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नदिया किनारे, किसके सहारे: मैं महानदी बोल रही हूं...

'नदिया किनारे, किसके सहारे' की शुरुआत महानदी से. वो नदी जिसकी गोद में बैठे छत्तीसगढ़ का गला कभी नहीं सूखा. किस हाल में है महानदी ये दर्द वह खुद बयां कर रही है.

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Published : Jun 16, 2019, 12:00 AM IST

रायपुर: ETV भारत की खास कवरेज 'नदिया किनारे, किसके सहारे' की शुरुआत महानदी से. वो नदी जिसकी गोद में बैठे छत्तीसगढ़ का गला कभी नहीं सूखा. किस हाल में है महानदी ये वो खुद बता रही है.

महानदी

'मैं महानदी हूं. पुराणों में मुझे चित्रोप्ला गंगा, महानंदा जैसे नामों से भी जाना जाता है. जब राम वन गमन पर गए थे तब भी मैं यहां मौजूद थी. महाभारत काल में भी मेरी महत्ता का गुणगान किया गया. महर्षि श्रृंगी की तप और प्रताप से मैं सिहावा के महेन्द्रगिरी पर्वत से प्रकट हुई और अपने आंचल में छत्तीसगढ़ और ओडिशा प्रांत के बड़े इलाके को ढककर रखा. मेरे तट पर धम तरी, राजिम, आरंग, सिरपुर, शिवरीनारायण जैसे कई नगर बसे हैं.'

बंगाल की खाड़ी में समाती है महानदी
'आप कह सकते हैं कि मेरे तट पर एक पूरी सभ्यता ने जन्म लिया और पल्वित हुई. धमतरी जिले के सिहावा से निकलकर छत्तीसगढ़ से होते हुए ओडिशा में बहती हूं और करीब 855 किलोमीटर का सफर तय कर बंगाल की खाड़ी में समा जाती हूं.'

खेत, कारखाने सबकी प्यास बुझाई
'मेरे किनारे बसे सैकड़ों गांव और नगर के लोगों ने मुझे शुरू से ही मां का दर्जा दिया और मैंने भी इस रिश्ते पर कभी सवाल नहीं उठने दिया. यहां के रहवासियों को मैंने अपने संतान की तरह ही पाला. कई बड़ी परियोजना बनाई गईं मुझ पर गंगरेल से लेकर हीराकुंड बांध तक कई डैम और बैराज बनाकर मुझे रोका गया. खेत से लेकर कारखानों तक की प्यास मैंने बुझाई.'

लगातार हो रहा है रेत उत्खनन
'अब लगता है मेरे संतानों का पेट मेरे जल से मेरे ऊपजाऊ मैदान से नहीं भरता. शायद उनकी जरूरत अब बढ़ गई है. तभी तो वे मेरे सीने को चीरकर रेत उत्खनन कर रहे हैं. मेरे गर्भ से इतनी रेत निकाली जा रही है कि आज मैं उस हालत में पहुंच गई हूं कि कोई मुझे नदी कहने से भी इनकार कर दे. बड़ी-बड़ी मशीनों के जरिए हर रोज हजारों ट्रक रेत निकाली जा रही है. मेरे तटों पर जो हरियाली थी, वो नदारद हो गई है. मुझे यहां लाने वाले ऋषि भी आज मेरी हालत पर आंसू बहा रहे होंगे.'

किसके सहारे महानदी ?
'आज ETV भारत के प्रतिनिधि मेरा हाल जानने आए. इनके माध्यम से मैं कुछ सवाल आज के हुक्मरान से करना चाहती हूं कि आखिर किस बात की सजा मुझे दी जा रही है ? क्या मेरे बिना भारत का ये मध्यभाग बच पाएगा. मेरे सीने में खंजर भोंगने का लाइसेंस आखिर क्यों दिया जा रहा हैं. मेरे तट पर लहलहाती हरियाली क्यों गुम हो गई. आखिर क्यों मुझे मारा जा रहा. जवाब दीजिए अगर मैं आपकी महानदी थी, तो आज मैं किसके सहारे हूं.'

रायपुर: ETV भारत की खास कवरेज 'नदिया किनारे, किसके सहारे' की शुरुआत महानदी से. वो नदी जिसकी गोद में बैठे छत्तीसगढ़ का गला कभी नहीं सूखा. किस हाल में है महानदी ये वो खुद बता रही है.

