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महंगी बिजली और कोयले के बढ़ते दामों के कारण कहीं खत्म न हो जाए रोलिंग मिल - छत्तीसगढ़ रोलिंग मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष मनोज अग्रवाल

रायपुर में महंगी बिजली और कोयले के बढ़ते दामों के कारण रोलिंग मिल (Raipur Rolling Mill) का अस्तित्व खत्म होता नजर आ रहा है. ईटीवी भारत ने इस विषय में छत्तीसगढ़ रोलिंग मिल एसोसिएशन के सदस्यों से बातचीत की है.

Raipur Rolling Mill
रायपुर रोलिंग मिल
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Published : Apr 28, 2022, 10:43 PM IST

रायपुर: देश में कोल संकट के कारण नॉन पावर सेक्टर उद्योग प्रभावित हो रहा (Raipur Rolling Mill ) है. छत्तीसगढ़ के रोलिंग मिल उद्योग को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. एक ओर कोयला की आपूर्ति नहीं होने के कारण व्यवसाय प्रभावित हो रहा है. तो वहीं दूसरी ओर महंगी बिजली की मार मिल कारखानों को झेलनी पड़ रही है. आलम यह है कि रोलिंग मिल बंद होने की कगार पर पहुंच गया है.

रोलिंग मिल पर संकट

कोयला का दाम तीन गुना बढ़ा: इस विषय में छत्तीसगढ़ रोलिंग मिल एसोसिएशन के महासचिव बांके बिहारी अग्रवाल ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि "छत्तीसगढ़ में रोलिंग मिल उद्योग कोर बिजनेस है. 35 साल पहले सरकार द्वारा जब उरला और सिलतरा डेवलप किया गया था, रोलिंग मिल उस समय लगी हुई है. पहले कोरोना संक्रमण के बाद कोयला के दामों में बढ़ोतरी होने के कारण कोयले के दाम 3 गुना बढ़ गया है. नोडल एजेंसी के तौर पर हम लोग सरकार से कोयला मांग रहे हैं. लेकिन हम लोगों को डोमेस्टिक कोयला नहीं मिल रहा है. अभी तक 10 रोलिंग मिल बंद हो चुकी है. सरकार की जो नीति है. बड़े उद्योगों को बिजली 5.50 रुपए से 6 रुपए प्रति यूनिट की दर से मिलती है. लेकिन हमारी रोलिंग मिल को बिजली 8.50 से 9 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली मिल रही है. एक समान बनाने के लिए दो अलग-अलग दाम में बिजली मिल रही है. इसलिए उत्पादन लागत ज्यादा आ रही है और हम कॉम्पिटिशन से भी बाहर हो जाएंगे".

ये मिलें रोजगार के साथ जीएसटी भी अधिक दे रही: बांके बिहारी अग्रवाल ने कहा कि "पुरानी रोलिंग मिल सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार दे रही है और जीएसटी का राजस्व भी सरकार को ज्यादा दे रही है. हम सरकार से आग्रह करते हैं कि सरकार इस दिशा में सोचे. बिजली की दर में राज्य सरकार निराकरण करें. आज रोलिंग मिल मरने की कगार पर है. गुजारिश है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार इस ओर ध्यान दें".

यह भी पढ़ें: राजस्थान कोयला आपूर्ति मामले में अंतिम अनुमति बाकी, आदिवासी हित से समझौता नहीं : सीएम बघेल

