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न बहने दो पानी को, जानो इसका मोल...पानी है अनमोल...

जल ही जीवन है...वाक्य लोगों की बोलचाल, सरकारी भवनों के दीवारों और बैनर-पोस्टर में तो जगह बनाई, लेकिन हालात को देख ऐसा लग रहा है कि ये शब्द केवल बोलचाल तक सीमित रह गई है. असल जिंदगी में इंसान इन बातों को कोई तवज्जो नहीं दे रहा है. देश में लगातार गिरता भू-जल स्तर इसका प्रमाण है.

डिजाइन फोटो.
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Published : May 24, 2019, 7:42 PM IST

रायपुर: भूजल का अत्याधिक दोहन एक पर्यावरणीय चुनौती बनती जा रही है. भू-जल के अंधाधुंध दोहन से भूमिगत जल स्तर में तेजी से गिरावट के साथ कार्बन उत्सर्जन में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. भू-जल सर्वेक्षण के हालिया आकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में कई जिलों के कई ब्लॉक संवेदनशील क्षेत्र में शामिल हो चुके हैं.

स्पेशल पैकेज.

25 मीटर तक जलस्तर में गिरावट
केन्द्रीय भू-जल बोर्ड की उत्तर-केन्द्रीय छत्तीसगढ़ शाखा, छत्तीसगढ़ ग्राउण्ड वाटर बोर्ड की एक अध्ययन के मुताबिक रायपुर, बिलासपुर, कोरबा, राजनांदगांव, महासमुंद और दुर्ग में भू-जल स्तर में 4 से 7 मीटर तक की गिरावट आई है. ये रिपोर्ट छत्तीसगढ़ के 540 कुओं और बोरिंग से नमूने और डाटा के आधार पर बनाई गई है. रिपोर्ट के मुताबिक 73 प्रतिशत से अधिक कुओं का जलस्तर 4 मीटर तक गिर चुका है, जबकि बिलासपुर, दुर्ग, जशपुर, कोरबा, राजनांदगांव और सरगुजा जिलों में कई भू-जल स्रोत पहले के मुकाबले 20 मीटर तक नीचे जा चुका है. छत्तीसगढ़ ग्राउण्ड वाटर बोर्ट के मुताबिक बिलासपुर और दुर्ग के कुछ विकासखण्ड ऐसे हैं. जहां जलस्तर में 25 मीटर तक की गिरावट आई है.

60 प्रतिशत से ज्यादा दोहन खतरनाक
भू-जलविदों के मुताबिक किसी भी स्थान पर ग्राउण्ड वाटर के स्टोरेज का अधिकतम 60 प्रतिशत पानी का ही दोहन करना सुरक्षित होता है. इससे ज्यादा पानी का निकाला जाना जल संकट की स्थिति पैदा कर सकता है. धरसींवा ब्लॉक के रायपुर में जमीन से पानी निकाले जाने का प्रतिशत 73.06 है. जो 70 प्रतिशत से ज्यादा है. वहीं राजनांदगांव के डोंगरगांव ब्लॉक में जमीन से पानी निकाले जाने का प्रतिशत 86.90 है. जो सुरक्षा स्तर से काफी ज्यादा है. राजनांदगांव में भी जमीन से पानी निकाले जाने का प्रतिशत 82.96 तक पहुंच चुका है. प्रदेश में दुर्ग का गुरूर क्षेत्र सबसे खतरनाक स्थिति में है. यहां जमीन से पानी निकाले जाने का प्रतिशत 102.44 रहा है. हालांकि बीते कुछ सालों में इसमें सुधार हुआ है, लेकिन स्थिति अब भी भयावह ही है. रायगढ़ के बरमकेला जमीन से पानी निकाले जाने का प्रतिशत 98.730 है. वहीं धमतरी ब्लॉक में जमीन से पानी निकाले जाने का प्रतिशत 90.08 प्रतिशत है.

