रायपुर : महादेव घाट में छठ पूजा की तैयारी जोर शोर से की जा रही है. महादेव घाट (Raipur Mahadev Ghat ) में अभी रंगाई पुताई का काम चल रहा है. 30 अक्टूबर और 31 अक्टूबर को महिलाएं और पुरुष घाट में छठ का पर्व मनाएंगी. जिसकी तैयारियां भी की जा रही है. साफ-सफाई का भी काम अभी महादेव घाट में चल रहा है.महादेव घाट में छठ पूजा के दिन रंगारंग कार्यक्रम पेश किए जाएंगे.मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी छठ पूजा के त्यौहार के दिन महादेव घाट पहुंचेंगे. (chhath parv 2022)
सीएम भूपेश ने दी छठ की शुभकामनाएं :मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उत्तर भारतीय और भोजपुरी समाज सहित समस्त प्रदेशवासियों को चार दिवसीय छठ महापर्व के नहाए-खाए से शुभारंभ की बधाई और शुभकामनाएं दी है. भूपेश बघेल ने अपने शुभकामना संदेश में कहा है कि ''सूर्य उपासना और छठी मईया के पूजन का यह पर्व सब के जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली लेकर आए.''
छठ पूजा में महिलाएं रहती है 36 घंटे का निर्जला व्रत : छठ पूजा महिलाएं अपने पति और बच्चे के लिए रखती हैं छठ पूजा का पर्व इसीलिए और मुश्किल माना जाता है क्योंकि महिलाएं इसमें 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। वही छठ पूजा के 4 दिन महिलाएं चप्पल नहीं पहनती हैं और रात को जमीन पर सोती हैं। इस पूजा की शुरुआत मुख्य रूप से बिहार और झारखंड से हुई जो अब देश विदेश में फैल चुकी (Preparation of Chhath in Raipur) है.
नहाए खाए के दिन लौकी की सब्जी और चावल का है विशेष महत्व : आज छठ पूजा का पहला दिन है जिसको नहाए खाए के नाम से जाना जाता है. आज के दिन महिलाएं सुबह उठकर स्नान करती हैं और साफ-सुथरे कपड़े पहन कर बिना लहसुन प्याज के लौकी की सब्जी और चावल खाती हैं. बता दें कि लौकी को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है. दिवाली के तीसरे दिन यानी गोवर्धन पूजा के दिन गेहूं को धोकर सुखाया जाता है.खरना के दिन ठेकुआ और खजुली बनाया जाता है जिसका प्रसाद छठ पूजा के दिन जो छठी मैया को चढ़ाया जाता है.
जाने कैसे भरी जाती है कोसी. क्या है परंपरा : सूर्य की पूजा का अपना खास महत्व होता है. यह पर्व पुत्र, पति और परिवार जनों के सुख और समृद्धि के लिए की जाती है. इस पर्व में लोग मन्नत रखते हैं और मन्नत पूरी होने पर लोग पूजन सामग्री का वितरण करते हैं या फिर कोसी भरते हैं. छठ पूजा से पहले चार या सात गन्ने से एक छत्र बनाया जाता है. एक लाल कपड़े में ठेकुआ, फलों का अर्कपात, केराव रखकर गन्ने की छत्र से बांधा जाता है.फिर छत्र के अंदर मिट्टी से बना हाथी रखा जाता है, जिसके ऊपर घड़ा रख दिया जाता है. मिट्टी से बने हाथी को सिंदूर लगाकर घड़े में मौसमी फल, ठेकुआ, अदरक, सुथनी सामग्रियां रखी जाती है. कोसी पर एक दीया जलाया जाता है, फिर कोसी के चारों ओर अर्घ्य की सामग्री से भरे सूप, डलिया, तांबे के पात्र और मिट्टी का ढक्कन रखकर दीप जलाए जाते हैं. अग्नि में धूप डालकर हवन करते हुए छठी मइया के सामने माथा टेककर आशीर्वाद लिया जाता है. अगली सुबह यही प्रक्रिया नदी के घाट पर दोहराई जाती है. यहां महिलाएं मन्नत पूरी होने की खुशी में मां के गीत गाते हुए छठी मां का आभार जताती हैं.