रायपुर: छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद मिनी माता की पुण्यतिथि पर संसदीय सचिव विकास उपाध्याय ने मंगलवार को उनके समाधि स्थल पहुंचकर उन्हें नमन किया. इस दौरान उन्होंने छुआछूत जैसी कुरीतियों को दूर करने के लिए चलाए गए उनके अभियान को याद किया है और सरकार से उन्हें पद्मश्री से सम्मानित करने की मांग की है.
उपाध्याय ने कहा कि मिनी माता आज के परिवेश में समाज के लिए प्रासंगिक हैं. विकास ने मिनी माता को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किए जाने की बात कही है. इस मांग के जरिए उन्होंने सतनामी समाज को साधने की कोशिश की है.
कुरीतियों के खिलाफ खोला मोर्चा
विकास उपाध्याय ने कहा कि मिनीमाता एक ऐसी महिला थीं, जिन्होंने उस समय के विपरीत परिस्थितियों में भी अपने दृढ़ निश्चय से समाज को एक नया रास्ता दिखाया और समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने और समाज में व्याप्त छूआछूत जैसी गंभीर कुरीतियों को खत्म किया.
![Mini Mata honor with Padma Shri award](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/cg-rpr-02-minimatapadmshree-avb-7204363_12082020001155_1208f_1597171315_479.jpg)
सामाजिक एकता की दी सीख
विकास उपाध्याय ने कहा जब समाज में तरह-तरह की कुरीतियां फैली हुई थी, ऐसे समय उन्होंने सामाजिक एकता का उदाहरण पेश किया है. उपाध्याय ने कहा उनकी अच्छाई की वजह से ही छत्तीसगढ़ के लोग आज भी उन्हें याद करते हैं.
सबकी मदद के लिए रहती थीं तैयार
मिनी माता वो शख्सियत थीं, जो अपनी जरूरतों को भूल दूसरों की जरूरतें पूरी करने में हमेशा आगे रहती थीं. जिनकी मदद के लिए कोई सामने नहीं आता था, वो उसकी मदद के लिए भी हमेशा खड़ी रहती थीं.
![vikas upadhyay](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/cg-rpr-02-minimatapadmshree-avb-7204363_12082020001155_1208f_1597171315_746.jpg)
पढ़ें: पुण्यतिथि पर पढ़ें : छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद की कहानी, कैसे बनीं मीनाक्षी से मिनी माता
कैसे बनीं मिनी माता
- मिनी माता का नाम मीनाक्षी देवी था. वह असम में अपनी मां देवमती के साथ रहती थीं. उनके पिता सगोना नाम के गांव में मालगुजार थे.
- छत्तीसगढ़ में साल 1897 से 1899 में भीषण अकाल पड़ा. इस दौरान मिनी माता का परिवार रोजी रोटी की तलाश में छत्तीसगढ़ से पलायन कर असम चला गया.
- मीनाक्षी ने असम में मिडिल तक की पढ़ाई की. साल था 1920. उस वक्त स्वदेशी आंदोलन चल रहा था और उसी वक्त मिनी स्वदेशी पहनने लगी थीं.
- विदेशी सामान की होली भी जलाई गई थी. उस वक्त गद्दीआसीन गुरु अगमदास जी गुरु गोंसाई (सतनामी पथ) प्रचार के लिए असम पहुंचे थे.
- गुरु अगमदास जी मिनी की माता के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. इस तरह मीनाक्षी देवी मिनीमाता बन गईं और वापस छत्तीसगढ़ आ गईं.
राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदार रहीं
- अगमदास गुरु राष्ट्रीय आंदोलन में भाग ले रहे थे. उनका रायपुर का घर सत्याग्रहियों का घर बन गया था.
- पंडित सुंदरलाल शर्मा, डॉक्टर राधाबाई, ठाकुर प्यारेलाल सिंह सभी उनके घर आते थे. अगमदास गुरु के कारण ही सतनामी समाज ने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया.
अंधविश्वास के खिलाफ किया जागरूक
- मिनी माता ने छुआछूत मिटाने से लेकर अंधविश्वास के खिलाफ लोगों को जागरूक किया है.
- उन्हें जानने वाले कहते हैं कि सादगी उनके दिल में थी और व्यक्तित्व में छलकती थी.
- मिनी माता का घर हर समाज और तबके के लिए खुला रहता था.
विमान दुर्घटना में निधन
- मिनीमाता सांस्कृतिक मंडल की अध्यक्ष रहीं. भिलाई में छत्तीसगढ़ कल्याण मजदूर संगठन की संस्थापक रहीं. कहा जाता है कि बांगो बांध का निर्माण भी उन्हीं की वजह से संभव हुआ.
- कहते हैं कि ठंड में वे इस बात का ख्याल रखती थीं कि सबके पास उचित उपाय हो.
- साल 1972 में एक विमान दुर्घटना में मिनीमाता का निधन हो गया.