रायपुर: छत्तीसगढ़ के लिए नक्सल समस्या नासूर बन चुका है. जिससे निपटने के लिए पूर्ववर्ती भाजपा सरकार सहित वर्तमान की कांग्रेस सरकार के भी पसीने छूट रहे हैं. जो कांग्रेस विपक्ष में रहते हुए नक्सल समस्या के समाधान के लिए नक्सलियों और वहां के स्थानीय लोगों, बुद्धिजीवियों, जनप्रतिनिधियों, समाजसेवी और पत्रकारों से बात कर समाधान खोजने की बात कहती आ रही थी, वहीं कांग्रेस सत्ता में आने के बाद यू टर्न लेते हुए नक्सलियों से बातचीत की बात से इनकार कर रही है. कांग्रेस सरकार बस्तर में नक्सलियों से जंग के लिए बस्तर बटालियन बनाने की तैयारी में हैं.
कांग्रेस का कहना था कि उन्होंने नक्सलियों से बातचीत की कभी बात ही नहीं कही थी. यह जरूर कहा था कि वहां के स्थानीय लोगों, बुद्धिजीवी, जनप्रतिनिधियों, समाजसेवी और पत्रकारों से चर्चा कर नक्सल समस्या के समाधान के लिए रणनीति बनाई जाएगी. अब कांग्रेस सरकार ने नक्सलियों से बातचीत के रास्ते बंद कर दिए हैं. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अब यह निर्णय लिया है कि छत्तीसगढ़ पुलिस के अंतर्गत विशेष सुरक्षा बल गठन कर बस्तर में तैनाती की जाए. अब नक्सलियों के खिलाफ वहां की स्थानीय युवाओं को खड़ा किया जाएगा.
'अहिंसा के रास्ते पर चलने वाली कांग्रेस, अब हथियार उठाने की तैयारी में'
सीएम भूपेश बघेल के इस निर्णय का कांग्रेस ने स्वागत किया है. कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रदेश अध्यक्ष शैलेष नितिन त्रिवेदी का कहना है कि पुलिस के विशेष सुरक्षाबल के गठन से नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में मदद मिलेगी साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा. सरकार का यह निर्णय इस ओर भी इशारा करता है कि अब अहिंसा के रास्ते पर चलने वाली कांग्रेस नक्सल समस्या के समाधान के लिए हथियार उठाने की तैयारी में है.
भूपेश बघेल के इस कदम को लेकर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने का कहना है कि बटालियन का गठन करना ही इस बात की और इशारा करता है कि नक्सल समस्या से निपटना कांग्रेस सरकार के बूते की बात नहीं है. विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस हमेशा तत्कालीन भाजपा सरकार पर यह आरोप लगाती रही कि नक्सल समस्या के समाधान के लिए राज्य की भाजपा सरकार नक्सलियों से बातचीत क्यों नहीं कर रही है.
'तत्कालीन बीजेपी सरकार ने किया था बस्तर बटालियन का गठन'
सच्चिदानंद उपासने ने कहा कि अब सत्ता में आते ही कांग्रेस सरकार को भी बस्तर बटालियन का गठन करना पड़ रहा है जैसा कि पूर्व की भाजपा सरकार ने किया था और SPO(स्पेशल पुलिस ऑफिसर) का गठन किया था. इसमें स्थानीय नवजवानों को भर्ती कर रोजगार दिया गया था. उपासने ने कहा कि ऐसा नक्सलवाद क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति की जानकारी के लिए किया गया था. लेकिन तत्कालीन सरकार के इस निर्णय को कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. जिसके बाद इसे भंग कर दिया गया जिसे आदिवासी अभी भूले नहीं है.
उपासने ने कहा कि आज नक्सलियों से निपटने के लिए प्रदेश की भूपेश सरकार CRPF के अतिरिक्त जवानों की मांग कर रही है. यही मांग जब पूर्व की भाजपा सरकार ने की थी, तो कांग्रेस ने इसका विरोध किया था. कांग्रेस ने पूर्व की भाजपा सरकार पर छत्तीसगढ़ पुलिस को महत्व न देते हुए सीआरपीएफ के जवानों को महत्त्व देने की बात कही थी. लेकिन बस्तर बटालियन गठन के निर्णय ने साफ कर दिया है कि पूर्व की भाजपा सरकार ने नक्सलियों से मोर्चा लेने के लिए बस्तरिया बटालियन गठन और SPO बनाए जाने का जो फैसला लिया था वह सही था. अब उसी रास्ते पर अब कांग्रेस चल रही है.
