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DIWALI SPECIAL : राजस्थान का अनोखा मेला...पान खिलाकर जीतते हैं प्रेमिका का दिल, भागकर शादी करने की भी है प्रथा

आपने कभी ऐसा अनोखा मेला देखा है. जहां जीवनसाथी चुना जाता हो या फिर उस मेले में प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ भाग कर शादी करता हो. जी हां, ऐसा मेला लगता है झालावाड़ जिले में. झालावाड़ जिले के थाना क्षेत्र जावर से सिर्फ कुछ ही दूरी पर जगदेव जी गांव मेला परंपरा अनुसार हर साल दिवाली के पास केवल एक बार 3 दिन के लिए लगता है. नेवज नदी किनारे एक प्राचीन देवनारायण भगवान का मंदिर है. जहां पर तीन दिवसीय मेला वर्षों से चला आ रहा है.

राजस्थान का अनोखा मेला
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Published : Oct 28, 2019, 2:36 AM IST

Updated : Oct 28, 2019, 7:24 AM IST

झालावाड़. जिले में दीपावली पर्व के जागदेव गांव मेले में भारी संख्या में जनसैलाब उमड़ता है. इस मेले में प्रेमी प्रेमिका मिलने आते है. ये मेला सदियों सालों से चला आ रहा है. वहीं ईटीवी भारत की टीम इस मेले की हकीकत जानने पहुंची.

राजस्थान के झालावाड़ जिले के जगदेव जी गांव में बताया जाता है कि सदियों पुरानी इस मेले में आज भी सारी परंपरा निभाई जाती है. झालावाड़ मुख्यालय से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर नेवज नदी किनारे एक प्राचीन देवनारायण भगवान का मंदिर है. जहां पर तीन दिवसीय मेला वर्ष में एक बार लगता है. जहां पर लोग परंपरा अनुसार खरीदारी करते हैं. मेले की मान्‍यता के अनुसार युवक और युवतियां अपने मनपसंद जीवन साथी की तलाश के लिए ही यहां आते हैं. वे पान खिलाकर अपने प्रेम का इजहार करते हैं और दिल जीतने की कोशिश करते हैं.

राजस्थान का अनोखा मेला

बांसुरी की आवाज पर थिरकते हैं कदम
मेले में विवाह के योग्य युवक और युवतियां सज-धजकर आते हैं, लेकिन दिल जीतने का काम इतना आसान भी नहीं होता. इसके लिए युवक जहां हाथ में बांसुरी थामे मांदर की थाप पर थिरकते हैं, वहीं युवतियां घूंघट की ओट से अपने प्रियतम को रिझाती हैं.

पढ़ें- दिवाली विशेष : यहां दीपावाली मनाने से पहले किया जाता है पूर्वजों का 'श्राद्ध'

मेले में भागकर शादी करने की प्रथा
इन मेलों में आने वाले मौज-मस्ती का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते. मेले में झूलों से लेकर आइस्क्रीम और गोलगप्पों का बाजार सजा है. स्थानीय ग्रामीण कहते हैं कि जागदेव गांव मेले को लेकर मान्यता है कि इस मौके पर युवक-युवती एक दूसरे को पान खिला दें या एक दूसरे के लगा दें तो मान लिया जाता है कि दोनों में प्रेम हो गया है. इतना ही नहीं वे दोनों मौका पाकर भाग जाते हैं और विवाह बंधन में बंध जाते हैं. भाग कर शादी करने के कारण ही इस पर्व को जागदेव गांव कहा जाता है.