महानदी

'मैं महानदी हूं. पुराणों में मुझे चित्रोप्ला गंगा, महानंदा जैसे नामों से भी जाना जाता है. जब राम वन गमन पर गए थे तब भी मैं यहां मौजूद थी. महाभारत काल में भी मेरी महत्ता का गुणगान किया गया. महर्षि श्रृंगी की तप और प्रताप से मैं सिहावा के महेन्द्रगिरी पर्वत से प्रकट हुई और अपने आंचल में छत्तीसगढ़ और ओडिशा प्रांत के बड़े इलाके को ढककर रखा. मेरे तट पर धम तरी, राजिम, आरंग, सिरपुर, शिवरीनारायण जैसे कई नगर बसे हैं.'

बंगाल की खाड़ी में समाती है महानदी
'आप कह सकते हैं कि मेरे तट पर एक पूरी सभ्यता ने जन्म लिया और पल्वित हुई. धमतरी जिले के सिहावा से निकलकर छत्तीसगढ़ से होते हुए ओडिशा में बहती हूं और करीब 855 किलोमीटर का सफर तय कर बंगाल की खाड़ी में समा जाती हूं.'

खेत, कारखाने सबकी प्यास बुझाई
'मेरे किनारे बसे सैकड़ों गांव और नगर के लोगों ने मुझे शुरू से ही मां का दर्जा दिया और मैंने भी इस रिश्ते पर कभी सवाल नहीं उठने दिया. यहां के रहवासियों को मैंने अपने संतान की तरह ही पाला. कई बड़ी परियोजना बनाई गईं मुझ पर गंगरेल से लेकर हीराकुंड बांध तक कई डैम और बैराज बनाकर मुझे रोका गया. खेत से लेकर कारखानों तक की प्यास मैंने बुझाई.'

लगातार हो रहा है रेत उत्खनन
'अब लगता है मेरे संतानों का पेट मेरे जल से मेरे ऊपजाऊ मैदान से नहीं भरता. शायद उनकी जरूरत अब बढ़ गई है. तभी तो वे मेरे सीने को चीरकर रेत उत्खनन कर रहे हैं. मेरे गर्भ से इतनी रेत निकाली जा रही है कि आज मैं उस हालत में पहुंच गई हूं कि कोई मुझे नदी कहने से भी इनकार कर दे. बड़ी-बड़ी मशीनों के जरिए हर रोज हजारों ट्रक रेत निकाली जा रही है. मेरे तटों पर जो हरियाली थी, वो नदारद हो गई है. मुझे यहां लाने वाले ऋषि भी आज मेरी हालत पर आंसू बहा रहे होंगे.'

किसके सहारे महानदी ?
'आज ETV भारत के प्रतिनिधि मेरा हाल जानने आए. इनके माध्यम से मैं कुछ सवाल आज के हुक्मरान से करना चाहती हूं कि आखिर किस बात की सजा मुझे दी जा रही है ? क्या मेरे बिना भारत का ये मध्यभाग बच पाएगा. मेरे सीने में खंजर भोंगने का लाइसेंस आखिर क्यों दिया जा रहा हैं. मेरे तट पर लहलहाती हरियाली क्यों गुम हो गई. आखिर क्यों मुझे मारा जा रहा. जवाब दीजिए अगर मैं आपकी महानदी थी, तो आज मैं किसके सहारे हूं.'

Intro:महानदी स्पेशल भाग-1 ( इंट्रो पैकेज)

