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SPECIAL: भू-राजस्व की धाराओं में संशोधन पर बवाल, आदिवासी समाज और विपक्ष ने भरी हुंकार

छत्तीसगढ़ सरकार ने विकास की संभावना तलाशने के उद्देश्य से वन अधिकार कानून में संशोधन के लिए आदिवासी विधायकों की कमेटी का गठन कर दिया है. इसका आदिवासी समाज विरोध कर रहे हैं. वही प्रदेश में उप-समिति के गठन पर सियासी पारा चढ़ा हुआ है.

sections of land revenue in chhhattisgarh
भू-राजस्व की धाराओं में संशोधन पर घमासान
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Published : Sep 14, 2020, 9:19 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की जमीन और अधिकारों को लेकर एक बार फिर से राज्य सरकार और आदिवासी समाज आमने-सामने है. दरअसल, राज्य सरकार की ओर से आदिवासियों की जमीन की खरीदी बिक्री के लिए कानून में बदलाव का प्रस्ताव लाया जा रहा है. वर्तमान कानून के तहत आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासी नहीं खरीद सकता है. अब छत्तीसगढ़ सरकार ने विकास की संभावनाओं को तलाशने के उद्देश्य से कानून में संशोधन के लिए आदिवासी विधायकों की कमेटी का भी गठन कर दिया है. इसे लेकर ना केवल आदिवासी समाज बल्कि विपक्ष और तमाम जानकार भी इसका विरोध कर रहे हैं.

आदिवासियों की जमीन पर सियासी घमासान

छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य राज्य के रूप में जाना जाता है. प्रदेश में बस्तर से लेकर सरगुजा तक का बड़ा भू-भाग आदिवासी समाज का प्रमुख इलाका माना जाता है. अब छत्तीसगढ़ सरकार विकास की संभावनाओं को तलाशने के उद्देश्य से वन अधिकार कानून में संशोधन करने जा रही है. जिसके लिए आदिवासी विधायकों की कमेटी का गठन भी कर दिया है. इसे लेकर अब तमाम आदिवासी समाज में विरोध भी शुरू हो चुका है.

पढ़ें-छत्तीसगढ़ में भू-राजस्व की धाराओं में संशोधन के लिए उप समिति गठित

आदिवासी समाज के पदाधिकारियों का कहना है कि पिछली सरकार जो गड़बड़ी कर रही थी उसे अब कांग्रेस सरकार संवैधानिक अमलीजामा पहनाने जा रही है. इसके लिए सरकार ने विधायकों की कमेटी बनाई है. सरकार की ओर से गठित कमेटी को रमन सरकार के कार्यकाल में हुए गैरकानूनी जमीन हस्तांतरण को वापस कराने का काम करना चाहिए. इसके विपरीत पुराने हस्तांतरण को कानूनी मान्यता देकर आदिवासियों की जमीन के लिए कॉरपोरेट लूट का रास्ता साफ किया जा रहा है.

सर्व आदिवासी समाज ने पहले भी किया था विरोध

पांचवी अनुसूची में स्पष्ट है कि आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासी नहीं खरीद सकते हैं. इससे आदिवासी समाज भूमिहीन हो जाएंगे. ऐसे में प्रदेश सरकार का संशोधन करने का प्रयास संविधान की मूल मंशा के खिलाफ है. सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि भू राजस्व संहिता की किन-किन धाराओं में संशोधन करना चाहती है. सरकार की मंशा आदिवासियों के हितों के खिलाफ होगी तो उसका पुरजोर विरोध किया जाएगा. पिछली भाजपा सरकार में भी आपसी सहमति से जमीन लेने के अधिकार का सर्व आदिवासी समाज ने विरोध किया था.

