वाराणसीः आज हम धार्मिक अखाड़ों की बात करेंगे. उन अखाड़ों की, जो सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए नागा साधुओं की फौज तैयार करता है. इनको अस्त्र-शस्त्र के साथ शास्त्र की शिक्षा दी जाती है. मान्यता है कि धर्म की रक्षा के लिए इसकी शुरुआत आदि शंकराचार्य ने छठवीं शताब्दी में की थी. कुल 7 अखाड़ों की स्थापना के साथ शुरू हुई परंपरा अब धीरे-धीरे 13 अखाड़ों तक पहुंच चुकी है. इनमें से आज हम जूना अखाड़े पर चर्चा करेंगे.
अखाड़ों में क्या होता है?
कुंभ की पेशवाई से लेकर कुंभ में महामंडलेश्वर के चयन तक में जूना अखाड़ा अगवानी करता है. जूना अखाड़े में साधु-संन्यासियों से लेकर नागा साधुओं को शस्त्र और शास्त्र में पारंगत किया जाता है. यहां से तैयार नागा साधुओं को धर्म रक्षार्थ अलग-अलग राज्यों और जिलों में तैनात किया जाता है.
जूना अखाड़े की स्थापना
जूना अखाड़े का हेड क्वार्टर या मुख्य मठ वाराणसी के हनुमान घाट में स्थित है. जहां पर साधु-संन्यासियों की दिनचर्या स्नान ध्यान से शुरू होती है. फिर धीरे-धीरे गुरु सेवा, पूजा-पाठ, भोजन और अध्ययन के साथ आगे बढ़ती है. जूना अखाड़े की स्थापना 12वीं शताब्दी में बताई जाती है. धर्म के जानकारों के अनुसार, सन 1259 में जूना अखाड़े की स्थापना का उल्लेख मिलता है. सरकारी दस्तावेजों में इसका रजिस्ट्रेशन 1860 में कराया गया. शाही स्नान के समय अखाड़ों में होने वाले मतभेद को देखते हुए 1954 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का गठन भी किया गया.
क्यों हुआ अखाड़ों का निर्माण ?
शैव संप्रदाय के 7 अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा है. इस अखाड़े में 5 लाख से ज्यादा नागा साधु और महामंडलेश्वर संन्यासी हैं. बताया जाता है कि जब बौद्ध संप्रदाय और अन्य संप्रदायों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा था और सनातन धर्म पर अत्याचार हो रहे थे, तब आदि गुरु शंकराचार्य ने मठ-मंदिरों को तोड़े जाने से बचाने के लिए अखाड़ों की स्थापना की. साधु-संन्यासियों को नागा साधु के रूप में तैयार कर उन्हें शस्त्र के साथ शास्त्र की शिक्षा देकर मजबूत बनाया गया. यह युद्ध कौशल में पारंगत होकर सनातन धर्म को नुकसान पहुंचाने वालों के ऊपर कहर बनकर टूटने लगे और तब से ही अखाड़ा परंपरा अनवरत चली आ रही है.
अखाड़ों पर चढ़ रहा आधुनिकता का रंग
समय बदलने के साथ आधुनिकता का रंग अखाड़ों पर भी पड़ रहा है. आज अखाड़ों के साधु-संन्यासी टेक्नोलॉजी और डिजिटल तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं. नागा संन्यासी पहले सामाजिक तौर पर लोगों के सामने भले नहीं जाते थे, लेकिन अब बदलते सामाजिक परिवेश में इनके रहन-सहन में आधुनिकता का रंग देखने को मिलता है. मोबाइल-लैपटॉप, महंगे हेडफोन और तमाम हाई-फाई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए अब साधु-संन्यासी दिख जाते हैं. पुरानी परंपरा में जहां महंत, संत जैसे पद ही होते थे. वहीं अब समय के साथ अध्यक्ष, महामंत्री जैसे पदों का होना भी मठों और अखाड़ों पर आधुनिकता के रंग चढ़ने का सबूत देता है.
शैव धारा है दशनामी संप्रदाय
शैव संप्रदाय के अंतर्गत ही दशनामी संप्रदाय आता है. इन दशनामी संप्रदायों के नाम- गिरी, पर्वत, सागर, पुरी, भारती, सरस्वती, वन, अरण्य, तीर्थ और आश्रम हैं. 7 अखाड़ों में से जूना अखाड़ा इनका खास अखाड़ा है. किसी भी अखाड़े में महामंडलेश्वर का पद सबसे ऊंचा होता है. जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी हैं. इस अखाड़े से तमाम देशी-विदेशी भक्त जुड़े हुए हैं, जिनकी संख्या करोड़ों में है.
अखाड़े में महामंडलेश्वर
जूना अखाड़े के काम का तरीका अखाड़ों से अलग है, क्योंकि यहां देशी-विदेशी दोनों तरह के भक्तों को न सिर्फ प्रवेश की अनुमति है बल्कि शिक्षा-दीक्षा भी उन्हें दी जाती है. अन्य अखाड़ों की तरह इस अखाड़े का भी अपना अलग नियम कानून है. साधु-संन्यासियों की गलतियों पर सजा देने से लेकर उन्हें निष्कासित करने और अन्य कड़े फैसले लेने के लिए अखाड़ा का अलग कानून चलता है, जिसका फैसला महामंडलेश्वर और अखाड़ा परिषद मिल कर लेते हैं.
