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Varuthini Ekadashi 2023: वरुथिनी एकादशी त्रिपुष्कर योग के सुखद संयोग में मनाया जाएगा

वरुथिनी एकादशी त्रिपुष्कर योग में मनाया जाएगा. इस व्रत को करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं. इस दिन गरीबों को कपड़े दान देना चाहिए. इस दिन व्रत करने पर संतान संबंधी बाधाएं दूर होती हैं.

Varuthini Ekadashi
वरुथिनी एकादशी
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Published : Apr 12, 2023, 11:02 AM IST

पंडित विनीत शर्मा

रायपुर: वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी वरुथिनी एकादशी के रूप में जानी जाती है. 16 अप्रैल रविवार धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र शुक्ल योग मातंग योग बालव और कौरव करण के सुंदर संयोग में वरुथिनी एकादशी मनायी जाएगी. इस दिन त्रिपुष्कर योग भी बन रहा है. शनि शतभिषा में शनि युति है. वरुथिनी एकादशी अपने आप में महत्वपूर्ण एकादशी मानी जाती है. यह एकादशियो में सर्वोत्तम मानी गई है. इस दिन व्रत करने पर संतान संबंधी बाधाएं दूर होती है. इस दिन किसी भी तरह के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए. इस दिन सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए.

वरुथिनी एकादशी व्रत से प्रसन्न होती है माता लक्ष्मी: एकादशी व्रत की तैयारी दशमी तिथि की रात्रि से ही शुरू कर देनी चाहिए. दशमी तिथि को सायंकाल से ही सात्विकता ब्रम्हचर्य ऊंचे नैतिक मूल्यों के साथ समय व्यतीत करना चाहिए. दशमी तिथि से ही सकारात्मकता और पवित्र चिंतन को अपने मन वचन और कर्म में लाने का प्रयास करना चाहिए. एकादशी के दिन प्रातः काल योग ध्यान स्नानादि से निवृत्त होकर. शुद्ध अंतःकरण से पूजा स्तुति और पाठ करना चाहिए. वरुथिनी एकादशी के दिन उपवास करने पर लक्ष्मी माता बहुत प्रसन्न होती है. धन संबंधी समस्याएं दूर होती है. वरुथिनी एकादशी के दिन व्रत उपवास दान संकल्प लेने से कामनाएं सिद्ध होती है. मित्रों को सहयोग देने से जरूरतमंद गरीब दीन हीन जनों को दान पुण्य का भी लाभ लेना चाहिए. इसी तरह आज के दिन दिव्यांग जनों की भी सेवा करनी चाहिए.

यह भी पढ़ें: Varuthini Ekadashi : वरुथिनी एकादशी का महत्व और मुहूर्त

वराह अवतार की होती है पूजा: वरुथिनी एकादशी के दिन विष्णु जी के वराह अवतार की पूजा करनी चाहिए. भगवान ने सृष्टि की रक्षा और नकारात्मक शक्तियों से सकारात्मक शक्तियों को अभय प्राप्त करने हेतु वराह अवतार लिया था. भगवान विष्णु ने इस रुप मे दुष्टों का संहार किया था. इसलिए वराह अवतार की पूजा की जाती है. एक अन्य कथा के अनुसार मांधाता नरेश के पैरों को भालू खा जाता है. वह पैरहीन हो जाते हैं. उस समय वरुथिनी एकादशी के व्रत के प्रभाव से उनका पैर वापस मिल पाता है. अतः आज के दिन विशेष रूप से पैर से दिव्यांग जनों की सेवा करने पर पुण्य फल की प्राप्ति होती है. इस दिन गरीबों को वस्त्र दान योग्य आचार्य को अन्न दान और योग्य विद्यार्थियों को विद्या दान करने पर परम पुण्य की प्राप्ति होती है.

इन पाठों को करना होता है लाभकारी: इस दिन श्री विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु चालीसा, आदित्य हृदय स्त्रोत, राम रक्षा स्त्रोत, रामचरितमानस आदि का जाप और पाठ करना चाहिए. वरुथिनी एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु का नाम लेकर विष्णु जी को ध्यान में संजोकर ध्यान करना चाहिए. इस गहरे ध्यान से भी मानसिक तनाव समाप्त होता है. तन और मन में अनुकूलता सिद्ध होती है. वरुथिनी एकादशी व्रत उपवास और संकल्प सिद्धि के लिए बहुत ही शुभ दिन माना गया है. आज के शुभ दिन सूर्य ग्रह उच्च के होकर विराजमान रहेंगे.

