रायपुर: 'छेरछेरा माई कोठी के धान ला हेरहेरा' ऐसी गूंज गांव-गांव में सुनाई पड़ती है. तब यह स्वतः मालूम पड़ जाता है कि छत्तीसगढ़ का सबसे लोकप्रिय त्यौहार छेरछेरा पुन्नी का आगमन हो चुका है. शुक्ल पक्ष को पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला पूर्णिमा छेरछेरा पुन्नी या शाकंभरी जयंती के नाम से जानी जाती है. इस शुभ दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, पुनर्वसु नक्षत्र, वैधृति योग, बाबा करण, मिथुन और कर्क राशि का संयोग बन रहा है. यह पवित्र त्यौहार अन्न दान का महापर्व है. पौष पूर्णिमा धान के दान के लिए प्रसिद्ध है. संपूर्ण भारतवर्ष में इस शुभ दिन अन्न, दलहन-तिलहन आदि का दान करना बेहद शुभ माना जाता है. सब्जी की देवी कंदमूल वन औषधियों की अधिष्ठात्री देवी शाकंभरी माता की जयंती भी पौष शुक्ल पूर्णिमा को मनाई जाती है.यह उत्तरायण की प्रथम पूर्णिमा है. अतः इसका विशेष महत्व माना गया है
ये है कथा
इस विषय में पंडित विनित शर्मा बताते हैं कि 'एक जनश्रुति के अनुसार एक बार बहुत बड़ा अकाल पड़ा था. सभी तरफ पशु, पक्षी, नर नारी भूख के कारण मारे जा रहे थे. तब सारे लोगों ने शाकंभरी देवी की प्रार्थना और उपासना की. जिसके बाद शाकंभरी देवी प्रकट हुई और अकाल से लोगों की रक्षा की. शाकंभरी देवी सभी पीड़ितों दुखियारों को अन्न, साग, सब्जी, कंदमूल, वन, औषधि देकर तृप्त करती हैं. संपूर्ण सृष्टि को वापस हरीतिमा से भर देती हैं. यही कारण है कि इस दिन शाकंभरी जयंती मनाई जाती है, इसे शाकंभरी पूर्णिमा भी कहते हैं. कई लोग शुक्ल पक्ष को शाकंभरी नवरात्रि के रूप में भी मनाते हैं.
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छत्तीसगढ़ का पर्व
धान और अन्नपूर्णा के दान का बहुत बड़ा पर्व छेरछेरा पुन्नी राज्य में उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस दिन लड़के-लड़कियां संगठित होकर धान मांगने निकलते हैं और घर-घर जाकर अन्न का दान मांगते हैं. उन्हें धान के साथ उपहार में रुपए आदि देकर इस पर्व को मनाया जाता है. यह पर्व संगठन मिलन, मेल जोल, संपर्कों का नवीनीकरण के लिए मनाया जाता है. दान मांगने वाले को ब्राम्हण के रूप में माना जाता है. दान देने वाले को शाकंभरी देवी के रूप में माना जाता है. धान को इकट्ठा करके गांव में जो सबसे ज्यादा जरूरतमंद व्यक्ति होता है. ऐसे कमजोर वर्ग के लोगों को दान देकर उनके दुखों को दूर करने का यह एक महापर्व है.
धूमधाम से छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है ये पर्व
यह समता-समानता को प्रतिपादित करने वाला पर्व है. इस त्यौहार को ऊंच-नीच छोड़कर सभी लोग उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं. गांव में 15 दिन पहले ही इस त्यौहार को मनाने की तैयारी शुरू हो जाती है. लोक नृत्य, लोक गीत आदि के द्वारा इस त्योहार को मनाया जाता है. मांगने वाले बच्चे जब तक नहीं दोगे तब तक नहीं जाएंगे... ऐसा कहकर हास परिहास करते हैं, जिससे आपसी सामाजिक संबंधों का विकास होता है. ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में दक्षिण कौशल के राजा कल्याण सहाय जब राजनीति शास्त्र, युद्ध नीति, युद्ध कला सीखने के लिए दिल्ली से 8 वर्ष बाद अपनी राजधानी बिलासपुर जिले के रतनपुर में लौटते हैं, तो रानी उनके स्वागत में उल्लास के साथ उदारतापूर्वक रत्न, सोने, चांदी की वर्षा से राजा का स्वागत करती है. प्रजा को स्वर्ण, रजत, बहुमूल्य रत्न और दान देकर सम्मानित करती है. तभी से यह पर्व पूरे छत्तीसगढ़ राज्य में छेरछेरा पुन्नी के रूप में मनाया जाता है. इस शुभ दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करके श्री हरि विष्णु, अन्नपूर्णा, शाकंभरी माता की पूजा की जाती है. इस शुभ दिन ध्यान, योग, दान करना बहुत शुभ माना जाता है. .