पदों का बंटवारा
यह अखाड़ा 52 परिवारों से जुड़कर बना है, जिसमें सभी साधु-संन्यासी हैं. सभी बड़े सदस्यों की एक कमेटी बनती है. इस अखाड़े में कुल 17 लोगों की कैबिनेट है. 17 लोगों में काशी के चार श्रीमंत थानापति, चार सेक्रेटरी, चार रमता पंच, चार श्री महंत, चार अष्ट कौशल महंत और एक सभापति मिलकर यह कैबिनेट बनाने हैं. ये सभी लोग अखाड़े के लिए सभापति का चुनाव करते हैं. ये चुनाव कुंभ मेले के दौरान होते हैं.
12 साल करनी होती है सेवा
अखाड़े की चार मढ़ियां हैं. अखाड़ों की चारों मढ़ियों में महंत से लेकर अष्टकौशल महंत और कोतवाल तक नियुक्त किए जाते हैं. इनसे अलग-अलग क्षेत्र के अनुसार महंत होते हैं. इस अखाड़े में पदों का चयन श्रीमहंत या महामंडलेश्वर के द्वारा ही किया जाता है. यह सबसे उच्च पद होता है और कम से कम 12 सालों तक गुरु सेवा करने के बाद किसी भी संत या साधु को पदों पर तैनाती दी जाती है.
अखाड़े में पद
हर अखाड़े के मुख्य मठ में अलग-अलग पदों पर नियुक्ति होती है जो इस प्रकार हो सकती है- श्री महंत, अष्ट कौशल महंत, थानापति, श्रीमहंत थानापति, सभापति, रमता पंच, शम्भू पंच, भंडारी, कोतवाल, कोठारी, कारोबारी, पुजारी. यह सभी पदों पर नियुक्तियां मठ के कामकाज और अन्य देखरेख के लिए होती हैं, जिस पद पर जिस साधु संन्यासी की नियुक्ति होती है. उस क्षेत्र में किए गए कार्य और लिया गया फैसला उसका ही मान्य होता है. बिना उसकी अनुमति के निर्धारित कार्य क्षेत्र में कोई न दखलअंदाजी कर सकता है और न कोई प्रवेश कर सकता है.
अखाड़े में शामिल होने के नियम
जूना अखाड़े के महंत सोमदत्त ने बताया कि अखाड़े में शामिल होने के अलग-अलग नियम हैं, लेकिन मुख्य नियम सामाजिक कुरीतियों और समाज में व्याप्त अन्य मोह माया को छोड़ना महत्वपूर्ण है. अखाड़ा में शामिल संतों का कहना है कि अखाड़े में जो चाहे वह नहीं शामिल हो सकता है. इसके लिए 10 साल से ज्यादा का वक्त अपने गुरु की सेवा में देना होता है. गुरु सेवा करते-करते जब आप सच्चे संत और महंत के रूप में आगे बढ़ते हैं, तब अखाड़े के श्री महंत कुंभ मेले में आपको साधु के रूप में स्वीकार करते हैं.
नागा साधु का होता है पिंडदान
शुरुआत में संन्यास की दीक्षा गुरु के द्वारा दी जाती है. मंत्रोच्चार से शरीर पर समस्त चीजों को धारण करवाया जाता है. इसके बाद विजया संस्कार होता है, जिसमें संन्यास लेने वाले व्यक्ति का पिंडदान और अन्य आहुतियां करवाकर उसे सांसारिक मोह माया से दूर कर संन्यासी बनाने के क्रम में आगे बढ़ाया जाता है.
नागा साधु की दीक्षा
वहीं आहूतित की दीक्षा मिलने के बाद नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया शुरू होती है. उस वक्त धर्म ध्वजा के नीचे सभी साधुओं को एकत्रित करके जिसको भी नागा दीक्षा दी जाती है. उसका एक अलग गुरु बनाया जाता है. उनका गुरु दिगंबर बनता है. फिर उन्हें अलग से दीक्षा दी जाती है. फिर अलग-अलग गुरु अच्छे नागाओं को चुनकर उनकी अखाड़ों में ड्यूटी लगाते हैं. आज भी अखाड़ों में लेखी से ज्यादा वचनों का पालन होता है.
धर्म रक्षा के लिए नागा रहते हैं हमेशा तैयार
जूना अखाड़े के संन्यासी आत्मानंद ने बताया कि नागा साधु आमतौर पर समाज में नहीं दिखाई देते, लेकिन वह सनातन धर्म और राष्ट्र धर्म के लिए 24 घंटे तैयार रहते हैं. उनकी भारत में 5 लाख से अधिक की फौज है. जो किसी भी संकट को झेलने के लिए तैयार रहती है.