तो बंद हो जाएगा रोलिंग मिल: वहीं, इस विषय में छत्तीसगढ़ रोलिंग मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष मनोज अग्रवाल का कहना है कि "रोलिंग मिल को साल में 3 लाख से चार लाख टन कोयले कि आवश्यकता होती है. कोयला नहीं मिलने के कारण 50 फीसद उत्पादन में उद्योग चल रहा है. इंपोर्ट होने वाला कोयला चार गुना महंगा मिल रहा है, जिसके कारण उत्पादन लागत ज्यादा हो गई है. कोयले की ओर अगर सरकार की तरफ से ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ की पूरी रोलिंग मिल बंद हो जाएगी. राज्य सरकार द्वारा भी बिजली में हमें रियायत नहीं मिल रही है, बड़े स्टील उद्योग को कम दामों में बिजली दी जा रही है. रोलिंग मिल को अधिक दाम में बिजली मिल रही है. 2 साल से सरकार से गुहार लगाई जा रही है कि हमें बिजली के दामों में राहत दी जाए लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई पहल नहीं की गई है. उत्पादन लागत ज्यादा आने के कारण हम अपना उद्योग नहीं चला पा रहे हैं. सरकार जल्द इस बारे में निर्णय नहीं लेगी तो जल्द ही रोलिंग मिलें बंद हो जाएगी".

उद्योग बंद कर चाभी सरकर को सौंपने की तैयारी: अध्यक्ष मनोज अग्रवाल का कहना है कि "उद्योग की स्थिति बेहद खराब है और सरकार महंगे कोयले और महंगी बिजली को लेकर राहत नहीं देगी तो हम अपना उद्योग बंद करके चाभी सरकार को सौंप देंगे. महंगे बिजली और महंगे कोयले के कारण अब प्लांट चलाना मुश्किल हो गया है. मनोज अग्रवाल ने बताया कि अधिकारियों को बिजली के संबंध में कहा जाता है तो वो कहते हैं कि बड़े उद्योगों को बिजली के लोड फैक्टर का फायदा दे रहे हैं. कहते है कि रोलिंग मिल 10 से 13 घंटे चलती है, तो वह लोड फैक्टर कैसे लेगी? बड़े उद्योग 24 घंटे चलते हैं और उनका लोड फैक्टर 80 फीसद आता है. सरकार द्वारा 50 फीसद से अधिक लोड फैक्टर होने पर बेनिफिट देती है. हमने कहा है कि लोड फैक्टर अगर हमें नहीं मिल रहा है तो हमें सब्सिडी के जरिए राहत दी जाए. आखिर कुछ ना कुछ सरकार को समानता रखनी होगी. राज्य सरकार से हमारी गुजारिश है सरकार रोलिंग मिल को राहत दें. यह छोटी-छोटी रोलिंग मिल सबसे ज्यादा रोजगार दे रही है. जीएसटी के जरिए सरकार को राजस्व मिल रहा है. सरकार को इस ओर विचार करना पड़ेगा नहीं तो रोलिंग मिल बंद हो जाएगी".

मिल बंद होने से हजारों लोग होंगे बेरोजगार: एसोसिएशन के अध्यक्ष ने बताया कि "छत्तीसगढ़ में करीब 175 रोलिंग मिल है, जबकि रायपुर में ही 125 मिले संचालित हो रही है. रोलिंग मिलों में वर्तमान में 50 फीसद ही उत्पादन हो रहा है. 1 सप्ताह काम होता है तो दूसरे सप्ताह काम बंद रहता है. छत्तीसगढ़ में जितने रोलिंग मिल वहां हजारों की संख्या में लोग रोजगार से जुड़े हुए हैं. अगर यह रोलिंग मिल बंद हुई तो हजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे".

क्या है रोलिंग मिल: रोलिंग मिल स्टील उद्योग से जुड़े व्यवसाय है. छत्तीसगढ़ में तीन स्टेज में लोहा बनता है. पहले स्पंज आयरन बनता है. मिनी स्टील प्लांट में बिलेट इंगोट बनता है. उनका उत्पाद लाकर उसे रोलिंग करके स्टील के एंगल चैनल, पाइप, टीएमटी बनाए जाते हैं. दो प्रकार की रोलिंग मिलें होती है. एक मिनी स्टील प्लांट विथ रोलिंग मिल, जिसे हॉट रोलिंग मिल कहा जाता है. इस रोलिंग मिल में बिलेट को गर्म नहीं करना पड़ता है. इसमें स्टील प्रोडक्ट सीधे बनते हैं जबकि स्टैंड अलोन रिहीटिंग रोलिंग मिल में बिलेट को दोबारा गर्म करना पड़ता है. इसमें कोयला और बिजली दोनों लगती है. तब स्टील के प्रोडक्ट्स बनाए जाते है. स्टैंड अलोन रिहीटिंग रोलिंग मिल में उत्पादन लागत ज्यादा आती है.

