रायपुर : रास्पबेरी या रसभरी एक स्वादिष्ट और पौष्टिक खाने योग्य फल है. जो प्राकृतिक तौर पर ठंडे जलवायु क्षेत्र में बढ़ते हैं. हालांकि इसकी खेती अधिकांश जलवायु क्षेत्र में हो सकती है. रसभरी की खेती ताजे फल बाजार और व्यावसायिक प्रोद्योगिकी के लिए होती है. जिसमें अलग-अलग तेजी से जमनेवाले फल, प्यूरी, रस या सूखे फल जैसे कई प्रकार के रसोई संबंधी उत्पाद किए जा सकते हैं. रास्पबेरी उपजाना बेहद मजेदार है और लगातार इसकी प्रसिद्धि बढ़ रही है. ऐसे फल हाथ से तोड़े जा सकते हैं और स्ट्राबेरी के ठीक बाद और ब्लूबेरी के ठीक पहले तैयार हो जाते हैं। रास्पबेरी की पूरी फसल की उम्मीद पौधारोपन के तीन साल बाद की जा सकती है और इसके पेड़ 10 से 15 साल तक फल देते रहते हैं. प्रदेश के किसान अक्टूबर-नवंबर में रसभरी की खेती प्रारंभ करते हैं, तो मार्च-अप्रैल तक इसकी खेती प्रदेश के किसान आसानी से कर सकते हैं.Earn profit from raspberry crop
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कैसे करें रसभरी की खेती : इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ फल वैज्ञानिक डॉ घनश्याम साहू बताते हैं कि "मुख्य खेत में रसभरी की खेती करते समय किसानों को कुछ मुख्य बातों को ध्यान में रखना होगा. इसके लिए पौधे से पौधे की दूरी 75 सेंटीमीटर होनी चाहिए, और कतार से कतार की दूरी 80 सेंटीमीटर होनी चाहिए. ठंड के मौसम में प्रदेश के किसान रसभरी की खेती करना वरदान साबित होगा. रसभरी की खेती करते समय किसानों को चूसक कीट का प्रकोप से बचना होगा. ऐसे में इससे बचाव के लिए किसानों को 10 दिन के अंतराल में नीम आयल, ब्रह्मास्त्र या नीमास्त्र कीटनाशक दवा का प्रयोग करना चाहिए. जिससे कीट के प्रकोप से किया जा सके. इस दवा के छिड़काव से प्रदेश की किसान रसभरी की अच्छी पैदावार ले सकते हैं." benefits of raspberry crop