ETV Bharat / state

छत्तीसगढ़ में प्राचीन काल से ईंटों के मंदिर की परंपरा, इष्टिका कला से बने मंदिरों की खासियत जानिए

brick temples in Chhattisgarh छत्तीसगढ़ में ईंट से मंदिरों का निर्माण 5वीं से लेकर 7वीं शताब्दी के मध्य सोमकालीन और कलचुरी राजाओं के शासनकाल में कराया गया था. छत्तीसगढ़ में नदी तट पर रेत और मिट्टी से बनाए गए ईटों से ही मंदिर बनाए जाने की प्राचीन परंपरा रही है. सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर को ईटों का ताजमहल भी कहा जाता है.

Tradition of brick temples in Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ में प्राचीन काल से ईंटों के मंदिर की परंपरा
author img

By

Published : Nov 24, 2022, 5:17 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ में अधिकांश मंदिरों का निर्माण प्राचीन और पुरातन समय में ईंटों (Tradition of brick temples in Chhattisgarh) से हुआ है. जिसमें कई मंदिर आज भी खड़े हुए हैं और कुछ मंदिर देखरेख के अभाव में बुरी हालत में पड़े हुए हैं. छत्तीसगढ़ में ईंट से निर्मित इन मंदिरों का निर्माण 5वीं से लेकर 7वीं शताब्दी के मध्य सोमकालीन और कलचुरी राजाओं के शासनकाल में कराया गया था. प्राचीन काल में नदियों को भगवान मानकर उसके आसपास मंदिरों का निर्माण किया जाता था. सोमकालीन और कलचुरी शासन के राजाओं ने आस्था के केंद्र के रूप में इन मंदिरों का निर्माण करवाया था. ऐसा कहा जाता है कि उस समय पत्थरों का अभाव था और नदी के किनारे आसानी से रेत और मिट्टी मिल जाती थी. जिससे शिल्पकारों ने ईटों से मंदिरों का निर्माण किया था. brick temples in Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में इष्टिका कला से बने मंदिरों की खासियत
छत्तीसगढ़ भारतीय मंदिर वास्तु कला का प्रतिनिधित्व करने वाला राज्य: भारतीय मंदिर वास्तु कला (specialty of temples made of Ishtika art) का प्रतिनिधित्व करने वाले छत्तीसगढ़ में ईटों के मंदिरों की परंपरा मिलती है. इसे इष्टिका कला भी कहा जाता है. छत्तीसगढ़ में नदी संस्कृति का प्रमुख हिस्सा रही है. नदी तट पर रेत और मिट्टी से बनाए गए ईटों से ही मंदिर बनाए जाने की प्राचीन परंपरा रही है. भारत में ऐसी अनूठी परंपरा शायद ही कहीं देखने को मिलेगी. यहां महानदी के तट पर अनेक सांस्कृतिक धरोहर हैं, जिसमें अधिकांश ईटों के मंदिर हैं.

यह भी पढ़ें: अब दिल की बीमारियां दूर करेगी छत्तीसगढ़ की कुसुम भाजी

इष्टिका कला से बने मंदिरों की खासियत: पुरातत्वविद और इतिहासकार हेमू यदु ने बताया कि "पूरे भारतवर्ष में छत्तीसगढ़ ही एक ऐसा प्रदेश है. जहां पर मंदिर वास्तुकला में ईटों से मंदिर का निर्माण अधिक हुआ है. महानदी के उद्गम से लेकर महानदी के समागम तक नदियों के किनारे ईट के मंदिर देखने को मिलते हैं." उन्होंने बताया कि "छत्तीसगढ़ में महानदी के किनारे लगभग ऐसे 20 मंदिरों का निर्माण हुआ है, जो ईंट से बने हुए हैं. वर्तमान समय के ईंट की तुलना में यह ईट अलग हुआ करता था. प्राचीन समय का ईट 8 इंच लंबा 6 इंच चौड़ा और 4 इंच की ईट की मोटाई हुआ करती थी. ईट के मंदिर को बनाने के लिए चौखट में पत्थर का बेस बनाया जाता था."


आइए जानते हैं कौन कौन से मंदिर कहां बनाए गए हैं: प्रदेश के प्रमुख मंदिरों में राजिव लोचन मंदिर राजीम, रामचंद्र मंदिर राजिम, लक्ष्मण मंदिर सिरपुर और राम मंदिर सिरपुर, लक्ष्मणेश्वर मंदिर खरौद, केंवटिन मंदिर पुजारीपाली, सिद्धेश्वर मंदिर पलारी, धोबनी शिव मंदिर, अड़भार का शिव मंदिर, गढ़ धनोरा का मंदिर, मल्हार का शिव मंदिर आदि प्रमुख मंदिर है. ईटों पर अनूठी शिल्पकारी इन मंदिरों की विशेषता है. छत्तीसगढ़ में पांचवी शताब्दी से लेकर सातवीं शताब्दी तक अनेक ईटों के मंदिर का निर्माण हुआ है. सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर को ईटों का ताजमहल भी कहा जाता है.

