रायपुर : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रामनवमी के पर्व को लेकर लोगों में उत्साह है. वीआईपी रोड स्थित राम मंदिर को भव्य तरीके से सजाया जा रहा है. 30 मार्च को दोपहर 12 बजे जन्म उत्सव शुरू होगा. भगवान श्रीराम का अभिषेक किया जाएगा. अभिषेक के बाद भोग सेवा की जाएगी. इसके बाद भंडारा होगा.
आकर्षक आतिशबाजी को लेकर लोगों में उत्साह : राम मंदिर में शाम 7 बजे महाआरती के साथ आतिशबाजी की जाएगी. रात 8 बजे से प्रसिद्ध भजन गायिका मैथिली ठाकुर का भजन संध्या कार्यक्रम है. पिछले साल ढाई लाख श्रद्धालु श्रीराम जन्मोत्सव कार्यक्रम में आए थे. इस बार मंदिर ट्रस्ट का अनुमान है कि 5 लाख से ज्यादा श्रद्धालु आएंगे.
मंदिर प्रांगण में अन्न प्रसादम की व्यवस्था : राम मंदिर में भक्तों के लिए राम मन्दिर अन्न प्रसादम की व्यवस्था है. 20 रुपए में यहां भरपेट भोजन मिलता है. 1500 लोग रोज प्रसाद ग्रहण करते हैं. यह सेवा साल भर चलती है. कोरोना काल में भी जरूरतमंदों को समिति ने शहर के अलग अलग क्षेत्रों में भोजन पहुंचाया है.
वैदिक शिक्षा के लिए छात्रावास : पुजारी हनुमंत लाल ने बताया कि " वनांचल क्षेत्र के बच्चों के लिए छात्रावास है. वैदिक शिक्षा के लिए वेद विद्यालय है. बच्चे वैदिक शिक्षा लेकर समाज के अच्छे आचार्य बन रहे हैं. वनांचल छात्रावास में बस्तर, सरगुजा और असम राज्य के बच्चे अलग अलग कोर्स में पढ़ाई कर रहे हैं. बच्चों के लिए सभी व्यवस्था नि:शुल्क है. बच्चों के लिए कपड़े से लेकर खाने पीने, रहने और सभी जरुरतों की व्यवस्था मन्दिर समिति करती है.''
मंदिर परिसर में बाल हनुमान : प्रमुख पुजारी हनुमंत लाल ने बताया कि "मंदिर परिसर में अंजनी पुत्र बाल हनुमान स्वरूप में हैं. राम मंदिर निर्माण से पहले परिसर में दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर था. साल 2020 में भगवान हनुमान मंदिर की पुनः प्रतिष्ठा की गई. माता अंजनी के गोद में बैठे भगवान हनुमान का स्वरूप बहुत कम देखने को मिलता है.
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मंदिर का श्रृंगार : मंदिर में श्रद्धालु अपनी इच्छा से दान करते हैं. श्रद्धालुओं ने मंदिर में स्वर्ण दान किया है. मंदिर ट्रस्ट ने श्रद्धालुकों के दान किए गए गोल्ड से भगवान का श्रृंगार बनवाया है . दान में आए सोने से भगवान का सिंहासन, आभूषण बनवाए गए. जयपुर के कारीगरों ने मंदिर के द्वार में सोने की कलाकारी की है. मंदिर के निर्माण में 8 साल का समय लगा. साल 2013-14 में निर्माण कार्य शुरू हुआ. 3 फरवरी 2017 में बसंत ऋतु की गुप्त नवरात्रि के दिन भगवान की प्रतिष्ठा हुई.