रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अंग्रेजों के जमाने का एक मंदिर है. आर्य समाज का यह मंदिर शहर के बैजनाथपारा में है. कहते हैं कि यह मंदिर प्यार करने वालों के लिए किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है. यहां प्यार करने वालों को वो मिलता है, जिसकी चाहत लिए वो इश्क के दरिया में डूबते हैं. यानी अपने चाहने वालों का साथ और जिंदगी भर हाथों में हाथ. इस मंदिर में आकर प्रेमी जोड़े शादियां रचाकर अपना घर बसा रहे हैं.
35 हजार से अधिक प्रेमी जोड़ों का विवाह: आर्य समाज मंदिर के अध्यक्ष आर्य योगी राम साहू कहते हैं कि "देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लाला लाजपत राय 1907 में रायपुर आए थे. तब आर्य समाज मंदिर की स्थापना हुई थी. अंग्रेजों के दौर से लेकर अब तक रायपुर के इस आर्य समाज मंदिर में 35 हजार से अधिक प्रेमी जोड़ों की शादियां कराई जा चुकी हैं. यहां हर साल 2 हजार से अधिक जोड़ों की शादी होती है. साल 2019 में 2131, 2021 में 1762 और 2020 में 1532 जोड़ों की शादियां यहां संपन्न हुईं."
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कई बार बन चुकी है विवाद की स्थिति: आर्य समाज मंदिर के पदाधिकारियों ने बताया कि "कई बार यहां तनाव की स्थिति निर्मित हो चुकी है. क्योंकि बहुत से प्रेमी जोड़े अपने परिजनों को बताए बिना शादी करने पहुंचते हैं. परिजनों को जब इसकी भनक लगती है तो वे भी मंदिर पहुंच जाते हैं. कई बार धक्का-मुक्की झूमाझटकी के हालात पैदा होते हैं. ऐसे में पुलिस बुलानी पड़ती है. कई बार पुलिस के पहरे के बीच जोड़े की शादी कराई जाती है."
इसलिए कराते हैं प्रेमी जोड़ों का विवाह: आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने सन 1875 में की थी. यह पूरी तरह से आस्तिक (भगवान को मानने वाला) संगठन है. समाज के लोग बताते हैं कि "यहां मत, मजहब, संप्रदाय, वगैरह नहीं है. समाज का मकसद सनातन धर्म का वैदिक प्रचार करना है. वेद प्रचार के लिए आर्य समाज की स्थापना की गई थी. यह समाज जन्म से जात-पात का खंडन करता है. इसी वजह से एकता के लिए अंतरजातीय विवाह कराता है और प्रेमी जोड़ों की शादी करने में मदद करता है."