ओवर एक्सप्लाइटेड जोन में प्रदेश का एक ब्लॉक
भू-जल दोहन के हिसाव से इसे चार जोन में बांटा गया है. पहला है सेफ जोन, जहां जमीन के भीतर जाने वाले पानी में से 60 प्रतिशत तक जल का दोहन किया जाता है. दूसरा सेमी क्रिटिकल जोन जहां 60 से 90 प्रतिशत जल का दोहन किया जाता है. तीसरा है क्रिटिकल जोन यहां 90 से 100 प्रतिशत पानी का दोहन होता है. चौथा है ओवर एस्सप्लाइटेड जोन. जहां जमीन में जाने वाले पानी में से 100 प्रतिशत से अधिक पानी का दोहन किया जाता है. छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के गुरूर को इसी जोन में रखा गया है. जहां जमीन से पानी निकाले जाने का प्रतिशत 103.26 है. सर्वेक्षण के आधार पर छत्तीसगढ़ के 18 ब्लॉक को सेमी क्रिटिकल, दो ब्लॉक क्रिटिकल और एक ब्लॉक ओवर एक्सप्लाइटेड जोन में रखा गया है. छत्तीसगढ़ में कई बार ऐसी स्थिति बनती है कि बोर से पानी आना बंद हो जाता है. 60 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सिंचाई के लिए अभी भी बारिश के पानी पर ही निर्भर है.

बताते हैं छत्तीसगढ़ में तालाबों की एक संस्कृति हुआ करती थी, गांव-गांव में तालाबों की एक श्रृंखला सालों से देखने को मिलती रही है, लेकिन शहरीकरण के चलते अब तालाबो का अस्तित्व लगभग खत्म होने लगा है.

रायपुर: भूजल का अत्याधिक दोहन एक पर्यावरणीय चुनौती बनती जा रही है. भू-जल के अंधाधुंध दोहन से भूमिगत जल स्तर में तेजी से गिरावट के साथ कार्बन उत्सर्जन में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. भू-जल सर्वेक्षण के हालिया आकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में कई जिलों के कई ब्लॉक संवेदनशील क्षेत्र में शामिल हो चुके हैं.

स्पेशल पैकेज.

25 मीटर तक जलस्तर में गिरावट
केन्द्रीय भू-जल बोर्ड की उत्तर-केन्द्रीय छत्तीसगढ़ शाखा, छत्तीसगढ़ ग्राउण्ड वाटर बोर्ड की एक अध्ययन के मुताबिक रायपुर, बिलासपुर, कोरबा, राजनांदगांव, महासमुंद और दुर्ग में भू-जल स्तर में 4 से 7 मीटर तक की गिरावट आई है. ये रिपोर्ट छत्तीसगढ़ के 540 कुओं और बोरिंग से नमूने और डाटा के आधार पर बनाई गई है. रिपोर्ट के मुताबिक 73 प्रतिशत से अधिक कुओं का जलस्तर 4 मीटर तक गिर चुका है, जबकि बिलासपुर, दुर्ग, जशपुर, कोरबा, राजनांदगांव और सरगुजा जिलों में कई भू-जल स्रोत पहले के मुकाबले 20 मीटर तक नीचे जा चुका है. छत्तीसगढ़ ग्राउण्ड वाटर बोर्ट के मुताबिक बिलासपुर और दुर्ग के कुछ विकासखण्ड ऐसे हैं. जहां जलस्तर में 25 मीटर तक की गिरावट आई है.

60 प्रतिशत से ज्यादा दोहन खतरनाक
भू-जलविदों के मुताबिक किसी भी स्थान पर ग्राउण्ड वाटर के स्टोरेज का अधिकतम 60 प्रतिशत पानी का ही दोहन करना सुरक्षित होता है. इससे ज्यादा पानी का निकाला जाना जल संकट की स्थिति पैदा कर सकता है. धरसींवा ब्लॉक के रायपुर में जमीन से पानी निकाले जाने का प्रतिशत 73.06 है. जो 70 प्रतिशत से ज्यादा है. वहीं राजनांदगांव के डोंगरगांव ब्लॉक में जमीन से पानी निकाले जाने का प्रतिशत 86.90 है. जो सुरक्षा स्तर से काफी ज्यादा है. राजनांदगांव में भी जमीन से पानी निकाले जाने का प्रतिशत 82.96 तक पहुंच चुका है. प्रदेश में दुर्ग का गुरूर क्षेत्र सबसे खतरनाक स्थिति में है. यहां जमीन से पानी निकाले जाने का प्रतिशत 102.44 रहा है. हालांकि बीते कुछ सालों में इसमें सुधार हुआ है, लेकिन स्थिति अब भी भयावह ही है. रायगढ़ के बरमकेला जमीन से पानी निकाले जाने का प्रतिशत 98.730 है. वहीं धमतरी ब्लॉक में जमीन से पानी निकाले जाने का प्रतिशत 90.08 प्रतिशत है.

