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Pen American Literary Award : पेन अमेरिकन लिटरेरी अवॉर्ड से सम्मानित होंगे साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल

छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार को बड़ा सम्मान मिलने वाला है. साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को पेन अमेरिकन लिटरेरी अवॉर्ड से नवाजा जाएगा. गद्य और पद्य के महारथी साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल ये सम्मान पाने वाले पहले भारतीय हैं.

VINOD KUMAR SHUKLA
साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल
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Published : Feb 28, 2023, 2:24 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को पेन अमेरिकन लिटरेरी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है. उन्हें यह सम्मान 2 मार्च को दिया जाएगा. विश्व साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को लेकर उन्हें यह सम्मान प्रदान किया जा रहा है. शुक्ल पेन अमेरिका लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित होने वाले हिंदी भाषा के संभवतः पहले साहित्यकार हैं.

कई रचनाएं हुईं प्रकाशित : पिछले 50 सालों में उनकी कई काव्य रचना, कई उपन्यास प्रकाशित हुए हैं. उनमें 'नौकर की कमीज', 'दीवार में खिड़की रहती थी', 'खिलेगा तो देखेंगे', 'लगभग जय हिंद' जैसे कई नाम शामिल हैं.1937 में राजनांदगांव में जन्म लेने वाले विनोद कुमार ने जब किशोरावस्था में कविताएं लिखनी शुरू की.उनकी कविताओं और उपन्यासों में छत्तीसगढ़ी संस्कृति की भीनी-भीनी खुशबू मिलती है.

गद्य और पद्य के महारथी : विनोद कुमार शुक्ल रायपुर के रहने वाले हैं.उन्होंने हिंदी साहित्य में कई कविताएं और किताबें लिखी हैं.विनोद कुमार उतने ही बड़े कवि हैं, जितने बड़े वे उपन्यासकार हैं. गद्य और पद्य दोनों में पंडित विनोद कुमार शुक्ल की कोई सानी नहीं है. पिछले दिनों पंडित विनोद कुमार शुक्ल ने फेसबुक लाइव सेशन में बताया था कि वो किस तरह से लेखन करते हैं.

शुक्ल का लेखन के प्रति समर्पण : शुक्ल के मुताबिक ''जब वह सोचते हैं कि क्या लिखना है, तो उनके दिमाग में एक देखा हुआ पक्षी पिंजड़े में आ जाता है और मैं लिख कर उस पिंजड़े में आए पक्षी को पिंजड़े का दरवाजा खोल कर स्वतंत्र करने की कोशिश करता हूं. इसीलिए लिखता हूं.'' पंडित विनोद कुमार शुक्ल के लिए लेखन लोगों से बात करने का एक माध्यम है.कई बार वो अपने लेखन के बार में खुद ही जानते कि वो क्या लिखना चाहते हैं. लेकिन चंद लाइनें लिखने के बाद शब्द आकार लेते हैं और विषय दिमाग में छपने लगता है.'

ये भी पढ़ें- जानिए छत्तीसगढ़ी भाषा को क्यों नहीं मिला बड़ा सम्मान

उम्र नहीं बनती शब्दों में बाधा : साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल अब तिरासी साल के हो चुके हैं. आज भी उनकी उम्र उनके प्रिय कार्य में बाधा नहीं बन रही.लेकिन आठ साल पहले आए स्ट्रोक के कारण उनकी शारीरिक स्थित उतना साथ नहीं देती जितना पहले दिया करती थी. फिर भी वो अपने किताबों की दुनिया में खोए रहते हैं. आंखें कमजोर हो चली हैं लेकिन मन में उठे भावों को अपने परिवार के माध्यम से वो कंम्प्यूटर पर अंकित करवाते हैं.ताकि उनका नजरिया दुनिया के सामने आ सके.

रायपुर: छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को पेन अमेरिकन लिटरेरी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है. उन्हें यह सम्मान 2 मार्च को दिया जाएगा. विश्व साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को लेकर उन्हें यह सम्मान प्रदान किया जा रहा है. शुक्ल पेन अमेरिका लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित होने वाले हिंदी भाषा के संभवतः पहले साहित्यकार हैं.

कई रचनाएं हुईं प्रकाशित : पिछले 50 सालों में उनकी कई काव्य रचना, कई उपन्यास प्रकाशित हुए हैं. उनमें 'नौकर की कमीज', 'दीवार में खिड़की रहती थी', 'खिलेगा तो देखेंगे', 'लगभग जय हिंद' जैसे कई नाम शामिल हैं.1937 में राजनांदगांव में जन्म लेने वाले विनोद कुमार ने जब किशोरावस्था में कविताएं लिखनी शुरू की.उनकी कविताओं और उपन्यासों में छत्तीसगढ़ी संस्कृति की भीनी-भीनी खुशबू मिलती है.

गद्य और पद्य के महारथी : विनोद कुमार शुक्ल रायपुर के रहने वाले हैं.उन्होंने हिंदी साहित्य में कई कविताएं और किताबें लिखी हैं.विनोद कुमार उतने ही बड़े कवि हैं, जितने बड़े वे उपन्यासकार हैं. गद्य और पद्य दोनों में पंडित विनोद कुमार शुक्ल की कोई सानी नहीं है. पिछले दिनों पंडित विनोद कुमार शुक्ल ने फेसबुक लाइव सेशन में बताया था कि वो किस तरह से लेखन करते हैं.

शुक्ल का लेखन के प्रति समर्पण : शुक्ल के मुताबिक ''जब वह सोचते हैं कि क्या लिखना है, तो उनके दिमाग में एक देखा हुआ पक्षी पिंजड़े में आ जाता है और मैं लिख कर उस पिंजड़े में आए पक्षी को पिंजड़े का दरवाजा खोल कर स्वतंत्र करने की कोशिश करता हूं. इसीलिए लिखता हूं.'' पंडित विनोद कुमार शुक्ल के लिए लेखन लोगों से बात करने का एक माध्यम है.कई बार वो अपने लेखन के बार में खुद ही जानते कि वो क्या लिखना चाहते हैं. लेकिन चंद लाइनें लिखने के बाद शब्द आकार लेते हैं और विषय दिमाग में छपने लगता है.'

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उम्र नहीं बनती शब्दों में बाधा : साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल अब तिरासी साल के हो चुके हैं. आज भी उनकी उम्र उनके प्रिय कार्य में बाधा नहीं बन रही.लेकिन आठ साल पहले आए स्ट्रोक के कारण उनकी शारीरिक स्थित उतना साथ नहीं देती जितना पहले दिया करती थी. फिर भी वो अपने किताबों की दुनिया में खोए रहते हैं. आंखें कमजोर हो चली हैं लेकिन मन में उठे भावों को अपने परिवार के माध्यम से वो कंम्प्यूटर पर अंकित करवाते हैं.ताकि उनका नजरिया दुनिया के सामने आ सके.

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