रायपुर : रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में अलसी प्रोजेक्ट (Scientists of Raipur doing linseed project research) पर साल 1968 से काम किया जा रहा है. वर्तमान में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक अलसी के 12 किस्म पर रिसर्च कर रहे हैं. सभी किस्म उन्नतशील होने के साथ-साथ उनमें खाद्य तेल और ओमेगा 3 की मात्रा अधिक है. आने वाले कुछ सालों में खाद्य तेल की प्रतिपूर्ति अलसी से होगी. अलसी खाद्य तेल के एक विकल्प के रूप में देखने को मिलेगा.
डिपार्टमेंट ऑफ जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग पर रिसर्च कर रहे वैज्ञानिक
इसको लेकर वैज्ञानिक डिपार्टमेंट ऑफ जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग पर रिसर्च कर रहे हैं. वैज्ञानिक नंदन मेहता ने बताया कि अलसी प्रोजेक्ट पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में रिसर्च की शुरुआत साल 1968 से की गई है. वर्तमान में अलसी की 12 किस्मों पर रिसर्च चल रहा है. उन्नतशील होने के साथ-साथ इनमें खाद्य तेल और ओमेगा 3 की मात्रा अधिक है, जो गरीब और सीमांत किसानों के लिए फायदेमंद होगा. अलसी की नई-नई और अलग-अलग प्रजातियां विकसित की जा रही हैं. ये कम लागत के साथ ही अधिक पैदावार देंगी.
अलसी से अधिक मात्रा में खाद्य तेल और ओमेगा 3 निकालने पर हो रहा रिसर्च
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक जिन किस्मों को लेकर अभी रिसर्च कर रहे हैं उनमें अलसी से अधिक मात्रा में खाद्य तेल और ओमेगा 3 कैसे निकाला जाए, इस पर भी उनका अनुसंधान चल रहा है. साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जा रहा है कि लंबे धागे वाले लेनिन के लिए फ्लैक्स वेराइटी के लिए अलसी में किस तरह का वैल्यू एडिशन किया जाए. जिससे अलसी को पूरी तरह से खाद्य तेल के रूप में उपयोग में लाया जा सके. इन बातों को लेकर समन्वित परियोजना और एक टीम वर्क के रूप में इस पर वैज्ञानिक अनुसंधान कर रहे हैं.
कम पानी और खाद में अच्छी पैदावार देती है अलसी
अलसी को लेकर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के सह संचालक वीके त्रिपाठी ने बताया कि अलसी रबी की एक बड़ी प्रमुख फसल है. यह कम पानी के साथ ही कम खाद में अच्छी पैदावार देती है. अलसी में करीब 40 प्रतिशत तेल होता है. एक समय में छत्तीसगढ़ में इसे उतेरा खेती के रूप में अच्छी फसल माना जाता था. छत्तीसगढ़ के करीब 3 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में अलसी की फसल उगाई जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे यह घटकर पूरे छत्तीसगढ़ में 30 हजार हैक्टेयर रकबे में सिमटकर रह गई है.
12 प्रजातियां विकसित, यूनिवर्सिटी में एक हैक्टेयर में 25 क्विंटल की पैदावार
वीके त्रिपाठी ने आगे बताया कि अलसी की 12 प्रजातियां विकसित की गई हैं, जिससे छत्तीसगढ़ के किसान एक हैक्टेयर में 15 क्विंटल तक अलसी की फसल उगा सकते हैं. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में नई और उन्नत तकनीक का इस्तेमाल करते हुए एक हैक्टेयर में करीब 25 क्विंटल तक अलसी की पैदावार वर्तमान में हो रही है. उन्होंने बताया कि अलसी का मुख्य रूप से खाद्य तेल के रूप में उपयोग नहीं हो रहा है. वर्तमान समय में इसका उपयोग दवा, वार्निश और पेंट बनाने जैसे कामों में किया जा रहा है.
आगामी चार साल में पूरी तरह खाद्य तेल बन जाएगा अलसी!
अलसी को लेकर विश्वविद्यालय में रोग प्रतिरोधक जातियां, उच्च उत्पादन की जातियां और खाद्य तेल के लिए जातियों के विकास पर अनुसंधान चल रहा है. आगामी चार सालों में अलसी को पूरी तरह से खाद्य तेल बनाने में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में रिसर्च कर रहे वैज्ञानिक सफल होंगे. वर्तमान समय में देश में करीब 75 हजार करोड़ रुपए का खाद्य तेल आयात किया जाता है. उसकी प्रतिपूर्ति अलसी एक अच्छा विकल्प हो सकता है. इस दिशा में अनुसंधान कार्य चल रहा है.