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SPECIAL: भूखों के 'भगवान', ये जहां होते हैं, वहां कोई खाली पेट नहीं सोता - खाने का कलेक्शन

रोटी बैंक ये एक ऐसा समूह है जिनका कोई नहीं उनका रोटी बैंक है. ये संस्था भूखों को भोजन कराने का काम करती है. ये खाने भी खुद बनाते है और खुद ही लोगों को बांटते भी है.

लोगों का सहारा रोटी बैंक
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Published : Jul 19, 2019, 11:08 PM IST

रायपुर: भूख से लोगों की जान जाने, बाढ़ की झकझोर देने वाली और इंसानियत पर सवाल उठाने करने वाली खबरों के बीच हम आपको ऐसे लोगों से मिलवाते हैं, जिन्होंने समाज में मानवता की परिभाषा को जिंदा रखा है. मिलिए राजधानी में भूखों का पेट भरने वाले ऐसे युवाओं से जिनके ग्रुप को 'रोटी बैंक' के नाम से जाना जाता है.

लोगों का सहारा रोटी बैंक

ऐसे जमाने में जब हर व्यक्ति मेहनत करके अपना पेट पाल रहा है, ये युवा न केवल खुद की जिंदगी जी रहे हैं बल्कि उन तमाम लोगों की भी भूख मिटाते हैं, जिनका कोई नहीं है. 'रोटी बैंक' की टोली में तकरीबन 12 युवा शामिल हैं. इसमें 9 साल से लेकर 47 साल तक के लोग शामिल हैं. ये लोग खुद खाना बनाते हैं और लोगों को बांटने जाते हैं.

कैसे हुई थी शुरुआत

  • रोटी बैंक की स्थापना वाराणसी के किशोर कांत तिवारी ने की थी.
  • पिछले साल नवंबर, दिसंबर से 'रोटी बैंक' का काम रायपुर में सक्रिय है. शुरू में लोग कम थे, टीम नहीं थी. इनके बारे में लोग पहले कम जानते थे. लेकिन अब पहचानने लगे हैं.
  • चूल्हे पर बनाते हैं खाना
  • खाना बनाने की तैयारी टोली के लोग शाम से ही करते हैं. पुरानी बस्ती में एक रूम किराए से लिया है. वहीं एकत्रित होकर सभी मिलकर चूल्हे पर खाना बनाते हैं. सभी अपनी योग्यता अनुसार एक दूसरे की मदद करते हैं.

ऐसे होती है फंडिंग

  • टोली के सदस्य, सदस्यता लेते समय 500 रुपये जमा करते हैं. इसके साथ ही ग्रुप के लोग अपनी आय में से एक निश्चित अमाउंट निकाल देते हैं, जिससे वक्त पड़ने पर उसका इस्तेमाल किया जा सके.
  • ग्रुप की अध्यक्ष पूनम अग्रवाल कहती हैं कि कुछ निश्चित दानदाता भी हैं, जो हर महीने दान देते हैं. जिससे पूरा खर्च चलता है.
  • पूनम बताती हैं कि 100 से ज्यादा दानदाता संस्था से जुड़े हैं. सभी कुछ न कुछ मदद जरूर करते हैं लेकिन फिर भी अपने लोगों को खाना खिलाने के लिए सिर्फ चावल और सब्जी से ही काम नहीं चलता.
  • वे बताते हैं कि इसके लिए हमें किराने का सारा सामान, पत्तल दोने, गाड़ियों में बार-बार लाना ले जाना पड़ता है. कई बार जेब खर्च के भी पैसे लगाने पड़ते हैं.

कलेक्शन का भी करते हैं काम

  • रोटी बैंक के द्वारा शादी, ब्याह, जन्मदिन या किसी भी तरह के आयोजन से बचे हुए खाने का भी कलेक्शन किया जाता है. ये लोग बचा हुआ खाना ले आते हैं और जरूरतमंदों को बांट देते हैं.

सोशल मीडिया रहा मददगार

  • टीम के सदस्य कौस्तुभ बताते हैं कि शुरुआत में काफी दिक्कतें थी. लोग जानते नहीं थे कि शहर में ऐसा कुछ काम भी किया जा रहा है, ऐसे में सोशल मीडिया हमारे लिए लाभदायक रहा.
  • सोशल मीडिया के माध्यम से हमने प्रचार किया तो कलेक्शन के लिए भी फोन आने लगे. अब लोग किसी विशेष मौके पर हमें फोन कर बताते हैं कि खाना बटाना है.
  • कई बार कलेक्शन होता है तो कई बार समान देते हैं और हम खाना बनाकर बांट पाते हैं.