पंडित विनीत शर्मा

रायपुर: वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी वरुथिनी एकादशी के रूप में जानी जाती है. 16 अप्रैल रविवार धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र शुक्ल योग मातंग योग बालव और कौरव करण के सुंदर संयोग में वरुथिनी एकादशी मनायी जाएगी. इस दिन त्रिपुष्कर योग भी बन रहा है. शनि शतभिषा में शनि युति है. वरुथिनी एकादशी अपने आप में महत्वपूर्ण एकादशी मानी जाती है. यह एकादशियो में सर्वोत्तम मानी गई है. इस दिन व्रत करने पर संतान संबंधी बाधाएं दूर होती है. इस दिन किसी भी तरह के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए. इस दिन सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए.

वरुथिनी एकादशी व्रत से प्रसन्न होती है माता लक्ष्मी: एकादशी व्रत की तैयारी दशमी तिथि की रात्रि से ही शुरू कर देनी चाहिए. दशमी तिथि को सायंकाल से ही सात्विकता ब्रम्हचर्य ऊंचे नैतिक मूल्यों के साथ समय व्यतीत करना चाहिए. दशमी तिथि से ही सकारात्मकता और पवित्र चिंतन को अपने मन वचन और कर्म में लाने का प्रयास करना चाहिए. एकादशी के दिन प्रातः काल योग ध्यान स्नानादि से निवृत्त होकर. शुद्ध अंतःकरण से पूजा स्तुति और पाठ करना चाहिए. वरुथिनी एकादशी के दिन उपवास करने पर लक्ष्मी माता बहुत प्रसन्न होती है. धन संबंधी समस्याएं दूर होती है. वरुथिनी एकादशी के दिन व्रत उपवास दान संकल्प लेने से कामनाएं सिद्ध होती है. मित्रों को सहयोग देने से जरूरतमंद गरीब दीन हीन जनों को दान पुण्य का भी लाभ लेना चाहिए. इसी तरह आज के दिन दिव्यांग जनों की भी सेवा करनी चाहिए.

यह भी पढ़ें: Varuthini Ekadashi : वरुथिनी एकादशी का महत्व और मुहूर्त

वराह अवतार की होती है पूजा: वरुथिनी एकादशी के दिन विष्णु जी के वराह अवतार की पूजा करनी चाहिए. भगवान ने सृष्टि की रक्षा और नकारात्मक शक्तियों से सकारात्मक शक्तियों को अभय प्राप्त करने हेतु वराह अवतार लिया था. भगवान विष्णु ने इस रुप मे दुष्टों का संहार किया था. इसलिए वराह अवतार की पूजा की जाती है. एक अन्य कथा के अनुसार मांधाता नरेश के पैरों को भालू खा जाता है. वह पैरहीन हो जाते हैं. उस समय वरुथिनी एकादशी के व्रत के प्रभाव से उनका पैर वापस मिल पाता है. अतः आज के दिन विशेष रूप से पैर से दिव्यांग जनों की सेवा करने पर पुण्य फल की प्राप्ति होती है. इस दिन गरीबों को वस्त्र दान योग्य आचार्य को अन्न दान और योग्य विद्यार्थियों को विद्या दान करने पर परम पुण्य की प्राप्ति होती है.

इन पाठों को करना होता है लाभकारी: इस दिन श्री विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु चालीसा, आदित्य हृदय स्त्रोत, राम रक्षा स्त्रोत, रामचरितमानस आदि का जाप और पाठ करना चाहिए. वरुथिनी एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु का नाम लेकर विष्णु जी को ध्यान में संजोकर ध्यान करना चाहिए. इस गहरे ध्यान से भी मानसिक तनाव समाप्त होता है. तन और मन में अनुकूलता सिद्ध होती है. वरुथिनी एकादशी व्रत उपवास और संकल्प सिद्धि के लिए बहुत ही शुभ दिन माना गया है. आज के शुभ दिन सूर्य ग्रह उच्च के होकर विराजमान रहेंगे.

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