समिति में बस्तर और सरगुजा के आदिवासी विधायक शामिल

राज्य सरकार ने जनजाति समुदाय के हित में भू-राजस्व की धाराओं में संशोधन करने के संबंध में उप समिति गठित की है. इसमें बस्तर और सरगुजा के आदिवासी विधायकों को शामिल किया गया है. समिति में विधायक मोहन मरकाम, चिंतामणि महाराज, इंदरशाह मंडावी, लक्ष्मी ध्रुव, लालजीत राठिया और शिशुपाल सिंह सोरी शामिल हैं.

शहरी क्षेत्र में कलेक्टर की अनुमति से होती है जमीनों की खरीदी

सर्व आदिवासी समाज के नेताओं ने कहा है कि आदिवासियों की शहरी क्षेत्र की जमीन की खरीदी बिक्री कलेक्टर की अनुमति से होती है. ऐसे में सपष्ट होना चाहिए कि संशोधन पूरे प्रदेश में लागू होगा या फिर शहरी क्षेत्र में. साथ ही संशोधन कमेटी में आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाना चाहिए.

पढ़ें-EXCLUSIVE: पर्यावास के नाम पर अबूझमाड़ में आदिवासी और नक्सली आमने-सामने !

बीजेपी ने कांग्रेस सरकार पर बोला हमला

कांग्रेस सरकार की ओर से आदिवासियों की जमीन और उनके अधिकारों को लेकर विधायकों की उपसमिति पर बीजेपी के पूर्व मंत्री केदार कश्यप ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा कि भूपेश सरकार आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों को बेचने की तैयारी कर रही है. आदिवासियों के दम पर बनी सरकार आदिवासियों को उनके जमीन से वंचित करने का षड्यंत्र कर रही है.

'आदिवासियों के अधिकारों पर हनन'

भाजपा सरकार में सरकारी कार्य के लिए आदिवासियों की जमीन उनके सहमति के साथ लेने का प्रस्ताव लाया गया था. तब कांग्रेस के लोगों ने झूठ बोल कर लोगों को गुमराह करके खूब घड़ियाली आंसू बहाए थे. केदार कश्यप ने कहा कि अब कांग्रेस सरकार भू-राजस्व के नियमों में संशोधन कर आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासियों को बेचने की असंवैधानिक सहमति प्रदान करने की कोशिश कर रही है. यह फैसला आदिवासियों के अधिकारों का हनन है.

अमित जोगी का कांग्रेस पर गंभीर आरोप

वहीं इस मामले को लेकर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने भी आपत्ति जताई है. उन्होंने आदिवासियों के अधिकारों के हनन का आरोप लगाया है. अमित जोगी ने कहा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में राज्य जनजाति सलाहकार परिषद की बैठक में लिए गए निर्णय आदिवासी विरोधी हैं. इसके लिए विधायकों की उप समिति को उन्होंने आदिवासी विरोधी परिषद की भी उपमा दे दी है.

पढ़ें-वन अधिकार पत्र ने बदली जशपुर के आदिवासी किसान की जिंदगी, खेती हुई आसान

'औद्योगिक घरानों को जमीन सौंपना चाहती है सरकार'

अमित जोगी ने इस निर्णय को लेकर कहा है कि भू-कानूनविदों ने आदिवासियों के हक और हित के लिए बहुत सोच समझकर राजस्व संहिता की धारा 170 (ख) का प्रावधान रखा है. उस पर पुनर्विचार कैसे और क्यों किया जा रहा है. अमित जोगी ने आशंका जताई है कि सरकार उपसमिति की आड़ में आदिवासी क्षेत्रों की खनिज संपदा को बड़े औद्योगिक घरानों को सौंपना चाहती है.

कांग्रेस सरकार की बढ़ सकती हैं मुश्किलें

कांग्रेस सरकार ने छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के अधिकारों को लेकर अब नियमों में संशोधन करने के लिए विधायकों की उप समिति तो बना दी है. लेकिन इस समिति के बनने के साथ ही प्रदेश की राजनीति में उफान आ गया है. ना केवल राजनीतिक गलियारों में बल्कि सर्व आदिवासी समाज ने भी इसे लेकर अब चिंता जताई है. छत्तीसगढ़ राज्य की जहां 40 फीसदी आबादी आदिवासी समाज की है. प्रदेश की अर्थव्यवस्था से लेकर राजनीतिक, सामाजिक क्षेत्र में आदिवासियों की महत्ता को अनदेखा नहीं किया जा सकता. ऐसे में उप-समिति का गठन विवादों का कारण बन गया है.