पढ़ें- दीपावली पर फूलों से सजा बाबा रूणेचा का दरबार, 1000 किलो पुष्पों से की गई सजावट

जगदेव जी मेला नदी के किनारे आयोजित होता है. आसपास के बड़े-बड़े पेड़ पौधे लगे हुए हैं. मेले में किसी रेस्टोरेंट या होटल पर प्रेमी प्रेमिका मिल जाएंगे तो मौके से ही फरार हो जाते हैं और यहां की पहले से चली आ रही मान्यता है अब मान्यता क्या हकीकत है क्या सही है पर कहा जाता है कि इस मेले में आने के बाद प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ वर्षों भर इंतजार करता है. इस मेले के लिए और दोनों इस मेले में मिल जाते हैं तो यहीं से अपना जीवन साथी का जीवन सफल यात्रा को शुरू करते हैं. पौराणिक परंपराओं के अनुसार आ रहा है इस मेले में आज ही के दिन अमावस्या पर्व पर ज्वारे, गन्ने, कुमुदिनी के फूल मटकी, मिट्टी का कलश, दीपक, मोरपंखी, तीर-तलवार, खंजर, लाठी, घूंगरू, घंटियां खरीदते हैं.

पढ़ें- राजसमंद : दिवाली पर प्रभु द्वारकाधीश और श्रीनाथजी के मंदिर में वैष्णव जन पहुंच कर पर्व को बना रहे हैं खास

यहां का मुख्य मेला है और यहां का मुख्य बाजार है जो कि वर्ष में सिर्फ एक बार 3 दिन लगता है. जिसमें दूरदराज सहित विभिन्न क्षेत्रों के लोग बड़ी संख्या में आकर्षक का केंद्र बना हुआ रहता है. अभी वर्तमान में कुछ ही दूरी पर जावर थाना क्षेत्र पुलिस प्रशासन द्वारा यहां पर बड़ी संख्या में पुलिस जाब्ता इस मेले में सुरक्षा व्यवस्था के लिए लगाया जाता है. फिर भी कहीं ना कहीं चुपके से कोई प्रेमी वाली घटना आज भी घट जाती है. इसका पता तक नहीं लग पाता है. आज भी इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. मेला उसी पद्धति के आधार पर परंपराओं अनुसार लगता है.

झालावाड़. जिले में दीपावली पर्व के जागदेव गांव मेले में भारी संख्या में जनसैलाब उमड़ता है. इस मेले में प्रेमी प्रेमिका मिलने आते है. ये मेला सदियों सालों से चला आ रहा है. वहीं ईटीवी भारत की टीम इस मेले की हकीकत जानने पहुंची.

राजस्थान के झालावाड़ जिले के जगदेव जी गांव में बताया जाता है कि सदियों पुरानी इस मेले में आज भी सारी परंपरा निभाई जाती है. झालावाड़ मुख्यालय से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर नेवज नदी किनारे एक प्राचीन देवनारायण भगवान का मंदिर है. जहां पर तीन दिवसीय मेला वर्ष में एक बार लगता है. जहां पर लोग परंपरा अनुसार खरीदारी करते हैं. मेले की मान्‍यता के अनुसार युवक और युवतियां अपने मनपसंद जीवन साथी की तलाश के लिए ही यहां आते हैं. वे पान खिलाकर अपने प्रेम का इजहार करते हैं और दिल जीतने की कोशिश करते हैं.

राजस्थान का अनोखा मेला

बांसुरी की आवाज पर थिरकते हैं कदम
मेले में विवाह के योग्य युवक और युवतियां सज-धजकर आते हैं, लेकिन दिल जीतने का काम इतना आसान भी नहीं होता. इसके लिए युवक जहां हाथ में बांसुरी थामे मांदर की थाप पर थिरकते हैं, वहीं युवतियां घूंघट की ओट से अपने प्रियतम को रिझाती हैं.

पढ़ें- दिवाली विशेष : यहां दीपावाली मनाने से पहले किया जाता है पूर्वजों का 'श्राद्ध'

मेले में भागकर शादी करने की प्रथा
इन मेलों में आने वाले मौज-मस्ती का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते. मेले में झूलों से लेकर आइस्क्रीम और गोलगप्पों का बाजार सजा है. स्थानीय ग्रामीण कहते हैं कि जागदेव गांव मेले को लेकर मान्यता है कि इस मौके पर युवक-युवती एक दूसरे को पान खिला दें या एक दूसरे के लगा दें तो मान लिया जाता है कि दोनों में प्रेम हो गया है. इतना ही नहीं वे दोनों मौका पाकर भाग जाते हैं और विवाह बंधन में बंध जाते हैं. भाग कर शादी करने के कारण ही इस पर्व को जागदेव गांव कहा जाता है.

पढ़ें- दीपावली पर फूलों से सजा बाबा रूणेचा का दरबार, 1000 किलो पुष्पों से की गई सजावट

जगदेव जी मेला नदी के किनारे आयोजित होता है. आसपास के बड़े-बड़े पेड़ पौधे लगे हुए हैं. मेले में किसी रेस्टोरेंट या होटल पर प्रेमी प्रेमिका मिल जाएंगे तो मौके से ही फरार हो जाते हैं और यहां की पहले से चली आ रही मान्यता है अब मान्यता क्या हकीकत है क्या सही है पर कहा जाता है कि इस मेले में आने के बाद प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ वर्षों भर इंतजार करता है. इस मेले के लिए और दोनों इस मेले में मिल जाते हैं तो यहीं से अपना जीवन साथी का जीवन सफल यात्रा को शुरू करते हैं. पौराणिक परंपराओं के अनुसार आ रहा है इस मेले में आज ही के दिन अमावस्या पर्व पर ज्वारे, गन्ने, कुमुदिनी के फूल मटकी, मिट्टी का कलश, दीपक, मोरपंखी, तीर-तलवार, खंजर, लाठी, घूंगरू, घंटियां खरीदते हैं.

पढ़ें- राजसमंद : दिवाली पर प्रभु द्वारकाधीश और श्रीनाथजी के मंदिर में वैष्णव जन पहुंच कर पर्व को बना रहे हैं खास

यहां का मुख्य मेला है और यहां का मुख्य बाजार है जो कि वर्ष में सिर्फ एक बार 3 दिन लगता है. जिसमें दूरदराज सहित विभिन्न क्षेत्रों के लोग बड़ी संख्या में आकर्षक का केंद्र बना हुआ रहता है. अभी वर्तमान में कुछ ही दूरी पर जावर थाना क्षेत्र पुलिस प्रशासन द्वारा यहां पर बड़ी संख्या में पुलिस जाब्ता इस मेले में सुरक्षा व्यवस्था के लिए लगाया जाता है. फिर भी कहीं ना कहीं चुपके से कोई प्रेमी वाली घटना आज भी घट जाती है. इसका पता तक नहीं लग पाता है. आज भी इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. मेला उसी पद्धति के आधार पर परंपराओं अनुसार लगता है.

Intro:झालावाड़ जिले में जागदेव गांव दीपावली पर्व के मेले पर भारी संख्या में उमड़ता है जनसैलाब----- प्रेमी प्रेमिका आते मिलने------सदियों वर्ष पुराना चला आ रहा है यह मेला /// ईटीवी रिपोर्टर हेमराज शर्मा पहुंचे मेले में जानी मेले के हकीकत Body:ईटीवी भारत की टीम राजस्थान के झालावाड़ जिले के जगदेव जी गांव में पहुंची बताया जाता है कि सदियों पुरानी इस मेले में आज भी कान उठी परंपरा निभाई जाती है बताया जाता है कि शादीशुदा युवक युक्तियां जिनके परिजन नहीं भेजते हैं वह युवक-युवती पूरे वर्ष इंतजार करते रहते हैं इस मेले का क्या खासियत है इस मेले की क्यों आते हैं जाग देवजी पर ईटीव संवाददाता हेमराज शर्मा मुख्यालय से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर जाकर इस मेले की पड़ताल की यह मेला नेवज नदी किनारे एक प्राचीन मंदिर देवनारायण भगवान का जहां पर तीन दिवसीय मेला कई वर्षों से चला आ रहा है जहां पर आज भी लोग वही परंपरा अनुसार खरीदारी करते हैं----




आपने अपने जीवन साथी को लेकर कई ख्‍वाब संजोए होंगे. एक अच्‍छे पार्टनर के इंतजार में हो सकता है आपने लंबा समय भी बिता दिया हो, लेकिन
राजस्थान के झालावाड इलाके में एक मेला लगता है जहां पान-गुलाल से ही जीवनसाथी चुन लिया जाता है.



