्ववर्ती सहित वर्तमान सरकार के द्वारा आदिवासियों के हित के लिए कोई काम नहीं किया गया है. यदि आदिवासी मुख्यमंत्री होगा तो आदिवासियों के विकास के लिए बेहतर काम कर सकेगा. यही कारण है कि अब आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उनके द्वारा की जा रही है.
कांग्रेस सरकार को अभी ढ़ाई साल ही बीते हैं कि आदिवासियों ने अपने समाज से सीएम बनाए जाने की मांग कर कहीं न कहीं सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी है. हालांकि कांग्रेस का कहना है कि इन ढ़ाई सालों में जितना आदिवासियों के लिए सरकार ने काम किया है उतना पूर्व की भाजपा सरकार ने 15 साल में भी नहीं किया था.
भाजपा और उनके सहयोगी फैला रहे हैं असंतोष
कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रदेश अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी का कहना है जब आदिवासियों पर अत्याचार होते रहे थे. आदिवासियों की हिरासत में मौत होती रही, आदिवासियों को फर्जी मुठभेड़ में मारा जाता रहा, आदिवासियों के साथ लगातार अत्याचार हुए, आदिवासियों समाज पर दो-दो बार लाठीचार्ज हुए, तब आदिवासी सीएम की मांग नहीं की गई और आज जब भूपेश सरकार आदिवासियों के हित में काम कर रही है. ऐसे में अपने राजनीतिक लाभ के लिए असंतोष फैलाने का काम भाजपा और उसके सहयोगी लगातार कर रहे हैं. लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिलेगी.
कांग्रेस ने आदिवासी सीएम बनाने का घोषणा पत्र में किया था वादा
भाजपा की बात की जाए तो उन्होंने कहा है कि कांग्रेस ने आदिवासियों को छला है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता गौरी शंकर श्रीवास कहना है कि पूर्व में चुनाव के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री की बात कांग्रेस के द्वारा कही जाती रही है. लेकिन सत्ता में आने के बाद कांग्रेस अपने वादे से मुकर गई है. बीजेपी ने कांग्रेस सरकार पर आदिवासियों का शोषण किए जाने का आरोप लगाया है.
हालांकि बीजेपी के द्वारा यह कहा गया है कि पूर्व में भाजपा सरकार ने आदिवासियों के लिए बेहतर काम किया है. उनके द्वारा विभिन्न योजनाओं का लाभ आदिवासी समाज को दिया गया है. भाजपा शासन काल के 15 सालों में आदिवासियों का बेहतर विकास हुआ है.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब भाजपा ने 15 साल में और कांग्रेस सरकार ने ढाई सालों में आदिवासियों के लिए बड़े पैमाने पर काम किया है. योजनाओं का लाभ दिया है. उनके विकास और उन्नति के लिए लगातार योजनाएं संचालित की है. बावजूद इसके क्या वजह है कि आज आदिवासी समाज, आदिवासी मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग कर रहा है.
इस सवाल को जानने के लिए ईटीवी भारत ने छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष के अध्यक्ष सोहन पोटाई से बात की. उनसे पूछा कि अचानक से अब ऐसी क्या परिस्थिति निर्मित हो गई कि समाज को लगने लगा है कि उनका विकास आदिवासी मुख्यमंत्री ही कर सकता है.
आदिवासी सीएम बनने से ही होगा समाज का भला
जवाब में सोहन पोटाई ने कहा कि आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से की जा रही है. यदि कांग्रेस और भाजपा यह कहती है कि उन्होंने आदिवासियों के लिए बहुत कुछ किया है. दोनों ही सरकार यदि आदिवासियों को चावल, नमक, चना दे करके यह कहे कि हमने बहुत सारा काम किया है तो आज 19 जुलाई से लगातार आंदोलन करने की आवश्यकता नहीं पड़ती.
कांग्रेस ने चुनाव के पहले अपने घोषणा पत्र में कहा था कि सरकार बनते ही हम आपकी मांग पूरा करेंगे. लेकिन अभी तक मांग जो घोषणा पत्र में था उसे पूरा नहीं किया गया. इसलिए आदिवासी समाज नाराज है. आज यह चाहता है कि जब तक आदिवासी मुख्यमंत्री नहीं बनेगा तब तक हमारा भला नहीं होने वाला है. इसलिए आदिवासी समाज आक्रोशित है और जब तक प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री नहीं बनता तब तक यह मांग जारी रहेगी.
आदिवासियों की आबादी लगभग है 35 फीसदी
वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की आबादी 32 फ़ीसदी आंकी गई थी. जो साल 2018 में बढ़कर 35 फ़ीसदी से ज्यादा हो गई है. 2001 में राज्य गठन के दौरान से आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग और उन्हें समुचित नेतृत्व को देने को लेकर सरकार और आदिवासियों के बीच रस्साकशी चली आ रही थी. कांग्रेस ने बतौर आदिवासी अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बनाया था. लेकिन वर्ष 2003 में बीजेपी ने डॉक्टर रमन सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाकर आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग अनसुनी कर दी थी.
इसके बाद यह मांग कभी सामाजिक मंचों और आदिवासियों के राजनीतिक दलों में उठती रही है. लेकिन विधानसभा चुनाव 2018 के ठीक पहले आदिवासियों ने खुले मंच से आदिवासी समाज से मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग की थी और विधानसभा चुनाव को देखते हुए इस मांग के कारण चुनावी समीकरण बिगड़ता नजर आया था.
हालांकि बाद में भाजपा किसी तरह आदिवासी समाज को साधते हुए इस मांग को वापस लेने में सफल रही. आदिवासी समाज ने रमन सिंह को समाज की ओर से नेता चुन लिया था और आदिवासी मुख्यमंत्री बनाए जाने की अपनी इस मांग को खारिज कर दिया था. इस मांग के खारिज हो जाने से आदिवासी इलाकों में बीजेपी की जान में जान आई थी. आदिवासी नेताओं ने दावा किया था कि बस्तर और सरगुजा की सभी विधानसभा सीटों पर बीजेपी का परचम लहराएगा. हालांकि बाद में 2018 का विधानसभा चुनाव भाजपा हार गई और कांग्रेस ने भूपेश बघेल को प्रदेश की कमान सौंप दी. अब ढ़ाई साल बाद एक बार फिर प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग तेज हो गई है.