रायपुर: देश में कोल संकट के कारण नॉन पावर सेक्टर उद्योग प्रभावित हो रहा (Raipur Rolling Mill ) है. छत्तीसगढ़ के रोलिंग मिल उद्योग को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. एक ओर कोयला की आपूर्ति नहीं होने के कारण व्यवसाय प्रभावित हो रहा है. तो वहीं दूसरी ओर महंगी बिजली की मार मिल कारखानों को झेलनी पड़ रही है. आलम यह है कि रोलिंग मिल बंद होने की कगार पर पहुंच गया है.

रोलिंग मिल पर संकट

कोयला का दाम तीन गुना बढ़ा: इस विषय में छत्तीसगढ़ रोलिंग मिल एसोसिएशन के महासचिव बांके बिहारी अग्रवाल ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि "छत्तीसगढ़ में रोलिंग मिल उद्योग कोर बिजनेस है. 35 साल पहले सरकार द्वारा जब उरला और सिलतरा डेवलप किया गया था, रोलिंग मिल उस समय लगी हुई है. पहले कोरोना संक्रमण के बाद कोयला के दामों में बढ़ोतरी होने के कारण कोयले के दाम 3 गुना बढ़ गया है. नोडल एजेंसी के तौर पर हम लोग सरकार से कोयला मांग रहे हैं. लेकिन हम लोगों को डोमेस्टिक कोयला नहीं मिल रहा है. अभी तक 10 रोलिंग मिल बंद हो चुकी है. सरकार की जो नीति है. बड़े उद्योगों को बिजली 5.50 रुपए से 6 रुपए प्रति यूनिट की दर से मिलती है. लेकिन हमारी रोलिंग मिल को बिजली 8.50 से 9 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली मिल रही है. एक समान बनाने के लिए दो अलग-अलग दाम में बिजली मिल रही है. इसलिए उत्पादन लागत ज्यादा आ रही है और हम कॉम्पिटिशन से भी बाहर हो जाएंगे".

ये मिलें रोजगार के साथ जीएसटी भी अधिक दे रही: बांके बिहारी अग्रवाल ने कहा कि "पुरानी रोलिंग मिल सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार दे रही है और जीएसटी का राजस्व भी सरकार को ज्यादा दे रही है. हम सरकार से आग्रह करते हैं कि सरकार इस दिशा में सोचे. बिजली की दर में राज्य सरकार निराकरण करें. आज रोलिंग मिल मरने की कगार पर है. गुजारिश है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार इस ओर ध्यान दें".

यह भी पढ़ें: राजस्थान कोयला आपूर्ति मामले में अंतिम अनुमति बाकी, आदिवासी हित से समझौता नहीं : सीएम बघेल

तो बंद हो जाएगा रोलिंग मिल: वहीं, इस विषय में छत्तीसगढ़ रोलिंग मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष मनोज अग्रवाल का कहना है कि "रोलिंग मिल को साल में 3 लाख से चार लाख टन कोयले कि आवश्यकता होती है. कोयला नहीं मिलने के कारण 50 फीसद उत्पादन में उद्योग चल रहा है. इंपोर्ट होने वाला कोयला चार गुना महंगा मिल रहा है, जिसके कारण उत्पादन लागत ज्यादा हो गई है. कोयले की ओर अगर सरकार की तरफ से ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ की पूरी रोलिंग मिल बंद हो जाएगी. राज्य सरकार द्वारा भी बिजली में हमें रियायत नहीं मिल रही है, बड़े स्टील उद्योग को कम दामों में बिजली दी जा रही है. रोलिंग मिल को अधिक दाम में बिजली मिल रही है. 2 साल से सरकार से गुहार लगाई जा रही है कि हमें बिजली के दामों में राहत दी जाए लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई पहल नहीं की गई है. उत्पादन लागत ज्यादा आने के कारण हम अपना उद्योग नहीं चला पा रहे हैं. सरकार जल्द इस बारे में निर्णय नहीं लेगी तो जल्द ही रोलिंग मिलें बंद हो जाएगी".

