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रायपुर का टाउन हॉल कैसे बना 'वंदे मातरम भवन', जानें, आजादी की रणनीति से कनेक्शन

राजधानी रायपुर के कलेक्टर परिसर में स्थित टाउन हॉल आजादी के परवानों की गवाह रहा है. 1907 में इसी हॉल में पंडित रविशंकर शुक्ल के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की बैठक रखी गई थी. राजनीतिक दृष्टिकोण के साथ ही स्वतंत्रता के लिए भी यह काफी महत्वपूर्ण था. बैठक में वंदे मातरम गीत को लेकर चर्चा हुई थी.

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वंदे मातरम भवन
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Published : Aug 14, 2021, 10:26 PM IST

रायपुर: ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांति शुरू हुई तो उसकी चिंगारी छत्तीसगढ़ में भी भड़की. राज्य की सरजमी पर छत्तीसगढ़ के माटी पुत्रों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था. जन जागरण रैली और सभाओं के जरिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद किया करते थे. वैसे तो आजादी की गवाह शहर की कई इमारतें हैं, लेकिन मध्य क्षेत्र में स्थित टाउन हॉल आज भी स्वतंत्रता की गवाही देते सीना चौड़ा कर खड़ा हुआ है. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आजादी की रणनीतियां इसी टाउन हॉल में बनाया करते थे. अब यह टाउन हॉल वंदे मातरम के नाम से जाना जाता है.

वंदे मातरम भवन

राजधानी रायपुर के कलेक्टर परिसर में स्थित टाउन हॉल आजादी के परवानों की गवाह रहा है. जानकारों की मानें तो रानी विक्टोरिया की सिल्वर जुबली पर छत्तीसगढ़ के राजाओं ने चंदा इकट्ठा कर इस हॉल का निर्माण किया था. कुछ समय बाद ही यह अंग्रेजी शासन के खिलाफ रणनीति तैयार करने का केंद्र बन गया. शहर के बीच स्थित होने की वजह से देश की आजादी के लिए होने वाली तमाम बैठकें और गतिविधियां होती थी. यहां पंडित रविशंकर शुक्ल, वामन राव लाखे जैसे तमाम बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी देश की आजादी के लिए रणनीतियां बनाया करते थे.

देश की आजादी का गवाह बरगद का पेड़!

जब हॉल में पहली बार गूंजा वंदे मातरम

रायपुर के इतिहासकार आचार्य रमेन्द्र नाथ मिश्र जी बताते हैं कि 1907 में इसी हॉल में पंडित रविशंकर शुक्ल के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की बैठक रखी गई थी. राजनीतिक दृष्टिकोण के साथ ही स्वतंत्रता के लिए भी यह काफी महत्वपूर्ण था. बैठक में वंदे मातरम गीत को लेकर चर्चा हुई थी. इस बीच स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में गाने को लेकर वैचारिक मतभेद भी हुए थे, लेकिन बैठक में सभी ने इस गाने पर सहमति जताई. उसके बाद पहली बार इस हॉल में वंदे मातरम की गूंज सुनाई दी.

जागृति का केंद्र बिंदु बना टाउन हॉल

इतिहासकार मिश्र बताते हैं कि देशभर में 1905 के बाद स्वतंत्रता की आवाज फैलने लगी थी, लेकिन रायपुर के लिए 1907 काफी महत्वपूर्ण रहा. क्योंकि 1907 में टाउन हॉल में वंदे मातरम का कार्यक्रम हुआ. उसके बाद से लोगों में जागृति आई. उस दौरान रायपुर के तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के अलावा आम लोग भी मौजूद थे. उसके बाद धीरे-धीरे शहर से लेकर गांव तक लोग एकजुट होने शुरू हो गए. लोगों में अंग्रेजों के प्रति डर था. वह धीरे-धीरे खत्म होता गया और भारतीयों ने अपनी आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया.

राज्यपाल ने दिया वंदे मातरम नाम

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ तमाम रणनीतियां टाउन हॉल और उसके सामने गार्डन में बना करती थी. इतिहासकार रविंद्र नाथ मिश्र कहते हैं कि 1907 में कार्यक्रम से पहले वंदे मातरम गीत गाया गया था. इसी समय पहली बार टाउन हॉल में वंदे मातरम गुंजा. वे कहते हैं कि 2008 में टाउन हॉल में वंदे मातरम की शताब्दी समारोह मनाया जा रहा था. उस समय राज्यपाल, मंत्री और महापौर भी मौजूद थे. राज्यपाल ने इस हॉल का नाम वंदे मातरम भवन रखने की घोषणा की थी.

