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विशेष लेख: 'WTO के पीस क्लॉज यानी शांति उपबंधों में छिपे हैं अशांति के बीज' - राजाराम त्रिपाठी राष्ट्रीय समन्वयक

भारत ने गरीबों के लिए घरेलू खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से धान की खेती करने वाले किसानों को अधिक समर्थन देने को लेकर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के शांति उपबंध (पीस क्लॉज) का उपयोग किया है. पढ़ें पूरी खबर

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राजाराम त्रिपाठी राष्ट्रीय समन्वयक
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Published : Apr 5, 2020, 6:38 PM IST

Updated : Apr 5, 2020, 7:07 PM IST

रायपुर: हाल ही में भारत ने गरीबों के लिए घरेलू खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से धान की खेती करने वाले किसानों को अधिक समर्थन देने को लेकर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के शांति उपबंध (पीस क्लॉज) का उपयोग किया है. भारत के किसानों और किसान संगठनों को बिना विश्वास के लिए बिना उनसे कोई चर्चा किए हुए, भारत सरकार ने कोरोना के संकट के इस अफरातफरी के दौर में पूरी खामोशी से यूं कहें कि पिछले दरवाजे से विश्व व्यापार संगठन के शांति समझौते को लागू कर दिया है.

राजाराम त्रिपाठी राष्ट्रीय समन्वयक

ऐसा पहली बार हो रहा है जब देश इस तरह के विश्व व्यापार संगठन के उपबंधों के अंतर्गत सुरक्षा उपायों का सहारा ले रहा है. भारत ने गरीबों के लिए घरेलू खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से विपणन वर्ष 2018-19 के लिए धान की खेती करने वाले किसानों को अधिक समर्थन देने को लेकर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के शांति उपबंध (पीस क्लॉज) का उपयोग किया है. भारत ने विश्व व्यापार संगठन को सूचित करते हुए कहा है कि 2018-19 में उसके चावल उत्पादन का मूल्य 43.67 बिलियन डॉलर था और पांच बिलियन डॉलर की सब्सिडी दी गई. यहां हम याद दिलाना चाहेंगे कि इस मामले में भारत और अन्य विकासशील देशों के खाद्य उत्पादन के मूल्य की सीमा 10 प्रतिशत आंकी गई है.

2013 में भारत नहीं हुआ था सहमत

बता दें कि पीस क्लॉज विकासशील देशों को कई प्रकार से मदद करने का दावा करता है. हम यहां सरकार को याद दिलाना चाहेंगे कि,पीस क्लॉज 2013 में बाली में हुए मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भारत ने व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के महानिदेशक रॉबर्टो अज़ीवेडो के प्रस्ताव पर पूरी तरह से असहमती जताते हुए इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था, और कहा था कि भारत किसी भी सौदे के लिए तब तक सहमत नहीं होगा, जब तक यह स्पष्ट न हो जाए कि प्रस्तावित अंतरिम समाधान होगा. भारत अपनी खाद्य सुरक्षा योजना को अपनी जनसंख्या के दो तिहाई लोगों को रियायती दर पर खाद्य अधिकार प्रदान करके इसे लागू करना चाहता है. इसे साकार करने के लिए सरकार को किसानों से भारी मात्रा में अनाज की खरीदना पड़ता है.

सरकार एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर अनाज की खरीद भी करती है. और अभी तक सरकार के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण सरकार की सीएसीपी अर्थात कमीशन और एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेस निर्धारित करती रही है. अब इस तरह से देश के कृषि उत्पादों विशेषकर खाद्यान्नों का मूल्य निर्धारण विश्व व्यापार के मापदंडों के तहत होगा, क्योंकि कृषि क्षेत्र को दिए जाने वाले अनुदान की मात्रा तथा उत्पादन लागत के निर्धारण में अनुदान की भागीदारी इन दोनों की नकेल अब डब्ल्यूटीओ के हाथ में है. इन उप बंधुओं के तहत अब स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को डस्टबिन में डालने के अलावा सरकार के पास और कोई चारा नहीं दिखता .

भारत को मानने होंगे नियम और शर्तें

यह नियम विकासशील देशों के लिए उत्पादन के मूल्य के अधिकतम 10% की सब्सिडी कैप निर्धारित करता हैं. अगर भारत उस सीमा को तोड़ता है, उसे WTO Settlement body के विवादों में घसीटा जा सकता है. विश्व व्यापार संगठन के महासचिव द्वारा प्रस्तावित पीस क्लॉज एक अंतरिम प्रस्ताव है. इसके तहत विकासशील देशों द्वारा वर्तमान में किसानों को सब्सिडी प्रदान करने की अनुमति देना विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों के खिलाफ है इन्हीं कारणों को देखते हुए 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वाणिज्य और उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के तत्कालीन महानिदेशक रॉबर्टो अज़ीवेदो को बाली में पीस क्लाज पर सहमति देने से मना कर दिया था .

आज भारतीय खेती और किसानों की दयनीय दशा और खेती के दिनों दिन अलाभकारी होते जाने की दशा में भारत में न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारण, तथा किसानों को दिए जाने वाले अनुदान की स्वरूप तथा इसे प्रदान करने की विधियों से जुड़े विषयों के स्थायी समाधान के बारे में सूचना बेहद जरूरी होगा. दूसरी ओर भारत आज एक वैश्विक गांव में बदल गया है और अपने आप को विश्वव्यापी बाजार से भी अलग-थलग नहीं रख सकता। इन हालातों में सरकार को अखिल भारतीय किसान महासंघ तथा संबद्ध सभी किसान संगठनों के सीधा वार्तालाप करना चाहिए तथा किसानों के साथ एवं कृषि से संबद्ध अन्य सभी घटकों के साथ मिल बैठकर इस समस्या का साझा दीर्घकालिक व्यावहारिक समाधान ढूंढना चाहिए.

