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दिवाली पर मां लक्ष्मी को वस्त्र अर्पित करने की है परंपरा, जानिये धान की बाली के झूमर और कोसे के कपड़े क्यों हैं शुभ?

दिवाली का त्योहार मनाने के लिए रायपुर समेत पूरा देश तैयार है. त्योहार के लेकर रायपुर के चौक-चौराहे धान की बाली से बने झूमर या झालरों से पट गए हैं. साथ ही कपड़ों का बाजार भी सज गया है. इस पर्व में कोसा के कपड़ों का काफी महत्व है, इसलिए लोग कोसा के कपड़े पहनकर मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं.

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Published : Nov 1, 2021, 5:33 PM IST

Updated : Nov 1, 2021, 10:57 PM IST

The market is filled with chandeliers and whipped clothes of paddy earrings
धान की बाली के झूमर और कोसा कपड़ों से पटा बाजार

रायपुर : राजधानी रायपुर सहित पूरे देश में दीपों का पर्व दीपावली (Festival Of Lights Diwali) मनाने को लेकर तैयारी लगभग पूरी कर ली गई है. रायपुर में दीपावली में कोसे के परिधान और धान की बाली से बने झूमर और झालर का अपना अलग ही महत्व है. कोसे के परिधान पहनकर दीपावली में पूजन करना शुभ माना गया है. ऋतु परिवर्तन (Season Change) के साथ ही इन दिनों नई फसल (New Crop) का आगमन होता है. इनमें धान की बालियों को काटकर झूमर या झालर बनाकर व्यावसायिक प्रतिष्ठान और घरों में लगाए जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि इनमें मां लक्ष्मी का वास होता है और अन्न की पूजा होती है.

धान की बाली के झूमर और कोसा कपड़ों से पटा बाजार
जगह-जगह सज गया पहटा का बाजार

दीपावली को लेकर बाजार भी सज गया है. बाजार में रौनक भी दिख रही है. चौक-चौराहों पर धान की बाली से बने झूमर और झालर, जिसे पहटा भी कहा जाता है उसका बाजार भी सज गया है. लोग बाजार से धान की बाली से बने झूमर और झालर खरीद रहे हैं. इसे अपने घरों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के द्वार पर लगा रहे हैं. यह शुभता का प्रतीक है, लेकिन झूमर और झालर के इस बाजार में ग्राहकी कम देखने को मिली. पिछले साल भी कोरोना के नाम पर बाजार से रौनक गायब थी.


पूरी तरह सज गया कपड़ों का बाजार

दीपावली शुरुआत धनतेरस (Dhanteras) के दिन से ही मानी जाती है. धनतेरस के बाद नरक चौदस, लक्ष्मी पूजा, गोवर्धन पूजा और भाई दूज का पर्व आता है. इसको लेकर भी कपड़ों का बाजार पूरी तरह से सज गया है. बाजार की रौनक भी बढ़ गई है. दीपावली में कोसे के परिधान का अपना एक अलग ही महत्व होता है. कोसे के वस्त्र पहनकर दीपावली में पूजन करना बहुत ही शुभ माना गया है. इसे लेकर दुकानदारों का कहना है कि कोसे के कपड़ों का बाजार पिछले साल की तुलना में इस साल अच्छा है. दीपावली को देखते हुए ग्राहकों द्वारा कोसे से बने कपड़ों की डिमांड भी बढ़ गई है. कोसे की साड़ियां ट्रेडिशनल होने के साथ ही ग्राहकों के द्वारा टेंपल वर्क और जरी वर्क वाली साड़ियां पसंद की जा रही हैं.