रायपुर: ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांति शुरू हुई तो उसकी चिंगारी छत्तीसगढ़ में भी भड़की. राज्य की सरजमी पर छत्तीसगढ़ के माटी पुत्रों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था. जन जागरण रैली और सभाओं के जरिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद किया करते थे. वैसे तो आजादी की गवाह शहर की कई इमारतें हैं, लेकिन मध्य क्षेत्र में स्थित टाउन हॉल आज भी स्वतंत्रता की गवाही देते सीना चौड़ा कर खड़ा हुआ है. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आजादी की रणनीतियां इसी टाउन हॉल में बनाया करते थे. अब यह टाउन हॉल वंदे मातरम के नाम से जाना जाता है.

वंदे मातरम भवन

राजधानी रायपुर के कलेक्टर परिसर में स्थित टाउन हॉल आजादी के परवानों की गवाह रहा है. जानकारों की मानें तो रानी विक्टोरिया की सिल्वर जुबली पर छत्तीसगढ़ के राजाओं ने चंदा इकट्ठा कर इस हॉल का निर्माण किया था. कुछ समय बाद ही यह अंग्रेजी शासन के खिलाफ रणनीति तैयार करने का केंद्र बन गया. शहर के बीच स्थित होने की वजह से देश की आजादी के लिए होने वाली तमाम बैठकें और गतिविधियां होती थी. यहां पंडित रविशंकर शुक्ल, वामन राव लाखे जैसे तमाम बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी देश की आजादी के लिए रणनीतियां बनाया करते थे.

देश की आजादी का गवाह बरगद का पेड़!

जब हॉल में पहली बार गूंजा वंदे मातरम

रायपुर के इतिहासकार आचार्य रमेन्द्र नाथ मिश्र जी बताते हैं कि 1907 में इसी हॉल में पंडित रविशंकर शुक्ल के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की बैठक रखी गई थी. राजनीतिक दृष्टिकोण के साथ ही स्वतंत्रता के लिए भी यह काफी महत्वपूर्ण था. बैठक में वंदे मातरम गीत को लेकर चर्चा हुई थी. इस बीच स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में गाने को लेकर वैचारिक मतभेद भी हुए थे, लेकिन बैठक में सभी ने इस गाने पर सहमति जताई. उसके बाद पहली बार इस हॉल में वंदे मातरम की गूंज सुनाई दी.

जागृति का केंद्र बिंदु बना टाउन हॉल

इतिहासकार मिश्र बताते हैं कि देशभर में 1905 के बाद स्वतंत्रता की आवाज फैलने लगी थी, लेकिन रायपुर के लिए 1907 काफी महत्वपूर्ण रहा. क्योंकि 1907 में टाउन हॉल में वंदे मातरम का कार्यक्रम हुआ. उसके बाद से लोगों में जागृति आई. उस दौरान रायपुर के तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के अलावा आम लोग भी मौजूद थे. उसके बाद धीरे-धीरे शहर से लेकर गांव तक लोग एकजुट होने शुरू हो गए. लोगों में अंग्रेजों के प्रति डर था. वह धीरे-धीरे खत्म होता गया और भारतीयों ने अपनी आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया.

राज्यपाल ने दिया वंदे मातरम नाम

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ तमाम रणनीतियां टाउन हॉल और उसके सामने गार्डन में बना करती थी. इतिहासकार रविंद्र नाथ मिश्र कहते हैं कि 1907 में कार्यक्रम से पहले वंदे मातरम गीत गाया गया था. इसी समय पहली बार टाउन हॉल में वंदे मातरम गुंजा. वे कहते हैं कि 2008 में टाउन हॉल में वंदे मातरम की शताब्दी समारोह मनाया जा रहा था. उस समय राज्यपाल, मंत्री और महापौर भी मौजूद थे. राज्यपाल ने इस हॉल का नाम वंदे मातरम भवन रखने की घोषणा की थी.

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