रायपुर: पीएम सूरक्षा चूक केस (PM security lapse case) को लेकर छत्तीसगढ़ में राजनीति गरम हो गई है. बीजेपी पीएम सुरक्षा मामले को लेकर एक के बाद एक आंदोलन और प्रदर्शन किए जा रही है. यहां तक कि मृत्युंजय जाप भी कराया जा रहा है. इस बीच कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर (Congress State Spokesperson Dhananjay Singh Thakur) ने कहा कि झीरम नक्सली हमला (jhiram naxalite attack 2013) भी हुआ था. उस दौरान भाजपा पूरे मामले को लेकर चुप्पी क्यों साध रखी थी? इस हमले के बाद कई साल बाद भी इस पूरी घटना से पर्दा नहीं उठ सका. जिसे कांग्रेस एक राजनीतिक षड्यंत्र करार दे रही थी.
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कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर (Congress State Spokesperson Dhananjay Singh Thakur) का कहना है कि साल 2013 में झीरम में नक्सली हमला हुआ था. उसमें कांग्रेस के बड़े नेताओं ने अपनी जान गंवाई. उस दौरान प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी, लेकिन इस मामले में न तो कोई बड़ी कार्रवाई की गई और ना ही इस मामले की जांच पूरी हो सकी है. उनका कहना है कि बीजेपी प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर राजनीति कर रही है, क्योंकि पांच राज्यों में चुनाव होने हैं और ऐसे में वह लोगों की सहानुभूति हासिल करने लिए इस तरह के बयान दे रही है.
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास (BJP State Spokesperson Gaurishankar Shrivas) का कहना है कि कांग्रेस इस मामले को झीरम से जोड़कर देख रही है. यह सरासर गलत है. इस मामले में राज्य सरकार ने जांच के लिए एसआईटी का गठन किया है. जब न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट आ चुकी है. राज्य सरकार उसे सार्वजनिक नहीं कर रही है. उस रिपोर्ट को राज्य सरकार सार्वजनिक क्यों नहीं कर रही है? किस-किस के उसमें नाम है, कौन लोग उसमें शामिल है ? इन सारी सवालों का खुलासा कांग्रेस पार्टी को करना चाहिए.
गौरीशंकर ने कहा कि जो लोग उस दौरान कहते थे कि झीरम मामले के हमारे पास सबूत है. उस सबूत को अब क्यों नहीं दिया जा रहा है, यह एक बड़ा सवाल है. झीरम की संवेदना का लाभ लेने की कोशिश कांग्रेस कर रही है.
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झीरम नक्सली हमले को हो चुके हैं लगभग साढ़े 8 साल
झीरम नक्सल हमले को लगभग साढ़े 8 साल हो चुके हैं, लेकिन अब भी कई अनसुलझे सवाल हैं. जिनका जवाब आना अभी भी बाकी है. 25 मई 2013 को कांग्रेस नेताओं के काफिले पर बस्तर की झीरम घाटी में नक्सलियों ने हमला बोला था. इस हमले में विद्याचरण शुक्ल, नंदकुमार पटेल, महेन्द्र कर्मा जैसे बड़े नेताओं समेत करीब 29 लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. मामले में रमन सिंह की नेतृत्व वाली तत्कालीन भाजपा सरकार ने इस घटना की न्यायिक जांच कराने का फैसला किया था.
घटना की जांच के लिए आयोग का गठन 28 मई वर्ष 2013 को किया गया था. राष्ट्रीय अन्वेषण जांच एजेंसी (NIA) ने भी मामले की जांच शुरू की थी. वर्ष 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मामले की जांच के लिए SIT का गठन किया गया है. इस बीच छत्तीसगढ़ में वर्ष 2013 में हुए झीरम घाटी हमले की जांच कर रहे आयोग ने अपनी रिपोर्ट राज्यपाल अनुसुईया उइके को सौंप दी.
राजभवन के अधिकारियों ने यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि यह रिपोर्ट आयोग के सचिव और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) संतोष कुमार तिवारी ने सौंपी. इसके बाद झीरम घाटी नक्सली हमले की जांच के लिए छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ने न्यायिक जांच आयोग में नए अध्यक्ष की नियुक्ति भी की. जांच आयोग के अध्यक्ष जस्टिस सतीश के अग्निहोत्री बनाए गए हैं. जस्टिस मिन्हाजुद्दीन को सदस्य बनाए गए हैं.
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झीरम एक नरसंहार
इस तरह झीरम कांड को एक तरह का नरसंहार भी कहा गया. घटना ने छत्तीसगढ़ से कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को एक झटके में छीन लिया. इस कांड के बाद NIA की जांच जारी है. इस मामले में कई सियासी आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे हैं. झीरम में हुए इस नक्सली हमले से बचकर निकले. कई लोगों या मारे गए लोगों के परिजनों को भूपेश सरकार में अहम स्थान दिया गया है.
सीएम भूपेश बघेल ने झीरम के जख्म को सहानुभूति भरे फैसले लेकर भरने की कोशिश जरूर की है, लेकिन इस कांड से पर्दा अभी उठना बाकी है. इस दौरान मामले को लेकर भाजपा का चुप्पी साधना और अब पीएम सुरक्षा को लेकर देशभर में उनका आंदोलन प्रदर्शन करना, कहीं ना कहीं राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है.