ऋतु परिवर्तन और नई फसल की खुशी में मनाई जाती है दिवाली

दिवाली का प्रमुख त्योहार ऋषि और कृषि प्रधान देश में ऋतु परिवर्तन और नवीन फसलों के आगमन की खुशी में मनाया जाता है. इस पूरे त्योहार में धान की बालियों से बने झालर-झूमर और विभिन्न आकृतियों में धान की बालियों से सुंदर-सुंदर कलाकृतियों को सभी घरों और व्यावसायिक परिसरों में सजाया जाता है. सारे पूजा विधान में धान सप्तधान्य और धान की बालियों का विशेष उपयोग किया जाता है. महालक्ष्मी के पूजन में नवग्रह बनाते समय यज्ञ में धान का उपयोग होता है. घर के दरवाजे पर माता लक्ष्मी के आगमन के लिए द्वार पर सुंदर आकृति के धान की बालियों का झालर या झूमर लगाने की परंपरा है. इस भारतीय परंपरा को पिंजरा या पहटा भी कहा जाता है. यह झालर बहुत ही सुंदर दिखाई पड़ते हैं. इनका आकर्षण इनके नए-नए आकृतियों व कलाकृति से नैनाभिराम रहता है. वर्तमान समय में लोगों को यह बहुत आकर्षित करते हैं. इसके साथ ही इनको बनाने वाले श्रमिकों को भी दीपावली में अच्छी आमदनी हो जाती है. इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलता है.


माता लक्ष्मी को वस्त्र अर्पित करने की है सनातन परंपरा

दीपावली के महालक्ष्मी पूजन में माता लक्ष्मी को वस्त्र अर्पित करने की एक बहुत ही सुंदर और सनातन परंपरा है. सिद्ध मंत्रों के द्वारा विष्णु प्रिया धन की अधिष्ठात्री देवी माता लक्ष्मी को वस्त्र अर्पित किये जाते हैं. कोसे की साड़ियां बहुत ही आकर्षक सुंदर होती हैं. दिवाली एक शुभ त्योहार है. कोसे के बने कुर्ता-पजामा, साड़ियां और धोती आदि बहुत ही सुंदर लगते हैं. दीपावली के पावन पर्व पर नए वस्त्रों को धारण करने का विधान रहा है. यह कोसे के वस्त्र बहुत ही आकर्षक और दृष्टि प्रिय रहते हैं. इन वस्त्रों के माध्यम से कोसा उत्पादकों और श्रमिकों को भी लाभ मिलता है. इस बार दिवाली शुभ गुरुवार के दिन मनाई जा रही है. कोसे का रंग गुरु ग्रह से मेल खाता है. महालक्ष्मी को यह कोसे का वस्त्र बहुत प्रिय है. इनको चढ़ाने पर माता की कृपा और आशीर्वाद भरपूर मिलता है.

रायपुर : राजधानी रायपुर सहित पूरे देश में दीपों का पर्व दीपावली (Festival Of Lights Diwali) मनाने को लेकर तैयारी लगभग पूरी कर ली गई है. रायपुर में दीपावली में कोसे के परिधान और धान की बाली से बने झूमर और झालर का अपना अलग ही महत्व है. कोसे के परिधान पहनकर दीपावली में पूजन करना शुभ माना गया है. ऋतु परिवर्तन (Season Change) के साथ ही इन दिनों नई फसल (New Crop) का आगमन होता है. इनमें धान की बालियों को काटकर झूमर या झालर बनाकर व्यावसायिक प्रतिष्ठान और घरों में लगाए जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि इनमें मां लक्ष्मी का वास होता है और अन्न की पूजा होती है.

धान की बाली के झूमर और कोसा कपड़ों से पटा बाजार
जगह-जगह सज गया पहटा का बाजार

दीपावली को लेकर बाजार भी सज गया है. बाजार में रौनक भी दिख रही है. चौक-चौराहों पर धान की बाली से बने झूमर और झालर, जिसे पहटा भी कहा जाता है उसका बाजार भी सज गया है. लोग बाजार से धान की बाली से बने झूमर और झालर खरीद रहे हैं. इसे अपने घरों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के द्वार पर लगा रहे हैं. यह शुभता का प्रतीक है, लेकिन झूमर और झालर के इस बाजार में ग्राहकी कम देखने को मिली. पिछले साल भी कोरोना के नाम पर बाजार से रौनक गायब थी.