अलग-अलग तरह के सवाल करते हैं लोग

  • टीम के सदस्य शक्ति बताते हैं कि बाहर अलग-अलग तरह के लोग मिलते हैं. उनके सवाल भी बहुत अजीब होते हैं.
  • राज कपूर की मशहूर फिल्म 'अनाड़ी' का गाना 'किसी की मुस्कुराहटों पर हो निसार, किसी का दर्द मिल सकते तो ले उधार' इस टोली पर सटीक बैठता है. इन युवाओं का इंतजार हर रोज वे करते हैं, जिन्हें दिनभर में रोटी का एक टुकड़ा भी नसीब नहीं होता है. इस नेक काम के लिए इन लोगों को ETV भारत का सलाम.

रायपुर: भूख से लोगों की जान जाने, बाढ़ की झकझोर देने वाली और इंसानियत पर सवाल उठाने करने वाली खबरों के बीच हम आपको ऐसे लोगों से मिलवाते हैं, जिन्होंने समाज में मानवता की परिभाषा को जिंदा रखा है. मिलिए राजधानी में भूखों का पेट भरने वाले ऐसे युवाओं से जिनके ग्रुप को 'रोटी बैंक' के नाम से जाना जाता है.

लोगों का सहारा रोटी बैंक

ऐसे जमाने में जब हर व्यक्ति मेहनत करके अपना पेट पाल रहा है, ये युवा न केवल खुद की जिंदगी जी रहे हैं बल्कि उन तमाम लोगों की भी भूख मिटाते हैं, जिनका कोई नहीं है. 'रोटी बैंक' की टोली में तकरीबन 12 युवा शामिल हैं. इसमें 9 साल से लेकर 47 साल तक के लोग शामिल हैं. ये लोग खुद खाना बनाते हैं और लोगों को बांटने जाते हैं.

कैसे हुई थी शुरुआत

  • रोटी बैंक की स्थापना वाराणसी के किशोर कांत तिवारी ने की थी.
  • पिछले साल नवंबर, दिसंबर से 'रोटी बैंक' का काम रायपुर में सक्रिय है. शुरू में लोग कम थे, टीम नहीं थी. इनके बारे में लोग पहले कम जानते थे. लेकिन अब पहचानने लगे हैं.
  • चूल्हे पर बनाते हैं खाना
  • खाना बनाने की तैयारी टोली के लोग शाम से ही करते हैं. पुरानी बस्ती में एक रूम किराए से लिया है. वहीं एकत्रित होकर सभी मिलकर चूल्हे पर खाना बनाते हैं. सभी अपनी योग्यता अनुसार एक दूसरे की मदद करते हैं.

ऐसे होती है फंडिंग

  • टोली के सदस्य, सदस्यता लेते समय 500 रुपये जमा करते हैं. इसके साथ ही ग्रुप के लोग अपनी आय में से एक निश्चित अमाउंट निकाल देते हैं, जिससे वक्त पड़ने पर उसका इस्तेमाल किया जा सके.
  • ग्रुप की अध्यक्ष पूनम अग्रवाल कहती हैं कि कुछ निश्चित दानदाता भी हैं, जो हर महीने दान देते हैं. जिससे पूरा खर्च चलता है.
  • पूनम बताती हैं कि 100 से ज्यादा दानदाता संस्था से जुड़े हैं. सभी कुछ न कुछ मदद जरूर करते हैं लेकिन फिर भी अपने लोगों को खाना खिलाने के लिए सिर्फ चावल और सब्जी से ही काम नहीं चलता.
  • वे बताते हैं कि इसके लिए हमें किराने का सारा सामान, पत्तल दोने, गाड़ियों में बार-बार लाना ले जाना पड़ता है. कई बार जेब खर्च के भी पैसे लगाने पड़ते हैं.

कलेक्शन का भी करते हैं काम

  • रोटी बैंक के द्वारा शादी, ब्याह, जन्मदिन या किसी भी तरह के आयोजन से बचे हुए खाने का भी कलेक्शन किया जाता है. ये लोग बचा हुआ खाना ले आते हैं और जरूरतमंदों को बांट देते हैं.

सोशल मीडिया रहा मददगार

  • टीम के सदस्य कौस्तुभ बताते हैं कि शुरुआत में काफी दिक्कतें थी. लोग जानते नहीं थे कि शहर में ऐसा कुछ काम भी किया जा रहा है, ऐसे में सोशल मीडिया हमारे लिए लाभदायक रहा.
  • सोशल मीडिया के माध्यम से हमने प्रचार किया तो कलेक्शन के लिए भी फोन आने लगे. अब लोग किसी विशेष मौके पर हमें फोन कर बताते हैं कि खाना बटाना है.
  • कई बार कलेक्शन होता है तो कई बार समान देते हैं और हम खाना बनाकर बांट पाते हैं.

