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SPECIAL: लॉकडाउन के बाद बढ़ रहे बाल श्रमिक, पेट की खातिर काम करने को मजबूर

लॉकडाउन की वजह से निचले तबके के लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है. ऐसे में वो अपने बच्चों को काम करने के लिए भेज रहे हैं, जो एक गंभीर समस्या है साथ ही गैरकानूनी भी है. लगातार पैसों और रोजगार की कमी के कारण ऐसी स्थिति पैदा हुई है कि प्रदेश में चाइल्ड लेबर दोबारा दिखने लगे हैं.

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Published : Jun 26, 2020, 12:51 PM IST

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लॉकडाउन के बाद बढ़ रहे बाल श्रमिक

रायपुर: कोरोना वायरस और लॉकडाउन का प्रभाव हर वर्ग के लोगों पर पड़ा है. छोटे व्यापारियों का रोजगार भी लगभग खत्म हो गया है. इससे ठेला और रेहड़ी लगाने वाले लोग इन दिनों आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं. लॉकडाउन के दौरान लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर भी छत्तीसगढ़ अपने घर लौटे हैं. इनके पास भी फिलहाल कोई काम नहीं है. ऐसे में चाइल्ड लेबर की समस्या भी तेजी से सामने आई है. रोजगार की कमी और आर्थिक परेशानियों के कारण अब छोटे बच्चों को भी परिवार चलाने के लिए काम की भट्ठी में धकेला जा रहा है. राजधानी में लगातार चाइल्ड लेबर से जुड़े मामले सामने आ रहे हैं, जिसे लोग सरकार बदइंतजामी बता रहे हैं.

लॉकडाउन के बाद बढ़ रहे बाल श्रमिक

जिला कार्यक्रम अधिकारी अशोक कुमार पांडे ने बताया कि यह सही है कि लॉकडाउन की वजह से निचले तबके के लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है. ऐसे में वो अपने बच्चों को काम करने के लिए भेज रहे हैं, जो गैरकानूनी है. लगातार पैसों और रोजगार की कमी के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है कि प्रदेश में चाइल्ड लेबर दोबारा दिखने लगे हैं. छोटे व्यापारी मानते हैं कि कमजोर तबके पर लॉकडाउन की जोरदार मार पड़ी है. ऐसे में यह वर्ग बच्चों को काम पर भेजने के लिए मजबूर है.

प्रशासन को भी है खबर

ऐसा नहीं है कि प्रशासन को इसकी खबर नहीं है. प्रशासन ने इसे पहले ही भांप लिया था कि राजधानी में यह समस्या सिर उठा सकती है. कलेक्टर ने इसके लिए एक टास्क फोर्स भी बनाया है, जो देखता है कि कहीं भी कोई बच्चा मजदूरी न करे और शिकायतों पर एक्शन भी लेता है. नियमों के अनुसार 14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम कराना गैरकानूनी है. लेबर एक्ट, जेजे एक्ट, बाल श्रम प्रतिबंध कानून में इसके लिए प्रवधान भी है. जिन संस्थाओं में बच्चे काम करते पाए जाते हैं, उन्हें दंडित करने का भी प्रावधान है.

पढ़ें: CM भूपेश ने PM मोदी को लिखा पत्र, 'प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना' की तारीख आगे बढ़ाने की मांग

टास्क फोर्स कर रहा रेस्क्यू

रोजगार खो चुके लोग अपने छोटे-छोटे बच्चों को कहीं मजदूरी के लिए ना भेजें, इसके लिए चाइल्ड लाइन केयर काफी सतर्क है. लगातार लोगों और सार्वजनिक जगहों पर नजर रखी जा रही है, ताकि कहीं भी बाल श्रमिक काम न करें. चाइल्ड लाइन केयर टास्क फोर्स ने कुल 10 नाबालिगों को रेस्क्यू भी किया है. बच्चों को प्रशासन ने अपने संरक्षण में रखा है.

