रायपुर: छत्तीसगढ़ की स्वर कोकिला ममता चंद्राकर ने छत्तीसगढ़ की लोक गायकी को देश दुनिया तक पहुंचाया. अपनी सुरीली आवाज में आज भी जब वे "तोर मन कईसे लागे राजा..." गातीं हैं, तो हर छत्तीसगढ़ी का दिल झूम उठता है. छत्तीसगढ़ की संस्कृति और लोक कला के क्षेत्र में योगदान के लिए ममता चंद्राकर को 12 अप्रैल 2016 को पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया. लोक गायकी के लिए ममता को साल 2023 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, साल 2019 में छत्तीसगढ़ी विभूति अलंकरण, 2013 में छत्तीसगढ़ रत्न, 2012 में दाऊ दुलार सिंह मंदराजी सम्मान से भी सम्मानित किया गया है.
ममता जी ने पिता से हासिल की संगीत की तालिम: ममता चंद्राकर ने इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ में कला क्षेत्र से डिग्री हासिल की. आज वह इसी विश्वविद्यालय में कुलपति के तौर पर पदस्थ हैं. ममता चंद्राकर का जन्म छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में 3 दिसंबर 1958 को हुआ. ममता के पिता डॉ महा सिंह चंद्राकर स्वयं एक लोक गायक रहे. जिन्होंने साल 1974 में 'सोनहा बिहान' नाम की एक छालीवुड कंपनी भी शुरू की थी. वहीं उनकी माता गयाबाई चंद्राकर एक घरेलू महिला थी. ममता चंद्राकर ने गायकी की पहली शिक्षा अपने पिता से ही ली. जिसके बाद उन्होंने इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय में दाखिला लिया.
सवाल: जिस यूनिवर्सिटी में आपने शिक्षा ग्रहण किया, आज आप उसी यूनिवर्सिटी में कुलपति हैं. आपका यह सफर कैसा रहा?
जवाब: "तोर मन कईसे लागे राजा..." गीत से मुझे एक अलग पहचान मिली है. क्योंकि वह दौर था कैसेट्स का. हालांकि 9 साल की उम्र से मैं गाना गा रही हूं, लेकिन इस गीत ने मुझे छत्तीसगढ़ में अपनी पहचान दिलाई है.
सवाल: जब आपको पद्मश्री सम्मान के लिए दिल्ली से फोन आया, तब आपको कैसा महसूस हुआ?
जवाब: किसी कलाकार या किसी व्यक्ति को उसकी कला के लिए जब सम्मान मिलता है, तो इस खुशी को शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है. वह खुशी अनमोल होती है. मेरी मां जब भी किसी को अवार्ड मिलते देखतीं, तो वह कहतीं कि यह अवार्ड तुम्हें क्यों नहीं मिलता. हालांकि जब मुझे सम्मान दिया गया, तब मेरी मां मेरे साथ नहीं थी.
सवाल: आपकी जिंदगी के इस सफर में कौन सी चुनौतियां आई और उसका सामना आपने कैसे किया?
जवाब: मुझे मेरे माता-पिता का समर्थन शुरू से मिला. मेरे माता-पिता स्वयं इस विधा में थे, लेकिन कहीं ना कहीं समाज नहीं चाहता था कि मैं आगे बढूं. लेकिन माता-पिता का समर्थन इतना रहा कि मुझे सामाजिक दबाव का सामना करने में काफी हिम्मत मिली.
सवाल: कला के क्षेत्र में महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए आपकी भविष्य में क्या योजनाएं हैं?
जवाब: आज की तिथि में मैं यह कहना चाहूंगी कि अब माध्यम बहुत हो गए हैं और लोग जागरुक भी हो चुके हैं. अब यह बहुत कम देखा जाता है कि महिलाओं को इस विधा में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित ना किया जाए. अब माता-पिता स्वयं जागरूक हैं और वह अपने बच्चों को कला के क्षेत्र में आगे बढ़ा रहे हैं.