अलग-अलग तरह के सवाल करते हैं लोग

  • टीम के सदस्य शक्ति बताते हैं कि बाहर अलग-अलग तरह के लोग मिलते हैं. उनके सवाल भी बहुत अजीब होते हैं.
  • राज कपूर की मशहूर फिल्म 'अनाड़ी' का गाना 'किसी की मुस्कुराहटों पर हो निसार, किसी का दर्द मिल सकते तो ले उधार' इस टोली पर सटीक बैठता है. इन युवाओं का इंतजार हर रोज वे करते हैं, जिन्हें दिनभर में रोटी का एक टुकड़ा भी नसीब नहीं होता है. इस नेक काम के लिए इन लोगों को ETV भारत का सलाम.
Intro:रायपुर । हर व्यक्ति जीवन भर मेहनत करता है ताकि वह अपने परिवार को और खुद को दो वक्त की रोटी दे सके । आज हम आपको मिलवाएंगे राजधानी रायपुर के कुछ ऐसे युवाओं से जो न केवल खुद के लिए बल्कि उन तमाम लोगों का भूख मिटाते हैं जिनका कोई नहीं है ।


Body:हम बात कर रहे हैं राजधानी में संचालित होने वाले ग्रुप रोटी बैंक की । इस टोली में तकरीबन 12 लोग शामिल हैं । इसमें 9 वर्ष से लेकर 47 के लोग शामिल हैं । ये लोग खुद खाना बनाते हैं और लोगों को बटाने जाते हैं ।

कैसे हुआ थी शुरुआत

रोटी बैंक की स्थापना वाराणसी के किशोर कांत तिवारी ने की थी । पिछले साल नवंबर दिसंबर से रोटी बैंक का काम रायपुर सक्रिय है । शुरू में लोग कम थे टीम नहीं थी लोग जानते नहीं थे इसके बारे में तो हमें दिक्कतें होती थी लेकिन अब लोग हमें पहचाने लगे हैं ।

चूल्हे पर बनाते हैं खाना

टोली के लोग शाम से ही तैयारी करते हैं । पुरानी बस्ती में एक रूम किराए से लिया हुआ है । वहीं एकत्रित होकर सभी मिलकर चूल्हे पर खाना बनाते हैं । सभी अपनी योग्यता अनुसार एक दूसरे की मदद करते हैं ।

ऐसे होती है फंडिंग

टोली के सदस्य, सदस्यता लेते समय 500 रुपये जमा करते हैं । साथ ही जो टोली के लोग हैं वे अपने कमाई में से एक निश्चित अमाउंट निकाल देते हैं ताकि वक्त आने पर इन पैसों का इस्तेमाल किया जा सके । टोली अध्यक्षा पूनम अग्रवाल बताती हैं कि कुछ हमारे निश्चित दानदाता भी हैं जो हर महीने दान करते हैं जिससे हम इस काम को करते हैं ।

100 से ज्यादा दानदाता जुड़े हैं संस्था से

पूनम बताती हैं कि 100 से ज्यादा ज्यादा दानदाता संस्था से जुड़े हैं । सभी कुछ ना कुछ मदद जरूर करते हैं लेकिन फिर भी अपने लोगों को खाना खिलाने के लिए सिर्फ चावल और सब्जी से ही काम नहीं चलता । इसके लिए हमें किराने का सारा सामान, पत्तल दोने, गाड़ियों में बार-बार लाना ले जाना पड़ता है। इसलिए कई बार हमें जेब खर्च से भी पैसे में लाने पड़ते हैं ।

कलेक्शन का भी करते हैं काम

रोटी बैंक के द्वारा शादी, ब्याह, जन्मदिन या किसी भी तरह के आयोजन से बचे हुए खाने का भी कलेक्शन किया जाता है । ये लोग बचा हुआ खाना ले आते हैं और जाकर जरूरत मंददो को बांट देते हैं ।

सोशल मीडिया रहा मददगार

टीम के सदस्य कौस्तुभ बताते है कि शुरुआत में कठिनाई काफी थी । लोग जानते नहीं थे कि शहर में ऐसा कुछ काम भी किया जा रहा है । ऐसे में सोशल मीडिया हमारे लिए लाभदायक रहा । सोशल मीडिया के माध्यम से हमने प्रचार किया तो कलेक्शन के लिए भी फ़ोन आने लगे । अब लोग किसी विशेष मौके पर हमें फ़ोन कर बताते हैं कि खाना बटाना है । कई बार कलेक्शन होता है तो कई बार समान देते है और हम खाना बनाकर बंट पाते हैं ।




Conclusion:अलग - अलग तरह के सवाल करते हैं लोग

टीम के सदस्य शक्ति बताते हैं कि बाहर अलग - अलग तरह के लोग मिलते हैं । उनके सवाल भी बहुत अजीब होता है । सबसे मुश्किल होता है उन लोगों को संभाला चूंकि लोग भूखे रहते हैं तो वे सिर्फ खाने को देखते हैं बाकी चीजें भूल जाते हैं ।

( नोट - फीड एफटीपी से भेजी जा चुकी है )
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