रायपुर: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि यदि नक्सली लोकतांत्रिक तरीका अपनाते हैं तो उनसे बातचीत की जा सकती है. पिछले कई दशकों से नक्सल हिंसा में सुलग रहा बस्तर आए दिन होने वाली मुठभेड़, हत्या और खौफ के साए से अब उकता गया है. बस्तर में शांति के लिए प्रयास कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता भी मानते हैं कि शांति के लिए बातचीत सबसे बेहतर रास्ता हो सकता है. इस विषय पर ETV भारत की टीम ने बस्तर से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता शुभ्रांशु चौधरी और रक्षा मामलों की जानकार डॉ. वर्णिका शर्मा से खास बातचीत की.
शुभ्रांशु चौधरी से पहला सवाल- बातचीत के टेबल पर आने से पहले का माहौल दोनों तरफ से बनना चाहिए, वैसा माहौल क्या आप यहां देख रहे हैं ?
शुभ्रांशु चौधरी- जैसा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि नक्सली हिंसा छोड़ते हैं तो उनसे बात की जा सकती है. मुझे लगता है कि इस मुद्दे पर और गंभीरता से सोचने की जरूरत है. हम जानते हैं कि नक्सलवाद हिंसा पर ही टिका है, लेकिन हमारा अंतिम उद्देश्य शांति होनी चाहिए. इस दिशा में निशर्त प्रयास होना चाहिए. पूरी दुनिया में बातचीत कारगर साबित हुई, आज अमेरिका तालीबानियों से बात कर रहा है. नक्सलवाद की समस्या पश्चिम बंगाल से शुरू हुई वहां 5 साल के भीतर सफाया हो गया, लेकिन छत्तीसगढ़ में ये कई दशकों से बना हुआ है. क्योंकि यहां की परिस्थिति बिलकुल अलग है.
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शुभ्रांशु चौधरी कहते है कि ये पंजाब का मैदान नहीं है जहां आपने आतंकवाद को खत्म कर दिया. ये लिट्टे प्रभावित लैंडलॉक एरिया नहीं है. इसलिए इस समस्या के हल के लिए बातचीत के लिए और गंभीर रुख अपनाने की जरूरत है. जहां तक माहौल का सवाल है, तो इस सरकार ने कुछ पहल जरूर किए हैं, मसलन पिछली सरकार में निर्मला बूच कमेटी सिफारिशों पर काम करना शुरू किया, लेकिन इस पर और जोर देना होगा.
डॉ. वर्णिका शर्मा से सवाल- आप जवानों के मनोविज्ञान और ग्राउंड जीरो की परिस्थिति का अध्यन करती हैं. आपको क्या लगता है, बातचीत शांति बहाली के लिए कारगर साबित हो सकती है और इस प्रक्रिया में फोर्स की क्या भूमिका हो सकती है ?
डॉ. वर्णिका शर्मा- रक्षा मनोविज्ञान के नजरिए से देखें तो बातचीत इस तरह की समस्या का वैकल्पिक समाधान हो सकता है. मध्यस्थों की मदद से दोनों पक्ष इसे शुरू कर सकते हैं. इस प्रक्रिया को शुरू करने से पहले कुछ बिंदुओं पर विचार करना होगा.
- ये तय करना होगा कि बातचीत किस स्तर पर हो किसके साथ हो.
- किन परिस्थितियों के तहत बातचीत होना तय हुआ है. यानी बातचीत के विषय तय होना चाहिए.
- अक्सर गोरिल्ला युद्ध के दौरान देखने को मिलता है कि जब-जब नक्सल या चरमपंथी कमजोर पड़ते हैं, तो बातचीत या युद्ध विराम की बात सामने आने लगती है. पर्दे के पीछे ये इस शांतिकाल का इस्तेमाल नई भर्ती आदि में करते हैं.
सवाल- डॉ. वर्णिका शर्मा का कहना है कि नक्सली या कोई भी चरमपंथी संगठन जब कमजोर पड़ता है तो बातचीत की बात सामने आने लगती है. आप इससे कितना सहमत हैं ? साथ ही बातचीत के अलावा समनांतर और क्या प्रयास होना चाहिए ?
शुभ्रांशु चौधरी- पहले की सरकार सुरक्षा और विकास की बात कहती थी, लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इनमें बदलाव किया है, वे लगातार सुरक्षा और विकास के साथ विश्वास की बात कह रहे हैं. ये बड़ी अच्छी बात है विश्वास डेवलप करना. देखिए नक्सली संगठन में 99 फीसदी लोग यहीं के हैं, लेकिन उनके पास लिडरशिप नहीं है. ऐसे में क्या सरकार इन 99 फीसदी लोगों के साथ विश्वास डेवलप कर सकती है? क्या ये बहुत महत्वपूर्ण है? विश्वास विकसित करने के लिए सरकार को उन लोगों की मदद करनी चाहिए जो इस हिंसा के चलते अपना घर बार छोड़ कर विस्थापित हो गए थे. उन्हें बसाने में मदद करनी चाहिए इससे विश्वास बढ़ेगा. जहां तक समानांतर प्रयास की बात है तो वहां की परिस्थिति को समझते हुए योजनाएं बनानी होंगी. मैं वर्णिका जी की बात से सहमत हूं कि युद्ध में बातचीत कई लोग गलत फायदा उठाते हैं, लेकिन हमें आगे बढ़ना होगा हमारा उद्देश्य शांति होनी चाहिए.
सवाल- बातचीत के अलावा समानांतर क्या कदम उठाए जाना चाहिए ?
डॉ. वर्णिका शर्मा- विकास और सुरक्षा के बीच एक महत्वपूर्ण पूल है, एक आधारभूत रेखा है, प्रबंधन. जब आम जनता के बीच प्रबंधन बेहतर हो जाएगा तो शांति की बहाली बेहतर तरीके से हो जाएगी. इसके अलावा एक बेहद महत्वपूर्ण बात है कि आज की परेशानी को टालने के लिए हम भविष्य को गर्त में नहीं डाल सकते इसलिए हमें ऐसे हल की ओर बढ़ना चाहिए जो स्थाई हो.
बस्तर में ऐसी कई खूबियां हैं कि लोगों को आसानी से रोजगार दिया जा सकता है.
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सवाल- बांस से कपड़ा बनाने की बात कही जा रही थी. क्या इस तरह लोगों को मुख्यधारा में लाया जा सकता है ?
शुभ्रांशु चौधरी- जो समस्या है, उसी को समाधान के तौर पर पेश करेंगे तो गड़बड़ होगी ही. स्टील प्लांट से बस्तर में बहुत ज्यादा रोजगार नहीं पैदा किया जा सकता. क्योंकि यहां स्किल के साथ काम किया जा सकता है. वहीं छोटे उद्योग, ग्रामीण उद्योग, के जरिए बहुतायत में काम दिया जा सकता है. मसलन बांस से कपड़ा बनाने का काम नॉर्थ ईस्ट में काफी चलन में है. बस्तर को लैंड ऑफ बैंबू कहा जाता है. ऐसे में यहां भी इस तरह का काम किया जा सकता है, बांस से बने सिल्क की बाजार में अच्छी मांग है. इसी तरह वन उत्पाद को प्रोसेस कर अच्छा रोजगार पैदा किया जा सकता है.
डॉ. वर्णिका शर्मा- बिल्कुल बस्तर में प्राकृतिक संसाधनों के साथ ही मानवीय मूल्यों को ध्यान में रखते हुए कार्य योजना बनाई जाए तो. इसके दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे.