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Shankabhari Jayanti 2023: 6 जनवरी को छत्तीसगढ़ मनाएगा छेरछेरा पुन्नी, सीएम बघेल भी मांगेंगे छेरछेरा

नया वर्ष 2023 की शुरुआत के साथ ही देश में इस साल आने वाले त्यौहारों और पर्व की तैयारियां जोरो पर है. हर साल पौष माह की पूर्णिमा के अवसर पर शाकंभरी देवी (Shakambhari Devi) की जयंती मनाई जाती है. इस साल 6 जनवरी को शाकंभरी पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाएगा. छत्तीसगढ़ में शाकंभरी जयंती का अपना अलग महत्व है. इस दिन को छत्तीसगढ़वासी छेरछेरा तिहार के रूप में बड़े धूमधाम के साथ मनाते हैं.

chher chhera punni tihar
छेरछेरा तिहार
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Published : Jan 5, 2023, 10:14 PM IST

रायपुर: 6 जनवरी 2023 को पौष पूर्णिमा पर माता शाकंभरी की जयंती (Shakambhari Jayanti 2023) मनाई जाएगी. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शाकंभरी नवरात्र की शुरुआत होती है. इस पौष महीने की पूर्णिमा तिथि को समापन होता है. मां शाकंभरी देवी (Maa Shakambhari) दुर्गा का ही सौम्य रूप है. आइए जानते हैं आदि शक्ति मां दुर्गा ने शाकंभरी देवी का अवतार आखिर क्यों लिया था. इस दिन माता की पूजा कैसे करें, क्या विधि है और क्या है मुहूर्त. जानिए...

Shankabhari Jayanti 2023
माता शाकंभरी देवी

माता शांकभरी देवी का पौराणिक कथा: मां दुर्गा देवी ने भयंकर अकाल के समय शांकभरी देवी (Shakambhari Devi) का अवतार लिया था. (significance shakambhari devi) तब धरती पर कई सालों तक भयंकर अकाल पड़ा था. अकाल से फसल न होने पर भारी खाद्य संकट पैदा हो गया. इससे परेशान भक्तों ने दुर्गा देवी से प्रार्थना की थी, तब माता ने शांकभरी देवी का अवतार लिया. मां शांकभरी देवी की हजारों आखें थीं. इन आंखों से लगातार 9 दिनों तक पानी बरसता रहा, जिसके बाद पृथ्वी पर हरियाली छाई और अकाल से लोगों को निजात मिली. मां शाकंभरी वनस्पति की देवी मानी जाती हैं, जो आदि शक्ति दुर्गा का ही अवतार हैं. हजारों आंखें होने की वजह से शांकभरी देवी का एक नाम शताक्षी भी है.

chher chhera punni tihar
छेरछेरा मांगने जाती बच्चियां

शाकंभरी पूर्णिमा 2023 की तिथि और समय: इस साल पौष माह की पूर्णिमा तिथि शुक्रवार 5-6 जनवरी 2023 की मध्यरात्रि 2 बजकर 14 मिनट से शुरू हो रही है. शाकंभरी पूर्णिमा का समापन अगले दिन यानी कि 6 और 7 जनवरी 2023 को सुबह 04 बजकर 37 मिनट पर होगा.

यह भी पढ़ें: Makar Sankranti 2023: मकर संक्रांति में पतंगबाजी का है पौराणिक महत्व

शांकभरी पूर्णिमा पर इस विधि से करें पूजा (Shakambhari Devi Puja Vidhi)
शांकभरी पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. मां शांकभरी की चौकी सजाएं और विधि विधान के साथ पूजा करें. माता की आरती उतारें, सब्जी और फलों का भोग लगाएं. मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ाएं और जरूरतमंद लोगों को दान जरूर दें.

छत्तीसगढ़ में शाकंभरी जयंती पर मनाते हैं छेरछेरा पुन्नी: छत्तीसगढ़ में शाकंभरी जयंती का पर्व पौष पूर्णिमा के दिन बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. छत्तीसगढ़ में इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार (chher chhera punni tihar) भी कहते हैं. इसे छेरछेरा अर्थात दान लेने और देने पर्व माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती. इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं. इस मौके पर युवा डंडा नृत्य करते हैं.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी मनाते हैं छेरछेरा तिहार: छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए शासन सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं. इनमें छेरछेरा तिहार (मां शाकंभरी जयंती) भी शामिल है. राज्य में इन तीज-त्यौहारों को व्यापक स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें शासन की भी भागीदारी होती है. इन पर्वों के दौरान शासकीय आयोजन और महत्वपूर्ण शासकीय घोषणाएं भी की जाती हैं. छेरछेरा पुन्नी के दिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी छत्तीसगढ़ की परम्पराओं को निभाते हुए छेरछेरा मांगते हैं.

chher chhera punni tihar in cm house 2022
सीएम हाउस में छेरछेरा तिहार मनाते मुख्यमंत्री बघेल

छत्तीसगढ़ में बेहद लोकप्रिय है छेरछेरा गीत: दान का पर्व छेरछेरा पर बच्चे गली मोहल्लों, घरों में जाकर छेरछे (दान) मांगते हैं. दान लेते समय बच्चे जब तक ‘छेर छेरा, माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ गीत गाते रहते हैं, जब तक गृहस्वामिनी अन्न दान नहीं देंती. तब तक वे कहते रहेंगे- ‘अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन’. इसका मतलब बच्चे कह रहे हैं कि, "मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे, तब तक हम नहीं जाएंगे." छेरछेरा पर्व में अमीर गरीब के बीच दूरी कम करने और आर्थिक विषमता को दूर करने का संदेश छिपा है. इस पर्व में अहंकार के त्याग की भावना है, जो हमारी परम्परा से जुड़ी है. सामाजिक समरसता सुदृढ़ करने में भी इस लोक पर्व को छत्तीसगढ़ के गांव और शहरों में लोग उत्साह से मनाते हैं.

