रायपुरः दिवाली (Diwali) के मौके पर लोग पकवान पर काफी जोर देते हैं. दिवाली से एक दो दिन पहले से ही लोग घरों में मिठाईयां (Sweets) और नमकीन (Snacks) बनाने लगते है. ऐसे में राजधानी रायपुर (Raipur) में छत्तीसगढ़ी पारंपरिक व्यंजनों (Chhattisgarhi traditional recipes) की डिमांड काफी अधिक होती है. ये डिमांड (Dimand) इतनी अधिक होती है कि व्यंजन (Foods) बनाने वाले इसकी पूर्ति नहीं कर पाते. वहीं, छत्तीसगढ़ की महिला समूह (womens group) पारंपरिक व्यंजन तैयार करतीं हैं. खास बात तो ये है कि इन व्यंजनों में किसी तरीके के कोई केमिकल (chemical) या फिर रंग का इस्तेमाल नहीं किया जाता. यही कारण है कि ये व्यंजन 15 दिनों तक लोग स्टोर करके रख सकते हैं. साथ ही इन व्यंजनों में घर के भोजन वाला स्वाद होता है, जिसके कारण इसकी डिमांड काफी बढ़ जाती है.
100 से 150 महिलाएं मिलकर करती हैं तैयार
वहीं, ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान सहायता समूह की संचालिका सरिता शर्मा ने बताया कि उनका समूह पिछले 15 वर्षों से छत्तीसगढ़ी व्यंजन बना रहा है. इस समूह में तकरीबन 100-150 सशक्त महिलाएं शामिल हैं, जो बिल्कुल घर वाले स्वाद में इन व्यंजनों को तैयार करतीं है.वहीं,दीपावली के मौके पर इन्हें इतने ऑर्डर मिल रहे हैं कि ये उसकी पूर्ति कर नहीं पा रहे.
महंगाई के दौरान भी कम कीमत में बिक रही
बताया जा रहा है कि, इतनी मंहगाई के बावजूद इनके बनाये व्यंजन कम कीमत में लोगों कोे उपलब्ध हो जाते हैं. यही कारण है कि लोगों में इसकी डिमांड काफी अधिक है.यहां सभी प्रकार के छत्तीसगढ़ी नमकीन व्यंजन की कीमत 300 रुपये प्रति किलो और मीठे व्यंजनों की कीमत 400 रुपये प्रति किलो है. इस बारे में संचालिका सरिता बताती हैं कि हमारी कोशिश रहती है कि छत्तीसगढ़ के पारंपरिक व्यंजन हर घर में पहुंचे और लोग इसका स्वाद ले पाएं. इस उद्देश्य से इतनी महंगाई के बीच भी हम पुराने दाम पर ही ये सामान बेच रहे हैं.
बनाए जाते हैं ये पारंपरिक व्यंजन
बता दें कि छत्तीसगढ़ के पारंपरिक व्यंजनों में महिला समूह द्वारा मीठे व्यंजन में पीडिया, खाजा, पुरन लड्डू, करी लड्डू, औरसा, खुरमी, डेहरौरी बनाती हैं. सभी की कीमत 400 रुपए प्रति किलो होती है. इसके अलावा नमकीन में सलौनी, मठरी, ठेठरी, सेव चूड़ा, साबूदाना पापड़ी, खस्ता,चाकोली, मिक्सचर, बनाया जा रहा है. इन सभी नमकीन सामानों को 300 रुपए प्रति किलो में बेचा जा रहा है.
15 दिन तक खराब नहीं होते यह पकवान
सरिता बताती हैं कि इन पकवानों को गेहूं के आटे, चावल के आटे, बेसन और मैदे से तैयार किया जाता है. इसमें किसी प्रकार से केमिकल का यूज नहीं होता है. साथ ही इसमें घी और अच्छी क्वालिटी का तेल इस्तेमाल होता है. यही कारण है कि इस व्यंजन को 15 दिनों तक इस्तेमाल किया जा सकता है.
इन स्थानों पर मिल जाएगा आपको छत्तीसगढ़ी पारंपरिक व्यंजन
बता दें कि दीपावली के लिए स्पेशल बनाई जा रही मिठाइयां और नमकीन अलग-अलग स्थानों पर बेचे जा रहे है. संस्कृति विभाग में संचालित गढ़ कलेवा, पंडरी हाट बाजार संचालित गढ़ कलेवा, डूंगरिया बाजार और मंत्रालय में संचालित गढ़ कलेवा में यह सामान बिक रहे हैं. इसके अलावा आप फोन के माध्यम से संपर्क कर इन व्यंजनों के लिए ऑर्डर दे सकते हैं.