पूरी तरह सज गया कपड़ों का बाजार

दीपावली शुरुआत धनतेरस (Dhanteras) के दिन से ही मानी जाती है. धनतेरस के बाद नरक चौदस, लक्ष्मी पूजा, गोवर्धन पूजा और भाई दूज का पर्व आता है. इसको लेकर भी कपड़ों का बाजार पूरी तरह से सज गया है. बाजार की रौनक भी बढ़ गई है. दीपावली में कोसे के परिधान का अपना एक अलग ही महत्व होता है. कोसे के वस्त्र पहनकर दीपावली में पूजन करना बहुत ही शुभ माना गया है. इसे लेकर दुकानदारों का कहना है कि कोसे के कपड़ों का बाजार पिछले साल की तुलना में इस साल अच्छा है. दीपावली को देखते हुए ग्राहकों द्वारा कोसे से बने कपड़ों की डिमांड भी बढ़ गई है. कोसे की साड़ियां ट्रेडिशनल होने के साथ ही ग्राहकों के द्वारा टेंपल वर्क और जरी वर्क वाली साड़ियां पसंद की जा रही हैं.


ऋतु परिवर्तन और नई फसल की खुशी में मनाई जाती है दिवाली

दिवाली का प्रमुख त्योहार ऋषि और कृषि प्रधान देश में ऋतु परिवर्तन और नवीन फसलों के आगमन की खुशी में मनाया जाता है. इस पूरे त्योहार में धान की बालियों से बने झालर-झूमर और विभिन्न आकृतियों में धान की बालियों से सुंदर-सुंदर कलाकृतियों को सभी घरों और व्यावसायिक परिसरों में सजाया जाता है. सारे पूजा विधान में धान सप्तधान्य और धान की बालियों का विशेष उपयोग किया जाता है. महालक्ष्मी के पूजन में नवग्रह बनाते समय यज्ञ में धान का उपयोग होता है. घर के दरवाजे पर माता लक्ष्मी के आगमन के लिए द्वार पर सुंदर आकृति के धान की बालियों का झालर या झूमर लगाने की परंपरा है. इस भारतीय परंपरा को पिंजरा या पहटा भी कहा जाता है. यह झालर बहुत ही सुंदर दिखाई पड़ते हैं. इनका आकर्षण इनके नए-नए आकृतियों व कलाकृति से नैनाभिराम रहता है. वर्तमान समय में लोगों को यह बहुत आकर्षित करते हैं. इसके साथ ही इनको बनाने वाले श्रमिकों को भी दीपावली में अच्छी आमदनी हो जाती है. इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलता है.


माता लक्ष्मी को वस्त्र अर्पित करने की है सनातन परंपरा

दीपावली के महालक्ष्मी पूजन में माता लक्ष्मी को वस्त्र अर्पित करने की एक बहुत ही सुंदर और सनातन परंपरा है. सिद्ध मंत्रों के द्वारा विष्णु प्रिया धन की अधिष्ठात्री देवी माता लक्ष्मी को वस्त्र अर्पित किये जाते हैं. कोसे की साड़ियां बहुत ही आकर्षक सुंदर होती हैं. दिवाली एक शुभ त्योहार है. कोसे के बने कुर्ता-पजामा, साड़ियां और धोती आदि बहुत ही सुंदर लगते हैं. दीपावली के पावन पर्व पर नए वस्त्रों को धारण करने का विधान रहा है. यह कोसे के वस्त्र बहुत ही आकर्षक और दृष्टि प्रिय रहते हैं. इन वस्त्रों के माध्यम से कोसा उत्पादकों और श्रमिकों को भी लाभ मिलता है. इस बार दिवाली शुभ गुरुवार के दिन मनाई जा रही है. कोसे का रंग गुरु ग्रह से मेल खाता है. महालक्ष्मी को यह कोसे का वस्त्र बहुत प्रिय है. इनको चढ़ाने पर माता की कृपा और आशीर्वाद भरपूर मिलता है.

Last Updated : Nov 1, 2021, 10:57 PM IST
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