छत्तीसगढ़ में कई बाल गृह और आश्रम संचालित किए जा रहे हैं, ताकि चाइल्ड लेबर की पढ़ाई और पुनर्वास पर काम किया जा सके. साथ ही गरीब और निचले स्तर के परिवारों को बच्चे बोझ न लगें. सरकार को मजदूरों के लिए जल्द रोजगार के इंतजाम करने की जरूरत है. साथ ही लोगों को भी इस बात के प्रति भी जागरूक होना होगा कि बच्चों से काम करवाना अपराध है, इसे बढ़ावा न दें, बल्कि उनकी मदद करें ताकि देश की नींव मजबूत हो सके.

रायपुर: कोरोना वायरस और लॉकडाउन का प्रभाव हर वर्ग के लोगों पर पड़ा है. छोटे व्यापारियों का रोजगार भी लगभग खत्म हो गया है. इससे ठेला और रेहड़ी लगाने वाले लोग इन दिनों आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं. लॉकडाउन के दौरान लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर भी छत्तीसगढ़ अपने घर लौटे हैं. इनके पास भी फिलहाल कोई काम नहीं है. ऐसे में चाइल्ड लेबर की समस्या भी तेजी से सामने आई है. रोजगार की कमी और आर्थिक परेशानियों के कारण अब छोटे बच्चों को भी परिवार चलाने के लिए काम की भट्ठी में धकेला जा रहा है. राजधानी में लगातार चाइल्ड लेबर से जुड़े मामले सामने आ रहे हैं, जिसे लोग सरकार बदइंतजामी बता रहे हैं.

लॉकडाउन के बाद बढ़ रहे बाल श्रमिक

जिला कार्यक्रम अधिकारी अशोक कुमार पांडे ने बताया कि यह सही है कि लॉकडाउन की वजह से निचले तबके के लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है. ऐसे में वो अपने बच्चों को काम करने के लिए भेज रहे हैं, जो गैरकानूनी है. लगातार पैसों और रोजगार की कमी के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है कि प्रदेश में चाइल्ड लेबर दोबारा दिखने लगे हैं. छोटे व्यापारी मानते हैं कि कमजोर तबके पर लॉकडाउन की जोरदार मार पड़ी है. ऐसे में यह वर्ग बच्चों को काम पर भेजने के लिए मजबूर है.

प्रशासन को भी है खबर

ऐसा नहीं है कि प्रशासन को इसकी खबर नहीं है. प्रशासन ने इसे पहले ही भांप लिया था कि राजधानी में यह समस्या सिर उठा सकती है. कलेक्टर ने इसके लिए एक टास्क फोर्स भी बनाया है, जो देखता है कि कहीं भी कोई बच्चा मजदूरी न करे और शिकायतों पर एक्शन भी लेता है. नियमों के अनुसार 14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम कराना गैरकानूनी है. लेबर एक्ट, जेजे एक्ट, बाल श्रम प्रतिबंध कानून में इसके लिए प्रवधान भी है. जिन संस्थाओं में बच्चे काम करते पाए जाते हैं, उन्हें दंडित करने का भी प्रावधान है.

पढ़ें: CM भूपेश ने PM मोदी को लिखा पत्र, 'प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना' की तारीख आगे बढ़ाने की मांग

टास्क फोर्स कर रहा रेस्क्यू

रोजगार खो चुके लोग अपने छोटे-छोटे बच्चों को कहीं मजदूरी के लिए ना भेजें, इसके लिए चाइल्ड लाइन केयर काफी सतर्क है. लगातार लोगों और सार्वजनिक जगहों पर नजर रखी जा रही है, ताकि कहीं भी बाल श्रमिक काम न करें. चाइल्ड लाइन केयर टास्क फोर्स ने कुल 10 नाबालिगों को रेस्क्यू भी किया है. बच्चों को प्रशासन ने अपने संरक्षण में रखा है.

छत्तीसगढ़ में कई बाल गृह और आश्रम संचालित किए जा रहे हैं, ताकि चाइल्ड लेबर की पढ़ाई और पुनर्वास पर काम किया जा सके. साथ ही गरीब और निचले स्तर के परिवारों को बच्चे बोझ न लगें. सरकार को मजदूरों के लिए जल्द रोजगार के इंतजाम करने की जरूरत है. साथ ही लोगों को भी इस बात के प्रति भी जागरूक होना होगा कि बच्चों से काम करवाना अपराध है, इसे बढ़ावा न दें, बल्कि उनकी मदद करें ताकि देश की नींव मजबूत हो सके.

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