रायपुर: छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की जमीन और अधिकारों को लेकर एक बार फिर से राज्य सरकार और आदिवासी समाज आमने-सामने है. दरअसल, राज्य सरकार की ओर से आदिवासियों की जमीन की खरीदी बिक्री के लिए कानून में बदलाव का प्रस्ताव लाया जा रहा है. वर्तमान कानून के तहत आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासी नहीं खरीद सकता है. अब छत्तीसगढ़ सरकार ने विकास की संभावनाओं को तलाशने के उद्देश्य से कानून में संशोधन के लिए आदिवासी विधायकों की कमेटी का भी गठन कर दिया है. इसे लेकर ना केवल आदिवासी समाज बल्कि विपक्ष और तमाम जानकार भी इसका विरोध कर रहे हैं.

आदिवासियों की जमीन पर सियासी घमासान

छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य राज्य के रूप में जाना जाता है. प्रदेश में बस्तर से लेकर सरगुजा तक का बड़ा भू-भाग आदिवासी समाज का प्रमुख इलाका माना जाता है. अब छत्तीसगढ़ सरकार विकास की संभावनाओं को तलाशने के उद्देश्य से वन अधिकार कानून में संशोधन करने जा रही है. जिसके लिए आदिवासी विधायकों की कमेटी का गठन भी कर दिया है. इसे लेकर अब तमाम आदिवासी समाज में विरोध भी शुरू हो चुका है.

पढ़ें-छत्तीसगढ़ में भू-राजस्व की धाराओं में संशोधन के लिए उप समिति गठित

आदिवासी समाज के पदाधिकारियों का कहना है कि पिछली सरकार जो गड़बड़ी कर रही थी उसे अब कांग्रेस सरकार संवैधानिक अमलीजामा पहनाने जा रही है. इसके लिए सरकार ने विधायकों की कमेटी बनाई है. सरकार की ओर से गठित कमेटी को रमन सरकार के कार्यकाल में हुए गैरकानूनी जमीन हस्तांतरण को वापस कराने का काम करना चाहिए. इसके विपरीत पुराने हस्तांतरण को कानूनी मान्यता देकर आदिवासियों की जमीन के लिए कॉरपोरेट लूट का रास्ता साफ किया जा रहा है.

सर्व आदिवासी समाज ने पहले भी किया था विरोध

पांचवी अनुसूची में स्पष्ट है कि आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासी नहीं खरीद सकते हैं. इससे आदिवासी समाज भूमिहीन हो जाएंगे. ऐसे में प्रदेश सरकार का संशोधन करने का प्रयास संविधान की मूल मंशा के खिलाफ है. सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि भू राजस्व संहिता की किन-किन धाराओं में संशोधन करना चाहती है. सरकार की मंशा आदिवासियों के हितों के खिलाफ होगी तो उसका पुरजोर विरोध किया जाएगा. पिछली भाजपा सरकार में भी आपसी सहमति से जमीन लेने के अधिकार का सर्व आदिवासी समाज ने विरोध किया था.

समिति में बस्तर और सरगुजा के आदिवासी विधायक शामिल

राज्य सरकार ने जनजाति समुदाय के हित में भू-राजस्व की धाराओं में संशोधन करने के संबंध में उप समिति गठित की है. इसमें बस्तर और सरगुजा के आदिवासी विधायकों को शामिल किया गया है. समिति में विधायक मोहन मरकाम, चिंतामणि महाराज, इंदरशाह मंडावी, लक्ष्मी ध्रुव, लालजीत राठिया और शिशुपाल सिंह सोरी शामिल हैं.