उद्योग बंद कर चाभी सरकर को सौंपने की तैयारी: अध्यक्ष मनोज अग्रवाल का कहना है कि "उद्योग की स्थिति बेहद खराब है और सरकार महंगे कोयले और महंगी बिजली को लेकर राहत नहीं देगी तो हम अपना उद्योग बंद करके चाभी सरकार को सौंप देंगे. महंगे बिजली और महंगे कोयले के कारण अब प्लांट चलाना मुश्किल हो गया है. मनोज अग्रवाल ने बताया कि अधिकारियों को बिजली के संबंध में कहा जाता है तो वो कहते हैं कि बड़े उद्योगों को बिजली के लोड फैक्टर का फायदा दे रहे हैं. कहते है कि रोलिंग मिल 10 से 13 घंटे चलती है, तो वह लोड फैक्टर कैसे लेगी? बड़े उद्योग 24 घंटे चलते हैं और उनका लोड फैक्टर 80 फीसद आता है. सरकार द्वारा 50 फीसद से अधिक लोड फैक्टर होने पर बेनिफिट देती है. हमने कहा है कि लोड फैक्टर अगर हमें नहीं मिल रहा है तो हमें सब्सिडी के जरिए राहत दी जाए. आखिर कुछ ना कुछ सरकार को समानता रखनी होगी. राज्य सरकार से हमारी गुजारिश है सरकार रोलिंग मिल को राहत दें. यह छोटी-छोटी रोलिंग मिल सबसे ज्यादा रोजगार दे रही है. जीएसटी के जरिए सरकार को राजस्व मिल रहा है. सरकार को इस ओर विचार करना पड़ेगा नहीं तो रोलिंग मिल बंद हो जाएगी".

मिल बंद होने से हजारों लोग होंगे बेरोजगार: एसोसिएशन के अध्यक्ष ने बताया कि "छत्तीसगढ़ में करीब 175 रोलिंग मिल है, जबकि रायपुर में ही 125 मिले संचालित हो रही है. रोलिंग मिलों में वर्तमान में 50 फीसद ही उत्पादन हो रहा है. 1 सप्ताह काम होता है तो दूसरे सप्ताह काम बंद रहता है. छत्तीसगढ़ में जितने रोलिंग मिल वहां हजारों की संख्या में लोग रोजगार से जुड़े हुए हैं. अगर यह रोलिंग मिल बंद हुई तो हजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे".

क्या है रोलिंग मिल: रोलिंग मिल स्टील उद्योग से जुड़े व्यवसाय है. छत्तीसगढ़ में तीन स्टेज में लोहा बनता है. पहले स्पंज आयरन बनता है. मिनी स्टील प्लांट में बिलेट इंगोट बनता है. उनका उत्पाद लाकर उसे रोलिंग करके स्टील के एंगल चैनल, पाइप, टीएमटी बनाए जाते हैं. दो प्रकार की रोलिंग मिलें होती है. एक मिनी स्टील प्लांट विथ रोलिंग मिल, जिसे हॉट रोलिंग मिल कहा जाता है. इस रोलिंग मिल में बिलेट को गर्म नहीं करना पड़ता है. इसमें स्टील प्रोडक्ट सीधे बनते हैं जबकि स्टैंड अलोन रिहीटिंग रोलिंग मिल में बिलेट को दोबारा गर्म करना पड़ता है. इसमें कोयला और बिजली दोनों लगती है. तब स्टील के प्रोडक्ट्स बनाए जाते है. स्टैंड अलोन रिहीटिंग रोलिंग मिल में उत्पादन लागत ज्यादा आती है.

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