ओवर एक्सप्लाइटेड जोन में प्रदेश का एक ब्लॉक
भू-जल दोहन के हिसाव से इसे चार जोन में बांटा गया है. पहला है सेफ जोन, जहां जमीन के भीतर जाने वाले पानी में से 60 प्रतिशत तक जल का दोहन किया जाता है. दूसरा सेमी क्रिटिकल जोन जहां 60 से 90 प्रतिशत जल का दोहन किया जाता है. तीसरा है क्रिटिकल जोन यहां 90 से 100 प्रतिशत पानी का दोहन होता है. चौथा है ओवर एस्सप्लाइटेड जोन. जहां जमीन में जाने वाले पानी में से 100 प्रतिशत से अधिक पानी का दोहन किया जाता है. छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के गुरूर को इसी जोन में रखा गया है. जहां जमीन से पानी निकाले जाने का प्रतिशत 103.26 है. सर्वेक्षण के आधार पर छत्तीसगढ़ के 18 ब्लॉक को सेमी क्रिटिकल, दो ब्लॉक क्रिटिकल और एक ब्लॉक ओवर एक्सप्लाइटेड जोन में रखा गया है. छत्तीसगढ़ में कई बार ऐसी स्थिति बनती है कि बोर से पानी आना बंद हो जाता है. 60 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सिंचाई के लिए अभी भी बारिश के पानी पर ही निर्भर है.

बताते हैं छत्तीसगढ़ में तालाबों की एक संस्कृति हुआ करती थी, गांव-गांव में तालाबों की एक श्रृंखला सालों से देखने को मिलती रही है, लेकिन शहरीकरण के चलते अब तालाबो का अस्तित्व लगभग खत्म होने लगा है.

Intro:2105 RPR CG WATER CRISES SPECIAL

एंकर-
प्रदेश में तेजी से घटते भू-जल स्तर ने भू-जलविदों के माथे पर शिकन पैदा कर दी है। कभी भू-जल स्तर के मामले में काफी सुरक्षित जोन में शुमार माने जाने वाला प्रदेश अब जल संकट की कगार पर आ खड़ा हुआ है। समय रहते अगर इस दिशा में ईमानदारी के साथ प्रभावी कदम नही उठाए गए तब वह दिन दूर नही जब इस जोन के कई ईलाके पानी की एक-एक बूंद को मोहताज होते देखे जाएंगे। भू-जलविदों के मुताबिक इस संकट से निपटने के लिए दीर्घकालिक योजनाओं के साथ ही हर स्तर पर प्रसाय किए जाने की आवश्यकता है, जन-जागरुकता अभियान इसका एक प्रभावी हिस्सा हो सकता है। पेश है ईटीवी भारत की पड़तालBody:

