रायपुर: कोरोना काल अपने साथ कई परेशानियां लेकर आया. इस महामारी के दौर में सबसे ज्यादा दिक्कतें गरीब परिवारों के हिस्से में आई. गरीब तबके के लोगों की आत्मनिर्भरता दूसरों पर पहले से ज्यादा बढ़ने लगी. रोजगार के सारे दरवाजे बंद हो गए. संक्रमण काल के बीच ETV भारत आपको एक ऐसे परिवार से मिलाने जा रहा है, जो कई सालों से गरीबी की मार झेल रहा है. जहां माता-पिता काम तो करते थे, लेकिन एक हादसे ने दोनों का रोजगार छीन लिया. बच्चे पढ़ना तो चाहते हैं, लेकिन उन्हें पढ़ाने के लिए मां-बाप के पास पैसे नहीं है. दो वक्त की रोटी भी अगर नसीब हो जाए तो उनके लिए ये किस्मत की बात है.
राजधानी रायपुर के WRS कॉलोनी की बस्ती में रहने वाले एक परिवार को कोरोना संक्रमण ने सड़क पर ले आया. बालमति कुम्हार बताती हैं कि कोरोना काल से पहले वे एक अस्पताल में साफ-सफाई का काम करती थी. उनके पति रूपधर कुम्हार रिक्शा चलाते थे, लेकिन एक एक्सिडेंट में उनका एक हाथ टूट गया. इलाज के लिए पैसे नहीं होने के कारण बालमति के पति का हाथ ठीक नहीं हो सका. लॉकडाउन के दौरान उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी की एक वक्त का खाना भी उन्हें मुश्किल से मिल पाता था. बालमति बच्चों की शिक्षा को लेकर जागरूक है, लेकिन आर्थिक अभाव के चलते वह बच्चों को भी पढ़ाने में असमर्थ थीं.
कोरोना काल ने भीख मांगने को किया मजबूर
बालमति ने बताया कि परिवार की परेशानी को देख कई दिनों तक उन्हें लगा कि घर पर खाली बैठने से परेशानियों का हल नहीं निकल पाएगा. पैसों के लिए कुछ करना होगा, लेकिन वे जाती भी तो कहा जाती. बालमति और रूपधर के दो बच्चे हैं, जिनमें से एक 5वीं क्लास में है और दूसरा 6वीं में. बालमति ने बताया कि वे पैसे के लिए सड़क पर बैठी भीख भी मांगा करती थी, जिससे कई लोग पैसे दे जाते थे. 50-100 रुपए में कैसे भी कर उनका गुजारा हो जाया करता था.
सड़क में बैठकर पढ़ाई करती थी बालमति की बेटी
एक दिन रास्ते पर बैठी बालमति के ऊपर एक लड़के की नजर पड़ी, जिसने मदद के लिए हाथ बढ़ाया और बालमति को उनकी कमाई के लिए एक वेट मशीन यानी वजन करने वाली मशीन लाकर दे दी, जिससे उनकी आमदनी हो सके. बालमति रोज सुबह 4 बजे से वेट मशीन लेकर सड़क में बैठ जाया करती थी. जिससे सुबह मॉर्निग वॉक पर निकलने वाले लोग कई बार उसकी वेट मशीन से वजनकर उसे मनचाहे पैसे दे दिया करते थे. बालमति के परिवार का दाना-पानी तो चल जाता था, लेकिन बच्चों की पढ़ाई के लिए माता-पिता दोनों ही चिंतित रहते थे. बालमती की बेटी टीना अपनी मां के साथ दिन भर सड़क पर बैठी रहती थी. उनकी मां वेट मशीन के माध्यम से घर के लिए पैसे कमाती थी, तो साथ में ही बैठकर टीना अपनी पढ़ाई करती थी. बालमति बताती हैं कि वे बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहती हैं. लोग कहते थे कि बच्चों को काम करने के लिए किसी होटल में भेज दो, लेकिन बालमति ने किसी की नहीं सुनी और बच्चों को पढ़ाने की ठानी. बालमति ने लोगों को जवाब दिया कि वह भीख मांग लेगी लेकिन बच्चों को काम करने के लिए नहीं भेजेंगी.
संस्था ने की बालमति की मदद
बालमति बताती हैं कि थोड़े दिन बीत जाने के बाद उनके पास एक संस्था के लोग पहुंचे जिन्होंने बालमति के परिवार को मदद का आश्वासन दिया. राजधानी रायपुर की समाज सेवी संस्था 'कुछ फर्ज हमारा भी' के सदस्य नितिन सिंह राजपूत और सारिका सिंह राजपूत ने बालमति के घर राशन पहुंचाया और लगातार उनके परिवार के संपर्क में रहे. जिसके बाद बालमति के परिवार की स्थिति थोड़ी सुधरने लगी.
संस्था ने किया राशन का इंतजाम
'कुछ फर्ज हमारा भी' संस्था की संचालिका सारिका राजपूत बताती हैं कि लगभग 15 दिन पहले टीम के एक मेंबर ने फोन किया और उन्हें बताया कि एक परिवार है जिसके पास खाने तक के लिए पैसे नहीं हैं. उन्हें जैसे ही इसकी जानकारी मिली, वे तुरंत उनके लिए सूखा राशन के साथ पका हुआ खाना भी लेकर मौके पर पहुंचे. सारिका ने बताया कि बालमति के परिवार की हालत देखकर उन्हें लगा कि इन्हें ज्यादा मदद की जरूरत है.
बालमति के परिवार को आशियाना देने की कोशिश
उन्होंने बताया कि बालमति के परिवार को घर का किराया भी दिया गया. धीरे-धीर संस्था ने बालमति के परिवार की भरपुर मदद की और उनके घर में जरूरत की सारी चीजें पहुंचाई. सारिका का कहना है कि वे कोशिश कर रहे हैं कि जल्द ही बालमति को एक घर भी मिल जाए. संस्था ने बालमति को एक ठेला दिया है, जिसमें खाने-पीने की चीजें बेचने के लिए रखी गई हैं. जिससे उनके परिवार का गुजारा हो सके. बालमति का परिवार किराए के घर में रहता है, जो पहले ही टूटा-फूटा है, वे कहती हैं कि अब उन्हें एक छोटे से आशियाने की बस जरूरत है.