लेखक- राजाराम त्रिपाठी राष्ट्रीय समन्वयक, अखिल भारतीय किसान महासंघ

रायपुर: हाल ही में भारत ने गरीबों के लिए घरेलू खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से धान की खेती करने वाले किसानों को अधिक समर्थन देने को लेकर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के शांति उपबंध (पीस क्लॉज) का उपयोग किया है. भारत के किसानों और किसान संगठनों को बिना विश्वास के लिए बिना उनसे कोई चर्चा किए हुए, भारत सरकार ने कोरोना के संकट के इस अफरातफरी के दौर में पूरी खामोशी से यूं कहें कि पिछले दरवाजे से विश्व व्यापार संगठन के शांति समझौते को लागू कर दिया है.

राजाराम त्रिपाठी राष्ट्रीय समन्वयक

ऐसा पहली बार हो रहा है जब देश इस तरह के विश्व व्यापार संगठन के उपबंधों के अंतर्गत सुरक्षा उपायों का सहारा ले रहा है. भारत ने गरीबों के लिए घरेलू खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से विपणन वर्ष 2018-19 के लिए धान की खेती करने वाले किसानों को अधिक समर्थन देने को लेकर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के शांति उपबंध (पीस क्लॉज) का उपयोग किया है. भारत ने विश्व व्यापार संगठन को सूचित करते हुए कहा है कि 2018-19 में उसके चावल उत्पादन का मूल्य 43.67 बिलियन डॉलर था और पांच बिलियन डॉलर की सब्सिडी दी गई. यहां हम याद दिलाना चाहेंगे कि इस मामले में भारत और अन्य विकासशील देशों के खाद्य उत्पादन के मूल्य की सीमा 10 प्रतिशत आंकी गई है.

2013 में भारत नहीं हुआ था सहमत

बता दें कि पीस क्लॉज विकासशील देशों को कई प्रकार से मदद करने का दावा करता है. हम यहां सरकार को याद दिलाना चाहेंगे कि,पीस क्लॉज 2013 में बाली में हुए मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भारत ने व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के महानिदेशक रॉबर्टो अज़ीवेडो के प्रस्ताव पर पूरी तरह से असहमती जताते हुए इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था, और कहा था कि भारत किसी भी सौदे के लिए तब तक सहमत नहीं होगा, जब तक यह स्पष्ट न हो जाए कि प्रस्तावित अंतरिम समाधान होगा. भारत अपनी खाद्य सुरक्षा योजना को अपनी जनसंख्या के दो तिहाई लोगों को रियायती दर पर खाद्य अधिकार प्रदान करके इसे लागू करना चाहता है. इसे साकार करने के लिए सरकार को किसानों से भारी मात्रा में अनाज की खरीदना पड़ता है.

सरकार एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर अनाज की खरीद भी करती है. और अभी तक सरकार के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण सरकार की सीएसीपी अर्थात कमीशन और एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेस निर्धारित करती रही है. अब इस तरह से देश के कृषि उत्पादों विशेषकर खाद्यान्नों का मूल्य निर्धारण विश्व व्यापार के मापदंडों के तहत होगा, क्योंकि कृषि क्षेत्र को दिए जाने वाले अनुदान की मात्रा तथा उत्पादन लागत के निर्धारण में अनुदान की भागीदारी इन दोनों की नकेल अब डब्ल्यूटीओ के हाथ में है. इन उप बंधुओं के तहत अब स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को डस्टबिन में डालने के अलावा सरकार के पास और कोई चारा नहीं दिखता .

भारत को मानने होंगे नियम और शर्तें

यह नियम विकासशील देशों के लिए उत्पादन के मूल्य के अधिकतम 10% की सब्सिडी कैप निर्धारित करता हैं. अगर भारत उस सीमा को तोड़ता है, उसे WTO Settlement body के विवादों में घसीटा जा सकता है. विश्व व्यापार संगठन के महासचिव द्वारा प्रस्तावित पीस क्लॉज एक अंतरिम प्रस्ताव है. इसके तहत विकासशील देशों द्वारा वर्तमान में किसानों को सब्सिडी प्रदान करने की अनुमति देना विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों के खिलाफ है इन्हीं कारणों को देखते हुए 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वाणिज्य और उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के तत्कालीन महानिदेशक रॉबर्टो अज़ीवेदो को बाली में पीस क्लाज पर सहमति देने से मना कर दिया था .

आज भारतीय खेती और किसानों की दयनीय दशा और खेती के दिनों दिन अलाभकारी होते जाने की दशा में भारत में न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारण, तथा किसानों को दिए जाने वाले अनुदान की स्वरूप तथा इसे प्रदान करने की विधियों से जुड़े विषयों के स्थायी समाधान के बारे में सूचना बेहद जरूरी होगा. दूसरी ओर भारत आज एक वैश्विक गांव में बदल गया है और अपने आप को विश्वव्यापी बाजार से भी अलग-थलग नहीं रख सकता। इन हालातों में सरकार को अखिल भारतीय किसान महासंघ तथा संबद्ध सभी किसान संगठनों के सीधा वार्तालाप करना चाहिए तथा किसानों के साथ एवं कृषि से संबद्ध अन्य सभी घटकों के साथ मिल बैठकर इस समस्या का साझा दीर्घकालिक व्यावहारिक समाधान ढूंढना चाहिए.

लेखक- राजाराम त्रिपाठी राष्ट्रीय समन्वयक, अखिल भारतीय किसान महासंघ

Last Updated : Apr 5, 2020, 7:07 PM IST
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