दरअसल, दिपावली पर्व के निकट ही यह मैला आयोजित होता है . मान्‍यता के अनुसार युवक और युवतियां अपने मनपसंद जीवन साथी की तलाश के लिए ही यहां आते हैं. वे पान खिलाकर अपने प्रेम का इजहार करते हैं और दिल जीतने की कोशिश करते हैं.

बांसुरी की आवाज पर थिरकते हैंt कदम
मेले में विवाह के योग्य युवक और युवतियां सज-धजकर आते हैं, लेकिन दिल जीतने का काम इतना आसान भी नहीं होता. इसके लिए युवक जहां हाथ में बांसुरी थामे मांदर की थाप पर थिरकते हैं, वहीं युवतियां घूंघट की ओट से अपने प्रियतम को रिझाती हैं.



भागकर शादी करने की है प्रथा
इन मेलों में आने वाले मौज-मस्ती का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते. मेले में झूलों से लेकर आइस्क्रीम और गोलगप्पों का बाजार सजा है. स्थानीय ग्रामीण कहते हैं कि जागदेव गाँव मेले को लेकर मान्यता है कि इस मौके पर युवक-युवती एक दूसरे को पान खिला दें या एक दूसरे के लगा दें तो मान लिया जाता है कि दोनों में प्रेम हो गया है. इतना ही नहीं वे दोनों मौका पाकर भाग जाते हैं और विवाह बंधन में बंध जाते हैं. भाग कर शादी करने के कारण ही इस पर्व को जागदेव गाँव कहा जाता है. जानने के लिए सीधे जगदेव जी गांव मेले में पहुंचे और ईटीवी संवाददाता हेमराज शर्मा ने जब इस हकीकत को देखने का प्रयास किया कहा जाता है जिन युवक-युवतियों की शादी वैशाख महीने में हो जाती है लड़कियों के माता पिता उन लड़कियों को नहीं भेजते हैं ग्रामीण अंचल में कुछ इस प्रकार की कुर्तियां नजर आई कहा जाता है शादी होने के बाद लड़की को 1 वर्ष में ही भेजा जाता या 3 वर्ष बाद भेजा जाता है और लड़कियों को भेजा नहीं जाता है ससुराल तो लड़कियां इस मेले का इंतजार करती है जगदेव जी मेला है नदी के किनारे आयोजित होता है आसपास के बड़े-बड़े पेड़ पौधे लगे हुए हैं मेले में किसी रेस्टोरेंट होटल पर मिल जाएंगे वहीं से ही फरार हो जाते हैं और यहां की पहले से चली आ रही मान्यता है अब मान्यता क्या हकीकत है क्या सही है पर कहा जाता है कि इस मेले में आने के बाद प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ वर्षों भर इंतजार करता है इस मेले के लिए और दोनों इस मेले में मिल जाते हैं तो यहीं से अपना जीवन साथी का जीवन सफल यात्रा को शुरू करते हैं पौराणिक परंपराओं के अनुसार आ रहा है इस मेले में आज ही के दिन अमावस्या पर्व पर ज्वारे, गन्ने, कुमुदिनी के फूल मटकी , मिट्टी का कलश दीपक मोरपंखी तीर तलवार खंजर लाठी घूंगरू घंटियां