ओपनिंग पीटीसी

वीओ1

भू-जल स्तर के लिहाज से सुरक्षित जोन में माने जाने वाले प्रदेश में भी अब खतरे की घण्टी बजने लगी है। भू-जल सर्वेक्षण के हालिया आकड़ों के मुताबिक प्रदेश के कई जिलों के बड़ी संख्या में ब्लॉक भू-जल स्तर की वजह से संवेदनशील क्षेत्रों में शामिल हो चुके हैं। केन्द्रीय भूजल बोर्ड की उत्तर-केन्द्रीय छत्तीसगढ़ शाखा, छत्तीसगढ़ ग्राउण्ड वाटर बोर्ड द्वारा हाल ही में किये गये एक अध्ययन के अनुसार छत्तीसगढ़ में भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है। रायपुर, बिलासपुर, कोरबा, राजनांदगाँव, महासमुन्द और दुर्ग जिलों में भूजल स्तर 4 से 7 मीटर तक नीचे तक जा चुका है। बोर्ड ने यह रिपोर्ट प्रदेश के 540 कुओं और बोरिंग से नमूने और डाटा एकत्रित करके बनाई है। इसके अनुसार 73 प्रतिशत से अधिक कुओं का जलस्तर 4 मीटर तक गिर चुका है, जबकि बिलासपुर, दुर्ग, जशपुर, कोरबा, राजनांदगाँव और सरगुजा जिलों में कई भूजल स्रोत पहले के मुकाबले 20 मीटर तक नीचे जा चुके हैं। छत्तीसगढ़ ग्राउण्ड वाटर बोर्ट के मुताबिक बिलासपुर और दुर्ग जिले कुछ विकासखण्ड तो ऐसे हैं जहाँ यह जलस्तर 25 मीटर से भी अधिक नीचे गिर गया है और इन क्षेत्रों में पानी की भारी किल्लत होने वाली है। बड़ी संख्या में की जा रही बोरिंग और ज़मीन पर किये जा रहे भारी कांक्रीटीकरण को इसका जिम्मेदार माना जा रहा हैं।

बाइट- महेश सोनकुसरे, सीनियर साइंटिस्ट, केंद्रीय भूजल सर्वेक्षण विभाग

(सफेद शर्ट में चश्मा और मूछ में)

वीओ 2
भूजलविदों के मुताबिक किसी भी स्थान पर ग्राउण्ड वाटर के स्टोरेज का अधिकतम 60 प्रतिशत पानी का ही दोहन करना सुरक्षित होता है। इससे ज्यादा पानी का निकाला जाना जल संकट की स्थिति पैदा कर सकता है। और उस स्थान पर पानी की गंभीर समस्या खड़ी हो सकती है।
जैसे यदि रायपुर कि बात करें जो कि धरसिंवा बलॉक के अंतर्गत आता है यहां आंकड़ों के मुताबिक ड्रॉ डाउन ( जमीन से पानी निकाले जाने) का प्रतिशत 73.06 प्रतिशत है जो कि 70 प्रतिशत से अधिक है। मतलब यहां विभिन्न माध्यमों से जमीन के भीतर पहुंचने वाले पानी का 73.06 प्रतिशत पानी पुनः निकाल लिया जाता है, जो कि 70 प्रतिशत से अधिक है। वहीं राजनांदगांव के डोंगरगांव ब्लॉक में ड्रॉ डाउन का प्रतिशत 86.90 प्रतिशत है जो कि सुरक्षा स्तर से काफी ज्यादा है और साथ ही खतरे की घण्टी भी, राजनांदगांव में भी ड्रा डाउन का प्रतिशत काफी खतरान स्तर पर पहुंच चुका है जो कि82.96 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। प्रदेश में दुर्ग का गुरूर क्षेत्र इस इस लिहाज से सबसे खतरनाक स्थिति में था, वहां ड्रॉ डाउन का प्रतिशत 102.44 प्रतिशत रहा लेकिन अब इसमें कुछ सुधार आया है। भूजलविदों ने गुरूर क्षेत्र को ओवर एक्सप्लाइटेड जोन में रखा था को की अब क्रिटिकल ज़ोन में आ गया है। इसी तरह प्रदेश के रायगढ़ जिले में भी अधाधुन्ध उद्योगों की स्थापना के चलते हालात बदतर हो गए हैं। जिले के बरमकेला क्षेत्र में हालात संवेदनशील है, यहां ड्रॉ डाउन का प्रतिशत 98.73 है। धमतरी ब्लॉक मेें भी हालत ठीक नही हैं। यहां ड्रा डउन 90.08 प्रतिशत है।

बाइट- निनाद बोधनकर, भूजल विद व प्रोफेसर, रविवि
(चश्मे में टीशर्ट के साथ मे मूछ में)