रायपुर: 6 जनवरी 2023 को पौष पूर्णिमा पर माता शाकंभरी की जयंती (Shakambhari Jayanti 2023) मनाई जाएगी. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शाकंभरी नवरात्र की शुरुआत होती है. इस पौष महीने की पूर्णिमा तिथि को समापन होता है. मां शाकंभरी देवी (Maa Shakambhari) दुर्गा का ही सौम्य रूप है. आइए जानते हैं आदि शक्ति मां दुर्गा ने शाकंभरी देवी का अवतार आखिर क्यों लिया था. इस दिन माता की पूजा कैसे करें, क्या विधि है और क्या है मुहूर्त. जानिए...

Shankabhari Jayanti 2023
माता शाकंभरी देवी

माता शांकभरी देवी का पौराणिक कथा: मां दुर्गा देवी ने भयंकर अकाल के समय शांकभरी देवी (Shakambhari Devi) का अवतार लिया था. (significance shakambhari devi) तब धरती पर कई सालों तक भयंकर अकाल पड़ा था. अकाल से फसल न होने पर भारी खाद्य संकट पैदा हो गया. इससे परेशान भक्तों ने दुर्गा देवी से प्रार्थना की थी, तब माता ने शांकभरी देवी का अवतार लिया. मां शांकभरी देवी की हजारों आखें थीं. इन आंखों से लगातार 9 दिनों तक पानी बरसता रहा, जिसके बाद पृथ्वी पर हरियाली छाई और अकाल से लोगों को निजात मिली. मां शाकंभरी वनस्पति की देवी मानी जाती हैं, जो आदि शक्ति दुर्गा का ही अवतार हैं. हजारों आंखें होने की वजह से शांकभरी देवी का एक नाम शताक्षी भी है.

chher chhera punni tihar
छेरछेरा मांगने जाती बच्चियां

शाकंभरी पूर्णिमा 2023 की तिथि और समय: इस साल पौष माह की पूर्णिमा तिथि शुक्रवार 5-6 जनवरी 2023 की मध्यरात्रि 2 बजकर 14 मिनट से शुरू हो रही है. शाकंभरी पूर्णिमा का समापन अगले दिन यानी कि 6 और 7 जनवरी 2023 को सुबह 04 बजकर 37 मिनट पर होगा.

यह भी पढ़ें: Makar Sankranti 2023: मकर संक्रांति में पतंगबाजी का है पौराणिक महत्व

शांकभरी पूर्णिमा पर इस विधि से करें पूजा (Shakambhari Devi Puja Vidhi)
शांकभरी पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. मां शांकभरी की चौकी सजाएं और विधि विधान के साथ पूजा करें. माता की आरती उतारें, सब्जी और फलों का भोग लगाएं. मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ाएं और जरूरतमंद लोगों को दान जरूर दें.

छत्तीसगढ़ में शाकंभरी जयंती पर मनाते हैं छेरछेरा पुन्नी: छत्तीसगढ़ में शाकंभरी जयंती का पर्व पौष पूर्णिमा के दिन बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. छत्तीसगढ़ में इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार (chher chhera punni tihar) भी कहते हैं. इसे छेरछेरा अर्थात दान लेने और देने पर्व माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती. इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं. इस मौके पर युवा डंडा नृत्य करते हैं.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी मनाते हैं छेरछेरा तिहार: छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए शासन सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं. इनमें छेरछेरा तिहार (मां शाकंभरी जयंती) भी शामिल है. राज्य में इन तीज-त्यौहारों को व्यापक स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें शासन की भी भागीदारी होती है. इन पर्वों के दौरान शासकीय आयोजन और महत्वपूर्ण शासकीय घोषणाएं भी की जाती हैं. छेरछेरा पुन्नी के दिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी छत्तीसगढ़ की परम्पराओं को निभाते हुए छेरछेरा मांगते हैं.

chher chhera punni tihar in cm house 2022
सीएम हाउस में छेरछेरा तिहार मनाते मुख्यमंत्री बघेल

छत्तीसगढ़ में बेहद लोकप्रिय है छेरछेरा गीत: दान का पर्व छेरछेरा पर बच्चे गली मोहल्लों, घरों में जाकर छेरछे (दान) मांगते हैं. दान लेते समय बच्चे जब तक ‘छेर छेरा, माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ गीत गाते रहते हैं, जब तक गृहस्वामिनी अन्न दान नहीं देंती. तब तक वे कहते रहेंगे- ‘अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन’. इसका मतलब बच्चे कह रहे हैं कि, "मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे, तब तक हम नहीं जाएंगे." छेरछेरा पर्व में अमीर गरीब के बीच दूरी कम करने और आर्थिक विषमता को दूर करने का संदेश छिपा है. इस पर्व में अहंकार के त्याग की भावना है, जो हमारी परम्परा से जुड़ी है. सामाजिक समरसता सुदृढ़ करने में भी इस लोक पर्व को छत्तीसगढ़ के गांव और शहरों में लोग उत्साह से मनाते हैं.

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