खरीदते हैं यहां का मुख्य मेला है और यही यहां का मुख्य बाजार है जोकि वर्ष में सिर्फ एक बार 3 दिन लगता है जिसमें दूरदराज सहित विभिन्न क्षेत्रों के लोग बड़ी संख्या में आकर्षक का केंद्र बना हुआ रहता है अभी वर्तमान में कुछ ही दूरी पर जावर थाना क्षेत्र पुलिस प्रशासन द्वारा यहां पर लगभग कहीं दर्जनों पुलिस जाब्ता इस मेले में सुरक्षा व्यवस्था के लिए लगाया जाता है फिर भी कहीं ना कहीं चुपके से कोई प्रेमी वाली घटना आज भी घट जाती है इसका पता तक नहीं लग पाता है आज भी कोई परिवर्तन नहीं यह मेला उसी पद्धति के आधार पर परंपराओं अनुसार लगता है राजस्थान के झालावाड़ जिले के थाना क्षेत्र जावर सिर्फ कुछ ही दूरी पर जगदेव जी गांव मेला परंपरा अनुसार हर वर्ष की भांति वर्ष में केवल एक बार 3 दिन के लिए लगता है मानस मेले में लॉक वर्षों से टिक टिक लगाए हुए बैठे रहते हैं यह मेला कुंभ तो नहीं कहा जा सकता है पर इन लोगों के लिए ग्रामीणों के लिए आज भी आदिवासी इस क्षेत्र में लोग उसी वेशभूषा और परंपराओं के अनुसार अपना जीवन यापन करते हैं वहीं शिक्षा के अभाव में क्षेत्र काफी पिछड़ा हुआ है मानो या ना मानो सब मिलजुल कर इस दीपावली पर्व को बड़े हर्ष उल्लास के साथ मनाते हैं गांव में आज भी लोग उसी अंदाज में दीपावली मनाते हैंConclusion:ईटीवी भारत की टीम राजस्थान के झालावाड़ जिले के जगदेव जी गांव में पहुंची बताया जाता है कि सदियों पुरानी इस मेले में आज भी कान उठी परंपरा निभाई जाती है बताया जाता है कि शादीशुदा युवक युक्तियां जिनके परिजन नहीं भेजते हैं वह युवक-युवती पूरे वर्ष इंतजार करते रहते हैं इस मेले का क्या खासियत है इस मेले की क्यों आते हैं जाग देवजी पर ईटीव संवाददाता हेमराज शर्मा मुख्यालय से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर जाकर इस मेले की पड़ताल की यह मेला नेवज नदी किनारे एक प्राचीन मंदिर देवनारायण भगवान का जहां पर तीन दिवसीय मेला कई वर्षों से चला आ रहा है जहां पर आज भी लोग वही परंपरा अनुसार खरीदारी करते हैं----