ये हैं चार जोन-
भू-जल के दोहन के लिहाज से चार जोन में बांटा गया है। जिनमें पहला है सेफ जोन, जहां जमीन के भीतर जाने वाले पानी में से 60 प्रतिशत तक जल का उपयोग किया जाता है। दूसरा है सेमी क्रिटिकल जोन जहां 60 से 90 प्रतिशत जल का दोहन किया जाता है। तीसरा है क्रिटिकल जोन यहां 90 से 100 प्रतिशत पानी का दोहन होता है। और अंत में चौथा है ओवर एस्सप्लाईटेड जोन जहां जमीन में जाने वाले पानी में से 100 प्रतिशत से अधिक पानी का दोहन किया जाता है, बालोद का गुरूर इसी जोन में शामिल है, जिसका ड्रा डाउन 103.26 प्रतिशत है। इस आधार पर किए गए आधिकारिक सर्वेक्षण के आधार पर प्रदेश के 18 ब्लाॉक सेमी क्रिटिकल, दो ब्लाक क्रिटिकल और एक ब्लॉक ओवरएक्सप्लॉइटेड जोन के अंतर्गत आते हैं।

बोर खनन की निगरानी नहीं 

राज्य में अभी तक बोर खनन के लिए कोई नीति नहीं है। गर्मी के दिनों में ही कलेक्टर प्रतिबंध लगाते हैं। इसके बाद भी अवैध तरीके से बोर खनन होता है। गर्मी को छोड़कर बाकी समय में बड़े पैमाने पर बोर खनन होता है। इसकी निगरानी के लिए कोई प्रक्रिया तय नहीं हो सकी है। यही वजह है कि ऐसे हिस्से जहां नई कॉलोनी बस रही है, वहां बड़े पैमाने पर बोर होते हैं, जिससे तेजी से पानी बाहर आता है। कई बार ऐसी स्थिति बनती है कि बोर से पानी आना बंद हो जाता है। 60 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सिंचाई के लिए अभी भी बारिश के पानी पर ही निर्भर है।

बाइट- महेश सोनकुसरे, सीनियर साइंटिस्ट, केंद्रीय भूजल सर्वेक्षण विभाग


ऐसे उपाय करें तब सुधर सकेंगे हालात-
भू-जल विदों ने बताया कि घटते जल स्तर के साथ ही पानी को लेकर मचते हाहाकार की मुख्य वजह अनुपातहीन तरीके से पानी का दोहन है। इन क्षेत्रों में ट्यूबवेल की बढ़ती संख्या इसकी मुख्य वजहों में शुमार है, इसके साथ ही तालाबों को पाटा जाना, पानी का दुरुपयोग और ग्राउण्ड वाटर की रिचार्जिग के प्रति गंभीर उदासीनता जल संकट की बड़ी वजह है।


बाइट- निनाद बोधनकर, भूजल विद व प्रोफेसर, रविवि

छत्तीसगढ़ में तालाबो की एक संस्कृति हुआ करती थी। गाँव गाँव मे तालाबों की एक श्रृंखला सालो से देखने को मिलती रही है, लेकिन शहरीकरण के चलते अब तालाबो के अस्तित्व में अब संकट मंडरा रहा है। अकेले रायपुर में ही 200 से ज्यादा तालाब हुआ करते थे। ऐसे ही कुछ तालाबों का हमने भी जायजा लिया।

वोकथ्रु- तालाबों के पास से

वॉक्सपाप


Conclusion:कहते हैं कि अगर तीसरा विश्वयुद्ध छिड़ा तो वह होगा पानी के लिए. मगर यह कितना सच है, इस पर संशय बना हुआ है. नीति आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि लगातार घट रहा भूजल स्तर वर्ष 2030 तक देश में सबसे बड़े संकट के रूप में उभरेगा. घटते भूजल स्तर को लेकर भूवैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों की चिंता पर एनजीटी ने कड़े दिशा-निर्देश बनाने के लिए अल्टीमेटम दिया है, लेकिन ताज्जुब है कि भूजल स्तर का संकट लगातार गहराता जा रहा है और साल दर साल संकट बढ़ने पर भी प्रशासन ने कुछ खास फुर्ती क्यों नहीं दिखाई?

पीटीसी

मयंक ठाकुर, ईटीवी भारत, रायपुर
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