'छत्तीसगढ़ के ही युवा होंगे बस्तर बटालियन में शामिल'
हालांकि अब यह बात सामने आ रही है कि यह बटालियन CRPF के द्वारा नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ पुलिस के द्वारा गठित की जाएगी. पहले चर्चा थी कि सुरक्षा बल की एक अतिरिक्त बस्तरिया बटालियन का गठन किया जाएगा. जिस पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्पष्ट किया कि यह विशेष सुरक्षा बल छत्तीसगढ़ पुलिस का होगा जिसे बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा लेने के लिए तैनात किया जाएगा. इसमें बस्तर के युवाओं की भर्ती की जाएगी जिससे वहां की भौगोलिक सांस्कृतिक स्थिति सहित स्थानीय बोली का लाभ नक्सलियों से लड़ाई के दौरान मिलेगा.
CM बघेल ने सोशल मीडिया पर दी थी जानकारी
छत्तीसगढ़ पुलिस के विशेष दल के गठन की जानकारी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सोशल मीडिया के माध्यम से दी है. उन्होंने सोशल मीडिया पर किए अपने पोस्ट में कहा है कि, 'मैंने बस्तर में स्थानीय सुरक्षा बल के गठन की बात कही, तो कुछ लोगों को भ्रम हुआ कि यह अलग से गठित होने वाला सुरक्षा बल होगा. ऐसा नहीं है कि यह छत्तीसगढ़ पुलिस में ही विशेष भर्ती होगी. बस्तर की जनता की रक्षा के लिए बस्तर के ही युवाओं की भर्ती होगी. जिलों के स्तर पर नियुक्तियां होगी.'
मुख्यमंत्री ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को लिखा था पत्र
कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर सुझाव दिया था कि बस्तर के युवाओं को नक्सलियों से लड़ने का मौका दिया जाए. पत्र के माध्यम से बघेल ने अमित शाह से अतिरिक्त बस्तरिया बटालियन के गठन की मांग की थी. हालांकि अब तक इस पत्र का जवाब नहीं आया है. इस बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ पुलिस के विशेष दल के गठन की घोषणा की है. यानी केंद्रीय सुरक्षा बल की जगह स्थानीय सुरक्षा बल का गठन किया जाएगा.
'प्रदेश के युवाओं को मिलेगा रोजगार'
कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने बताया कि केंद्र सरकार ने CRPF के विशेष बटालियन बस्तरिया बटालियन का गठन किया था. लेकिन अब महसूस किया जा रहा है कि बस्तरिया बटालियन का एक अतिरिक्त बटालियन गठन किया जाए. सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि इस बीच राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि बस्तर के युवाओं को लेकर छत्तीसगढ़ पुलिस का विशेष बल गठन किया जाए. जिसका काम बस्तर क्षेत्र में शांति बहाल करना होगा. इस बल के गठन के बाद बस्तर युवाओं को रोजगार मिलेगा और उनकी प्रतिभा का उपयोग छत्तीसगढ़ की शांति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए होगा.
स्थानीय युवाओं के परिवारों को सुरक्षा मुहैया कराना सरकार के लिए होगी चुनौती
सरकार के लिए गए इस निर्णय के कई पहलू सामने आ रहे हैं. यदि अलग-अलग पहलुओं पर ध्यान दिया जाए, तो जहां एक ओर इससे नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा लेने में सुरक्षा बल को मदद मिलेगी. दूसरी ओर इस बटालियन में भर्ती होने वाले स्थानीय युवाओं और उनके परिवारों को सुरक्षा मुहैया कराना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. हाल ही में ये देखा जा रहा है कि नक्सलियों की नजर जवानों के परिवार पर भी जाने लगी है.
हाल की बात करें तो सुकमा में एक पुलिस परिवार को नक्सलियों ने उनके गांव से बाहर निकलने का फरमान सुना दिया. जिसके बाद इस परिवार को दूसरी जगह शरण लेनी पड़ी. इसके अलावा भी कई ऐसी घटनाएं हुई है, जिसमें स्थानीय पुलिस कर्मियों को नक्सलियों ने मौत के घाट उतार दिया.
'नफा-नुकसान दोनों पर देना होगा ध्यान'
रिटायर्ड ब्रिगेडियर प्रदीप यदु का कहना है कि सरकार की यह एक अच्छी पहल है लेकिन सरकार को इस कदम के नफा-नुकसान दोनों पर ध्यान देना होगा. जहां इससे नक्सलियों की लड़ाई में उन्हें स्थानीय बोली भौगोलिक परिस्थिति और संस्कृति का फायदा मिलेगा. तो वहीं भर्ती होने वाले युवाओं और उनके परिवार जनों को सुरक्षा मुहैया कराना सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती होगी.