शहरी क्षेत्र में कलेक्टर की अनुमति से होती है जमीनों की खरीदी

सर्व आदिवासी समाज के नेताओं ने कहा है कि आदिवासियों की शहरी क्षेत्र की जमीन की खरीदी बिक्री कलेक्टर की अनुमति से होती है. ऐसे में सपष्ट होना चाहिए कि संशोधन पूरे प्रदेश में लागू होगा या फिर शहरी क्षेत्र में. साथ ही संशोधन कमेटी में आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाना चाहिए.

पढ़ें-EXCLUSIVE: पर्यावास के नाम पर अबूझमाड़ में आदिवासी और नक्सली आमने-सामने !

बीजेपी ने कांग्रेस सरकार पर बोला हमला

कांग्रेस सरकार की ओर से आदिवासियों की जमीन और उनके अधिकारों को लेकर विधायकों की उपसमिति पर बीजेपी के पूर्व मंत्री केदार कश्यप ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा कि भूपेश सरकार आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों को बेचने की तैयारी कर रही है. आदिवासियों के दम पर बनी सरकार आदिवासियों को उनके जमीन से वंचित करने का षड्यंत्र कर रही है.

'आदिवासियों के अधिकारों पर हनन'

भाजपा सरकार में सरकारी कार्य के लिए आदिवासियों की जमीन उनके सहमति के साथ लेने का प्रस्ताव लाया गया था. तब कांग्रेस के लोगों ने झूठ बोल कर लोगों को गुमराह करके खूब घड़ियाली आंसू बहाए थे. केदार कश्यप ने कहा कि अब कांग्रेस सरकार भू-राजस्व के नियमों में संशोधन कर आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासियों को बेचने की असंवैधानिक सहमति प्रदान करने की कोशिश कर रही है. यह फैसला आदिवासियों के अधिकारों का हनन है.

अमित जोगी का कांग्रेस पर गंभीर आरोप

वहीं इस मामले को लेकर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने भी आपत्ति जताई है. उन्होंने आदिवासियों के अधिकारों के हनन का आरोप लगाया है. अमित जोगी ने कहा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में राज्य जनजाति सलाहकार परिषद की बैठक में लिए गए निर्णय आदिवासी विरोधी हैं. इसके लिए विधायकों की उप समिति को उन्होंने आदिवासी विरोधी परिषद की भी उपमा दे दी है.

पढ़ें-वन अधिकार पत्र ने बदली जशपुर के आदिवासी किसान की जिंदगी, खेती हुई आसान

'औद्योगिक घरानों को जमीन सौंपना चाहती है सरकार'

अमित जोगी ने इस निर्णय को लेकर कहा है कि भू-कानूनविदों ने आदिवासियों के हक और हित के लिए बहुत सोच समझकर राजस्व संहिता की धारा 170 (ख) का प्रावधान रखा है. उस पर पुनर्विचार कैसे और क्यों किया जा रहा है. अमित जोगी ने आशंका जताई है कि सरकार उपसमिति की आड़ में आदिवासी क्षेत्रों की खनिज संपदा को बड़े औद्योगिक घरानों को सौंपना चाहती है.

कांग्रेस सरकार की बढ़ सकती हैं मुश्किलें

कांग्रेस सरकार ने छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के अधिकारों को लेकर अब नियमों में संशोधन करने के लिए विधायकों की उप समिति तो बना दी है. लेकिन इस समिति के बनने के साथ ही प्रदेश की राजनीति में उफान आ गया है. ना केवल राजनीतिक गलियारों में बल्कि सर्व आदिवासी समाज ने भी इसे लेकर अब चिंता जताई है. छत्तीसगढ़ राज्य की जहां 40 फीसदी आबादी आदिवासी समाज की है. प्रदेश की अर्थव्यवस्था से लेकर राजनीतिक, सामाजिक क्षेत्र में आदिवासियों की महत्ता को अनदेखा नहीं किया जा सकता. ऐसे में उप-समिति का गठन विवादों का कारण बन गया है.

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