रायपुर: छत्तीसगढ़ में अधिकांश मंदिरों का निर्माण प्राचीन और पुरातन समय में ईंटों (Tradition of brick temples in Chhattisgarh) से हुआ है. जिसमें कई मंदिर आज भी खड़े हुए हैं और कुछ मंदिर देखरेख के अभाव में बुरी हालत में पड़े हुए हैं. छत्तीसगढ़ में ईंट से निर्मित इन मंदिरों का निर्माण 5वीं से लेकर 7वीं शताब्दी के मध्य सोमकालीन और कलचुरी राजाओं के शासनकाल में कराया गया था. प्राचीन काल में नदियों को भगवान मानकर उसके आसपास मंदिरों का निर्माण किया जाता था. सोमकालीन और कलचुरी शासन के राजाओं ने आस्था के केंद्र के रूप में इन मंदिरों का निर्माण करवाया था. ऐसा कहा जाता है कि उस समय पत्थरों का अभाव था और नदी के किनारे आसानी से रेत और मिट्टी मिल जाती थी. जिससे शिल्पकारों ने ईटों से मंदिरों का निर्माण किया था. brick temples in Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में इष्टिका कला से बने मंदिरों की खासियत
छत्तीसगढ़ भारतीय मंदिर वास्तु कला का प्रतिनिधित्व करने वाला राज्य: भारतीय मंदिर वास्तु कला (specialty of temples made of Ishtika art) का प्रतिनिधित्व करने वाले छत्तीसगढ़ में ईटों के मंदिरों की परंपरा मिलती है. इसे इष्टिका कला भी कहा जाता है. छत्तीसगढ़ में नदी संस्कृति का प्रमुख हिस्सा रही है. नदी तट पर रेत और मिट्टी से बनाए गए ईटों से ही मंदिर बनाए जाने की प्राचीन परंपरा रही है. भारत में ऐसी अनूठी परंपरा शायद ही कहीं देखने को मिलेगी. यहां महानदी के तट पर अनेक सांस्कृतिक धरोहर हैं, जिसमें अधिकांश ईटों के मंदिर हैं.

यह भी पढ़ें: अब दिल की बीमारियां दूर करेगी छत्तीसगढ़ की कुसुम भाजी

इष्टिका कला से बने मंदिरों की खासियत: पुरातत्वविद और इतिहासकार हेमू यदु ने बताया कि "पूरे भारतवर्ष में छत्तीसगढ़ ही एक ऐसा प्रदेश है. जहां पर मंदिर वास्तुकला में ईटों से मंदिर का निर्माण अधिक हुआ है. महानदी के उद्गम से लेकर महानदी के समागम तक नदियों के किनारे ईट के मंदिर देखने को मिलते हैं." उन्होंने बताया कि "छत्तीसगढ़ में महानदी के किनारे लगभग ऐसे 20 मंदिरों का निर्माण हुआ है, जो ईंट से बने हुए हैं. वर्तमान समय के ईंट की तुलना में यह ईट अलग हुआ करता था. प्राचीन समय का ईट 8 इंच लंबा 6 इंच चौड़ा और 4 इंच की ईट की मोटाई हुआ करती थी. ईट के मंदिर को बनाने के लिए चौखट में पत्थर का बेस बनाया जाता था."


आइए जानते हैं कौन कौन से मंदिर कहां बनाए गए हैं: प्रदेश के प्रमुख मंदिरों में राजिव लोचन मंदिर राजीम, रामचंद्र मंदिर राजिम, लक्ष्मण मंदिर सिरपुर और राम मंदिर सिरपुर, लक्ष्मणेश्वर मंदिर खरौद, केंवटिन मंदिर पुजारीपाली, सिद्धेश्वर मंदिर पलारी, धोबनी शिव मंदिर, अड़भार का शिव मंदिर, गढ़ धनोरा का मंदिर, मल्हार का शिव मंदिर आदि प्रमुख मंदिर है. ईटों पर अनूठी शिल्पकारी इन मंदिरों की विशेषता है. छत्तीसगढ़ में पांचवी शताब्दी से लेकर सातवीं शताब्दी तक अनेक ईटों के मंदिर का निर्माण हुआ है. सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर को ईटों का ताजमहल भी कहा जाता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.