'माटी की रक्षा में तैनात होने के बाद गलत रास्ते पर नहीं जाएंगे युवा'
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता वर्णिका शर्मा का कहना है कि बस्तरिया बटालियन का गठन 3-4 साल पहले किया गया था. जहां स्थानीय लोगों को भर्ती किया गया था. उन्हें नक्सलियों से लड़ाई के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है. उन्हें जंगल के अनुभव का लाभ मिलेगा. वर्णिका ने कहा कि अब वहां के स्थानीय नवयुवक हथियार विध्वंस के लिए नहीं, बल्कि रक्षा के लिए उठाएंगे. इससे उनमें आत्म गौरव की अनुभूति होगी और वे गलत रास्ते पर नहीं जाएंगे.
वर्णिका ने बताया कि नक्सली गोरिल्ला युद्ध करते हैं, जो धीमी गति से चलता रहता है और एक स्थान से दूसरे का बढ़ता जाता है. यही कारण है कि नक्सलियों पर नकेल कसने के लिए दो तरफा काम करना होगा. जहां एक तरफ उनसे बातचीत के रास्ते समस्या के समाधान के लिए पहल करनी होगी, तो वहीं दूसरी ओर सुरक्षा बल को तैनात कर उन्हें मुंहतोड़ जवाब भी देना होगा. जवानों की तैनाती सिर्फ बंदूक चलाने के लिए नहीं होती है, बल्कि वहां पर लोगों में सुरक्षा का माहौल तैयार करना भी प्रमुख काम होता है.
राजनीतिक मुद्दा बन चुकी है नक्सल समस्या
वरिष्ठ पत्रकार अनिल पुसदकर का कहना है कि इस तरह के बल के गठन से संभावित तौर पर नक्सल विरोधी अभियान को गति मिलेगी. पुसदकर ने कहा कि यदि नक्सली हमले में CRPF का जवान शहीद होता है, तो उसका प्रभाव स्थानीय स्तर पर लोगों पर नहीं पड़ता है. क्योंकि वे जवान अन्य राज्यों के होते हैं. वहीं बस्तर का जवान यदि शहीद होता है, तो उसकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया नक्सलियों के खिलाफ होती है.
पुसदकर ने कहा कि अब वर्तमान परिवेश में नक्सल समस्या राजनीतिक मुद्दा बन चुकी है. यह समस्या किसी भी राजनीतिक दल के आरोप-प्रत्यारोप का माध्यम बन गया है. हर पार्टी के घोषणा पत्र में नक्सल समस्या का समाधान करने का उल्लेख किया जाता है. लेकिन इसके बाद भी नक्सल समस्या कम होने की जगह कुछ जिलों से कई जिलों में फैल गई है. इस दौरान पुसदकर ने यह भी कहा कि आज बस्तर क्षेत्र के आदिवासी दो पार्टियों के बीच पिस रहे हैं. यदि वे नक्सलियों से बात करते हैं तो पुलिस उन्हें मारती है. अगर वे पुलिस से बात करते हैं तो नक्सली मुखबिर बताकर उन्हें मार देते हैं.
ग्रामीणों में डर बनाने के लिए नक्सली हत्या जैसी घटना को देते हैं अंजाम
पुसदकर ने कहा कि इसका दूसरा पहलू यह है कि यदि बेरोजगारी से तंग आकर कोई नक्सली बनता है, तो वह ज्यादा खतरनाक है. ऐसे में यदि स्थानीय युवाओं को भर्ती किया जाता है, तो इसका लाभ जरूर नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई लड़ने में मिलेगा. पुसदकर ने कहा कि पहले की वारदातों को देखा जाए, तो कहीं न कहीं सूचना तंत्र की खामियों की वजह से नक्सली कामयाब हुए हैं. ऐसे में यदि स्थानीय युवाओं को भर्ती किया जाता है, तो सूचना तंत्र भी मजबूत होगा. पिछले दिनों नक्सलियों के ग्रामीणों की एक के बाद एक हत्या को लेकर पुसदकर ने कहा कि नक्सली ग्रामीणों में डर बनाने के लिए इस तरह की वारदातों को अंजाम देते हैं. जिससे उनका डर भी बना रहे और उन्हें रसद भी मिलती रहे.
नक्सलियों के खिलाफ अब तक चलाए गए अभियान
- साल 2005 में सलवा जुडूम आंदोलन शुरू हुआ.
- इसकी अगुवाई वरिष्ठ कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा कर रहे थे. इस आंदोलन को तत्कालीन रमन सरकार ने समर्थन दिया और बाद में सरकार के सहयोग से ही आगे बढ़ा.