आपने अपने जीवन साथी को लेकर कई ख्‍वाब संजोए होंगे. एक अच्‍छे पार्टनर के इंतजार में हो सकता है आपने लंबा समय भी बिता दिया हो, लेकिन
राजस्थान के झालावाड इलाके में एक मेला लगता है जहां पान-गुलाल से ही जीवनसाथी चुन लिया जाता है.



दरअसल, दिपावली पर्व के निकट ही यह मैला आयोजित होता है . मान्‍यता के अनुसार युवक और युवतियां अपने मनपसंद जीवन साथी की तलाश के लिए ही यहां आते हैं. वे पान खिलाकर अपने प्रेम का इजहार करते हैं और दिल जीतने की कोशिश करते हैं.

बांसुरी की आवाज पर थिरकते हैंt कदम
मेले में विवाह के योग्य युवक और युवतियां सज-धजकर आते हैं, लेकिन दिल जीतने का काम इतना आसान भी नहीं होता. इसके लिए युवक जहां हाथ में बांसुरी थामे मांदर की थाप पर थिरकते हैं, वहीं युवतियां घूंघट की ओट से अपने प्रियतम को रिझाती हैं.



भागकर शादी करने की है प्रथा
इन मेलों में आने वाले मौज-मस्ती का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते. मेले में झूलों से लेकर आइस्क्रीम और गोलगप्पों का बाजार सजा है. स्थानीय ग्रामीण कहते हैं कि जागदेव गाँव मेले को लेकर मान्यता है कि इस मौके पर युवक-युवती एक दूसरे को पान खिला दें या एक दूसरे के लगा दें तो मान लिया जाता है कि दोनों में प्रेम हो गया है. इतना ही नहीं वे दोनों मौका पाकर भाग जाते हैं और विवाह बंधन में बंध जाते हैं. भाग कर शादी करने के कारण ही इस पर्व को जागदेव गाँव कहा जाता है. जानने के लिए सीधे जगदेव जी गांव मेले में पहुंचे और ईटीवी संवाददाता हेमराज शर्मा ने जब इस हकीकत को देखने का प्रयास किया कहा जाता है जिन युवक-युवतियों की शादी वैशाख महीने में हो जाती है लड़कियों के माता पिता उन लड़कियों को नहीं भेजते हैं ग्रामीण अंचल में कुछ इस प्रकार की कुर्तियां नजर आई कहा जाता है शादी होने के बाद लड़की को 1 वर्ष में ही भेजा जाता या 3 वर्ष बाद भेजा जाता है और लड़कियों को भेजा नहीं जाता है ससुराल तो लड़कियां इस मेले का इंतजार करती है जगदेव जी मेला है नदी के किनारे आयोजित होता है आसपास के बड़े-बड़े पेड़ पौधे लगे हुए हैं मेले में किसी रेस्टोरेंट होटल पर मिल जाएंगे वहीं से ही फरार हो जाते हैं और यहां की पहले से चली आ रही मान्यता है अब मान्यता क्या हकीकत है क्या सही है पर कहा जाता है कि इस मेले में आने के बाद प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ वर्षों भर इंतजार करता है इस मेले के लिए और दोनों इस मेले में मिल जाते हैं तो यहीं से अपना जीवन साथी का जीवन सफल यात्रा को शुरू करते हैं पौराणिक परंपराओं के अनुसार आ रहा है इस मेले में आज ही के दिन अमावस्या पर्व पर ज्वारे, गन्ने, कुमुदिनी के फूल मटकी , मिट्टी का कलश दीपक मोरपंखी तीर तलवार खंजर लाठी घूंगरू घंटियां
खरीदते हैं यहां का मुख्य मेला है और यही यहां का मुख्य बाजार है जोकि वर्ष में सिर्फ एक बार 3 दिन लगता है जिसमें दूरदराज सहित विभिन्न क्षेत्रों के लोग बड़ी संख्या में आकर्षक का केंद्र बना हुआ रहता है अभी वर्तमान में कुछ ही दूरी पर जावर थाना क्षेत्र पुलिस प्रशासन द्वारा यहां पर लगभग कहीं दर्जनों पुलिस जाब्ता इस मेले में सुरक्षा व्यवस्था के लिए लगाया जाता है फिर भी कहीं ना कहीं चुपके से कोई प्रेमी वाली घटना आज भी घट जाती है इसका पता तक नहीं लग पाता है आज भी कोई परिवर्तन नहीं यह मेला उसी पद्धति के आधार पर परंपराओं अनुसार लगता है राजस्थान के झालावाड़ जिले के थाना क्षेत्र जावर सिर्फ कुछ ही दूरी पर जगदेव जी गांव मेला परंपरा अनुसार हर वर्ष की भांति वर्ष में केवल एक बार 3 दिन के लिए लगता है मानस मेले में लॉक वर्षों से टिक टिक लगाए हुए बैठे रहते हैं यह मेला कुंभ तो नहीं कहा जा सकता है पर इन लोगों के लिए ग्रामीणों के लिए आज भी आदिवासी इस क्षेत्र में लोग उसी वेशभूषा और परंपराओं के अनुसार अपना जीवन यापन करते हैं वहीं शिक्षा के अभाव में क्षेत्र काफी पिछड़ा हुआ है मानो या ना मानो सब मिलजुल कर इस दीपावली पर्व को बड़े हर्ष उल्लास के साथ मनाते हैं गांव में आज भी लोग उसी अंदाज में दीपावली मनाते हैं
Last Updated : Oct 28, 2019, 7:24 AM IST
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