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पतित पावनी मां गंगा जो दूर करती है सभी मनुष्यों के पाप ! - Maa Ganga

पंडितों और हिंदू शास्त्रों (Pundits and Hindu scriptures) के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि, भागीरथ (Bhagirath) ने अपने पूर्वजों के कल्याण के लिए घोर तपस्या की जिसके बाद इस तपस्या से खुश होकर ब्रह्माजी (Brahmaji) ने गंगा की धारा (Ganges river stream) को अपने कमंडल से मुक्त किया. फिर भोलेनाथ (Bholenath) ने उसे अपनी जटा में समेटकर रखा. लगातार भागीरथी जी की प्रार्थना से भगवान शिव (Lord Shiva) ने गंगा को अपनी जटाओं से मुक्त कर भूमि पर उतारा. पुण्य सलिला, पापमोचिनी और सदियों से मोक्ष दिलाने वाली गंगा को पतित पावनी भी कहा जाता है

The impure holy mother Ganga
पतित पावनी मां गंगा
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Published : Sep 26, 2021, 10:39 PM IST

हैदराबाद/ रायपुर: हिंदू धर्म में गंगा नदी (river ganga in hinduism) को सबसे पवित्र नदी माना गया है. इस नदी के जल को सबसे पुण्य और पवित्र माना जाता है. इसलिए इसे हिंदू धर्म के हर अनुष्ठान और पूजा पाठ में शामिल किया जाता है. गंगा को मोक्षदायिनी नदी (Mokshadayini river to Ganga) भी कहा जाता है. हिंदू मान्यताओं को मुताबिक ज्येष्ठ महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा (Ganga Dussehra) का त्यौहार मनाया जाता है. इस दिन मां गंगा का भूमि पर अवतरण भी हुआ था.

गंगा दशहरा के दिन मां गंगा का हुआ अवतरण

ऐसा माना जाता है कि गंगा दशहरा के दिन मां गंगा का पृथ्वी पर उद्गम हुआ था. पुराणों के मुताबिक, वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि को मां गंगा स्वर्गलोक से सबसे पहले महादेव की जटाओं में पहुंची तथा फिर धरती गंगा दशहरा के दिन धरती पर उतरीं. मां गंगा का दूसरा जन्म ऋषि जह्नु के यहां हुआ था. हिंदू शास्त्रों के मुताबिक मां गंगा पर्वतों के राजा हिमवान तथा उनकी पत्नी मीना की बेटी हैं. इस आधार पर गंगा माता पार्वती की बहन हुई. कई शास्त्रों के मुताबिक मां गंगा को ब्रह्मा के कुल का बताया गया है.

भागीरथ की तपस्या से गंगा धरतीलोक पर आई

पंडितों और हिंदू शास्त्रों के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि, ऋषि भागीरथ ने अपने पूर्वजों के कल्याण के लिए घोर तपस्या की जिसके बाद इस तपस्या से खुश होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से मुक्त किया. फिर भोलेनाथ ने उसे अपनी जटा में समेटकर रखा. लगातार भागीरथी जी की प्रार्थना से भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं से मुक्त कर भूमि पर उतारा. भगीरथ ने जब गंगा को धरती पर लाने का संकल्प लिया तब उनके वंश में कोई नहीं था. उन्होंने दिन रात तपस्या की. उसके बाद भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हुए. तब जाकर भागीरथ ने दो वर मांगे. पहला पितरों की मुक्ति के लिए गंगाजल और दूसरा कुल को आगे बढ़ाने वाला पुत्र. ब्रह्मा ने उनकों दोनों वर दिए. साथ ही यह भी कहा कि गंगा का वेग संभालने के लिए हे भागीरथ तुमको भगवान महादेव से सहायता लेनी होगी. जिसके बाद भागीरथ ने फिर तपस्या की और भगवान भोले नाथ को खुश किया. फिर जाकर भगवान भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर गंगा को बिंदुसर की ओर छोड़ा. गंगा यहां से सात धाराओं के रूप में प्रवाहित हुईं. इस तरह पृथ्वी पर मां गंगा का अवतरण हुआ.

पुण्य सलिला, पापमोचिनी और सदियों से मोक्ष दिलाने वाली गंगा को पतित पावनी भी कहा जाता है

हैदराबाद/ रायपुर: हिंदू धर्म में गंगा नदी (river ganga in hinduism) को सबसे पवित्र नदी माना गया है. इस नदी के जल को सबसे पुण्य और पवित्र माना जाता है. इसलिए इसे हिंदू धर्म के हर अनुष्ठान और पूजा पाठ में शामिल किया जाता है. गंगा को मोक्षदायिनी नदी (Mokshadayini river to Ganga) भी कहा जाता है. हिंदू मान्यताओं को मुताबिक ज्येष्ठ महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा (Ganga Dussehra) का त्यौहार मनाया जाता है. इस दिन मां गंगा का भूमि पर अवतरण भी हुआ था.

गंगा दशहरा के दिन मां गंगा का हुआ अवतरण

ऐसा माना जाता है कि गंगा दशहरा के दिन मां गंगा का पृथ्वी पर उद्गम हुआ था. पुराणों के मुताबिक, वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि को मां गंगा स्वर्गलोक से सबसे पहले महादेव की जटाओं में पहुंची तथा फिर धरती गंगा दशहरा के दिन धरती पर उतरीं. मां गंगा का दूसरा जन्म ऋषि जह्नु के यहां हुआ था. हिंदू शास्त्रों के मुताबिक मां गंगा पर्वतों के राजा हिमवान तथा उनकी पत्नी मीना की बेटी हैं. इस आधार पर गंगा माता पार्वती की बहन हुई. कई शास्त्रों के मुताबिक मां गंगा को ब्रह्मा के कुल का बताया गया है.

भागीरथ की तपस्या से गंगा धरतीलोक पर आई

पंडितों और हिंदू शास्त्रों के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि, ऋषि भागीरथ ने अपने पूर्वजों के कल्याण के लिए घोर तपस्या की जिसके बाद इस तपस्या से खुश होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से मुक्त किया. फिर भोलेनाथ ने उसे अपनी जटा में समेटकर रखा. लगातार भागीरथी जी की प्रार्थना से भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं से मुक्त कर भूमि पर उतारा. भगीरथ ने जब गंगा को धरती पर लाने का संकल्प लिया तब उनके वंश में कोई नहीं था. उन्होंने दिन रात तपस्या की. उसके बाद भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हुए. तब जाकर भागीरथ ने दो वर मांगे. पहला पितरों की मुक्ति के लिए गंगाजल और दूसरा कुल को आगे बढ़ाने वाला पुत्र. ब्रह्मा ने उनकों दोनों वर दिए. साथ ही यह भी कहा कि गंगा का वेग संभालने के लिए हे भागीरथ तुमको भगवान महादेव से सहायता लेनी होगी. जिसके बाद भागीरथ ने फिर तपस्या की और भगवान भोले नाथ को खुश किया. फिर जाकर भगवान भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर गंगा को बिंदुसर की ओर छोड़ा. गंगा यहां से सात धाराओं के रूप में प्रवाहित हुईं. इस तरह पृथ्वी पर मां गंगा का अवतरण हुआ.

पुण्य सलिला, पापमोचिनी और सदियों से मोक्ष दिलाने वाली गंगा को पतित पावनी भी कहा जाता है

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