मैं महानदी हूं… पुराणों में मुझे चित्रोप्ला गंगा, महानंदा जैसे नामों से भी जाना जाता है … जब राम वन गमन पर गए थे तब भी मैं यहां मौजूद थी… महाभारत काल में भी मेरी महत्ता का गुणगान किया गया… महर्षि श्रृंगी की तप और प्रताप से मैं सिहावा के महेन्द्रगिरी पर्वत से प्रकट हुई और अपने आंचल में छत्तीसगढ़ और ओडिशा प्रांत के बड़े इलाके को ढककर रखा… मेरे तट पर धमतरी, राजिम, आरंग, सिरपुर, शिवरीनारायण जैसे कई नगर बसे हैं… आप कह सकते हैं कि मेरे तट पर एक पूरी सभ्यता ने जन्म लिया और पल्वित हुआ..धमतरी जिले के सिहावा से निकलकर छत्तीसगढ़ से होते हुए ओडिशा में बहती हूं और करीब 855 किलोमीटर का सफर तय कर बंगाल की खाड़ी में समा जाती हूं ….मेरे किनारे बसे सैकड़ों गांव और नगर के लोगों ने मुझे शुरू से ही मां का दर्जा दिया औऱ मैंने भी इस रिश्ते पर कभी सवाल नहीं उठने दिए…यहां के रहवासियों को मैंने अपने संतान की तरह ही पाला…. कई बड़ी परियोजना बनाई गई मुझ पर गंगरेल से लेकर हीराकुंड बांध तक कई डैम और बैराज बनाकर मुझे रोकागया… खेत से लेकर कारखानों की प्यास मेंने बुझाई… लेकिन अब लगता है मेरे संतानों का पेट मेरे जल से मेरे ऊपजाऊ मैदान से नहीं भरता… शायद उनकी जरूरत अब बढ़ गई है… तभी तो वे मेरे सीने को चीरकर रेत उत्खनन कर रहे हैं… मेरे गर्भ से इतनी रेत निकाली जा रही है कि आज मैं उस हालत में पहुंच गई हूं कि कोई मुझे नदी कहने से भी इनकार कर दे… बड़ी बड़ी मशीनों के जरिए हर रोज हजारों ट्रक रेत निकाली जा रही है… मेरे तटों पर जो हरियाली थी वो नदारद हो गई है… मुझे यहां लाने वाले ऋषि भी आज मेरी हालत पर आंसू बहा रहे होंगे…. आज ईटीवी भारत के प्रतिनिधि मेरा हाल जानने आए… इनके माध्यम से मैं कुछ सवाल आज के हुक्मरान से करना चाहती हूं कि आखिर किस बात की सजा मुझे दी जा रही है ? क्या मेरे बिना भारत का ये मध्यभाग बच पाएगा… मेरे सीने में खंजर भोंगने का लाइसेंस आखिर क्यों दिया जा रहा…. मेरे तट पर लहलहाती हरियाली क्यों गुम हो गई… आखिर क्यों मुझे मारा जा रहा… आखिर क्यो…..

नोट - इस खबर से संबंधित विजुअल एफटीपी की गई है कृपया देख लीजिएगाBody:मेरे तट पर धमतरी, राजिम, आरंग, सिरपुर, शिवरीनारायण जैसे कई नगर बसे हैं… आप कह सकते हैं कि मेरे तट पर एक पूरी सभ्यता ने जन्म लिया और पल्वित हुआ..धमतरी जिले के सिहावा से निकलकर छत्तीसगढ़ से होते हुए ओडिशा में बहती हूं और करीब 855 किलोमीटर का सफर तय कर बंगाल की खाड़ी में समा जाती हूं ….मेरे किनारे बसे सैकड़ों गांव और नगर के लोगों ने मुझे शुरू से ही मां का दर्जा दिया औऱ मैंने भी इस रिश्ते पर कभी सवाल नहीं उठने दिए…यहां के रहवासियों को मैंने अपने संतान की तरह ही पाला…. कई बड़ी परियोजना बनाई गई मुझ पर गंगरेल से लेकर हीराकुंड बांध तक कई डैम और बैराज बनाकर मुझे रोकागया… खेत से लेकर कारखानों की प्यास मेंने बुझाई… लेकिन अब लगता है मेरे संतानों का पेट मेरे जल से मेरे ऊपजाऊ मैदान से नहीं भरता… शायद उनकी जरूरत अब बढ़ गई है… तभी तो वे मेरे सीने को चीरकर रेत उत्खनन कर रहे हैं… मेरे गर्भ से इतनी रेत निकाली जा रही है कि आज मैं उस हालत में पहुंच गई हूं कि कोई मुझे नदी कहने से भी इनकार कर दे… बड़ी बड़ी मशीनों के जरिए हर रोज हजारों ट्रक रेत निकाली जा रही है… मेरे तटों पर जो हरियाली थी वो नदारद हो गई है… मुझे यहां लाने वाले ऋषि भी आज मेरी हालत पर आंसू बहा रहे होंगे….
Conclusion:आज ईटीवी भारत के प्रतिनिधि मेरा हाल जानने आए… इनके माध्यम से मैं कुछ सवाल आज के हुक्मरान से करना चाहती हूं कि आखिर किस बात की सजा मुझे दी जा रही है ? क्या मेरे बिना भारत का ये मध्यभाग बच पाएगा… मेरे सीने में खंजर भोंगने का लाइसेंस आखिर क्यों दिया जा रहा…. मेरे तट पर लहलहाती हरियाली क्यों गुम हो गई… आखिर क्यों मुझे मारा जा रहा… आखिर क्यो…..
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