रायपुर: भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव की जोड़ी को प्रदेश के लोग कई अन्य नामों से जानते हैं. "जय-वीरू" और "कका-बाबा" के नाम से भी इनकी पहचान है. विधानसभा चुनाव 2018 के पहले तो उनकी जोड़ी लोगों की जुबान पर रहती थी. लोग इनकी दोस्ती की मिसाल देते थे.
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साथ में नजर आते थे जय और वीरू : उस दौरान कुछ माहौल भी प्रदेश में ऐसा ही था. कहीं भी यदि इन दोनों को जाना है तो साथ में ही जाते थे, मंच भी साथ में ही साझा करते थे, यहां तक कि भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव एक कार में सवार होकर कहीं जा रहे हैं तो उस कार को सिंहदेव चलाते थे और उनके बगल में भूपेश बघेल बैठे होते थे. यह दृश्य कई बार देखने को मिला. यही वजह थी कि उन दिनों इन्हें 'जय और वीरू' के नाम से भी जाना जाने लगा था.
भूपेश-सिंहदेव, जय-वीरू और कका-बाबा की दोस्ती को लेकर आज फ्रेंडशिप डे के मौके पर लोगों का कहना है कि वह दिन और थे और आज दिन पूरी तरह से बदल गए हैं. हालांकि कुछ लोग यह भी कहते नजर आए कि भले ही राजनीतिक रूप से उनमें दूरियां दिख रही हो. लेकिन उनके दिल आज भी मिले हुए हैं और उनकी दोस्ती बरकरार है.
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सीएम भूपेश ने पूछा था कालिया और सांभा कौन?: मैनपाट महोत्सव फरवरी 2019 में टीएस सिंहदेव और सीएम भूपेश बघेल शामिल हुए थे. इस दौरान सीएम भूपेश बघेल ने कहा था कि 'महाराज साहब लक्ष्य तय करते हैं और हम सब उसे पूरा करते हैं.' सिंहदेव ने कहा था कि हम सभी साथ हैं. यह तो जय-वीरू की जोड़ी वाली बात है. 2021 के मॉनसून सत्र के दौरान भी जय-वीरू की जोड़ी को लेकर सदन में ठहाके लगे थे. विपक्षी सदस्यों ने चुटकी भरे अंदाज में कहा कि जय-वीरू की जोड़ी. इस पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी त्वरित जवाब देते हुए कहा था कि जय-वीरू की जोड़ी तो ठीक है, लेकिन पहले ये बताइये कि कालिया और सांभा कौन है? दरअसल, यह हंसी-ठिठोली कांग्रेस विधायक बृहस्पत सिंह प्रकरण खत्म होने के बाद छत्तीसगढ़ विधानसभा में देखने को मिली.
जय-वीरू के बीच आखिर क्यों बढ़ी दूरियां:सरकार के ढाई साल पूरा होने के बाद जैसे ही मुख्यमंत्री बदलने की आंधी चली. टीएस सिंहदेव खेमा को कमजोर करने की कोशिश शुरू हो गई. सिंहदेव समर्थक विधायक भी पाला बदलने लगे. टीएस सिंहदेव की अनुशंसाओं की फाइलें डंप की जाती रहीं. मंत्री के विभाग में दखल और सचिवों की कमेटियों का निर्णय जाहिर सी बात है. किसी मंत्री के लिए यह सहज स्थिति नहीं है. इसे लेकर टीएस सिंहदेव लंबे समय से सरकार से खफा हैं.
सरगुजा संभाग में टीएस समर्थकों पर पुलिस और प्रशासन द्वारा टारगेटेड कार्रवाई और सिंहदेव के प्रशासनिक प्रोटोकॉल तक का पालन नहीं करने से उनकी नाराजगी और बढ़ी. प्रदेश स्तरीय दौरे के दौरान उन्हें हेलीकॉप्टर तक उपलब्ध नहीं कराया गया. दंतेवाड़ा-बस्तर में अफसर उनसे मिलने तक नहीं आए. इनकी नाराजगी इतनी बढ़ी कि उन्होंने पंचायत विभाग के मंत्री पद से भी इस्तीफा दे दिया. बावजूद इसके उनकी पूछ परख नहीं की गई. लगातार उपेक्षा पर वह हमेशा कहते रहे हाईकमान निर्णय लेगा.
रमन सरकार में थी सिंहदेव की बेहतर स्थिति: टीएस सिंहदेव की इससे बेहतर स्थिति भाजपा के डॉ. रमन सिंह सरकार में थी, जब वे नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में थे. उनकी पूछ परख होती थी विपक्ष भी उनकी बातों को सम्मान देता था. उनके कामों पर अड़ंगा नहीं लगाया जाता था. वे अपने सहज, सरल सौम्य स्वभाव की वजह से पक्ष विपक्ष दोनों के भी चाहते थे. लेकिन अब परिस्थिति बदल चुकी है.