- दंतेवाड़ा बीजापुर जिलों में सलवा जुडूम का ज्यादा प्रभाव देखने को मिला.
- इस आंदोलन के दौरान राज्य सरकार ने आदिवासी युवकों को विशेष पुलिस अधिकारी (SPO) के रूप में जॉइनिंग देना शुरू किया और एसपीओ का यह दल नक्सलियों के खिलाफ हथियारबंद संघर्ष में उतर गया था.
- इन (SPO) स्पेशल पुलिस ऑफिसर में से तेजतर्रार जवानों की अलग कंपनी बनाई गई. जिसमे ज्यादातर जवान कोया जाति के थे, इसलिए इस ब्रिगेड को कोया कमांडो नाम दिया गया.
- देश दुनिया के कई मानवाधिकार संगठनों ने इस पर घोर आपत्ति जताई, आम आदिवासियों को इस तरह संघर्ष में झोंकने को लेकर सरकार की किरकिरी हुई. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने पूरे इस आंदोलन को अवैध घोषित कर दिया.
- जिसके बाद एसपीओ सिस्टम को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया गया. राज्य सरकार ने इन आदिवासी युवकों को बाद में छत्तीसगढ़ पुलिस में विधिवत ज्वाइनिंग दी.
- इसके अलावा नक्सलियों के खिलाफ केंद्र और राज्य सरकार की ज्वाइंट फोर्स ने ग्रीन हंट नाम से एक बड़ा ऑपरेशन चलाया.
- ग्रीन हंट ऑपरेशन के तहत फोर्स इन इलाकों में दाखिल होने में कामयाब रही जिन इलाकों पर अब तक सरकार और प्रशासन की पहुंच नहीं थी, हालांकि ग्रीन हंट पर भी आम आदिवासियों को मारने और उन्हें तंग करने का आरोप लगा. नक्सली आए दिन अपने बैनर पोस्टर में इस ऑपरेशन का विरोध करते रहे हैं.
- इसके अलावा छत्तीसगढ़ पुलिस और CRPF ने राज्य सरकार के साथ मिलकर विकास कार्यों में सहयोगात्मक रवैया अपनाकर नक्सलियों की कमर तोड़ने की भरपूर कोशिश की है.
- हाल ही में पुलिस ने दंतेवाड़ा में लोन वर्राटू अभियान छेड़ा है जिसके तहत भी काफी कामयाबी पुलिस के हाथ लगी है.
पढ़ें- SPECIAL: लाल आतंक का दंश झेल रहा छत्तीसगढ़, पक्ष और विपक्ष ने साधी चुप्पी
केंद्रीय पुलिस रिजर्व बल ने 2018 में एक बस्तरिया बटालियन का भी गठन किया था. इस बटालियन में बस्तर के स्थानीय युवकों को तवज्जो दी गई.क्योंकि बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में जितनी सफलता स्थानीय लोगों से मिल सकती है उतनी बाहर के आए जवानों को नहीं मिल सकती. क्योंकि बस्तर का 80 फीसदी इलाका काफी दुर्गम है. साथ ही अंदरूनी इलाकों में हल्बी और गोंडी जैसी बोलियां ही बोली और समझी जाती है, जो कि बाहर से आए जवानों के लिए परेशानी का सबब होती है.
पढ़ें- जवान ने की किसान की मदद, कोरोना काल मे CRPF कैंप से निकलकर बच्ची के लिए किया रक्तदान
इसके अलावा सरकार के द्वारा अलग-अलग मोर्चों पर भी लड़ाई लड़ी जा रही है. इसमें शिक्षा बेहद महत्वपूर्ण है. दंतेवाड़ा और बीजापुर जिलों में कई बड़े एजुकेशन सेंटर की स्थापना की गई है. इन दुर्गम इलाकों के बच्चों को राजधानी रायपुर में भी लाकर NEET और JEE एग्जाम की तैयारी कराई जा रही है. हाल के वर्षों में इस प्रयास में काफी कामयाबी भी मिलती नजर आई है.
पढ़ें- नक्सल उन्मूलन के लिए सीएम भूपेश ने लिखा केंद्र को पत्र, बस्तरिया बटालियन के गठन की भी मांग
बहरहाल अब स्पष्ट हो गया है कि प्रदेश में बस्तरिया बटालियन की जगह छत्तीसगढ़ पुलिस की बटालियन का गठन किया जाएगा. इसमें स्थानीय युवाओं की भर्ती होगी और उन्हें नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में उतारा जाएगा. लेकिन कांग्रेस सरकार की इस रणनीति से कितना लाभ मिलेगा यह तो आने वाले समय में स्पष्ट हो पाएगा.