रायपुर : टीबी एक संक्रामक बीमारी है. इसे ट्यूबरकुलोसिस के नाम से भी जाना जाता है. टीबी की बीमारी माइक्रोबैक्टेरियम और ट्यूबरक्लोसिस नाम के बैक्टीरिया के कारण होता है. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान (TB and corona disease affect the lungs) डेल्टा वेरिएंट ने प्रदेश में तबाही मचा दी थी. दूसरी लहर के दौरान बहुत से लोग तेजी से संक्रमित हुए थे. इसमें टीबी के भी कई मरीज संक्रमित हुए थे, जिनकी स्थिति काफी गंभीर बनी हुई थी. कोरोना संक्रमित होने के बाद बहुत से लोग ऐसे हैं, जिन्हें बाद में टीबी की बीमारी हुई.
दूसरी लहर के दौरान डेल्टा वेरिएंट सीधा सांसों से फेफड़े पर अटैक कर रहा था. इससे टीबी मरीजों में यह काफी गंभीर बना रहा. दूसरी लहर के बाद टीबी संक्रमित मरीजों में कोरोना संक्रमण कितना घातक साबित हुआ? किस तरह इसका इलाज संभव हुआ? इस बारे में ईटीवी भारत ने मेकाहारा की रेस्पिरेट्री मेडिसिन डिपार्टमेंट की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ देवी ज्योति दास से खास बातचीत की. आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा...
टीबी का सही समय पर इलाज नहीं होने से फेफड़ों को गंभीर नुकसान : मेकाहारा की रेस्पिरेट्री मेडिसिन डिपार्टमेंट की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ देवी ज्योति दास ने बताया कि टीबी और कोविड दोनों ही फेफड़ों की बीमारी है. दोनों में संक्रमण हमारी नाक से फेफड़ों तक फैलता है. टीबी का इलाज अगर इनिशियल स्टेज में ही शुरू किया गया तो 6 महीने में यह बीमारी ठीक हो जाती है. दिक्कत ज्यादा इसीलिए आती है क्योंकि लोग शुरुआती सिम्टम्स को नजरअंदाज कर देते हैं. जब हमारे पास आते हैं तो 2-3 महीने का वक्त गुजर चुका होता है. उस दौरान टीबी गंभीर हो जाता.
दवा से टीबी के कीटाणु तो मर जाते हैं, लेकिन जो दाग और कॉम्प्लिकेशंस होते हैं. वह लंबे समय तक रह जाते हैं. इसीलिए जब भी टीबी के सिम्टम्स नजर आए, तुरंत हमें डॉक्टर को दिखाकर उसका इलाज कराना चाहिए.
टीबी और कोरोना खतरनाक, फेफड़े को रिकवर होने में लग रहा लंबा समय : अगर किसी को टीबी और कोरोना एक साथ है तो दोनों का संक्रमण काफी ज्यादा खतरनाक उस मरीज के लिए साबित हुआ है. कोरोना के सेकंड वेब डेल्टा में काफी ज्यादा लोग सीरियस हुए थे. अगर किसी व्यक्ति को कोरोना और टीबी एक साथ हो रहा था तो मौत के चांसेस भी बहुत ज्यादा बढ़ जा रहे थे. इस वजह से सरकार ने कोरोना की दूसरे लहर के दौरान गाइडलाइन भी जारी की थी. इसके तरह जितने टीबी के मरीज थे, उनमें कोरोना संक्रमण है या नहीं इसकी जांच कराई जानी थी.
टीबी और कोरोना की वजह से खासी में खून आना और फेफड़ों में छेद की समस्या : जिसे गंभीर कोरोना हुआ था, उसमें भी फेफड़ा 6-8 महीने के बाद रिकवर हो जा रहा था. सीवियर टीबी के दौरान मरीज के फेफड़े में छेद बन जाता है, जो परमानेंट हो जाता है. हमने दूसरी लहर के दौरान यह देखा कि जिसको कोरोना और टीबी की बीमारी दोनों एक साथ थी, उनके फेफड़े में परमानेंट डैमेज हुआ था. बहुत सारे लोगों को खांसी के दौरान खून आना, लगातार खांसी होना और फेफड़े में खड्डे हो जाने की समस्या देखने को मिली.
यह भी पढ़ें : जनता कर्फ्यू को दो साल पूरे, जानिए कितनी बदली रायपुरवासियों की जिंदगी ?
आज भी ऐसे हमारे पास बहुत से मरीज आते हैं, जिनको कोरोना और टीबी की बीमारी एक साथ हुई थी. आज तक उनके फेफड़ों की स्थिति काफी गंभीर है. कोरोना और टीबी फेफड़ों के लिए कितना खतरनाक साबित होता है? कोरोना और टीबी के मिक्सचर फेफड़ो में कितने गंभीर छेद कर सकते हैं? मेकाहारा के रेस्पिरेट्री मेडिसिन डिपार्टमेंट में इसको लेकर रिसर्च चल रहा है. आने वाले दिनों में इसके रिजल्ट सामने आएंगे.
हर साल प्रदेश में बढ़ रहे टीबी के मरीज : प्रदेश में लगातार टीवी के मरीज बढ़ते जा रहे हैं. आंकड़ों की बात करें तो 2018 में कुल टीबी मरीजों की संख्या प्रदेश में 41 हजार 295 थी. साल 2019 में टीबी मरीजों की संख्या बढ़कर 43 हजार 485 हो गई. वहीं 2020 में कोरोना की वजह से टीवी के मरीजों की 9 महीने तक स्क्रीनिंग ही नहीं हो पाई. इससे 2020 में टीबी संक्रमित मरीजों की संख्या 30 हजार 972 हुई थी. अनुमान लगाया जा रहा है कि साल 2021 में मरीजों की संख्या ज्यादा बढ़ी है. हालांकि अभी तक 2021 के आंकड़े नहीं आए हैं.